बन स्वप्न बेचने वाला मैं
तेरे घर पर आऊँगा,
बन जोगी मैं तेरे द्वारे
दान तुझे ले जाऊँगा ।
मैं लेकर चूड़ी रंग बिरंगी
तेरे घर पर आऊँगा,
लगा गुहार, गाकर मैं
तेरा दिल ले जाऊँगा ।
मैं बन वन का सुन्दर मोर
तेरे आँगन में नाचूँगा,
नाच नाच कर मन विभोर
मैं चैन तेरा ले जाऊँगा ।
गीत निराले, प्रेम प्यार के
मैं इकतारा लेकर गाऊँगा,
बन बंजारा, प्यार बाँटता
मैं तेरे मन बस जाऊँगा ।
मैं बन नटराज तेरे संग
थिरक थिरक कर नाचूँगा,
कर अविभूत, लगा भभूत
मैं तुझे कैलाश ले जाऊँगा ।
तेरी बगिया के सुन्दर फूलों में
मैं भी इक फूल बन महकूँगा,
या बन तेरा साथी पक्षी
मैं संग तेरे ही चहकूँगा ।
मैं बन घनघोर मेघराज
करके निनाद यूँ कड़कूँगा,
प्रेमरस में तुझे भिगोने
फाड़ हृदय मैं बरसूँगा ।
मैं मस्त पवन का झोंका बन
उड़ता हुआ यूँ आऊँगा,
सहलाकर तेरे आँचल को
ले तेरी खुशबू उड़ जाऊँगा ।
घुघूती बासूती
Monday, April 14, 2008
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बहुत सुंदर, जीवन से भरी हुई
ReplyDeleteजीवन संगीत है, प्यार से भरा आग्रह भी और जिद भी है। इस में। छह लेन की सपाट सड़क पर दौड़ती गाड़ी के वेग से घुसता चला जाता है, पाठक के दिल में यह गीत।
ReplyDeletesunder
ReplyDeletelambe antral ke baad aaj post dekhne ko mili
ReplyDeleteमैं मस्त पवन का झोंका बन
उड़ता हुआ यूँ आऊँगा
achi rachna hai. badhaai
behad khubsurat
ReplyDeleteअरे आप कहाँ चली गई थी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
दिल्ली की गरमी मे ठंडी हवा का झोका,ये आपही कर सकती थी ,चलिये फ़िर से शुरू तो हुआ लेखन :०
ReplyDeleteBAHUT UMDA
ReplyDeleteमस्त है!!
ReplyDeleteगनीमत है आप फ़िर दिखीं तो सहीं, मै तो लापता का इश्तेहार देने की सोचने लगा था ब्लॉगजगत पे ही। :P
हे हे हे हे
ReplyDeleteदिल्ली से जाने के बाद ऐसी मनमोहक कविता !क्या बात है ? शीत लहर चला दी ।
मन मे क्या आया था आपके ?ये तो बिल्कुल ही अलग मूड का लेखन है जी !
बहुत लम्बा इन्तज़ार आखिरकार बहुत ही सुन्दर,जीवन और प्रेम से लबरेज़ कविता की शक्ल में खत्म हुआ.
ReplyDeleteगीत निराले, प्रेम प्यार के
मैं इकतारा लेकर गाऊँगा,
बन बंजारा, प्यार बाँटता
मैं तेरे मन बस जाऊँगा ।
मैं बन नटराज तेरे संग
थिरक थिरक कर नाचूँगा,
कर अविभूत, लगा भभूत
मैं तुझे कैलाश ले जाऊँगा ।
मज़ा आ गया जी.
अनीता जी , दिनेश जी, रचना जी , विजय जी , महक जी , ममता जी , शुएब जी , रिचा जी , संजीत जी ,
ReplyDeleteनोटपैड जी , इला जी , कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद । नोटपैड जी कविता दिल्ली में या दिल्ली से लौटकर नहीं लिखी । जाने से पहले लिखी थी । मूड ! हाहा,वह तो गजब का था ही !
ममता जी ,संजीत जी व इला जी, मैं लगभग दो सप्ताह से अधिक दिल्ली में रही व शेष समय यात्रा की भैंट चढ़ गया । हाँ, दिल्ली मैं अपने साथ शीत लहर का झोंका लेकर गई थी । जब तक रही पंखा पूरे वेग से भी नहीं चलाना पड़ा । अब लौट आई हूँ व आशा है आप सब मुझे झेलते रहेंगे ।
घुघूती बासूती
क्या खूब रचना है.
ReplyDeleteगीत निराले, प्रेम प्यार के
ReplyDeleteमैं इकतारा लेकर गाऊँगा,
बन बंजारा, प्यार बाँटता
मैं तेरे मन बस जाऊँगा ।
आपको अपनी ब्लॉग पर देखकर अच्छा लगा.. धन्यवाद..
आपकी ये रचना मधुरता के साथ साथ एक निर्मल प्रवाह लिए हुए है.. जो इस रचना को विशिष्ट बनाता है..
लगता है आपसे काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा .. बधाई स्वीकार करे..
Sundar likha hai,aisi hi likhti rahen.
ReplyDeleteRegards
bahut sundar kavita hai ,aur shabd bhi bahut hi khubsurity se piroye hai aapne.
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