कट्टरपंथ यूँ ही अचानक नहीं आता होगा, वह दबे कदम आता होगा। ऐसा नहीं होता होगा कि एक सुबह आप जागें और पाएँ कि आपके यहाँ कट्टरपंथी शासन है। कट्टरता बस दबे पाँव आती होगी और जब कोई रोक टोक नहीं होती होगी तो धीरे धीरे अपने पैर पसारती होगी। जब तक आप जागें या सम्भले आप पाते होंगे कि अब आप घिर चुके हैं, अब विरोध का अर्थ है मृत्यु दंड, खंबे पर आपका शव लटका दिया जाएगा ताकि अन्य भी भयभीत रहें।
जब इसकी शुरुआत होती होगी तब बहुत से लोगों को लगता होगा कि गलत नहीं हो रहा। क्या गलत है यदि नग्न चित्रों को फाड़ दिया जाए, जला दिया जाए, हमारे लोकनायकों या भगवान की बुराई वाली पुस्तकें जला दी जाएँ, या फिर टी वी पर घटिया सीरियल देखने को मना किया जाए, या फिर स्त्रियों से विशेष परिधान पहनने को कहा जाए या कोई परिधान पहनने को मना किया जाए ? अच्छा ही तो है, हमारी तो सुनती नहीं, अब पाबंदी लगेगी, चाहे किसी स्वनिर्मित दल द्वारा या विद्धालय द्वारा, तो हमारा काम तो सरल हो जाएगा। क्या बुराई है यदि युवाओं, विशेषकर युवतियों को शराब पीने से रोका जाए ? युवतियों को तो सिगरेट से भी, लड़कों के साथ घूमने से भी, अपने मन के विवाह से भी, अन्य जाति धर्म में विवाह से भी रोकने से परिवार का काम सरल हो जाएगा। कुछ तो अंकुश लगेगा इन निरंकुश होती स्त्रियों पर ! लड़के कहाँ माता पिता की बात सुनते हैं ? अब जब आवारागर्दी पर रोक लगेगी तो माता पिता को कितना आराम मिलेगा ! यदि उन्हें नेट पर कुछ विशेष चीजें देखने से रोका जाए तो नेट का बिल भी कम होगा और वे अपनी पढ़ाई, काम धाम में भी ध्यान देंगे। कुछ विशेष सिनेमा बन्द कराए जाएँ तो भी क्या बुरा होगा ? क्यों हम कानून का सहारा कुछ रोकने में लें जब यह रोकथाम का सरल, सस्ता व टिकाऊ रास्ता उपलब्ढ़ है यही तो लोग सोचते होंगे। ये भी सोचते होंगे कि क्यों अंधे कानून का सहारा लें जो लड़के लड़कियों, स्त्री परुष युवा व वृद्ध में कोई अन्तर ही नहीं करता ?
शायद शुरुआत यूँ ही होती होगी। बहुत से उन आचरणों पर रोक लगाकर जिसे समाज का एक काफी बड़ा वर्ग गलत मानता हो। सब चुप रहते होंगे। बहुत कम लोग विरोध करते होंगे। फिर कट्टर विचारधारा वाले शक्तिशाली होते जाते होंगे। उनकी संख्या बढ़ती जाती होगी। उनमें ऐसे लोग भी सम्मिलित होते जाते होंगे जिनकी कोई विशेष विचारधारा नहीं होती होगी। उन्हें बस लोगों पर पाबंदियाँ लगाने में अपनी शक्ति परिक्षण व प्रयोग का आनन्द मिलता होगा। तोड़ फोड़ मारपीट का आनन्द मिलता होगा। लोगों में व्याप्त होते भय से स्वयं की शक्ति पर अभिमान होता होगा। वे देखते होंगे कि सरकार, लोकतन्त्र , कानून कोई भी उन्हें रोक नहीं सकता। जितनी उनकी शक्ति बढ़ती होगी, जितना अधिक वे समाज पर अपना नियन्त्रण करते जाते होंगे उतना ही उन्हें रोकना कठिन होता जाता होगा। हमारा संविधान भी हमें हमारे अधिकार वापिस नहीं दिला पाता होगा। अधिकार कागजों में लिखे रह जाते होंगे। अलिखित कानून असली कानून बन जाता होगा।
एक दिन पुरुषों से भी कहा जाता होगा कि पैंट नहीं सलवार पहनो या पाजामा या धोती या ऐसा ही कुछ। तब पुरुष वर्ग हड़बड़ाता होगा कि स्त्रियों पर पाबंदी तो ठीक थी, उन पर ही तो हमारी संस्कृति, हमारे सांस्कृतिक पारम्परिक परिधानों को सुरक्षित रखने का उत्तरदायित्व था। यह क्या हो गया ? लड़कियों से स्त्रियों, स्त्रियों से लड़कों, लड़कों से पुरुषों तक पाबन्दियाँ कब और कैसे आ गईं। परन्तु अब तक वे असहाय हो चुके होते होंगे। अब उनके टखने न दिखने पर उन्हें भी गोली मार दी जाती होगी। उनका शव भी उनके विद्धालय के प्रागंण की शोभा बढ़ा रहा होता होगा। अब जब वे सोचते होंगे तो आश्चर्य करते होंगे कि टखने न दिखना भी अपराध हो गया ! क्यों, कैसे,कब से ! हम तो सोते रह गए !
