एक उम्र गुजर जाती है
उम्र गुजरन॓ का अहसास होन॓ तक
सब कुछ बिखर जाता है
बिखराव का अहसास होने तक ।
जीवन हाथ से निकल जाता है
रेत सा फिसलने का अहसास होने तक
सबकुछ ही बेमानी हो जाता है
अपने बेमानी होने का अहसास होने तक ।
आँचल पूरा भीग जाता है
आँसुओं के रीतने का अहसास होने तक
अपने हाथ छुड़ा लेते हैं
अपनों के जाने का अहसास होने तक ।
हाथ खाली हो चुके होते हैं
सबकुछ खोने का अहसास होने तक
आशाएँ सारी खो जाती हैं
निराश होने का अहसास होने तक ।
मौत आ चुकी होती है
जिन्दा थे का अहसास होने तक
साँसें खत्म हो चुकी होती हैं
साँस लेते थे का अहसास होने तक ।
घुघूती बासूती
Thursday, November 01, 2007
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हर पल को अपनी उत्कृष्टता के साथ जी लें तो फिर किसी बात का ग़म ना हो.खैर सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबेहतरीन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.
ReplyDeleteआपने शायद स्त्री केन्द्रित लिखा है। पर पुरुष के हिसाब से भी मामला वही है। मिड-लाइफ क्राइसिस बहुत महसूस की है - कर रहे हैं।
ReplyDeleteसारा खेल अहसास का ही है। इसलिए कम से कम बिखरने का अहसास दूर ही रहे तो, बेहतर है। वैसे ज्यादातर लोग इससे बच नहीं पाते हैं।
ReplyDeleteयथार्थ के करीब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और एक्दम यथार्थ के करीब लिखा है
ReplyDeleteएक यथार्थ को शब्दों में पिरोया है आपने...
ReplyDeleteपरन्तु पीछे मुड कर अपनी उपलब्धियों को भी देखें तो शायद ये मायूसी कुछ कम हो जाती है...शायद मिट भी जाये....जो बीज आपने बोयें है.. वो शायद अभी फ़ल नहीं ला पाये पर लायेंगे जरूर..
भावभीनी ! आपका सुन्दर भाव पढ़कर मुझमे भी एक अहसास जागा ---
ReplyDelete"मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है !
लम्हा अजर-अमर है, इस मृग-तृष्णा में जीने दो"
एक खूबसूरत कविता को पढना,
ReplyDeleteउस कविता के खत्म होने का एहसास होने तक...
शव्दों में बसे भाव को एहसास कराती कविता ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
www.aarambha.blogspot.com
खूबसूरत कविता
ReplyDeleteवाकई एहसासो को शब्दो मे बांध दिया है आपने!!
ReplyDeleteभाव भरी कविता.....
ReplyDeleteबहुत, बहुत सुन्दर! यह कविता तो सुन्दर लगी और शब्दों का चयन भी। ज्ञान जी की इस टिप्पणी में उल्लिखित दोनों बिन्दुओं से मैं तो सहमत नहीँ हूँ। यह कहीँ से स्त्री या पुरुष केन्द्रित नहीँ लगती और न ही मिड लाईफ क्राईसिस का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार का अहसास (चेतना अथवा वस्तुस्थिति / परिस्थिति का संज्ञान) तो किसी भी वय में अलग अलग कल खण्डों में होता ही है - मसलन विद्यार्थी को, व्यसनी को, आम युवक-युवती को, यहाँ तक कि अमरीका जैसे देश को भी, ईराक के बाद (यह बात दीगर है कि वे शायद व्यक्त नहीँ करते)। सो, मेरे हिसाब से तो यह बहुत सटीक, भावात्मक और उपदेशात्मक कविता है। आरम्भिक पंक्तियों में तो यह गोपाल दास "नीरज" की अति लोकप्रिय कविता "कारवाँ ग़ुज़र गया..." की भी याद दिलाती है (वह कोई मिड लाईफ क्राईसिस का परिणाम नहीँ थी)
ReplyDeleteसही,सजीव अहसास!
ReplyDeleteआपकी कविता खत्म हो गयी,
ReplyDeleteपढने के मजे का अहसास होने तक्!
बहुत पसँद आई कविता.
चाहे कुछ भी हो पर अहसास जिंदा ही रहता है…।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता…।