फिर से काले बादल छाए हैं
जल गगरी भर भर लाए हैं,
बादल गरजे,बिजली चमके
अम्बर दमके,धरती महके ।
प्यासी धरती, प्यासी नदिया
सूखे तरू, सूखी बगिया,
सब तेरी राह ही तकते हैं
सब जल बिन आज सिसकते हैं ।
आओ वर्षा अब तुम आओ
इस सृष्टि को तुम नहलाओ,
रंग भरो तुम फिर से जग में
उमंग जगाओ रग रग में ।
आओ जब तुम तो मैं नाचूँगी
तेरे जल में बच्ची बन मैं खेलूँगी,
छत पर इक ऐसा कोना है
वहीं पर तूने मुझे भिगोना है ।
देख नहीं कोई पाएगा
जान कोई नहीं पाएगा,
तुम और मैं फिर से खेलेंगे
तेरे संगीत पर पैर फिर थिरकेंगे ।
अबकी बार ना मैं रोऊँगी
बच्चों की याद में ना खोऊँगी,
पकड़ूँगी मैं तेरे जल के चमचम मोती
ना बोलूँगी काश जो साथ में बेटी होती ।
अकेले रास रचाऊँगी मैं
तेरे जल में खो जाऊँगी मैं,
देख तेरी और मेरी क्रीड़ा
भाग जाएगी मन की हर पीड़ा ।
अबकी ना नयनों नीर बहाऊँगी मैं
बस तेरे स्वागत में लग जाऊँगी मैं,
ना जाऊँगी यादों के गलियारों में
ना भटकूँगी फिर उन राहों में ।
बच्चों को इक पाती लिख दूँगी
तुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,
वर्षा तुम जल्दी से आ जाना
मेरे तन मन को भिगा जाना ।
घुघूती बासूती
Tuesday, June 12, 2007
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लगता है अब आपकी पुकार सुनकर जल्दी से वर्षा रानी आ ही जायेंगी...हम भी इंतजार में हैं...
ReplyDeleteऐसी माताएँ चाहिए । जो "बच्चों को इक पाती लिख दूँगी
ReplyDeleteतुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,"
और साथ साथ - "अकेले रास रचाऊँगी मैं
तेरे जल में खो जाऊँगी मैं," - यह मिजाज रखें । साधुवाद ।
वर्षा............... अपने आप मे एक सम्पूर्ण महकाव्य है. इस महकाव्य के लिये काव्य रचना पर साधुवाद.
ReplyDeleteजी पिछ्ले सप्ताह की गर्मी से जूझते जूझते न जाने कितनी बार बारिश का चर्चा हुआ... काश बादल और इन्द्रदेव आप की पुकार सुन लें और रिमझिम...नही नही... धडाके से बरसें.
ReplyDeleteखाली नीड़ में हर खुशी भी दुखभरी यादें जगा देती है. आप की कविता में तो सारा उपन्यास छुपा बैठा है.
ReplyDeleteशिल्पित हो कल्पना आपकी
ReplyDeleteआशा बरखा बन कर बरसे
जो भी हो प्यासा- मन, धरती
हर कोई अब हरषे, सरसे
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबारिश………………………
आपकी पुकार के बाद आ ही जाना चाहिये अब तो बरखा रानी को।
बढ़िया , भावपूर्ण रचना!
पुनः एक बेहतरीन रचना. पुकार अवश्य सुनी जायेगी, शुभकामनायें.
ReplyDeleteव्यापक विषय को बड़े ही संजीदा ढंग से पेश किया है और यह उम्मीद आपसे ही होती है हमेशा…।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना!!!
बहुत ही सुन्दर रचना जिसका प्रवाह प्रभावित करता है।
ReplyDeleteबच्चों को इक पाती लिख दूँगी
तुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,
वर्षा तुम जल्दी से आ जाना
मेरे तन मन को भिगा जाना
संवेदित भी किया है आपने अंतिम पंक्तियों में। लगता है इस बार मानसून जल्दी आयेगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
achchee bhawna. magar ek sath kai tarah ke vibhram bhee. aisa kyon? mornee kee tarah, jo varsha ke aagman par khushi se naachtee bhee hai to kabhee rone lagtee hai?
ReplyDelete:)
काश मेघ राज आपकी पुकार सुन कर जल्दी आ जायें..हम दिल्ली वासी बहुत आहत हो चुके है..बिन बारिश के सभी का बुरा हाल है...एसे में आपकी कविता ने मौसम सुहाना बना दिया...:)
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
please please O'thy god of rain .. shower the grace and take all the heat away..so we tunes as sur and taal ...and I'm always dancing with you in the summer rain.
ReplyDeleteAbhi
प्रकृति का एक ऐसा संश्लिष्ट चित्र प्रस्तुत किया है जिसमें अपनी अनुभूति की व्यापकता के कारण प्रकृति के रम्य (वर्षा) एवं भयानक रूप (प्यासी धरती, प्यासी नदिया आदि)की बड़े सुंदर ढंग से झांकी दिखाई है।
ReplyDelete"अबकी ना नयनों नीर बहाऊँगी मैं
बस तेरे स्वागत में लग जाऊँगी मैं,
ना जाऊँगी यादों के गलियारों में
ना भटकूँगी फिर उन राहों में ।"
उक्त पंक्तियां बहुत अच्छी लगी।
हमें भी वर्षा का इंतजार है , मेरा भी पसंदीदा मौसम है। अति सुंदर कविता
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