बहुत पहले एलेक्स हेली की रूट्स पढ़ी थी। आज तक पढ़ी सभी पुस्तकों में जो सर्वश्रेष्ठ कह सकती हूँ उनमें से एक, बल्कि लगभग सबको पीछे छोड़ती हुई है वह। कहानी के नायक कुन्टा किन्टे को आज तक नहीं भुला पाई हूँ। यदि दुखों की पराकाष्ठा के बारे में कभी सोचती हूँ तो वही सामने आ खड़ा होता है। इतना जीवन्त चरित्र शायद ही कभी पढ़ने को मिले। लेखक उस पुस्तक में हमें एक ऐसे अमेरिका में ले जाता है जहाँ अश्वेतों के पास केवल पसीना व आँसू ही होते हैं। ऐसे वातावरण में भी कुन्टा किन्टे में जो आत्मसम्मान देखने को मिलता है वह दुर्लभ है। तब बार बार मैं यही सोचती थी कि गुलामों का जीवन जीने वाले वे लोग क्या सोचकर अपनी संतानों को इस संसार में लाते थे। क्या उन्हें अपने बच्चों के लिए कहीं कोई आशा की किरण नजर आती थी या फिर बस यूँ ही पशुओं की तरह उन्हें संसार में ले आते थे? क्यों श्वेतों के लिए नए गुलामों की व्यवस्था करते जाते थे?
आज बाराक ओबामा को शपथ लेते देख कर लगा कि कहीं दूर खड़ा कुन्टा किन्टे मुस्कुरा रहा है और शायद उसकी चोटों,जंजीरों से बँधे पैरों व लंगड़ाते हुए चलते उसके पैरों को मलहम लग गया है। यदि आत्मा नामक कोई वस्तु सच में होती है तो कुन्टा किन्टे की आत्मा तृप्त हो गई होगी। शायद स्वतंत्र होने को तड़पती उसकी आत्मा आज मुक्त हो गई होगी। शायद उसकी बिटिया के पड़पोते,पड़पोतियाँ, परनाती,परनातिनें उसकी यातनाओं को सार्थक कर गर्व से सिर उठाकर जीकर उसकी आत्मा को निहाल करने की स्थिति में पहुँच रहे हैं।
ओबामा अन्य नेताओं की तरह ही सफल या असफल या थोड़े सफल, थोड़े असफल सिद्ध हो सकते हैं। क्या सिद्ध होंगे यह तो भविष्य में पता चलेगा। परन्तु उनकी विजय ने बहुतों के लकवाग्रस्त पंखों में फिर से नई जान फूँक उड़ान भरने की एक संभावना तो जगा ही दी है। यही संभावना बहुत से नए ओबामाओं को जन्म देगी।
ओबामा की विजय में मुझे उस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा। केवल अपने बल पर वह मुख्यधारा की राजनीति में अपना स्थान बना पाएँगे। वे केवल अपनी योग्यता के बल पर कुछ कर पाएँगे न कि किसी की बेटी,बहू या पत्नी होने के कारण या फिर अपनी जाति के कारण पदासीन होंगे।
भारत में रोहिंगटन मिस्त्री के उपन्यास 'ए फ़ाइन बैलेंस' के अपनी जाति से ऊपर उठने वाले पात्र को अपने पुरुषत्व की बलि नहीं देनी पड़ेगी।
मुझे भविष्य के किसी कल के लिए ढेरों संभावनाएँ दिख रही हैं। शायद रसोई हर स्त्री की नियति न होकर हर उस व्यक्ति की नियति बन जाए जिसे भूख लगती हो। शायद घर की दीवारें कैद करने की बजाए घर के होने की सुखद अनुभूति बन जाएँ। शायद जंजीरें घिस रही हैं। शायद वे टूट ही जाएँ। शायद शायद शब्द सच में संभावनाओं से भर जाए।
शायद अब जब मैं फिर से रूट्स पढ़ूँ तो आँखों में आँसू न आएँ, गला रूँध ना जाए,मैं कुन्टा किन्टे को चुपके से यह कह सकूँ कि हिम्मत ना हारो,किज़ी,तुम्हारी बेटी की आने वाली पीढ़ियाँ, तुम्हारे उत्तराधिकारी आकाश की ऊँचाइयाँ छूएँगे। उसके वे उत्तराधिकारी जो अमेरिका में हैं, अफ्रीका में हैं, भारत में हैं और संसार की आधी जनसंख्या भी हैं।
घुघूती बासूती
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घुघूती बासूती
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आज बाराक ओबामा को शपथ लेते देख कर लगा कि कहीं दूर खड़ा कुन्टा किन्टे मुस्कुरा रहा है और शायद उसकी चोटों,जंजीरों से बँधे पैरों व लंगड़ाते हुए चलते उसके पैरों को मलहम लग गया है.....परन्तु उनकी विजय ने बहुतों के लकवाग्रस्त पंखों में फिर से नई जान फूँक उड़ान भरने की एक संभावना तो जगा ही दी है.....मुझे भविष्य के किसी कल के लिए ढेरों संभावनाएँ दिख रही हैं....बहुत सामयिक और सुंदर आलेख लिखा है आपने......किसी में भी आत्मविश्वास भर देने वाली हैं ये बातें....इतने सुंदर आलेख के लिए आभार।
ReplyDeleteroot ke vishay me jaankaari aaj pahali baar mili. Obama ke madhyam se jis sansaar ki kamanaa apane ki us ke liye shubhkamanaen...!
ReplyDeleteइसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा।
ye baat bahut mayane rakhati hai.
बहुत सुन्दर लेख लिखा है, पढ़कर रोएँ खड़े हो गये, ओबामा के राष्ट्रपति बनने से अब कुछ और अच्छी बातों की संभावना बढ़ जाती है!
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
'जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा।'
ReplyDeleteये लाइन बहुत पसंद आई. हुए तो यहाँ भी हैं पर वो दिन जब अपने बल पर होंगे, अपनी योग्यता पर होंगे ना की गन्दी राजनीती करके उस दिन की बात ही कुछ और होगी.
सुनहरा दिन वह होगा जब योग्यता के बल पर पद मिलेगा बिना यह देखे कि वह गोरा है या काला, पुरूष है या स्त्री, अगड़ा है या पिछड़ा, किसान है या वेपारी.
ReplyDeleteआपने अच्छा लिखा है.
ओबामा की विजय पर ये पक्ष भी है जो आपने रखा है...(.नेता के तौर पर उनकी नीतिया भारत के हित में होगी या नही खैर ये तो भविष्य के गर्त में है )पर उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.....दलित स्त्री के तौर पर मायावती भी सत्ता में आकर सिर्फ़ राजनेता बनकर रह जाती है....शायद सत्ता के मद में ही कुछ ऐसा है....फ़िर भी उम्मीद तो कायम रहेगी
ReplyDeleteशायद अब जब मैं फिर से रूट्स पढ़ूँ तो आँखों में आँसू न आएँ, गला रूँध ना जाए,मैं कुन्टा किन्टे को चुपके से यह कह सकूँ कि हिम्मत ना हारो,किज़ी,तुम्हारी बेटी की आने वाली पीढ़ियाँ, तुम्हारे उत्तराधिकारी आकाश की ऊँचाइयाँ छूएँगे। उसके वे उत्तराधिकारी जो अमेरिका में हैं, अफ्रीका में हैं, भारत में हैं और संसार की आधी जनसंख्या भी हैं।
ReplyDeleteHume achhe ki hi ummid karni chahiya....
बहुत सी उम्मीदें जागी हैं ओबामा की जीत है- एक नये युग की परिकल्पना की जा रही है. देखिये, किस ओर जाती है ये दुनिया अब...
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख.
संभावनाओं में ही जीवन की नियति छुपी है.........बराक ओबामा की जीत को एक नयी संभावना के साथ जोड़ कर आपने एक नयी दिशा, नई उष्मा दी है
ReplyDeleteयह एक नये समय की शुरूआत है, नये सपनों को पंख लगने का दौर है।
ReplyDeletesambhavnayein nazar aane lagi hain, jahan ummidein bhi nahin thi. sahmat hoon aapse, shayad ek din har koi uth kar apne hisse ka aasman chhoo sake. aameen.
ReplyDeleteलेख तो बहुत अच्छा है ।
ReplyDeleteओबामा से सारी दुनिया को उम्मीदें है । देखें वो कितना सफल होते है ।
यही एक उम्मीद है जो आशाओं को जगाये रखती है ...बहुत सुंदर लिखा आपने इस पर .परिवर्तन बदलाव की उम्मीद नही छोडनी चाहिए
ReplyDeleteसामयिक सन्दर्भ को जीवन्तता से अपनी संवेदना से तृप्त कर दिया है आपने.
ReplyDeleteउल्लेखनीय प्रविष्टि.
काश वो दिन भी जल्दी आये, जब बिना किसी लिंग भेदभाव और योग्यता के अनुरुप पद मिल सके. आशा पर ही दुनियां कायम है.
ReplyDeleteरामराम.
