जाई
मैं छात्रावास में रहकर पढ़ती थी। उस वर्ष मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर महाराष्ट्र में अपने माता पिता, भाई भाभी के पास लौटी थी। भाभी गर्भवती थीं, उन्हें डॉक्टर ने बिस्तर से उठने को मना किया था। माँ घर संभाल रहीं थी। जब मैं घर आई तो एक छोटी सी बच्ची को माँ का हाथ बटाते देख दंग रह गई। हमारे घर में तो कभी भी बच्चों को काम पर नहीं रखा जाता था, इस बार ऐसा क्या हो गया जो इस बच्ची को रख लिया गया। मेरे पूछने पर माँ ने मुझे कारण बताया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि माँ ने जो निर्णय लिया वह सही था या गलत। परन्तु उस बच्ची जाई को उसके घर वापिस भेजना भी संभव नहीं लग रहा था।
माँ ने बताया कि जाई की माँ उसे लेकर माँ के पास आई थी। वह कह रही थी कि उसका पति जाई को कुछ अमीर लोगों के साथ काम करने के लिए दिल्ली भेजना चाहता था। उसे यह बिल्कुल पसन्द नहीं आ रहा था व उसे जाई की सुरक्षा का भी भय लग रहा था। एक बार बच्ची इतनी दूर गई तो कभी लौट कर भी आएगी या नहीं। वहाँ वे उसके साथ कैसा भी व्यवहार कर सकते थे। वह माँ से विनती कर रही थी कि वे उसे अपने घर काम पर रख लें ताकि वह अपने पति को जाई की कमाई के पैसे पकड़ा सके और वह दिल्ली जाने से बच जाए। उसके पति ने जाने से भेजने पर उसे बहुत मारा भी था। माँ ने बहुत कहा कि वे बच्चों को काम पर नहीं रखतीं । उसका कहना था कि यदि यहाँ काम करने से उसकी बच्ची ना जाने किन किन विपदाओं से बच जाए तो बुरा क्या है। यहाँ रहकर बच्ची को वह जब चाहे देख भी सकेगी। उसके तर्कों का माँ खन्डन भी नहीं कर सकतीं थीं। वह सही कह रही थी। हारकर माँ को जाई को अपने घर में रखना ही पड़ा। छुट्टियों के दिन थे सो जाई का स्कूल भी बंद था। जल्दी ही जाई का मुझसे काफी लगाव हो गया। अपनी टूटी हुई मराठी मिश्रित हिन्दी में वह मुझसे बहुत सी बातें करती। मैंने घर संभाल लिया था सो वह मेरी सहायता करती।
हम कुछ भी काम करते वह मुझसे बातें करती जाती। उसकी एक विशेषता यह थी कि वह घी लगी रोटी नहीं खाती थी। यदि रोटी में घी लगा हो तो वह उसे खाने की बजाय भूखा रहना पसन्द करती थी। सो मुझे याद रखना पड़ता था कि उसकी रोटी में घी नहीं लगाऊँ। मक्खन लगा टोस्ट वह नहीं खाती थी। दूध, दही, लस्सी या चाय नहीं लेती थी। एक बार मैंने गलती से सब रोटियों में घी लगा दिया। उसने खाने से मना कर दिया। मुझे उसकी जिद से परेशानी हो रही थी। मैंने उसकी जिद का कारण पूछा तो वह बोली कि उसकी माँ ने कभी उसे दूध नहीं दिया, भाई को देती थी। सो उसने निश्चय किया था कि वह कभी दूध या उससे बना कुछ नहीं खाएगी पिएगी। उसकी बात से मैं दंग रह गई। कितनी दृढ़ संकल्प व स्वाभिमानी थी वह ! मैं ने कहा कि हमारे घर में तो खा सकती है। उसके मना करने पर मैंने नई रोटियाँ बनाईं ।
मैंने उससे पूछा कि स्कूल खुलेंगे तो क्या वह फिर से पढ़ना पसंद करेगी। उसने कहा, हाँ, वह पढ़ लिखकर अध्यापिका बनना चाहती है। स्कूल खुले तो वह स्कूल भी जाने लगी। सच तो यह है कि नगरपालिका का स्कूल मुफ्त था, कपड़े व पुस्तकें भी मुफ्त मिलती थीं। सो कमें कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ रहा था। उसका चेहरा निखर आया था, लम्बाई बढ़ रही थी, शरीर भी पहले सा हड्डियों का ढाँचा नहीं रह गया था। नए कपड़ों में वह अच्छी लगने लगी थी। अब वह सच में बारह साल की दिखने लगी थी। दो महीने पहले ही जब वह आई थी तो आठ वर्ष की अबोध बालिका दिखती थी।
बच्ची को घर में रखना कहीं से भी उचित नहीं लग रहा था। एक तो उससे कुछ भी करवाने में अपराध बोध होता था ऊपर से उसकी सुरक्षा का भी भय था। अकेले नहीं छोड़ सकते थे। उसके स्कूल जाने पर लौटकर आने तक चिन्ता लगी रहती थी। खैर अब क्या कर सकते थे ? केवल मन ही मन यह मनाते कि जाई के पिता को सद्बुद्धि आए और वह अपने घर जा पाए। दो तीन महीने पैसे पाकर उसका पिता थोड़ा पसीजने लगा था। धीरे धीरे जब उसने देखा कि हम उसे पूरी पगार दे रहे हैं तो वह शाम को जाई के घर जाने पर सहमत हो गया।
