कल आगाज़ पर सुरा बेसुरा
बड़ी बेटी ने अपने जीवन के पहले २५ दिन केवल दिन में सोना उचित समझा और रात में जागना। रात को ठीक ९ बजे जाग जाती थी व सुबह ६ बजे सो जाती थी। २६वें दिन से उसने अपना दिन का सोने का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया। अब केवल एक आध घंटे को दिन में दो तीन बार सो लेती थी। यह कार्यक्रम उसने तीन वर्ष की आयु तक चालू रखा। मेरे पड़ोस में ही हमारी फैक्ट्री के डॉक्टर रहते थे जो मेरी बिटिया की इस आदत का विश्वास नहीं करते थे। दिन भर तो उनकी पत्नी , हमारी व उनकी कामवाली उसे जागते देखती थीं व कई बार वे स्वयं भी। एक रात उन्होंने कहा कि आज रात मैं भी आपके घर आकर देखूँगा कि वह कैसे नहीं सोती है। जब उन्होंने देखा कि रात के १ बजे तक भी वह नहीं सोई तो उन्होंने उसे फिनारगन या ऐसी ही कोई दवा पिलाई व उन्होंने एक उपन्यास उठाया और बेटी पर नजर रखना आरम्भ कर दिया। रात को तीन कॉफी पीकर उन्होंने स्वयं को जगाए रखा। जब सुबह के ५ बजे तक भी वह नहीं सोई तो बोले, 'भाभी अब मैं मान गया आपकी बात' और घुघूताजी, मुझे व सवा महीने की मेरी बिटिया से विदा लेकर अपने घर चले गए।
जब बड़ी बिटिया साढ़े तीन वर्ष की हुई तो छोटी बिटिया का आगमन हुआ। सोने में बहुत अधिक परेशान तो नहीं किया । उसकी सदा माँग होती ' नन्नी कली ' सुनाओ। मैं सुनाती तो वह सोने की बजाय टुकुर टुकुर मुझे देखती रहती और पूरा ध्यान रखती कि मैं कोई पंक्ति उल्टी सीधी या आगे पीछे तो नहीं गा रही, या जो पंक्ति दो बार गानी है वह एक बार में ही तो नहीं निपटा रही। एक गल्ती होने पर'नईं ऐसे नहीं'कहती। गल्ती का अर्थ होता था, एक बार फिर से शुरू से शुरू करना और ध्यान रखना कि इस बार कोई गल्ती न हो।
आज भी जब उन दृष्यों को याद करती हूँ तो बरबस हँस पड़ती हूँ। बिटिया को आश्चर्य होता है कि मैं दो थप्पड़ क्यों नहीं लगा देती थी। परन्तु गोद में छोटी सी, कोमल सी टुकुर टुकुर ध्यान से देखती व सुनती उस बच्ची पर कोई कैसे हा्थ उठा सकता था!
आज बार बार 'नन्नी कली' सुनते सुनते मैं एक बार फिर वे पल जी उठी।
बहुत अच्छा लगा एक माँ का यह संस्मरण सुनना.
ReplyDeleteयादों के झरोखे से जब फूल झरते हैं तो ऐसा एहसास भी होता है.
ReplyDeleteऔर इन यादों में अगर बच्चों का साथ हो तो फ़िर ये एहसास इतना सुखद होता है कि इनके सामने बाकी सब बेमानी लगता हैं.
bahut komal masum si yaadein hai,bahut achha laga padhna unko,aapki betiyan hamesha muskurati rahi,chahe aaj wo badi ho,magar aapki tho nanhi kali hi hai,god bless them both.
ReplyDeleteबहुत ही मधुर भाव जगे इस पोस्ट को पढ़कर...
ReplyDeleteबचपन सभी को अच्छा लगता है, बूढे- बच्चों को लेकर पुलकित होते हैं और बच्चे - बूढों को पाकर हर्षित। यही तो दुनिया है।
ReplyDeleteबडी ममताभरी यादेँ हैँ आपकी ..
ReplyDeleteयही लोरी,
मैँने भी सुनाई है
मेरी बिटिया को !
और अब,
नाती को भी सुनाया करती हूँ :)
-- लावण्या
आपकी यादों ने मुझे मेरे अतीत में पहुंचा दिया.
ReplyDelete'राम करे ऐसा हो जाए मेरी निंदिया तोहे लग जाए ' गा गा कर थक जाते तो कहानियाँ सुनाते ....छोटा बेटा बिल्कुल विपरीत आठ बजते ही गुड नाईट कहता और अकेला अपने कमरे चला जाता.....
