Monday, July 07, 2008

बब्बन मियाँ का फोन

अभी अभी रात दस बजे बब्बन मियाँ का फोन आया ।

बब्बन मियाँ, हमारे मित्र, बच्चों के टोयो अंकल, कितने साल हो गए हैं उनसे मिले हुए। आज सैर करके आकर मैं एक पुस्तक पढ़ रही थी। इतने में एक फोन की घंटी बजी। घुघूत जी (आज से वे घुघूत जी हो गए हैं। हाल में ही एक उत्तराखंडी मित्र ने बताया कि घुघूती का पुल्लिंग घुघूत होता है कुमाँऊनी में और मैं सहमत हूँ।)ने फोन उठाया । वे बात करते हुए दूसरे कमरे में चले गए। मैं पढ़ती रही। अचानक उन्होंने आकर मुझे फोन पकड़ाते हुए कहा, बब्बन मियाँ हैं। मैं अनायास ही मुस्करा पड़ी। हैलो,हाय,नमस्ते हुआ। सबकी खैर खबर ली। फोन पर भी तो बात बहुत समय बाद हो रही थी। बोले दो बच्चे तो अरब देशों में हैं और दो अभी पढ़ रहे हैं। वे स्वयं सेवानिवृत्त हो गए हैं। मकान में पाँच किराएदार रखे हैं,पाँच हजार रूपए जाते हैं,आराम से गुजारा हो जाता है। दोनों बड़ों की शादी कर दी है। वे भी तीस तीस हजार कमा रहे हैं। (छोटी सी गाँवनुमा जगह है,शहरों के किराए नहीं मिलते।) सब आपकी दुआ है।

और नईम का क्या हाल है? बस साहब(स्त्रियों को भी साहब कहा जाता है!) वह भी मजे में है। अपनी गाड़ी चला रहा है। तीस हजार मिलता है, पन्द्रह हजार का खर्चा जाता है और पन्द्रह की कमाई हो जाती है। बालाजी कैसे हैं? वह तो बहुत मजे में है। सब बच्चे काम पर लग गए हैं। कई मकान बनाकर किराए पर उठा दिए हैं। चलिए यह तो बढ़िया है कि सब मजे में हैं।


बच्चियाँ कैसी हैं साहब? बच्चियाँ भी ठीक हैं,अपने पैरों पर खड़ी हो गईं हैं ना। बस यह हो जाए तो चिन्ता नहीं रहती ना!सही कह रही हैं आप। मिलने का बहुत मन है। तो फिर जाओ ना। जब मन करे पहुँच जाओ। हाँ साहब भी बोले कि जाओ। मैं आऊँगा,जल्दी ही आऊँगा। बच्चों की शादी में भी नहीं पहुँच सका था। तो ठीक है बब्बन मियाँ,पहुँच जाओ। बहुत खुशी होगी मिलकर। नमस्ते, बब्बन मियाँ गुडनाइट। गुडनाइट।

११ साल पहले तक हम लोग साथ थे। फिर दो बार वे हमसे मिलने आए थे। अब तो लगभग नौ साल हो गए हैं मिले हुए परन्तु स्नेह आज भी वही है।

हम पहली बार चौबीस साल पहले मिले थे। बच्चियाँ छोटी थीं। छोटी तो गोद में भी। हम नए नए साऊदी अरब गए थे। जब भी हम पास के शहर जाते थे तो बब्बन मियाँ ही कार चलाकर हमें ले जाते थे। वे कम्पनी की कार के ड्राइवर थे। उनकी बच्चियों से ऐसी दोस्ती हुई कि वे उन्हें टोयो अंकल कहने लगीं।

वे नियमित रूप से घर आने लगे। बाद में पति ने अपनी कार खरीदी। भारत में तो कार चलाने का लाइसेंस था परन्तु वहाँ के नियम इतने कड़े थे कि भारत के कई ड्राइवर भी ड्राइविंग टेस्ट में फेल हो जाते थे। कार भी बड़ी सी स्पोर्ट्स कार थी। सो बब्बन मियाँ पति के ड्राइविंग गुरू बने। हम उनको साथ लेकर कई बार लम्बी यात्रा करके दूसरे शहरों में जाते थे। सारी पिकनिक,बच्चों के खेलों के पार्क आदि में उनके साथ ही जाना होता था। बच्चियों के हर जन्मदिन पर उन्हें बुलाया जाता। फिर वह दिन भी आया जब वे भारत वापिस जा रहे थे। जब भी कोई मित्र भारत वापिस जाता तो हम उसे खाने पर बुलाते सो बब्बन मियाँ की भी विदाई पार्टी हमारे घर पर हुई। बड़े उदास मन से बच्चियों ने उन्हें विदा किया।


कुछ समय बाद हम भी वापिस गए परन्तु वे दक्षिण में थे हम उत्तर में। उनके पत्र आते रहते थे। वह फोन का जमाना नहीं था। एक बार उन्होंने अपने परिवार के साथ अपनी फोटो भेजी। संयोग की बात कि तीन बदलियों (तबादलों)के बाद हम भी वहीं पहुँच गए जहाँ वे थे। बच्चियाँ भी बड़ी हो गईं थीं। उनसे मिले उन्हें छः साल हो गए थे। वे बहुत उत्साहित थीं कि टोयो अंकल मिलेंगे। वे मिली भी बहुत उत्साह से। परन्तु इस बार यह भारत था। वे नहीं जानती थीं कि वे ड्राइवर थे। हमारी ही कार के रविवार के दिन के ड्राइवर!उन्होंने बताया कि वे सदा सोचती थीं कि वे बाबा के मित्र थे। हमने कहा हाँ मित्र तो हैं ही परन्तु ड्राइवर भी हैं। जब उन्होंने देखा कि अब भी वे उनके हर जन्मदिन पर विशेष अतिथि बनकर आते थे सबसे पहले आकर हमारे साथ गुब्बारे फुलाते,बंटिंग्स लगाते,सब केवल दो तीन घंटे के लिए आते,वे लगभग पूरे दिन उनके साथ मस्ती करते,सबके जाने के बाद भी हमारे साथ बैठकर पार्टी का जायजा लेते। हम सब मिलकर फुरसत से नई प्लेट लेकर फिर से खाते,बतियाते तो वे फिर से सहज हो गईं।