तब शायद कोई साहसी लड़की कहती होगी कि यह सिलसिला तब से शुरू हुआ जबसे मुझपर पाबंदियाँ लगीं। तब तो आपको कोई विशेष कष्ट नहीं हुआ था। या फिर नहीं भी कहती होगी क्योंकि अब उसे सोचना नहीं आता होगा, अपनी बात कही भी जा सकती है, यह आभास ही नहीं बचा होगा। तब बुजुर्ग पुरुष भी पाबंदियों को जीते होंगे और एक नए कट्टरपंथी समाज के नागरिक बन अपने अपने टखने दिखाने में लग जाते होंगे।
एक सामान्य सहज काफी स्वतन्त्र समाज अब एक शिकंजे में जकड़ा कट्टर समाज बन जाता होगा। जहाँ पुत्रियाँ अनपढ़ होती होंगी, जहाँ जिस किसी से भी उनका जबर्दस्ती विवाह करा दिया जाता होगा। जहाँ अब पुनः स्वतन्त्रता लाने को विदेशी बुलाने पड़ते होंगे परन्तु इतना अधिक अंधकार छा चुका होता होगा, अंधकार इतना ठोस हो चुका होता होगा कि अब रोशनी की कोई भी किरण उसे सरलता से बींध नहीं सकती होगी। एक समाज जिसने अपने बच्चों को उचित मूल्य सिखाने के अपने कर्त्तव्य से बचने को मूल्य सिखाने का ठेका अन्य लोगों को देकर आराम से जीना चाहा होगा, वह तब शायद उस ऊँट की कहानी याद करता होगा जिसे जरा सा तंबू के अन्दर आने की अनुमति मिलने पर ऊँट ने पूरा तंबू घेर लिया था और मनुष्य को बाहर खदेड़ दिया था। तब शायद किसी को इसमें एक irony,एक paradox,एक विडंबना नजर आती होगी कि कल तक जो स्त्रियों के टखने ढकने में लगे थे वे आज पुरुषों के टखने खोलने में लगे हैं। और तब, तब बुजुर्ग पुरुष भी अपनी सलवार, पाजामा, धोती या जो कुछ भी ऊपर खोंसकर या कटवाकर अपने टखने दिखाने लगते होंगे। शायद कोई अति सावधान अपने टखनों पर बड़े बड़े अक्षरों से लिख भी देता होगा 'टखने'!
घुघूती बासूती
Monday, January 26, 2009
कट्टरपंथ यूँ ही अचानक नहीं आता होगा , वह दबे कदम आता होगा और आपको टखने दिखाने को मजबूर करता होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सही शब्दों में बात कही है ...अच्छा लेख
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
वर्तनी कि भूल सुधारः
ReplyDeleteकोई विशेष* परिधान, विद्यालय*, उपलब्ध*,
घुघूती बासूती
सचमुच विचारणीय !
ReplyDeleteऐसा ही होता है, मगर एक सजग समाज अपने आप को इससे बचा लेता है. मुझे लगता है हिन्दू भी सजग है. यहाँ महिलाओं पर क्या पहने, क्या खाए, कहाँ जाए का निर्णय कोई बाहरी व्यक्ति ले यह सहन नहीं किया जाएगा. हम एक स्वर में विरोध करेंगे.