मेरा विवाह हो गया और जाई मेरे साथ जाना चाहती थी। ना कहने पर बहुत उदास हुई, नाराज हुई । जब मैंने उसे समझाया कि बिहार में जहाँ मैं जा रही थी वहाँ कोई मराठी स्कूल नहीं थे, तब वह मानी। खैर, मैं बिहार चली गई। कुछ महीनों बाद जब घर लौटी तो पाया कि जाई अब हमारे साथ नहीं रहती थी। आखिरकार उसके पिता ने उसके पढ़ने के साथ साथ लोगों के घर काम करने से समझौता कर लिया था। वह मुझे सड़क पर मिलती। भाग भागकर वह स्कूल जाने से पहले व बाद लोगों के घर काम करती। हर बार मैं उससे उसके अध्यापिका बनने के सपने के बारे में पूछती और हर बार वह कहती कि वह पढ़ेगी और बनेगी।
मैं अपने घर परिवार, बच्चों में व्यस्त हो गई। माँ के घर जाना कम हो गया। बहुत सालों बाद एक बार जब घर गई तो मैंने कामवाली से पूछा कि क्या वह जाई को जानती है। उसका उत्तर सुनकर मेरा मन खिल गया। वह बोली, क्या वह अध्यापिका जाई ? अध्यापिका जाई ! मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा अपना कोई जीवन का सपना पूरा हो गया हो। वह दिन मेरे जीवन का एक बहुत खुशी का दिन था। अध्यापिका जाई, कोई जादुई, सुनहरे, रूपहले से शब्द थे, जिन्होंने मेरे मन में मिठास घोल दी थी। अब मुझे समझ आया कि जाई घी क्यों नहीं खाती थी। अपने असंभव से सपने को पूरा करने के लिए उसका दृढ़ संकल्प होना आवश्यक था। मिलने पर भी घी को ठुकराना उसके संकल्प की परीक्षा थी।
घुघूती बासूती
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वाह! मन खुश हो गय अध्यापिका जाई के विषय में सुन कर. आपका क्या हाल होगा..सोच कर ही दिल प्रसन्न हुआ जाता है.
ReplyDeleteसुन्दर! जाई जैसे संकल्पवान लोग हमारे आसपास के प्रकाश स्तम्भ होते हैं।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक और मर्मस्पर्शी प्रसंग है, जाई अध्यापिका बन गई जानकर बहुत अच्छा लगा है। जाई के सुखद भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएँ।
ReplyDelete- आनंद
सलाम है जाई के जज्बे को और उसकी संकल्प शक्ति को .यही लोग प्रेरणा देते हैं जिंदगी को जीने की
ReplyDeletesahi dusron ko khushiyon mein bhi kabhi kabhi bada sukun milta hai,bahut achha hua jai adhyapika bani.mala maahitch navte ghughuti ji tumhala marathi pan yete,khup chan:);)
ReplyDeleteजाई जैसे लोग ही असली हीरो है इस जीवन में ....जिन्हें कदम कदम पर हर चोटी से चोटी चीज़ के लिए संगर्ष करना पड़ता है .
ReplyDeleteअध्यापिका जाई और उसके संघर्ष में साथ देने वाले सभी को सलाम।
ReplyDeleteअंत में अध्यापिका बात पढ़कर खुशी हुई.
ReplyDeleteजाई तो सचमुच प्रेरणा है। जिस ने दृढ़ संकल्प से मु्क्ति पाई और अध्यापिका बन गई। उस ने न जाने कितनी जाइयों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया होगा।
ReplyDeleteसचमुच जादुई, सुनहरा
ReplyDeleteऔर रुपहला है यह पोस्ट.
जाई की बहाने आपने
स्नेह, सरोकार और विश्वास की शक्ति का
उदाहरण प्रस्तुत किया है.
इन मूल्यों की आज क़दम-क़दम पर ज़रूरत है.
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बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन
जाई से मिलवाने का धन्यवाद.हमारे घरों में कितने ही बच्चे हैं जो सब कुछ होते हुए भी किसी ना किसी चीज़ की कमी का बहाना करके आगे बढने से वंचित रह जाते हैं,ये पोस्ट उन सभी लोगों के लिये एक प्रेरणा है.
ReplyDelete"उसने निश्चय किया था कि वह कभी दूध या उससे बना कुछ नहीं खाएगी पिएगी।"
ReplyDeleteयही संकल्प इंसान को आगे बढने की ताकत देता है ! जाई का बडा प्रेरणादायक प्रसंग
आपने लिखा ! धन्यवाद
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteपढ़कर बहुत अच्छा लगा. काश हर जाई की कथा इतनी सुंदर बन पाती तो दुनिया कितनी खूबसूरत होती.
ReplyDeleteFelt nice reading this! touching as well as inspiring!
ReplyDeleteis it true incident ?
ReplyDeleteyes.
Deleteजाई का सत्याग्रह तथा सभी संस्मरण किताब की शक्ल में आएं।
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