आज फोन रखते से ही मैंने पूछा कि क्या फोन नम्बर पहले वाला था। घुघूत जी बोले नहीं बदल गया है। मैंने मोबाइल में भी डाल लिया है और मुझे लिखा हुआ पकड़ा दिया। जानती हूँ कि बब्बन मियाँ कुछ दिनों या महीनों में अवश्य आएँगे और साथ में बीते दिनों की यादें लाएँगे। यह भी जानती हूँ कि यदि कभी कठिन घड़ी आई तो वे दौड़ते हुए पहली गाड़ी पकड़कर जाएँगे। हम भी रात बेरात,समय,असमय कभी भी उनका फोन आए तो बुरा नहीं मानते। यदि कभी भी बच्चों की नौकरी आदि के लिए उन्हें किसी को बच्चों की विश्वासपात्रता के प्रमाण देने की आवश्यकता पड़ी तो घुघूत जी को फोन करके कह देते थे और व्यक्ति का फोन नम्बर दे देते थे। घुघूत जी भी फोन कर बता देते थे कि वे अपने बब्बन मियाँ,हाँ वही साऊदी वाले,हाँ,फलां फैक्ट्री वाले के पुत्र हैं सो यदि साक्षातकार में ठीक किया है तो विश्वसनीयता की गारंटी है। दो एक साक्षातकार में असफल रहे फिर सफल हो गए। आज अच्छा कमा खा रहे हैं। वे सपरिवार खुश हैं बाहर कमाए पैसे का अच्छे से उपयोग किया जानकर खुशी होती है। जानती हूँ कि वे भी हमारी खुशी से खुश होते हैं। यह भी जानती हूँ कि अचानक आने का कार्यक्रम घुघूत जी की तबीयत खराब हुई जानकर ही बना रहे हैं। शायद उनके दिल में फोन करने की बैचेनी भी अपने आप उठी होगी। कह रहे थे कि दो सप्ताह से उन्होंने कई बार फोन किया था परन्तु कोई उठा नहीं रहा था। क्या उनके मन को पता था कि सब ठीक नहीं है?


घुघूती बासूती

17 comments:

  1. कुछ लोग ऐसे होते है....मेरा एक जूनियर है..मैंने उसे कभी फोन नही किया...पर उसके हमेशा फोन आते रहते है...खैर ख़बर लेने..

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  2. इसे कहते हैँ दोस्ती की मिसाल !
    - लावण्या

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  3. हाँ लावण्या जी, उनकी आवाज सुनकर सच में बहुत खुशी होती है क्योंकि पता है कि केवल स्नेह है और कुछ नहीं।
    घुघूती बासूती

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  4. बब्बन् मियां से मिलकर् खुशी हुयी।

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  5. बब्बन मियाँ से मिलना बड़ा रोचक रहा. ऐसे ही होते हैं मित्र. :)

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  6. अरे कहाँ छिपा रखे थे ये संस्मरण ! चलिये अब पिटारी खुली है तो कई रत्न बाहर आयेंगे ।
    बब्बन मियाँ को जानना मज़ेदार रहा ।

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  7. Anonymous11:55 am

    bahut hi khubsurat dosti,purane doston se saalon baad baat larna bhi achha lagta hai.

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  8. ऐसे लोग कम ही होते हैं, बहुत अच्छी लगी ये यादें...आगे भी लिखती रहें...बहुत खूब..

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  9. बब्बन मियां को हमारा सलाम
    जिंदगी में अगर एक भी इंसान बब्बन मियां जैसा आ जाए तो जिंदगी खूबसूरत हो जाती है. हम सब को ऐसे ही बब्बन मियां का इंतज़ार रहता है.
    नीरज

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  10. अच्छा लगा ये संस्मरण !

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  11. ye hi hai mitra ki saachi paribhasha

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  12. ye hi hai mitra ki saachi paribhasha

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  13. achcha laga babban miyaan se milkar...unhe hamara salaam kahiyega.

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  14. भाग्यशाली हैं बब्बन मियां जैसे मित्र पा कर

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  15. बब्बन मियाँ से मिलकर हमें रियाद स्कूल के बसीर भाई याद आ गए जिन्हे कोई भी चपरासी कहने की सोच भी नहीं सकता. सच में ऐसी मित्रता में बस स्नेह ही होता है.

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  16. Anonymous2:47 am

    एक कवि ने लिखा है ...
    हाल ही में पढ़ा ...
    "कुछ लोग दुनिया में आते हैं ... हिनहीनाने के लिए ..."

    ये घुघुति अम्मा इस ही बात का सबूत है ....

    बालीपुत्र

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  17. बालीपुत्र बेनामी जी,टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आपने हिनहिनाना कहा रेंकना नहीं,सो तुलना घोड़े से की गधे से नहीं ! :) इसके लिए आभार।
    फिर अम्मा भी कहा सो एक बार और आभार।
    घुघूती बासूती

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