Wednesday, January 21, 2009

और कुन्टा किन्टे सफल हो गया

बहुत पहले एलेक्स हेली की रूट्स पढ़ी थी। आज तक पढ़ी सभी पुस्तकों में जो सर्वश्रेष्ठ कह सकती हूँ उनमें से एक, बल्कि लगभग सबको पीछे छोड़ती हुई है वह। कहानी के नायक कुन्टा किन्टे को आज तक नहीं भुला पाई हूँ। यदि दुखों की पराकाष्ठा के बारे में कभी सोचती हूँ तो वही सामने आ खड़ा होता है। इतना जीवन्त चरित्र शायद ही कभी पढ़ने को मिले। लेखक उस पुस्तक में हमें एक ऐसे अमेरिका में ले जाता है जहाँ अश्वेतों के पास केवल पसीना व आँसू ही होते हैं। ऐसे वातावरण में भी कुन्टा किन्टे में जो आत्मसम्मान देखने को मिलता है वह दुर्लभ है। तब बार बार मैं यही सोचती थी कि गुलामों का जीवन जीने वाले वे लोग क्या सोचकर अपनी संतानों को इस संसार में लाते थे। क्या उन्हें अपने बच्चों के लिए कहीं कोई आशा की किरण नजर आती थी या फिर बस यूँ ही पशुओं की तरह उन्हें संसार में ले आते थे? क्यों श्वेतों के लिए नए गुलामों की व्यवस्था करते जाते थे?


आज बाराक ओबामा को शपथ लेते देख कर लगा कि कहीं दूर खड़ा कुन्टा किन्टे मुस्कुरा रहा है और शायद उसकी चोटों,जंजीरों से बँधे पैरों व लंगड़ाते हुए चलते उसके पैरों को मलहम लग गया है। यदि आत्मा नामक कोई वस्तु सच में होती है तो कुन्टा किन्टे की आत्मा तृप्त हो गई होगी। शायद स्वतंत्र होने को तड़पती उसकी आत्मा आज मुक्त हो गई होगी। शायद उसकी बिटिया के पड़पोते,पड़पोतियाँ, परनाती,परनातिनें उसकी यातनाओं को सार्थक कर गर्व से सिर उठाकर जीकर उसकी आत्मा को निहाल करने की स्थिति में पहुँच रहे हैं।


ओबामा अन्य नेताओं की तरह ही सफल या असफल या थोड़े सफल, थोड़े असफल सिद्ध हो सकते हैं। क्या सिद्ध होंगे यह तो भविष्य में पता चलेगा। परन्तु उनकी विजय ने बहुतों के लकवाग्रस्त पंखों में फिर से नई जान फूँक उड़ान भरने की एक संभावना तो जगा ही दी है। यही संभावना बहुत से नए ओबामाओं को जन्म देगी।


ओबामा की विजय में मुझे उस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा। केवल अपने बल पर वह मुख्यधारा की राजनीति में अपना स्थान बना पाएँगे। वे केवल अपनी योग्यता के बल पर कुछ कर पाएँगे न कि किसी की बेटी,बहू या पत्नी होने के कारण या फिर अपनी जाति के कारण पदासीन होंगे।


भारत में रोहिंगटन मिस्त्री के उपन्यास 'ए फ़ाइन बैलेंस' के अपनी जाति से ऊपर उठने वाले पात्र को अपने पुरुषत्व की बलि नहीं देनी पड़ेगी।


मुझे भविष्य के किसी कल के लिए ढेरों संभावनाएँ दिख रही हैं। शायद रसोई हर स्त्री की नियति न होकर हर उस व्यक्ति की नियति बन जाए जिसे भूख लगती हो। शायद घर की दीवारें कैद करने की बजाए घर के होने की सुखद अनुभूति बन जाएँ। शायद जंजीरें घिस रही हैं। शायद वे टूट ही जाएँ। शायद शायद शब्द सच में संभावनाओं से भर जाए।


शायद अब जब मैं फिर से रूट्स पढ़ूँ तो आँखों में आँसू न आएँ, गला रूँध ना जाए,मैं कुन्टा किन्टे को चुपके से यह कह सकूँ कि हिम्मत ना हारो,किज़ी,तुम्हारी बेटी की आने वाली पीढ़ियाँ, तुम्हारे उत्तराधिकारी आकाश की ऊँचाइयाँ छूएँगे। उसके वे उत्तराधिकारी जो अमेरिका में हैं, अफ्रीका में हैं, भारत में हैं और संसार की आधी जनसंख्या भी हैं।


घुघूती बासूती

यह भी देखिएः Rachida Dati and Being a Woman

घुघूती बासूती

31 comments:

