वह केवल एक है
चाहता अनेक है
यहाँ भी होऊँ
वहाँ भी होऊँ
किसको पाऊँ
किसको खोऊँ
प्रश्न ये अनेक हैं
और वह एक है ।
मन का सारा खेल है
कि वह तो एक है
सबसे उसका मेल है
किन्तु वह एक है ।
वह तो केवल एक है
सबसे उसको प्रेम है
इसका भी रखना ध्यान है
उसका भी रखना ध्यान है
किसको छोड़ूँ
किसको पकड़ूँ
द्वंद ये अनेक हैं
और वह एक है ।
बात ये अजब है
कि वह तो एक है
चाहता वह गजब है
किन्तु वह एक है ।
घुघूती बासूती
Thursday, November 15, 2007
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वह एक है, चाहना अनेक हैं. यही तो मानव जीवन का सत्य है. जिस दिन यह इच्छा खत्म हो गयी इंसान भी खत्म हो जायेगा.
ReplyDeleteमाया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर
आशा तृष्णा ना मरे , कह गये दास कबीर.
आपने सहज रूप में मानव मन का वर्णन कर डाला... मन एक है लेकिन रूप उसके हज़ार हैं तभी तो अंर्तद्वंद में रहता है...
ReplyDeleteइसका भी रखना ध्यान है, उसका भी रखना ध्यान है...
ReplyDeleteयही तो ज़िंदगी है, उसकी लयताल है।
वह केवल एक है
ReplyDeleteचाहता अनेक है
यहाँ भी होऊँ
वहाँ भी होऊँ
किसको पाऊँ
किसको खोऊँ
प्श्न ये अनेक हैं
और वह एक है ।
गजब लाईने लिखीं हैं।
सुन्दर बुनावट
ReplyDeleteहां हम सबका यही हाल है विखंडित व्यक्तित्व , द्वंद्व और प्रश्नाकुलता ...
ReplyDeleteक्या शानदार लिखा है आपने!!
ReplyDeleteआशा है आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा!!
sach hi kaha hai aapney....bahut se paksh ..magar vah ek hai..sundar
ReplyDeleteअद्भुत है. एक और अनेक का ये किस्सा अनंत से चला आ रहा है और अनंत तक चलेगा. अति सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवाह बढ़िया, मुझे तो आपका नाम ही बहुत पसंद है। शायद आपके ब्लॉग पर ही पढ़ा था कि घुघूती गौरैया को कहते हैं। आज वह पोस्ट नहीं मिली। क्या आप बता सकती हैं कहाँ है (हो सके तो मुझे लिंक भेज दें कृपया)। ऐसी ही एक लोक रचना हिंदी में भी है जिसे बच्चों को पैर पर झुलाते हुए बोला जाता है। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
ReplyDeleteखंती मंती कौड़ी पाई
कौड़ी ले हम गंग बहाई
गंगामाता बालू दीनी
बालू ले हम भुजवे की दीनी
भुजवा हमका दाना दीना
दाना ले घसियारे को दीना
घसियारा हमका घास दीना
घास ले हम गैया को दीनी
गैया हमको दुद्दू दीनी
दुद्दू ले हम खीर पकाई
खीर पकाई सब घर ने खाई
बची बचाई आले धरी पिटारे धरी
आ गई घूस खा गई खीर
नई दिवार उठी उठी उठी
पुरानी गिरी धम्म...
घूस क्या होता है एक दिन मैने दादी से पूछा था। दाती बोलीं एक तरह की चुहिया होती है। देखो तो बचपन की बातें कैसी याद रहती हैं नया कुछ याद करूँ तो झट से भूल जाता है।