मेरा प्यार खिलखिलाता है जाड़ों की धूप सा ,
तेरा प्यार सहमा हुआ है जाड़ों की बर्फ सा ,
मेरा प्यार तो लिपटा हुआ है अमरलता सा ,
ना डरता है बस मानता है तुझे अपना सा।
लेती हूँ जीवन रस तुझसे,
लेती हूँ मैं सहारा तुझसे,
फिर भी तू है घबराया मुझसे,
न कहूँगी प्यार नहीं है तुझसे ।
मैं बनती बादल तेरे आँगन में बरसती हूँ,
मैं बन बिजली तेरे आकाश में थिरकती हूँ,
बन पवन मैं कभी भी तेरे बाल उड़ाती हूँ,
फिर बन सपना मैं तेरे मन को सहलाती हूँ ।
तू सागर है शक्तिमान असीम अनोखा ,
मैं मीठी नदिया जिसे मानव ने रोका,
तू टकरा तट से ढूँढे मिलने का मौका,
मैं तोड़ बाँध आ जाती दे सबको धोखा ।
घुघूती बासूती
Friday, January 11, 2008
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बड़ा खूबसूरत है आपका प्यार
ReplyDeleteसच.
ReplyDeleteप्यार तो वैसे भी सुबह की ओस की तरह नाजुक-नरम होता है, तिस पर आपकी बेहतरीन कविता.. साधुवाद
ReplyDeleteमैं मीठी नदिया जिसे मानव ने रोका...
ReplyDeleteएक कड़वे सच का आइना हैं ये पंक्तियां।
आपकी कविता प्यार के स्वरूप को दर्शाती हुई है।
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
KITNAA SUNDAR.....
ReplyDeleteबड़ी नाजुक सी बल खाती कविता है.
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteक्या बात है!
ReplyDeleteसुंदर!
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteअच्छी कविता है.
ReplyDeleteआप के प्यार को सौ सलाम।
ReplyDeleteआपकी कविता की आखिरी दो पंक्तियां बहुत कुछ कहती हैं !! एक परिपक्व कविता पढवाने के लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteप्रेम का बहुत सुन्दर रूप
ReplyDeleteअच्छी बहुत अच्छी कविता.
ReplyDeleteसुंदर भाव और सुंदर शब्द चित्रण.
तू टकरा तट से ढूँढे मिलने का मौका,
ReplyDeleteमैं तोड़ बाँध आ जाती दे सबको धोखा
बढिया........