बच्चा नहीं सोता था। मेरी पत्नी घण्टों धैर्य से सुलाने में लगी रहती थीं और मैं दस मिनट में धैर्य खो बैठता था। यही है मां-पिता का अन्तर!
ReplyDeleteअरे वाह! तो सभी बच्चे ऐसा करते हैं.मेरा पुत्र भी शुरुआत के 4-5 महीने तक दिन में सोता था और रात में जगता था.और हम लोग रात भर उसके साथ खेलते रहने के लिये बाध्य थे. मैने तो ना जाने कितनी लोरी कितनी पैरोडी लोरी उसे सुनायी होंगी.लेकिन सबसे बुरा हाल मेरी पत्नी का होता था.मुझे और उसे दोनों को जो झेलना पड़ता था. :-)
ReplyDeleteबड़ा अच्छा लगा जानकर लेकिन साथ ही यह सोच कर अफ़सोस भी हो रहा है की आज की माये क्योंकि सास भी बहु... देखकर ख़ुद सो जाती है बच्चा पहले ही सो चुका होता है. क्योंकि लोरिया और कहानिया इस संसार से ओझल से हो रहे हैं!!!
ReplyDeleteमाँ तो हैं माँ, माँ तो हैं माँ
ReplyDeleteमाँ जैसा दुनिया में है कोई कहाँ?
बहुत सी यादे ताजा हो गई ..मेरी बड़ी बेटी भी यही सुन कर ही सोती थी ..वक्त कितनी जल्दी बीत जाता है :) बहुत अच्छा लिखा है आपने ..
ReplyDeleteमाँ की आवाज़ हमेशा मधुर ही होती है..
ReplyDeleteआपने तो अतीत में पहुंचा कर हमें इमोशनल कर दिया.यकीन मानिये, आज बिटिया १६वें साल में चल रही है, किन्तु मैं अभी भी उसके शैशव की यादों से अलग नहीं हो पाती हूं.जब तक उसे उसके छुटपन की एक आध बात नही बताती, वो मुझे चैन नहीं लेने देती.
ReplyDeletemeri ek beti hai....teen saal ki. Use har roz sote waqt "Nanni Kali" aur "chanda hai tu" sunna hai. Aur mera role hai pehli do line gana, baaki woh khud hi gaati hai aur mujhe sunna hai.
ReplyDeleteAapki ye rachna dil ko choo gayi. Badhai sweekar karein
क्या बात है,
ReplyDeleteकितनी बार कहूं कि आप यादों के जंगल में भटकने के बाद और भी अच्छा लिखती हैं।
:)
हमें भी बहुत सी बातें याद दिला गई आपकी यह पोस्ट..
ReplyDeleteयादों को जी लेते हैं।
:)
आप की यादें अपनी सी लगतीं हैं, मेरा भी लड़का सारी रात नहीं सोता था, और सारी रात गोदी में ले कर घूमना पड़ता था जरा सा भी बैठ जाओ तो रोना शुरु कर देता। जब दो महिने का था तब सारी रात झूले की रस्सी चलानी पड़ती थी, जरा सा झूला रुका न्हीं की बस रोना शुरु, घर में सबको बारी बारी से सारी रात उसे ले कर टहलना होता था और बम्बई के तो मकान भी इतने बड़े नहीं होते। पर ये यादें भी मीठी हैं
ReplyDeleteममता से महकती
ReplyDeleteसुकोमल प्रस्तुति.
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डा.चंद्रकुमार जैन
bahut pyaari hai ye yaad aapki. bachpan ki tarah komal
ReplyDeleteनमस्ते!
ReplyDeleteकई दिनो बाद यहां आई और बेटियों का बचपन दिख गया....मेरी बडी बेटी सोती तो ठीक थी, लेकिन उसे हर दिन २ घन्टे बिना वजह खूब रोने की आदत थी.. कई बार घबरा कर हम उसे डॊक्टर के पास ले गये लेकिन कहा गया कि कई बच्चों को इस तरह की आदत होती है ( वो उसका स्वास्थ्य एकदम सामान्य था.)
करीब २ साल तक ये सिलसिला अनवरत चला... बडी होने पर वो बेहद शान्त और गम्भीर स्वभाव वाली थी..
अब वो नही है, लेकिन अब भी मुझे किसी छोटे बच्चे का रोना या रोने की बात सुन उसकी बहुत याद आती है...