क्या कुछ भी नहीं बचा है
इस पल में कुछ नहीं रखा है,
मैं थी बैठी रही प्रतीक्षारत
तेरे पास ना इक शब्द बचा है ।
तेरे मेरे बीच अब आए हैं
रिश्तों के कितने बड़े चौराहे,
घूमघाम कर अबतक मेरी राहें
मीत अब दुरूह इन्हें पाए हैं।
कुछ कुछ मुझे भी बोध हुआ है
थक जाने से कुछ क्षोभ हुआ है,
व्यस्त जीवन जीना है अब तूने
हृदयों बीच अब अवरोध हुआ है ।
जाने को अब तू व्यग्र हुआ है
आगे इक कदम बढ़ा हुआ है,
जा, जा अब ओ मेरे मितवा
जाने को तू मुक्त हुआ है ।
घुघूती बासूती
Wednesday, March 12, 2008
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सुंदर पर जटिल वैचारिक रचना है। पर "व्यस्त जीवन जीना है अब तूने" पंक्ति खटक रही है मेरे विचार में इसे कुछ यूँ नहीं होना चाहिए "जीवन व्यस्त जिया अब तक हमने"?
ReplyDeleteयह विरह है बिछुड़न है तड़प है खैर जो भी है अच्छी है.
ReplyDeletebahut khubsurat,rishtey,pakadke rakho ghute jate hai,chod do khone ka dar hota hai,shayad thik hi hai mukt hawa mein saans lete rishtey hi panapte hai,sundar.
ReplyDeleteghughuti jee,
ReplyDeleteis pal aapko padh rahe hain to is pal mein hamare liye bahut kuchh rakha hai. achha laga padhna hamesha kee tarah.
ह्म्म, तो इन दिनों आप "कवि" मोड में चली गई हैं "गद्य मोड" की बजाय!!
ReplyDeleteसही है, वैसे आप दोनो ही मोड में बढ़िया लिखती हैं!!
कवि मोड में खासा अर्थपूर्ण और संस्मरण मोड में तो और बढ़िया!!
बस थोड़ा सा एंग्रीयंगवुमेन मोड में पहुंचती है तो लोचा हो जाता है ;)
नहीं जी आप एंग्रीयंगवुमेन मोड में भी अच्छी लगती है, मुझे तो हर टाइप में अच्छी लगती हैं। हम समझ सकते है कि किन मन:स्थीती में ये कविता का जन्म हुआ होगा, बड़िया है। जिन्दगी की थाली में हर रस के अनुभव परोसे हुए हैं वो खाए तो ये भी सही।
ReplyDeleteआपकी कविता जैसे मेरी कहानी ....भावभीनी.
ReplyDeleteक्या कुछ भी नहीं बचा है
ReplyDeleteइस पल में कुछ नहीं रखा है,
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भावार्थ
लगता है आपको भी शेयर बाजार में घणा घाटा हो लिया है।
क्या कुछ भी नहीं बचा है-
लाइन का आशय है कि कवियित्री ब्लागरों से पूछ रही है कि हे ब्लागर बंधु रिलायंस पावर आफ हो जाने के बाद, सेनसेक्स का साइज हाफ हो जाने के बाद, तेरा सब कुछ साफ हो जाने के बाद क्या कुछ नहीं बचा है।
कवियित्री सेनसेक्स की पीड़ा को अपनी कविता में मुखर स्वर देना चाहती हैं। इस तरह से जन सरोकार से अपनी कविता को जोड़ रही हैं। इस तरह से कवियित्री की कविता में युगबोध से संदर्भित आयामित चेतना के प्रत्यय का नवीन साक्षात्कार होता है(इस आखिरी लाइन का मतलब मुझसे ना पूछें, मुझे मालूम नहीं है।)
एक अच्छे गद्द्यकार की अच्छी कविता
ReplyDeleteचंद लाइनों में जो आपने कहा, वह शायद लम्बे लेख नहीं कह सकते। यही कविता का सौंदर्य है।
ReplyDeleteमैं भी पूरी तरह बाज़ारमुनि पुराणिक के व्योहारिक तारकारिक रायों से सहमति रखता हूं..
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