Thursday, March 13, 2008

अकेली

खड़ी हूँ अकेली सुनसान बीहड़ में
ना किसी ओर कोई राह जाती है,
खोई हूँ ऐसे निःशब्द सन्नाटे में
ना कहीं से कोई आवाज आती है ।


पथराई आँखें ढूँढती घनघोर अंधेरे में
ना कहीं कोई प्रकाश किरण आती है,
जीवन बना है अंधा कूँआ जिसमें से
मेरी गूँज तक ना लौटकर आती है ।


सारा जीवन सजाया रेत के महल को
ना आज तो वहाँ कोई भी रहता है,
खो गए हैं महल के सारे निशान भी
यहाँ कभी कोई था, न कोई कहता है ।


अश्रुजल से भिगो भिगो सींचा जिस चमन को
आज वीरान है वह, ना कोई फल फूल लगता है,
प्रेम से बोया, संजोया जिस गुलाब के पौधे को
फूलों की क्या बात,उसमें इक काँटा ना लगता है ।


मन ने जाने कितने बुने थे स्वप्न सुन्दर से
पर आज पाया, यह तो मकड़ी का जाला है,
मन आत्मा का मंथन कर जो अमृत समझा
अब पीया तो जाना कि वह तो शुद्ध हाला है ।


प्यार के सागर में गोते खा खाकर चुने जो मोती
पिरो पिरो कर हारी पर बनती ना कोई माला है,
कामदेव का तीर समझ जिसे हँस वक्ष पर झेला
आँख खुली तो जाना वह तो विष बुझा भाला है ।


जिसे जीवन समझकर जीती रही पल पल मैं
आज जाना वह तो बस इक भ्रम ही पाला है,
सुधा समझ जिसे प्रेम से पीती रही थी अबतक
सदा से खाली ही तो रहा वह मेरा प्याला है ।


घुघूती बासूती

8 comments:

  1. आपकी लेखनी निराशा से आशा की ओर ले जाती है। आज क्या हो गया? कही आप परेशान तो नही? आप इस हिन्दी ब्लाग जगत को अपना परिवार ही समझे।

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  2. जिसे जीवन समझकर जीती रही पल पल मैं
    आज जाना वह तो बस इक भ्रम ही पाला है,
    सुधा समझ जिसे प्रेम से पीती रही थी अबतक
    सदा से खाली ही तो रहा वह मेरा प्याला है ।


    --हम्म!! उम्दा एवं गहरा भाव!!

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  3. ghughuti jee,
    saadar abhivaadan, sach kaha aapne ye ek vidambanaa hee hai ki sabke beech rehte hue bhee aaj har koi akela hai. achha laga hamesha kee tarah.

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  4. Anonymous12:16 pm

    सुधा समझ जिसे प्रेम से पीती रही थी अबतक
    सदा से खाली ही तो रहा वह मेरा प्याला है ।
    bahut gehre sundar bhav

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  5. बहुत सुंदर...भाव भरी गंभीर रचना

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  6. प्रेम से बोया, संजोया जिस गुलाब के पौधे को
    फूलों की क्या बात,उसमें इक काँटा ना लगता है ।

    सच में कुछ ऐसा ही मिजाज होता जा रहा है इस फरेबी जमाने और मौसम का। मेरे मन की संवेदनाओं में भी आपकी कविता पढ़कर कुछ हलचल हुई। धन्यवाद।

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  7. उतार-चढ़ाव को प्रतिध्वनित करती बढ़िया रचना।

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  8. जिसे जीवन समझकर जीती रही पल पल मैं
    आज जाना वह तो बस इक भ्रम ही पाला है,
    सुधा समझ जिसे प्रेम से पीती रही थी अबतक
    सदा से खाली ही तो रहा वह मेरा प्याला है ।


    bahut badhiya ,uttam.

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