यदि टिप्पणियाँ और पाठक चाहते हैं तो विष्ठा पर लिखिये । उसके पर्यायवाची शब्द ढूँढिये ......
ये क्या नारी विषय या उसकी समस्याओं पर लिख रहे हैं ?
अफलातून जी की ‘ नारी के सहभाग बिना , हर बदलाव अधूरा है ।' नामक पोस्ट पर मेरी यह टिप्पणी है, सोचा आप सबको भी पढ़ा दूँ ।
अफलातून जी ,
यदि आप चाहते हैं कि अधिक लोग आपको पढ़ें व टिप्पणी करें तो आपके विषय का चुनाव बिल्कुल गलत है । हाल में कुछ दुर्गंधयुक्त विषय धड़ाधड़ हाथों हाथ लिए जा रहे हैं व उनपर बीसियों टिप्पणियाँ भी आईं । एक आप हैं कि नारी जैसे अमहत्वपूर्ण विषय पर लिख रहें हैं । नारी के विषय में लिखना है तो या तो उसपर चुटकले सुनाइये या उसका रूप विवरण कीजिये ,वह बासी ,बेमजा विषय क्या चुन रहे हैं ?
यदि लेखक अपनी पुस्तकें बेचना चाहें तो उन्हें प्यासी डायन, खूनी पंजा, जकड़ा शिकंजा, या फिर किसी ऐसे ही मनोरंजक विषय पर लिखना होगा । क्या आप जानते नहीं पुरुषों की रूचि में स्त्री की समस्याएँ विष्ठा के बहुत बाद में आती हैं ? धीरे धीरे आँखें खुल रहीं हैं और संसार की विडंबनाएँ देखने को मिल रहीं हैं ।
वैसे एक ऐसे मन के निकट के विषय पर लिखने के लिए धन्यवाद !
यदि आप में से कोई पढ़ना चाहे तो यहाँ जाइए :
http://samatavadi.wordpress.com/2007/11/02/womanwomen-bloggerchirkin/#comment-968
घुघूती बासूती
Saturday, November 03, 2007
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अकुलाहट है, अच्छा है।
ReplyDeleteकिंतु यह टिप्पणी उस पोस्ट पर तो दिख नहीं रही...ऐसा क्यों
पूरी तरह सहमत नहीं हूँ आपसे.चिट्ठाजगत में हर तरह के विषयों पर लिखा जा रहा है. अत: उसे जरनलाइज कर देना ठीक नहीं.और इसे केवल पुरुषों के माथे मढ़ देना भी शायद ठीक नहीं.
ReplyDeleteआप की टिप्पणी वहाँ पर अभी तक approval के लिये पड़ी है या हटा दी गयी है।
ReplyDeleteआपसे ऐसी विकट समझदारी की आशा नहीं थी....जीवन और समाज की विविधता को रेखांकित करना जरूरी होता है....लोगों की खुशी में खुश होना सीखिए....
ReplyDeleteजरूरी नही कि हर वक्त गंभीर ही रहा जाए। समीरलाल को पचासों टिप्पणियाँ उनके अच्छे लेखन पर मिलती है....।
सही पकड़ा आपने. वास्तव में लगता है महान लेखकों के लिए विषय की कमी हो गई है . बहुत सही दिया, मज़ा आगया.
ReplyDeleteघुघूती बासुती , हार्दिक आभार - आपने इस जरूरी बहस को तरजीह दी और अलग पोस्ट के रूप में अपनी आवश्यक टिप्पणी छापी ।
ReplyDeleteकाकेश , किसी महिला चिट्ठाकार ने चिरकिन पर टीप नहीं दी,हम-आप और हमारे जैसे मर्द ही वहाँ निपटे । बहुत से मर्दों ने नहीं टीपा, बहुत खुशी की बात है ।
श्रीरामचन्द्र और मसिजीवी , सुबह से घर पर कनेक्शन नहीं था । इस अन्तराल पर आप दोनों को कुछ कहना था?
