Tuesday, November 13, 2007

जंगल में मंगल

एक दीपावली ऐसी भी ।

छोटी सी जगह,थोड़े से लोग । अधिकतर अपने परिवार, प्रांत से बहुत दूर । एक स्कूल, एक दुकान, एक धोबी, एक क्लब, एक महिला मंडल और एक फैक्टरी । और सबके लिए एक सा शहर से बहुत दूर का जीवन ! ऐसे में यदि हम मिलकर कुछ नया कर अपना मन ना बहलाएँ तो घुट जाएँगे । यही सब सोचकर हमने इस वर्ष कुछ नया करने की सोची। और यह नया दीपावली और नव वर्ष के शुभ अवसर पर आरम्भ किया ।
दीपावली के साथ बहुत से मुद्दे जुड़ने लगे हैं जो पहले लगभग सोचे भी नहीं जाते थे । प्रदूषण के विषय में हम सोचते भी न थे । पशुओं, बीमार और वृद्धों को आवाज से होती तकलीफ का भी हमें ध्यान न आता था । इन सबकी ओर हमारा ध्यान हमारे बच्चों व नई पीढ़ी ने ही खींचा । तब हमने भी खूब उत्साह परन्तु कम प्रदूषण वाली दीपावली मनाने का निर्णय किया ।
हम लोग प्रत्येक वर्ष अपने औफिस में लक्ष्मी पूजन करते हैं ,जहाँ सभी निमन्त्रित होते हैं । पूजा समाप्ति पर प्रसाद व फिर पटाखे व आतिशबाजी चलाई जाती है । इसके बाद सब अपने अपने घर आकर लक्ष्मी पूजन करते हैं व दीये जलाते हैं । फिर मिलना मिलाना शुरू होता है । लोग एक दूसरे के घर जाते हैं मिठाई आदि खाते है् व मेजबान को भी अपने साथ लेकर बढ़ जाते हैं । अन्त में सब हमारे घर पहुँचते हैं । अन्त में सब हमारे घर पहुँचते
हैं, यहाँ भी साथ मिलकर खाया पिया जाता है व सब मिलकर पटाखे व आतिशबाजी चलाते हैं । इसमें केवल १६ या १८ अड़ोस पड़ोस के परिवार ही सम्मिलित हो पाते हैं ।

अगले दिन गुजराती नव वर्ष होता है । सो सबका मिलना आवश्यक होता है । इस वर्ष हम मंदिर में मिले। सबने पहले भगवान को प्रणाम किया व फिर एक दूसरे के गले मिल साल मुबारक कहा । बैठे और कुछ गप्प की और फिर प्रसाद खाया । हमारी कॉलोनी में लगभग १५०, १६० मकान हैं सो उतने ही परिवार। सभी एक ही जगह काम करते हैं । सबके सुख दुख एक जैसे ही हैं । हम सब लगभग एक दूसरे को जानते हैं । सभी बच्चों को अपना सा मानते हैं । सो इस बार हमने सोचा क्यों न नव वर्ष की संध्या भी इकट्ठे मनाई जाए ।
दिन भर लोग मुबारकवाद देने आते रहे । स्कूल के बच्चे भी आते रहे । प्रणाम कर आशीर्वाद लेते रहे ।
सो अकेलापन अधिक नहीं खला क्योंकि ये भी अपने ही बच्चे थे । कुछ छोटे बच्चों से तो खूब लाड़ लड़ाया । बच्चों को खिलाने का भी आनन्द लिया ।
शंध्या को ८ बजे से क्लब का कार्यक्रम आरम्भ हो गया । वही, सबसे मिलना और जिनसे सुबह नहीं मिले थे उनसे गले मिलना । उसके बाद तम्बोला रखा गया था । हमारे यहाँ बच्चे भी न जाने क्यों तम्बोला बहुत पसन्द करते हैं । केवल ५ रुपये का टिकट और उनका उत्साह देखते ही बनता है । यदि २५ नम्बर पुकारा गया तो कोई बच्चा बोलेगा, उससे केवल २ अधिक या ५ कम । ना किसी बच्चे को टोका जाता है न चुप रहने को कहा जाता है। बिल्कुल छोटे बच्चे तितलियों से यहाँ वहाँ मंडराते रहते हैं । कभी इस आंटी की गोद में तो कभी उस अंकल की । हर कोई उन्हें लाड़ करता है । यदि आप शाला की अध्यापिका हो या वहाँ पढ़ा चुकी हो तब तो हर बच्चा आपसे मिलने जरूर आयेगा । तम्बोला समाप्त होने पर आतिशबाजी व पटाखों का कार्यक्रम था । रस्सियाँ बाँधकर मैदान का एक हिस्सा अलग कर दिया गया था जहाँ किसी को भी जाने की अनुमति न थी ।
आतिशबाजियाँ तो देखते ही बनती थीं । रंग बिरंगी आकाश में जाकर छिटकने वाली, आवाज वाली, सतरंगी रंगों वाली । हम मोहित से उन्हें देखते ही रह गए । सब मंत्रमुग्ध थे । अपने अपने बलबूते पर इतना खर्चा करना हम में से किसी के वश का न था । किन्तु यदि १५० परिवार मिलकर खुशी मना रहे थे तो कम्पनी के लिए यह कठिन न था । और जब मैं प्रदूषण के बारे में सोचती हूँ तो प्रति व्यक्ति एक आतिशबाजी भी न रही होगी । खर्चे के हिसाब से भी शायद अलग अलग मनाने से कम ही रहा होगा । और खुशी ! सामूहिक रूप से मनाने से वह तो १५०गुना हो गयी थी ।
नवरात्रियों में हम सब मिलकर गर्बा भी करते हैं । उन दिनों के भी बहुत सारे विडीयो बना रखे थे । अब वे ही एक बड़े परदे पर दिखाए जा रहे थे । बच्चे स्वयं को परदे पर देख खूब खुश हो रहे थे । फिर बच्चों व छोटे बच्चों कि माँओ को खाने के लिए बुलाया गया । फिर अन्य स्त्रियों को और पुरुषों को । गरम गरम पूरी , स्वादिष्ट ऊँधिया , कढ़ी व भात , सलाद, पापड़, अचार और वासुन्दी सबके साथ मिलकर खाने में जो मजा आया वह किसी बड़े होटल में भी नहीं आ सकता ।
हँसी मजाक करते व खुशी खुशी हमने इस वर्ष की दीपावली व उसके साथ आने वाले त्यौहारों को विदा किया व नववर्ष में कदम रखा । कल हमारे महिला मंडल में नववर्ष मनाया जाएगा। सुन्दर सुन्दर रंगोली बनेंगी । खूब सजाया जाएगा मंडल को । बच्चे भाग दौड़ करेंगे । एक बार फिर उल्लास का वातावरण होगा । आशा है, यूँ ही मिलकर खुशी खुशी यह नया वर्ष भी बीत जाएगा । और हाँ, अभी तो हमें ३१ दिसम्बर को भी नृत्य व संगीत के बीच एक और नया वर्ष मनाना है ।
शायद इसी को जंगल में मंगल कहते हैं ।
घुघूती बासूती

