यह कविता जून 12, 2007 को पोस्ट की थी। इस वर्ष वर्षा के मिजाज कुछ अधिक ही बिगड़े हुए हैं। सो बारम्बार उससे बरसने की प्रार्थना करते हुए ......
वर्षा तुम जल्दी आना
फिर से काले बादल छाए हैं
जल गगरी भर भर लाए हैं,
बादल गरजे,बिजली चमके
अम्बर दमके,धरती महके ।
प्यासी धरती, प्यासी नदिया
सूखे तरू, सूखी बगिया,
सब तेरी राह ही तकते हैं
सब जल बिन आज सिसकते हैं ।
आओ वर्षा अब तुम आओ
इस सृष्टि को तुम नहलाओ,
रंग भरो तुम फिर से जग में
उमंग जगाओ रग रग में ।
आओ जब तुम तो मैं नाचूँगी
तेरे जल में बच्ची बन मैं खेलूँगी,
छत पर इक ऐसा कोना है
वहीं पर तूने मुझे भिगोना है ।
देख नहीं कोई पाएगा
जान कोई नहीं पाएगा,
तुम और मैं फिर से खेलेंगे
तेरे संगीत पर पैर फिर थिरकेंगे ।
अबकी बार ना मैं रोऊँगी
बच्चों की याद में ना खोऊँगी,
पकड़ूँगी मैं तेरे जल के चमचम मोती
ना बोलूँगी काश जो साथ में बेटी होती ।
अकेले रास रचाऊँगी मैं
तेरे जल में खो जाऊँगी मैं,
देख तेरी और मेरी क्रीड़ा
भाग जाएगी मन की हर पीड़ा ।
अबकी ना नयनों नीर बहाऊँगी मैं
बस तेरे स्वागत में लग जाऊँगी मैं,
ना जाऊँगी यादों के गलियारों में
ना भटकूँगी फिर उन राहों में ।
बच्चों को इक पाती लिख दूँगी
तुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,
वर्षा तुम जल्दी से आ जाना
मेरे तन मन को भिगा जाना ।
घुघूती बासूती
वर्षा तुम जल्दी आना
फिर से काले बादल छाए हैं
जल गगरी भर भर लाए हैं,
बादल गरजे,बिजली चमके
अम्बर दमके,धरती महके ।
प्यासी धरती, प्यासी नदिया
सूखे तरू, सूखी बगिया,
सब तेरी राह ही तकते हैं
सब जल बिन आज सिसकते हैं ।
आओ वर्षा अब तुम आओ
इस सृष्टि को तुम नहलाओ,
रंग भरो तुम फिर से जग में
उमंग जगाओ रग रग में ।
आओ जब तुम तो मैं नाचूँगी
तेरे जल में बच्ची बन मैं खेलूँगी,
छत पर इक ऐसा कोना है
वहीं पर तूने मुझे भिगोना है ।
देख नहीं कोई पाएगा
जान कोई नहीं पाएगा,
तुम और मैं फिर से खेलेंगे
तेरे संगीत पर पैर फिर थिरकेंगे ।
अबकी बार ना मैं रोऊँगी
बच्चों की याद में ना खोऊँगी,
पकड़ूँगी मैं तेरे जल के चमचम मोती
ना बोलूँगी काश जो साथ में बेटी होती ।
अकेले रास रचाऊँगी मैं
तेरे जल में खो जाऊँगी मैं,
देख तेरी और मेरी क्रीड़ा
भाग जाएगी मन की हर पीड़ा ।
अबकी ना नयनों नीर बहाऊँगी मैं
बस तेरे स्वागत में लग जाऊँगी मैं,
ना जाऊँगी यादों के गलियारों में
ना भटकूँगी फिर उन राहों में ।
बच्चों को इक पाती लिख दूँगी
तुम भी नाचो वर्षा में ये कह दूँगी,
वर्षा तुम जल्दी से आ जाना
मेरे तन मन को भिगा जाना ।
घुघूती बासूती
इतनी प्यारी प्रार्थना सुनने के बाद बदरा बरसे बिना रहेंगे क्या?????
ReplyDeleteझमाझम बरसेंगे.....
अनु
सुन लिया उसने ,बस समझिये आ गई!
ReplyDeleteसूखे कपड़े ,तौलिया सब निकाल कर रख लीजिये .
बाद में एक कप चाय ,हो सके तो इधर भी .....
बड़ी प्यारी कविता है...इतने मन से बुलाया तो कैसे ना आतीं वर्षा रानी...
ReplyDeleteझमाझम बरस रही हैं...अब तो :)
वाह,
ReplyDeleteआ जाना हे वर्षा जल्दी..
बहुत सुन्दर घुघूती जी। वर्षा का इंतज़ार पिट्सबर्ग में भी हो रहा है। न होता तो भी आपके इस सुर में सुर मिलाने का प्रयास करते ही!
ReplyDeleteअब तो वर्षा रानी को आना ही पड़ेगा !!
ReplyDeleteअसाढ़ जाने को है अब तो सावन से उम्मीद है।
ReplyDeleteकल हमारे यहां तो आ गयी। आपकी कविता से मुम्बई में भी आएगी।
ReplyDeleteवर्षा की फुहारों में समाया नवजीवन का उमंग.
ReplyDeleteकाश इस सन्देश के साथ बादल उमड़ घुमड़ कर भिगो जाये इस धरा को !
ReplyDeleteलगता है यहाँ मेघों को यही कविता गाकर सुनानी पड़ेगी , मानसून पूर्व की बरखा एक दिन कुछ बूँदें बरसा कर चली गई ...देखें सावन में क्या हो ...आओ बरखा , झूमे , भीगें संग तुम्हारे !
ReplyDeleteप्यारी- सी कविता !
मुंबई से जो खबर मिल रही है उसके मुताबिक़ आपका यह गीत -आह्वान काम कर गया है ......
ReplyDeleteअब तो बरस ही पड़ेंगे सावन ...
ReplyDeleteसुन्दर
सुन्दर सी,प्यारी सी प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपके आवाहन का ही कमाल है कि
कल हमारे यहाँ भी खूब रिमझिम रिमझिम
बरसात हो गयी.