तिनकों की भी क्या इच्छाएँ होती हैं
उन्हें तो बस बह जाना होता है
नदी के बहाव के साथ
जिस दिशा में ले चले वह
उन्हें वहीं बस जाना होता है ।
चाहे ले जाए नदिया
साथ अपने सागर तक
चाहे बीच राह में
छोड़ आए किसी किनारे ।
कुछ तिनके यूँ सोचते हैं
उन्होंने स्वयं चुना है
नदिया संग बहना,
कि उन्हें तो स्वयं
जाना था सागर तक ।
सो कहते हैं
उन्होंने तो माध्यम
बनाया है नदी को
जाने के लिए गंतव्य तक ।
कुछ तिनके यूं मन बहलाते हैं
कि नदी बनी ही थी
उन्हें पहुँचाने को
उनकी मंजिल तक ।
यूँ इतराते वे जाते हैं
जल पर सवार
मानो उनका ही हो
सारा यह संसार ।
सोचते हैं कि वे ही
बहा रहे हैं नदी को
वे ही हैं मार्ग निर्देशक
और वे ही हैं गति नियंता ।
सोचकर यूँ स्वयं को
नदी पथ प्रदर्शक
चल पड़ते हैं वे
लहरों पर सवार ।
कुछ इठलाते कुछ इतराते
देख गति अपनी प्रगति की
मन ही मन मुस्काते
बढ़ आगे जाने को
पूरा अपना जोर लगाते ।
पर नदिया ने तो
जब जहाँ मन आया
है उसे ले जाना
बीच राह में पटक
उसे किसी किनारे
आगे बढ़ते है जाना ।
या फिर कर आती उसे
किसी चलबच्चा हवाले
कभी छोड़ आती वह उसे
किसी भंवर में
खाने को अनन्त तक चक्कर ।
कोई तिनका हो जाता है
कुछ अधिक सफल
लहरों के रथ बैठ
वह भागता है
सागर तरफ सरपट ।
सागर हँसता
उस जैसे न जाने
कितनी कोटि तिनके
आते हैं उसके जल में ।
कभी विचरने देता
सागर उसको अपने
अनन्त विस्तार पर
कभी चढ़ा देता
लहरों के शिखर पर ।
फिर अगले ही पल
ले जाता उसे संग लहर के
ओर छोड़ आता
अनजान किसी तट पर ।
करने को विलाप
अपनी दशा पर
फिर आती एक और लहर
और मरु की एक चादर
फैला जाती है उसके ऊपर ।
यूँ अन्त हो जाता है
सफर इक तिनके का
काल की गर्त्त में
यूँ ही हैं सब तिनके समाए ।
कुछ भूले, कुछ बिसराए
यही नियति है हर तिनके की
चाहे कितने ही तिनकेनामे
हम लिखते जाएँ ।
घुघूती बासूती
चलबच्चा=cesspool, नाबदान
Wednesday, January 09, 2008
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excellent!
ReplyDeleteक्या बात है. कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया आप ने. बकौल ग़ालिब :
ReplyDelete"इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना"
आदरणीय घुघूती जी,
ReplyDeleteसादर नमस्कार, पहाड़ की संस्कृति में घुघूती को यादों के साथ जोड़ा गया है और वक्त की शाख से उन लम्हों को जीवंतता के साथ शब्दों में उकेरकर आपने इस नाम के मायने सार्थक कर दिए हैं. हिंदी के उभरते ब्लॉगर्स को और भी अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए हम अपनी बेबसाइट www.tehelkahindi.com में हम 'हफ्ते का ब्लॉगर' नाम से एक स्तंभ शुरू कर रहे हैं जिसमें प्रत्येक सप्ताह आप जैसे शब्दों के चितेरे ब्लॉगर्स की पोस्ट प्रकाशित करने का विचार है.अगर आप की अनुमति हो तो क्या हम आपकी किसी पोस्ट को साभार अपनी वेबसाइट में स्थान दे सकते हैं.
सादर
विकास बहुगुणा
vikas@tehelka.com
BAHUT KUCH LIKH DIYA AAPNE
ReplyDeleteHAR EK LINE TAREEF KE LAYEK HAI.
BAHUT KHOOB
SHUAIB
क्या कहूं!!
ReplyDeleteआपकी सोच का फ़ैलाव देख कर कभी-कभी अचंभा सा होता है! काश इसका कुछ अंश भी मैं खुद में ला सकूं!
तिनकों का पूरा इतिहास बयां कर दिया आप ने अपनी कविता में. जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता उनका हश्र ये ही होता है. बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteकुछ भूले, कुछ बिसराए
यही नियति है हर तिनके की
चाहे कितने ही तिनकेनामे
हम लिखते जाएँ ।
वाह कितनी खूबसूरती से मनुष्य की क्षण भंगुरता और अहम् को बयां किया है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,बहुत बढिया , पढ़कर अच्छा लगा !
ReplyDeletetinke ka safar,sahi bayan kiya hai,beautiful.ap ko jitna bhi padha jaye kam hai,bahut achha likhti ho aap.
ReplyDeleteअभी कल ही आपका ब्लॉग देखा.
ReplyDeleteअब तक दो-तीन बार तो आ चुका हूँ.
आप क्या लिखती हैं, कैसा लिखती हैं,कहना बेकार है. बस तारीफ़ के लिए सही शब्द चुनकर कुछ भी कहा जा सकता है.
मेरा एक आग्रह है कि आप ब्लॉग पर सब्सक्रिप्शन की सुविधा दे देतीं तो हमें बैठे-बिठाए मालूम हो जाता कि आपने कुछ नया लिखा है...
आपको शुभकामनाएँ, हमें अच्छा पढ़ाने के लिए...
मनुष्य जीवन की सच्चाई को तिनके की उपमा से कविता में ढालना सचमुच अद्धभुद है, बहुत सुनदर कविता हैं। आप यूं ही लिखते रहें और हम आंनदित होते रहें।
ReplyDeleteयही नियति है हर तिनके की
ReplyDelete...ऐसी बात नहीं बासूती जी! थोड़ी नाइत्तफाकी कुबूल करें।
अच्छा लग रहा है आपका बलौग. पहली बार एसा लग रहा है कि ठीक लोग मिल ही जायेंगे मुझे ।
ReplyDelete"काल की गर्त्त में
ReplyDeleteयूँ ही हैं सब तिनके समाए ।"
हर किसी को अपने गिरेबां में झांकने को मजबूर करने और झूठे दर्प को तिनके-सा उड़ा देने की ताकत रखती है यह कविता।
बहुत बेहतरीन। यदि इस कविता के संदेश को याद रखा जा सके तो मनुष्य के मन में अहंकार का जो भयानक रोग है, वह खत्म हो जाएगा और मानवता स्वस्थ हो जाएगी।
एक बहुत खूबसूरत कविता !!
ReplyDeleteसागर, नदिया, लहरें औ' तिनके,
ReplyDeleteकैसे हलके से हर भाव को बिनके,
'तिनकेनामे' में पिरोया गिन गिनके,
कंठी मनहर मन को मोहे कैसे ना?
जब इतने प्यारे हैं सारे मनके..