ReplyDeletehindu dharm kae so called rakshak kabhie hi shyaad apne ladko ko hindu dharm kaa paath padhaatey ho bas kewal yahi batatey haen "aurto par fabtiyaan kaso , unko maaro , unka balaatkaar karo " kyuki tum hindu purush ho dharm kae thaekaedaar ho .
ReplyDeletehindu dharm sanchita kahii likhee haen kyaa ??? kaun saa granth haen yae aur kehaa milaega . kisne isko likha aur kisne isko chapaaya . puraney naye sanskarano mae koi badlaav haen kyaa ???
as usual a very good piece of post by you
बहुत सही बात, इस बात में मैं साथ हूँ।
ReplyDeleteहम तो समर्थन करेंगे. आभार.
ReplyDeleteबेहद सधी हुई, ईमानदार और खरी-खरी बात. अब इधर दावा कर जा रहा है कि हिन्दू जागृत है और हमारा सजग समाज है. मंगलौर में किसी श्रीराम सेना के कथित कार्यकर्ताओं ने महिलाओं को किसी पब में ज़मीन पर लुटा-लुटा कर पीटा और कर्नाटक सरकार खाना-पूरी भी नहीं कर रही है. इन कार्यकर्ताओं में से कई तो हिस्ट्रीशीटर अपराधी थे. यह है हमारा सजग और जागृत हिन्दू समाज! हिन्दुओं को निकृष्ट तालिबान में बदल देने की प्रक्रिया का परत दर परत खुलासा करती आपकी यह इतनी स्पष्ट पोस्ट पढ़कर भी इनकी आँख नहीं खुलती. हाँ, इतना अवश्य स्पष्ट होता है कि इनकी सीधी स्पर्द्धा तालिबान से है. समझ लीजिए कि ये यह समझ पाने की मनःस्थिति में भी नहीं रह गए हैं कि उंगली किस तरफ़ इशारा कर रही है.
ReplyDeleteइससे पहले भी हिन्दू समाज के स्वयम्भू ठेकेदार प्रेमी युगलों की सरेआम ठुकाई करते देखे गए हैं लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती! ये लोग भारत के तालिबान नहीं तो और क्या हैं? हर स्तर पर इनका विरोध और हर हाल में इनकी घोर निंदा की जानी चाहिए.
हमारे यहां तो कट्टरपन्थ को माइनारिटी तुष्टीकरण की हवा मिलती है!
ReplyDeleteआपसे पूरी तरह सहमत.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब लिखा है आपने.. १०० % समर्थन है आपका
ReplyDeleteसटीक लेखन। भयावह तस्वीर का सजीव चित्रण। कल नहीं सोचा लेकिन आज भी थोड़ी ही देर हुई है वरना कल की तस्वीर कैसी होगी-कहना और सोचना रूह कंपा देता है। सार्थक लेखन के लिए बधाई।
ReplyDeleteमुझको आपकी बात बिल्कुल सही लगी http://babloobachpan.blogspot.com
ReplyDeleteसारे लोग ऐसे कट्टरपन का विरोध करें। जात और मज़हब की सीमा से ऊपर उठकर। तभी हालात बदलेंगे। वरना, तालिबान से लेकर श्रीराम सेना तक... कहीं भी, कभी भी, किसी भी नाम से हमारे हक कुचलते रहेंगे।
ReplyDeleteबहुत सही कहा..
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं
व्यक्ति स्वातँत्र्य समाज का महत्त्वपूर्ण अँग है इसे कदापि खोने ना देँ
ReplyDeleteबजरँग दल हो या तालीबानी या हीटलर या माओवादी, सबसे उपर
है व्यक्ति की स्वतँत्र सोच और उसके हक्क की लडाई - ये याद रहे -
अच्छा लिखा आपने ..
- लावण्या
बेहद खरी खरी बातें की हैं आपने...साधुवाद....