अब क्या कहा जाये ?
ReplyDeleteबस अपनी आमद दर्ज कराके निकल लेता हूं.
खाम्खां का एक और बवाल ?
अजी छोडो भी..जाने दो .
Responses to “‘नारी के सहभाग बिना , हर बदलाव अधूरा है ।’”
ReplyDeleteon 02 Nov 2007 at 2:45 pm1 Rachna
ऐसा नहीं हैं या to आप की नज़र मे मेरी तिपानी नहीं आयी है या फिर वह अब उन ब्लोग्स पर नहीं हैं । मुझे जयादा नहीं पर कुछ तकनीक की जानकारी है और मैने इस बात को बहुत पहले मसिजीवी के ब्लोग पर रोमन वाद विवाद के संबंध मे भी कहा था की RSS फीड खुला रखना का अर्थ ये कतई नहीं होता की उसे कहीं भी किसी रूप मे इस्तमाल किया जासकता है । और मुझे अजीब लग रहा हे की आप को मेरी टिपण्णी ब्लोग्वानी-चिताह जगत के संदर्भ मे भी कहीं नहीं दीकी जबकी मैने आलोक और सिरिल दोनो के ब्लोग पर लिखा हैं ।
I am merely repating his comment here mam , the problem is that they dont reconize woman bloggers comments on important post. they just try to ignore it
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , वैसे आपकी बातों से पूरी तरह सहमत नही हुआ जा सकता , क्योंकि लिखने के लिए हमारे पास विषय की कोई कमी नही है .
ReplyDeletefew people feel that woman should not discuss and when they do they get worthless comments . read the comment section of this blog http://masijeevi.blogspot.com/2007/10/blog-post.html
ReplyDeleteI feel bloggers still want to keep a patronizing tone for woman bloggers . their writing is either a matter of laughter or praise or just plain and simple “ignore” . strong comments or writings evoke ire in form of bad and foul langauge and its being approved by one and all other wise comments as on above mentioned blog will nver be approved
rachna
इस विषय में सबसे बढ़िया सटायर बालकिशन का ब्लॉग पर मिला।
ReplyDeleteसही बात है...आपने सही मुद्दा उठाया है...बहुत विषय है लिखने के लिये..:)
ReplyDeleteटट्टी उर्फ विष्ठा उर्फ मल ने आपको शब्द धनी बना दिया. मस्त विष्ठा विरोधी पुराण...
ReplyDeleteविचारणीय!!
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया जायज है!!
दुनिया मे सब तरह की मानसिकता मौजूद है तो सब तरह का लेखन भी!!
सहमत हैं आपकी बातों से और अमूमन ऐसी ही समझदारी की बातें सुनते हुए हम सब बड़े भी हुए हैं। वाईन नही पीनी है और सड़क पर नहीं थूकना है। वाइन पी ली जाती है और सड़क पर अलबत्ता थूकना पसंद न करें। शादी-ब्याह के आलम में कभी कभी मौज ली जाती है वैसी ही मौज के लिए ब्लगाजगत में ऐसा करना बुरा नहीं मानता। पर अक्सर यह प्रवृत्ति तो ठीक नही होगी।
ReplyDeleteचिरकिन भी हमारी संस्कृति का ही एक हिस्सा हैं। मानें या न मानें। जबर्दस्ती महिमामंडन भी तो नहीं किया है किसी ने।
माननीय सभासद वाली मुद्रा से नुक्कड़वाले की भूमिका में भी आना चाहिए कभी कभी।
मेरे विचार से इस प्रकार के मसालेदार रोचक शीर्षक केवल पाठको को आकर्षित करने के लिए लिखे जाते हैं, वो भी तब जब पाठक के पास हजारो विकल्प हो. पर इसका आशय ये एकदम नहीं की लेख के अन्दर भी वही भरा हो.
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