Tuesday, January 08, 2008

बिना आइ लैशेज वाली दुल्हन

जब मेरी आइ लैशेज मेरे हाथों में आ गईं !


पिछली कड़ियाँ
1 . shadi kiski hai ?" शादी किसकी है ? http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/12/blog-post_18.html
2. विदाई एक दुल्हन की http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/12/blog-post_29.html

मेरी सास बंगला थीं। सो बंगाली रीति रिवाज से मुझे घर के अन्दर ले जाया गया। एक लाल साड़ी सारे रास्ते बिछाई गई थी । उसपर चलकर घर आना था । शेष तो मुझे याद नहीं, परन्तु घर में घुसते से ही भंडारगृह ले जाया गया । वहाँ एक बड़े से पतीले में एक बड़ी सी रोहू मछली रखी गई थी । मुझसे उसे हाथ लगाने को कहा गया । मैं थी पूर्ण शाकाहारी और यहाँ पर सब पक्के माँसाहारी थे । खाने में भी मछली मटन आदि बन रहा था । मुझसे बहूभात के लिए कटी मछली को कड़ाही में डालने को कहा गया और केवल सबको खाना परोसवाया गया । जब मैं मछली कड़ाही में डाल रही थी तब मेरे चेहरे के रंग तो बदले ही होंगे । मेरे ससुर रसोई में आकर बोले ‘ब्राह्मण की बेटी’ से ये क्या काम करा रहे हो । मैंने भी उस ही पल निर्णय कर लिया कि मैं मछली , मुर्गा, बकरा सब पकाउँगी । खाना मेरा निजी मामला है, सो खाऊँगी कभी नहीं । और मैं अपने निर्णय की सदा पक्की रही ।

एक तो ट्रेन में गरम चाय से मेरे मुँह के अन्दर की सारी त्वचा जली हुई , ऊपर से चारों तरफ मीट , मछली की सुगन्ध । खाना गले के अन्दर जाना कठिन ।मुँह में कुछ डालूँ तो घायल मुँह जल जाए । ना डालूँ तो सब पूछें कि क्या मीट देख कर नहीं खाया जा रहा । पानी पी पीकर मैंने खाना खाया । साथ में नखरा करने के लिए थोड़ी सी नाराजगी भी झेली ।

उस शाम हमारा स्वागत समारोह होने वाला था । मैंने श्रृंगार के नाम पर एक बिन्दी व एक लिपस्टिक को ही अभी तक उपयोग किया था । विवाह में भी वही लगाईं थीं । परन्तु यह दिल्ली शहर था । यहाँ घर की स्त्रियों ने मुझे सजाने का जिम्मा लिया । मैं चुपचाप स्वयं को रंगवाती- पुतवाती रही । चेहरे पर पावडर लगा । आँखों में काजल, मस्कारा , आई शैडो आदि । जाने से पहले एक बार शीशा दिखाया गया । कहीं कहीं से मुझे अपने चेहरे में से मैं झाँकती हुई दिखाई दी। हम सब पार्टी स्थल पर पहुँचे । वहाँ अनेक लोगों को नमस्कार , हैलो व प्रणाम किया । जबतक पार्टी खत्म हुई रात घिर आई थी ।

घर पहुँचकर मैंने स्नान का निर्णय किया । अपने गहने आदि ननद को पकड़ाए व बाथरूम में घुस गई ।
सबसे पहले मैंने मेकअप छुटाने को अपना चेहरा धोया । जैसे ही आँखों को धोया मेरी अन्दर की साँस अन्दर व बाहर की साँस बाहर ही रह गई । आज इस घर में मेरा पहला दिन व पहली रात थी । और मेरे हाथों में मेरी आइ लैशेज थीं और वे भी पूरी की पूरी । किसी तरह से जल्दी जल्दी पानी डालकर बाहर आई व डरते डरते शीशे के सामने गई। जानती थी कि क्या देखने को मिलेगा सो सहमते हुए लाइट जलाई । अपनी शक्ल देखकर मैं जीवन में पहले कभी इतनी प्रसन्न नहीं हुई थी । कहाँ मैं शीशे में एक आइलैशेज विहीन दुल्हन को को देखने के लिए दिल कड़ा किये हुई थी ,परन्तु यहाँ तो आइलैशेज बिल्कुल सही सलामत थीं । तो जो मेरे हाथ में आईं थीं वे क्या थीं ? खैर मैंने सोचा वे जो भी रहीं होंगी मुझे उनसे क्या लेना देना ! मेरी पलकों के बाल तो मेरी पलकों से अभी भी जुड़े हुए थे ।


बस इतना दृढ़ निश्चय अवश्य किया कि अब जो चाहे हो जाए आइ मेकअप , विशेषकर मस्कारा, जिसे आइ लैशेज पर लगाया जाता है उसे तो कभी छुऊँगी भी नहीं ।


घुघूती बासूती

7 comments:

  1. हा हा हा आपको जरूरत ही कहाँ है मेकअप की...:) आप वैसे ही खूबसूरत है...

    वैसे लिखा आपने बहुत सुन्दर है...कहीं कहीं से मुझे अपने चेहरे में से मैं झाँकती हुई दिखाई दी।...वाह क्या बात है..

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  2. Anonymous10:42 am

    bahut hi aachha likha hai :):);):),hum ab tak muskura rahe hai:),eyelashes:)nakli,beautifuly written blog.kahi kahi se mujhe mein jhakti nazar aayi,fantastic line.
    mehek

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  3. चलो जी गनीमत है नकली आई लैशेज ही आपके हाथ में आई थी नही तो आजकल के इस फ़ेमस गाने की लाईन सच होने के चांस थे " कुछ इस तरह तेरी पलकें मेरी पलकों से मिला ले" :)

    मैं तो आपके संस्मरणों का फैन हूं मुझे तो अच्छा ही लगेगा कि आप ऐसे ही यादों के जंगल में भटकती रहें और लिखती रहें, हम पढ़ते रहें!!


    हमारे घर मे भी मांसाहार नही पकता लेकिन हम भाई खाते हैं। आज भी मजाल है कि माताजी की मौजूदगी में अंडा तक किचन में पहुंच जाए। अंडा हो या मांसाहार घर के बाहरी कमरे में बैठो और खाओ।
    हमारी बड़ी भाभी खुद नही खाती लेकिन बनाती इतना शानदार है कि पूछिए मत। जब भी उनके शहर जाना होता है तो बस अहा आनंदम आनंदम!!

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  4. बासूती जी आपको पढ़ते हुए आपके जीवन और रचनागत विषय का यथार्थ साक्षात सामने आ जाता है, यही आपकी अभिव्यक्ति की बहुत बड़ी ताकत लगती है। यह ताकत और उर्वर और मुखर हो। यह भी संस्मरण अत्यंत पठनीय रहा।

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  5. kripya apna poora parichey dein
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  6. आदरणीया,
    आपके पिछले संस्मरण भी पढ चुका हूं. बहुत ही मज़ेदार हैं. अब तो बसजल्दी ही इनका धारावाहिक र्रूप में प्रसारण होना चाहिये.
    धन्यवाद

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  7. :) मैं हैरान हूँ कि आप के और मेरे शादी के अनुभव इतने मिलते जुलते कैसे हैं। नकली आई लेशेज भी खूब रही। हमें भी अपनी शादी का कुछ याद आ गया अपनी पोस्ट पर बताते हैं लंबी बातें करने की आदत है न्…:)

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