लेख तो बहुत अच्छा है ।
ReplyDeleteओबामा से सारी दुनिया को उम्मीदें है ।
आपने रूट्स याद दिलाई - अच्छा लगा।
ReplyDeleteओबामा की विजय में मुझे उस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इउस दिन की आशा भी दिख रही है जब भारत में भी कोई दलित या कोई स्त्री केवल अपने बल पर गगन चूमेंगे। इसके लिए न तो उसे कोई नया क्रान्तिकारी दल बनाना होगा और न ही दलित या स्त्री मतदाताओं को अपनी ओर अपने दलित या स्त्री होने के कारण खींचना होगा। केवल अपने बल पर वह मुख्यधारा की राजनीति में अपना स्थान बना पाएँगे। वे केवल अपनी योग्यता के बल पर कुछ कर पाएँगे न कि किसी की बेटी,बहू या पत्नी होने के कारण या फिर अपनी जाति के कारण पदासीन होंगे।
ReplyDeleteकाश आपकी यह आशा पूरी होने पाती। लेकिन भारतीय समाज अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है। बल्कि बहुत तेजी से इसकी विपरीत दिशा में जा रहा है। अम्बेडकर, नेहरू-गान्धी परिवार, वी.पी.सिंह, अर्जुन सिंह, अटलबिहारी वाजपेयी, कांशीराम, मायावती, आदि सभी इस आशा को कालकोठरी में बन्द करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे हैं। ताजा उदाहरण मदरसा बोर्ड को दी जा रही मान्यता है।
भारत में जो लोग वोट डालने जाते हैं उनमें से कितनों पर ओबामा-इफेक्ट काम करेगा यह सहज ही समझा जा सकता है।
अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ना। ओबामा क्या कर सकते हैं यह तो समय बतायेगा लेकिन फ़िलहाल आशा करने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं है।
ReplyDeletebahut achcha likha hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा.
ReplyDeleteधन्यवाद
Sahi keh rahi hain, isliye ye sab ko history banne se pehli hi history event mana jaane laga. Ye aadmi ek nayi sambhavana to jagayega hi naya aatvishvash bhi dega. Obama apni yogyata ke bal per aur kuch Bush ki galat nitiyon ki vajah se jeete Lekin India me Aise hi Dalit ya koi aur Apni yogyata ke bal per aaye tabhi baat ho na ki jaatigat ya gathjor ki rajniti ke chalte.
ReplyDeleteप्रसन्नतापूर्वक जीने क लिए भले ही हम हिन्दुस्तानियों को एक 'राजा' जस्री होता है किन्तु यह भी सच है कि हमने ही राजाओं के ताज उतारे हैं।
ReplyDeleteआपके आशावाद में मेरी भी आवाज मिलती हुई है। हम 'मूल्यों को जीने वाले' वो लोग हैं तो चाहकर भी अपनी जडों से दूर नहीं हो सकते, अपनी मूल प्रवृत्तियों को छोड नहीं सकते।
सो, जैसा आप सोच रही हैं, चसह रही हैं, वैसा होगा। यकीनन होगा। मुमकिन हो कि उस दिन आप-हम न हों लेकिन उससे क्या। हमारी चाहत हकीकत में बदले, हम हों, न हों।
आमीन।
Amen !
ReplyDeleteलेकिन सत्ता सब को पचती नही . बहक जाते है सत्तामद मे . ओबामा इन सत्ता के साइड अफेक्ट से बचे रहे .
ReplyDeleteबस इतनी दुआ है कि ओबामा ओबामा भी रहें, सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति न हो जाएं...
ReplyDeleteएक वह देश है जो अपने स्वाभिमान का परचम विश्व मै फेहरा रहा है !और वहा के नागरिक अपनी भूलो का प्रयाशचित कर इक अश्वेत को सर्वोच्च पद पर आसीन कर रहे है इक हमारे नेता और मीडिया वाले बजाय अपनी कमियों को दूर करने के उनका कोरा स्तुति गान कर रहे है !
ReplyDeleteएक बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से कुन्टा किन्टे सफ़ल नहीं हो गया। 'चले चलो के वो मन्ज़िल अभी नहीं आई'।
ReplyDeleteहाँ सच तो आपने कहा ही,मगर इस अवसर को मैंने अपनी मायूसी ही बना लिया.......मन करने लगा है कि क्या भारत में भी ऐसा ही कुछ सम्भव है........कि यहाँ की संतप्त और प्रताडित आम जनता मुख्यधारा में शामिल होकर अपने अपमानजनक जीवन के दर्द को मेट सके.......जीवन में खुशियों के चंद लम्हों को पा सके........!!
ReplyDeleteदोस्तों, देश मै वर्तमान हालत के चलते एक बहुत बड़ी तादात ऐसे युवाओ की तैयार हो रही है !जो स्वयम के हित साधने के लिए सारे नियम ताक पर रखने को तैयार है !हम सारे देश को नहीं सुधार सकते ,परन्तु स्वयम के कर्तव्यो का सात्विकता से पालन कर अपने आस -पास के लोगो के सामने आदर्श प्रस्तुत कर सकते है आइये इस गणतंत्र दिवस पर देश हित मै स्वयम के निमित्त संकल्प ले ! "सुधरे व्यक्ति ,समाज व्यक्ति से ,राष्ट्र स्वयम सुधरेगा ! जय हिंद
ReplyDeleteसंवेदना की प्रस्तुति अत्यन्त सुंदर है।
ReplyDeleteसत्यमेव जयते