ReplyDeleteनीरज
सधी हुई बात सधी हुई शैली में कह दीं आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बहुत सही.....गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजो समाज सजग और सतर्क नहीं होता, उसका पतन निश्चित है। कुछ भी अचानक नहीं होता। पहली ही बार में प्रतिवाद और प्रतिरोध आवश्यक है। पहली फिसलन को 'ऐसा तो चलता है' कह कर जब अनदेखा किया जाता है तो फिर स्खलन का रुकना असम्भव ही होता है।
ReplyDeleteआपसे असहमत होने के लिए कोई बिन्दु नहीं।
बिलकुल सही लिखा आप ने,
ReplyDeleteआप को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं !!
Thanks for such a wonderful article and pinning the problems down so boldly.
ReplyDeleteI am surprised that still there are people who can claim that bhagwaa brigade is not following Taliban model. And people cant see that the politics of India is totally hijacked by religion, cast and regionalism. and a vast section of the society has been "communalized with proud".
सधी हुई सच्ची संयमित बात. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बहुत ही सामयिक 'whistle blower'आलेख के लिये हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआपके आलेख से अक्षरशः सहमत हूँ!
ReplyDeleteसटीक,सच्ची,साहसिक और ईमानदारी से रखी गई बात्।सहमत हूं आपसे,पू्री तरह्।
ReplyDeleteApne simit shabdo mai bahut sahi baat kahi hai.
ReplyDeletemai apki baat se sahmat hu...
kabhi "aurat" sheershak dekar kuch likha tha ....
ReplyDeleteपल्टो रवायतो के कुछ ओर सफ्हे
गिरायो इक ओर रूह
दफ़न कर दो एक ओर लाश
तहजीब के लबादे मे.........
ख़ामोश रहकर भी
किस कदर डराती है...
sahi tarah se aapne apni baat kahi hai is post me
ReplyDeletehappy republic day
सही सच सोच के साथ लिखा है आपने ..
ReplyDeleteबेहद खरी खरी बातें की हैं आपने...साधुवाद....
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख ..........बहुत से ज्वलंत प्रश्न खड़ा करता हुवा. धीरे धरे दबे पाव आता हुवा कट्टरवाद सब को एक दिन लील लेगा. आपने इमानदार, सधे शब्दों में सही वक़्त पर सही तरीके से इस विषय को उठाया है
ReplyDeleteकिसी भी ग़लत का घुन ऐसे ही अन्दर अन्दर आहिस्ते आहिस्ते लगता और फैलता है.समय रहते उसे न रोका हटाया गया तो अन्दर ही अन्दर सब खोखला हो जाता है,चाहे वह इश्लाम्वाद की जाहिलता हो या स्त्री पुरूष द्वारा अपनाए गए कुसंस्कार.एक मानवता को खोखला करती है तो दूसरी संस्कार और संस्कृति को.
ReplyDeleteजहा कट्टरता मानवीय अभिव्यक्ति ,का इच्छाओ का गला घोटता है वही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी कोई दायरा तय होना चाहिए !अति दोनों ही स्तिथियों मै अस्विकरीय है ! श्री राम सेना के कृत्य का मै समर्थन नहीं कर रहा ,परन्तु उसका विरोध करने वाले या तो उस नग्नता को स्वीकार करते है या पूर्वाग्रह से ग्रसित है !
ReplyDeleteआप के गद्य की धार का जवाब नहीं.. मैं आप का फ़ैन हूँ!
ReplyDeleteबगैर विचारधारा वाले लोगों को ऐसे काम के लिए जुटा लेना बड़ा आसान होता है और बहुत हद तक इसके पीछे वही तर्क काम करते हैं जिनकी और आपने इशारा किया है. ध्यान से इन लोगों को देखें तो पता चलता है कि ये वे कुंठित युवा हैं जो भीतर ही भीतर महिलाओं के साथ के लिए तरसते हैं और जब इसमे सफल नहीं हो पाते तो उन्हें लगता है कि किसी और को भी महिलाओं के साथ का हक नहीं है.
ReplyDeleteसंचेतना जागृत करते आलेख के लिये साधुवाद....
ReplyDeleteकट्टरपंथ क्या है............दरअसल हमारे भीतर छिपा हुआ दानव.......राक्षस.......जो सदा किसी ना किसी बहाने हमारे बाहर आकर मानवता का खून पीने को व्याकुल रहता है.......इसके ख़िलाफ़ हम कहते तो बहुत कुछ हैं.....मगर शायद कुछ कर नहीं पाते....कब हम कुछ कर पाने के काबिल हो पायेंगे......??
ReplyDelete