  1. आज बाराक ओबामा को शपथ लेते देख कर लगा कि कहीं दूर खड़ा कुन्टा किन्टे मुस्कुरा रहा है और शायद उसकी चोटों,जंजीरों से बँधे पैरों व लंगड़ाते हुए चलते उसके पैरों को मलहम लग गया है.....परन्तु उनकी विजय ने बहुतों के लकवाग्रस्त पंखों में फिर से नई जान फूँक उड़ान भरने की एक संभावना तो जगा ही दी है.....मुझे भविष्य के किसी कल के लिए ढेरों संभावनाएँ दिख रही हैं....बहुत सामयिक और सुंदर आलेख लिखा है आपने......किसी में भी आत्‍मविश्‍वास भर देने वाली हैं ये बातें....इतने सुंदर आलेख के लिए आभार।

    ReplyDelete
  2. root ke vishay me jaankaari aaj pahali baar mili. Obama ke madhyam se jis sansaar ki kamanaa apane ki us ke liye shubhkamanaen...!
    इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा।

    ye baat bahut mayane rakhati hai.

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर लेख लिखा है, पढ़कर रोएँ खड़े हो गये, ओबामा के राष्ट्रपति बनने से अब कुछ और अच्छी बातों की संभावना बढ़ जाती है!


    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    चाँद, बादल और शाम

    ReplyDelete
  4. 'जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा।'
    ये लाइन बहुत पसंद आई. हुए तो यहाँ भी हैं पर वो दिन जब अपने बल पर होंगे, अपनी योग्यता पर होंगे ना की गन्दी राजनीती करके उस दिन की बात ही कुछ और होगी.

    ReplyDelete
  5. सुनहरा दिन वह होगा जब योग्यता के बल पर पद मिलेगा बिना यह देखे कि वह गोरा है या काला, पुरूष है या स्त्री, अगड़ा है या पिछड़ा, किसान है या वेपारी.

    आपने अच्छा लिखा है.

    ReplyDelete
  6. ओबामा की विजय पर ये पक्ष भी है जो आपने रखा है...(.नेता के तौर पर उनकी नीतिया भारत के हित में होगी या नही खैर ये तो भविष्य के गर्त में है )पर उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.....दलित स्त्री के तौर पर मायावती भी सत्ता में आकर सिर्फ़ राजनेता बनकर रह जाती है....शायद सत्ता के मद में ही कुछ ऐसा है....फ़िर भी उम्मीद तो कायम रहेगी

    ReplyDelete
  7. शायद अब जब मैं फिर से रूट्स पढ़ूँ तो आँखों में आँसू न आएँ, गला रूँध ना जाए,मैं कुन्टा किन्टे को चुपके से यह कह सकूँ कि हिम्मत ना हारो,किज़ी,तुम्हारी बेटी की आने वाली पीढ़ियाँ, तुम्हारे उत्तराधिकारी आकाश की ऊँचाइयाँ छूएँगे। उसके वे उत्तराधिकारी जो अमेरिका में हैं, अफ्रीका में हैं, भारत में हैं और संसार की आधी जनसंख्या भी हैं।

    Hume achhe ki hi ummid karni chahiya....

    ReplyDelete
  8. बहुत सी उम्मीदें जागी हैं ओबामा की जीत है- एक नये युग की परिकल्पना की जा रही है. देखिये, किस ओर जाती है ये दुनिया अब...

    बहुत अच्छा आलेख.

    ReplyDelete
  9. संभावनाओं में ही जीवन की नियति छुपी है.........बराक ओबामा की जीत को एक नयी संभावना के साथ जोड़ कर आपने एक नयी दिशा, नई उष्मा दी है

    ReplyDelete
  10. यह एक नये समय की शुरूआत है, नये सपनों को पंख लगने का दौर है।

    ReplyDelete
  11. sambhavnayein nazar aane lagi hain, jahan ummidein bhi nahin thi. sahmat hoon aapse, shayad ek din har koi uth kar apne hisse ka aasman chhoo sake. aameen.

    ReplyDelete
  12. लेख तो बहुत अच्छा है ।
    ओबामा से सारी दुनिया को उम्मीदें है । देखें वो कितना सफल होते है ।

    ReplyDelete
  13. यही एक उम्मीद है जो आशाओं को जगाये रखती है ...बहुत सुंदर लिखा आपने इस पर .परिवर्तन बदलाव की उम्मीद नही छोडनी चाहिए

    ReplyDelete
  14. सामयिक सन्दर्भ को जीवन्तता से अपनी संवेदना से तृप्त कर दिया है आपने.
    उल्लेखनीय प्रविष्टि.

