फिर से नाच रहा है मोर
चिरप्रतीक्षित वर्षा ॠतु आई है,
मैंढक मिलकर शोर मचाते
ले जल काली बदरी आई है।
गरज रहे हैं बादल काले
चमक रही नभ में बिजली है,
सूर्य जा छिपा बादल के पीछे
सतरंगी रंग नभ में छाए हैं।
चिहुँक रहे हैं पंछी सारे
भंवरे भी आज बौराए हैं,
खिल रही हैं सारी कलियाँ
तितली ने रंग बिखराए हैं।
हरित प्रहरी से वृक्ष झूमते
मादक सुमन सुगन्ध छाई है,
हर मन हो रहा आज बाँवरा
सावन ने प्रणय धुन बजाई है।
रिमझिम पड़ती बौछारों से
नई कोंपलें चहुँओर उग आईं हैं,
धरती का आँचल हरा हो गया
अम्बर ने नए वस्त्र पहनाए हैं।
पंख फैलाकर मोर नाचता
मोरनी को उसे लुभाना है,
झूम झूमकर नाच नाचकर
प्रिया को आज रिझाना है।
घुघूती बासूती
पुनश्चः वर्षा पर एक और कविता .....वर्षा तुम जल्दी आना
घुघूती बासूती
Monday, June 30, 2008
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बहुत भला लगा,
ReplyDeleteये वर्षा के सौँदर्य का गीत -
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या
वाह वाह वाह!
ReplyDeleteमन मयूर झूम उठा.
छायावाद उभर आया जी,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
bahut sundar varnan hai...
ReplyDeletelucky hain aap jo barsaat ka anand le rahe hain --yahan mere shahar mein temp=49 official hai 51 unofficial hai....:(--aap ki kavitaon se hi barish ka lutf utha rahe hain..:)
अजी हमारे यहाँ तो बरखा बहार पहले ही आ चुकी है। और आपकी बरखा बहार भी सुन्दर है।
ReplyDeleteफिर से नाच रहा है मोर
चिरप्रतीक्षित वर्षा ॠतु आई है,
मैंढक मिलकर शोर मचाते
ले जल काली बदरी आई है।
पंख फैलाकर मोर नाचता
मोरनी को उसे लुभाना है,
झूम झूमकर नाच नाचकर
प्रिया को आज रिझाना है।
हर मन हो रहा आज बाँवरा
ReplyDeleteसावन ने प्रणय धुन बजाई है।
बहुत सुंदर लगा यह वर्षा गीत ..
वाह वाह वाह!
ReplyDeleteये तो पाठ्यपुस्तक के प्रकृति सौंदर्य वाली किसी कविता के समान लगी !... बहुत खुबसूरत.
ReplyDeletebehtarin,aafrin,bahut hi sundar rachana badhai
ReplyDeleteअरे वाह यहा भी बारिश.. लगता है ब्लॉग जगत में मानसून आ गया... बहुत सुंदर लिखा आपने
ReplyDeletevha bhut sundar. jari rhe.
ReplyDeleteगरज रहे हैं बादल काले
ReplyDeleteचमक रही नभ में बिजली है,
सूर्य जा छिपा बादल के पीछे
सतरंगी रंग नभ में छाए हैं।
बहुर सुन्दर रचना ,
सादर
हेम ज्योत्स्ना
वर्षा गीत मनभावन है, बहुत बधाई.
ReplyDeleteवर्षा ऋतु वर्णन के समृद्ध भारतीय काव्य जगत को आपका यह उपहार पसंद आया
ReplyDeleteAapki tippanike liye dhanyawad!
ReplyDeleteAaj pehli baar is bahane aapke blogpe aayi aur warshaa geet ka aanand uthaya!!
Ab aurbhi padhne jaa rahi hun!!
Shama
वाह!
ReplyDeleteबहुर सुन्दर रचना...यह गीत मनभावन कविता के समान लगी
रिमझिम पड़ती बौछारों से
ReplyDeleteनई कोंपलें चहुँओर उग आईं हैं,
धरती का आँचल हरा हो गया
अम्बर ने नए वस्त्र पहनाए हैं।
behad sundar aur saral rachna!!
dil ko choone vali .
बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!
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