11 comments:

  1. आप की दीवाली तो बहुत मधुर थी और प्रदूषण का सोचना आज बहुत आवश्यक है. पढ़ कर अच्छा भी लगा पर कुछ ईर्ष्या भी हुई, अपनी सूखी सूखी सी दीवाली का सोच कर!

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  2. बहुत सुंदर!

    ऐसी दीपावली सब ही मनाएं तो कितना अच्छा हो!!

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  3. अरे वाह, काश हम भी वहां होते, हमारी दिवाली तो बहुत सूखी सुखी थी। कंपनी क्वाटरस में रहने का अपना ही एक सुख है जो बाहर छोटी छोटी सोसाइटियों में नहीं मिलता, गिने चुने घर और उसमें से भी कई छुट्टियां मनाने के इरादे से बाहर्। भाग्यशाली है आप।

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  4. यदि आप शाला की अध्यापिका हो या वहाँ पढ़ा चुकी हो तब तो हर बच्चा आपसे मिलने जरूर आयेगा । ---- यह तो आपने बिल्कुल सही कहा... दीपावली मनाने का यह रूप आनन्द दे गया...

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  5. सच कहूँ तो बहुत खुशकिस्मत हैं आप की आपको ऐसा माहौल बनाने का मौका भी मिला और उसमे अपनी और अपने अपने घरों से दूर उन तमाम लोगों की ढेरों खुशियों को खोजने का मौका भी मिला. इतने सारे लोगों की दीवाली को अपने उत्साह से और भी रोशन करने के लिए आपको बधाइयां.

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  6. देर से ही सही, आपको दीपावली मुबारक।

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  7. अच्छा लगा आपका जंगल में मंगल.

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  8. बहुत बढिया लगा आप का जंगल में मंगल...आप को दीपावली मुबारक!

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  9. दीपावली की शुभकामनाएं !!

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  10. जब भी भारत की दीपावली के उत्सव की याद आती है,कुछ ऐसी ही तस्वीर जहन मेँ आ जाती है घुघूती जी ! आप को साल मुबारक !
    स स्नेह,
    -- लावण्या

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  11. बहुत अच्छा लगा आपका दीपावली और नवरात्र मनाने का तरीका. नवरात्र तो नही पर दीपावली हम भी इसी तरह मनाते है. और सच मे अच्छा लगता है.

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