    ReplyDelete
  15. काश वो दिन भी जल्दी आये, जब बिना किसी लिंग भेदभाव और योग्यता के अनुरुप पद मिल सके. आशा पर ही दुनियां कायम है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  16. लेख तो बहुत अच्छा है ।
    ओबामा से सारी दुनिया को उम्मीदें है ।

    ReplyDelete
  17. आपने रूट्स याद दिलाई - अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  18. ओबामा की विजय में मुझे उस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इउस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा। केवल अपने बल पर वह मुख्यधारा की राजनीति में अपना स्थान बना पाएँगे। वे केवल अपनी योग्यता के बल पर कुछ कर पाएँगे न कि किसी की बेटी,बहू या पत्नी होने के कारण या फिर अपनी जाति के कारण पदासीन होंगे।

    काश आपकी यह आशा पूरी होने पाती। लेकिन भारतीय समाज अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है। बल्कि बहुत तेजी से इसकी विपरीत दिशा में जा रहा है। अम्बेडकर, नेहरू-गान्धी परिवार, वी.पी.सिंह, अर्जुन सिंह, अटलबिहारी वाजपेयी, कांशीराम, मायावती, आदि सभी इस आशा को कालकोठरी में बन्द करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे हैं। ताजा उदाहरण मदरसा बोर्ड को दी जा रही मान्यता है।

    भारत में जो लोग वोट डालने जाते हैं उनमें से कितनों पर ओबामा-इफेक्ट काम करेगा यह सहज ही समझा जा सकता है।

    ReplyDelete
  19. अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ना। ओबामा क्या कर सकते हैं यह तो समय बतायेगा लेकिन फ़िलहाल आशा करने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं है।

    ReplyDelete
  20. bahut achcha likha hai.

    ReplyDelete
  21. बहुत सुंदर लिखा.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  22. Sahi keh rahi hain, isliye ye sab ko history banne se pehli hi history event mana jaane laga. Ye aadmi ek nayi sambhavana to jagayega hi naya aatvishvash bhi dega. Obama apni yogyata ke bal per aur kuch Bush ki galat nitiyon ki vajah se jeete Lekin India me Aise hi Dalit ya koi aur Apni yogyata ke bal per aaye tabhi baat ho na ki jaatigat ya gathjor ki rajniti ke chalte.

    ReplyDelete
  23. प्रसन्‍नतापूर्वक जीने क लिए भले ही हम हिन्‍दुस्‍तानियों को एक 'राजा' जस्‍री होता है किन्‍तु यह भी सच है कि हमने ही राजाओं के ताज उतारे हैं।
    आपके आशावाद में मेरी भी आवाज मिलती हुई है। हम 'मूल्‍यों को जीने वाले' वो लोग हैं तो चाहकर भी अपनी जडों से दूर नहीं हो सकते, अपनी मूल प्रवृत्तियों को छोड नहीं सकते।
    सो, जैसा आप सोच रही हैं, चसह रही हैं, वैसा होगा। यकीनन होगा। मुमकिन हो कि उस दिन आप-हम न हों लेकिन उससे क्‍या। हमारी चाहत हकीकत में बदले, हम हों, न हों।
    आमीन।

    ReplyDelete
  24. लेकिन सत्ता सब को पचती नही . बहक जाते है सत्तामद मे . ओबामा इन सत्ता के साइड अफेक्ट से बचे रहे .

    ReplyDelete
  25. बस इतनी दुआ है कि ओबामा ओबामा भी रहें, सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति न हो जाएं...

    ReplyDelete
  26. एक वह देश है जो अपने स्वाभिमान का परचम विश्व मै फेहरा रहा है !और वहा के नागरिक अपनी भूलो का प्रयाशचित कर इक अश्वेत को सर्वोच्च पद पर आसीन कर रहे है इक हमारे नेता और मीडिया वाले बजाय अपनी कमियों को दूर करने के उनका कोरा स्तुति गान कर रहे है !

    ReplyDelete
  27. एक बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से कुन्टा किन्टे सफ़ल नहीं हो गया। 'चले चलो के वो मन्ज़िल अभी नहीं आई'।

    ReplyDelete
  28. हाँ सच तो आपने कहा ही,मगर इस अवसर को मैंने अपनी मायूसी ही बना लिया.......मन करने लगा है कि क्या भारत में भी ऐसा ही कुछ सम्भव है........कि यहाँ की संतप्त और प्रताडित आम जनता मुख्यधारा में शामिल होकर अपने अपमानजनक जीवन के दर्द को मेट सके.......जीवन में खुशियों के चंद लम्हों को पा सके........!!

    ReplyDelete
  29. दोस्तों, देश मै वर्तमान हालत के चलते एक बहुत बड़ी तादात ऐसे युवाओ की तैयार हो रही है !जो स्वयम के हित साधने के लिए सारे नियम ताक पर रखने को तैयार है !हम सारे देश को नहीं सुधार सकते ,परन्तु स्वयम के कर्तव्यो का सात्विकता से पालन कर अपने आस -पास के लोगो के सामने आदर्श प्रस्तुत कर सकते है आइये इस गणतंत्र दिवस पर देश हित मै स्वयम के निमित्त संकल्प ले ! "सुधरे व्यक्ति ,समाज व्यक्ति से ,राष्ट्र स्वयम सुधरेगा ! जय हिंद

    ReplyDelete
  30. संवेदना की प्रस्तुति अत्यन्त सुंदर है।

    सत्यमेव जयते

    ReplyDelete