वर्षा तुम जल्दी आना
फिर से काले बादल छाए हैं
जल गगरी भर भर लाए हैं,
बादल गरजे,बिजली चमके
अम्बर दमके,धरती महके ।
प्यासी धरती, प्यासी नदिया
सूखे तरू, सूखी बगिया,
सब तेरी राह ही तकते हैं
सब जल बिन आज सिसकते हैं ।
आओ वर्षा अब तुम आओ
इस सृष्टि को तुम नहलाओ,
रंग भरो तुम फिर से जग में
उमंग जगाओ रग रग में ।
आओ जब तुम तो मैं नाचूँगी
तेरे जल में बच्ची बन मैं खेलूँगी,
छत पर इक ऐसा कोना है
वहीं पर तूने मुझे भिगोना है ।
देख नहीं कोई पाएगा
जान कोई नहीं पाएगा,
तुम और मैं फिर से खेलेंगे
तेरे संगीत पर पैर फिर थिरकेंगे ।
अबकी बार ना मैं रोऊँगी
बच्चों की याद में ना खोऊँगी,
पकड़ूँगी मैं तेरे जल के चमचम मोती
ना बोलूँगी काश जो साथ में बेटी होती ।
अकेले रास रचाऊँगी मैं
तेरे जल में खो जाऊँगी मैं,
देख तेरी और मेरी क्रीड़ा
भाग जाएगी मन की हर पीड़ा ।
अबकी ना नयनों नीर बहाऊँगी मैं
बस तेरे स्वागत में लग जाऊँगी मैं,
ना जाऊँगी यादों के गलियारों में
ना भटकूँगी फिर उन राहों में ।
बच्चों को इक पाती लिख दूँगी
तुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,
वर्षा तुम जल्दी से आ जाना
मेरे तन मन को भिगा जाना ।
घुघूती बासूती