कल सपने में पतझड़ आया था
साथ अपने सुनहरी पत्ते लाया था
मैं खड़ी थी इक वृक्ष के नीचे
आ रहे थे पवन के झोंके
हर झोंका लाता था उड़ते पत्ते
उड़ते, बहते साथ पवन के
धीमे धीमे नीचे को आते
पीले, भूरे, कुछ लाली वाले
सुन्दर प्यारी धरती पर आते
कुछ मेरे बालों में फंसे पड़े थे
कुछ गालों को सहला जाते
नीचे पत्तों का कालीन बिछा था
उनपर जब पाँव मेरा पड़ता था
भुरभुराते से वे भूरे सूखे पत्ते
पैरों को सहलाते झुरझुरी फैलाते।
मैं ऊपर डालों को अतीत
अपना झाड़ते देख रही थी
ना वृक्षों के आँसू निकले
ना चीख किसी पत्ते की आई
ना थे वहाँ विदाई के आँसू
चुपके से इक पत्ता था
छोड़ रहा जीवन का बन्धन
मुक्त हवा में वह उड़ता था
जैसे हाथ हिला कर मुस्काता
अपने जीवन स्रोत को विदा कहता
जा रहा था वह धरती से मिलने
जानता हो जैसे हर पत्ता
नवजीवन को लाने को
प्रकृति की छटा बढ़ाने को
इक दिन सबको जाना होगा ।
मैं वृक्षों की पंक्ति के नीचे
मंत्रमुग्ध सी चलती जाती
शायद सारी रात चली थी
भोर की जब किरणे आईं
जब देखा मैंने मुड़कर तो
सफेद, गुलाबी और नारंगी
फूल खिले थे हर डाली पर
देख अपने ही सौन्दर्य को
जैसे सब वृक्ष मुग्ध हुए थे।
जाना तब मैंने भी जीवन का सार
जब आता है विदा लेने का काल
ना रिरियाना, ना घबराना
हल्के से सब बंधन प्राणों के तोड़
इक पत्ते सा धीरे धीरे से धरती पर गिरना
ना पकड़े रहना जीवन की छूटी जाती डोर
ना आँसू ना मातम करना
नव जीवन तब ही आएगा
थका पुराना जीवन जब जाएगा ।
घुघूती बासूती
सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकितनी आसानी से इतनी गहरी बात कह गयी। काबिले तारीफ..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .इतना कहना काफ़ी नहीं है.कितनी सादगी से इतनी गहरी बात कह दी आपने .
ReplyDeleteना पकड़े रहना जीवन की छूटी जाती डोर
ना आँसू ना मातम करना
नव जीवन तब ही आएगा
थका पुराना जीवन जब जाएगा
बहुत बढिया रचाना है।बधाई।
ReplyDeleteवाह जी वाह. इतनी गहरी बात कितनी सादगी और कितने अच्छे उदाहरण के साथ आपने कही. आपका जवाब नही. बहुत ही अच्छी कविता.
ReplyDeleteसादगी के साथ शानदार अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुत किए हैं आपने भाव!!
हल्के से सब बंधन प्राणों के तोड़
ReplyDeleteइक पत्ते सा धीरे धीरे से धरती पर गिरना
---- बहुत भावभीनी रचना !
bhut acha hai, sadgi aur dil ko cho lene wali
ReplyDeleteजेहन की कोख से निकली हुई वेहद सुंदर और संवेदना को छूती हुई कविता , बधाईयाँ !
ReplyDeleteइक पत्ते सा धीरे धीरे से धरती पर गिरना
ReplyDeleteना पकड़े रहना जीवन की छूटी जाती डोर
ना आँसू ना मातम करना
नव जीवन तब ही आएगा
थका पुराना जीवन जब जाएगा ।
बेहद खूबसूरत रचना रच डाली है आपने ..बहुत अच्छी लगी मुझे यह
You are not updating your english blog...why?
ReplyDelete@ नवजीवन को लाने को
को... को ...???
@ इक पत्ते सा धीरे धीरे से धरती पर गिरना...
सा... से ... ????
कुछ खटकता है लेकिन अच्छी कविता.
सुन्दर, भावपूर्ण, अर्थपूर्ण।
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