उस वर्ष उसकी दीदी की मृत्यु हो गई थी । वह बहुत परेशान, हताश व अकेला महसूस करती । उसे सोचों में खोया देख उसकी ६ वर्ष की व ३ वर्ष की बेटियाँ उसे उदासी से बाहर निकालने की कोशिश करतीं । बड़ी को तो पता था कि माँ को मौसी की याद आ रही है । वह मृत्यु को कुछ कुछ समझ पा रही थी ।
बड़ी ने छोटी बहना को भी समझा दिया था कि 'जैसे मैं तुम्हारी दीदी हूँ, तुम्हें प्यार करती हूँ, तुम्हारा ध्यान रखती हूँ, वैसे ही मौसी भी माँ की दीदी थीं । वे मर गई हैं । मर जाना माने ऐसे सो जाना कि कभी नहीं उठ पाना ।'
बहन पूछती 'यदि उन्हें हिलाएँ तो, यदि उनके ऊपर पानी डालें तो, यदि उन्हें गुदगुदी करें तो ?' दीदी समझाती, 'नहीं वे कभी नहीं उठेंगी ।'
यूँ ही बच्चियाँ भी माँ के साथ रहकर, उसकी पीड़ा को समझकर, महसूस कर मृत्यु को थोड़ा थोड़ा समझने लगीं थीं।
दिन गुजरते गए और बड़ी बिटिया का जन्मदिन आने वाला था। उस वर्ष माँ को अपने जन्मदिन की कोई भी तैयारी ना करते देख या उत्साह से मनाने की योजनाएँ ना बनाते देख उसका माथा ठनका। पहले तो सोचा कि माँ और बाबा शायद कोई विस्मयकारी गुप्त योजना बना रहे हैं। परन्तु फिर लगा कि ऐसा होता तो कुछ भनक तो उसे भी लगती। वह माँ से इस विषय में पूछने ही वाली थी कि एक दिन माँ ने बहुत उदास होकर उससे पूछा, 'गुड़िया, यदि इस वर्ष हम तुम्हारा जन्मदिन नहीं मनाएँ तो तुम्हें बहुत बुरा तो नहीं लगेगा ?' कुछ पल माँ को ध्यान से देखकर उसने पूछा,'क्यों माँ? क्यों नहीं मनाएँगे?' माँ बोली, 'बेटा, तुम जानती हो ना मौसी नहीं रहीं। एक वर्ष तक हम कोई त्यौहार नहीं मनाएँगे। कोई पार्टी नहीं करेंगे।'
'क्यों माँ ? क्या इसलिए कि तुम उदास हो ?' माँ ने कहा, 'हाँ, इसीलिए।' बिटिया ने पूछा,'तो क्या हम अब कभी पार्टी नहीं करेंगे ?' माँ बोली,'ना बेटा, ऐसा नहीं है। हम अगले साल से पार्टी भी करेंगे त्यौहार भी मनाएँगे।'
'क्यों माँ, क्या अगले साल आप मौसी को भूल जाओगी ? क्या अगले साल आप उनको यादकर दुखी नहीं होओगी ?'
बिटिया का यह गहरा प्रश्न सुन माँ को अपनी मूर्खता पर आश्चर्य व बिटिया के जीवन दर्शन से भरे प्रश्न पर गर्व हुआ। वह बोली,'तुम ठीक कह रही हो। अगले साल क्या मैं मौसी को कभी भी नहीं भूलूँगी। परन्तु हर वर्ष तुम दोनों बच्चों के जन्मदिन व अन्य त्यौहार भी मनाती रहूँगी। इस वर्ष भी मनाऊँगी। हम उन्हें भी उनके हर जन्मदिन पर याद करते रहेंगे।'
इससे पहले कि वह बिटिया को चूमती, बिटिया ही माँ के गाल को चूमकर 'माँ रोना मत, हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे' कहकर बहन का हाथ पकड़ खेलने चली गई।
घुघूती बासूती
Monday, May 19, 2008
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बहुत हृदयस्पर्शी कहानी. मन भर आया.
ReplyDeleteजीवन अक्षुण्ण है, वह कुंड में भरे पानी की तरह है जिस में निकलने के पहले ही उस से अधिक पानी किसी स्रोत से आता रहता है। जीवन का यह स्रोत जीवन ही है। जीवन कभी नहीं मरता, चलता रहता है, निरंतर......
ReplyDeleteहंसी और दुख के पल अगर एक साथ आए तो दुःख को याद करते हुए हमे खुशी के बाहों में जाना चाहिए.
ReplyDeleteबहुत ही सह्जता से एक गम्भीर सवाल को छेडता है ये आलेख.
ReplyDeleteहमारे स्वजन,
ReplyDeleteहमारी स्मृत्तियोँ मेँ
हमेशा जीवित रहते हैँ ..
- लावण्या
बच्चों से सीखना है , बहुत कुछ ।
ReplyDeleteसहजता से ही बच्ची ने कितनी सटीक बात कही।
ReplyDeleteबच्चों के सवाल कई बार हमें सोचने को मजबूर कर देते हैं. ......बहुत खूब !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी !
ReplyDeleteवर्ड्सवर्थ ने तो लिखा भी है : 'चाइल्ड इज़ द फ़ादर ऑफ़ मैन' . बच्चे कई बार ऐसी सीख दे जाते हैं कि हमारी समूची सोच बदलने लगती है .
संवेदनशील विषय को कथा के माध्यम से बड़ी खूबसूरती से उठाया है आपने. कठोरतम क्षणों में भी जीवन आशा का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, बच्चे कभी कभी बडी सीख दे जाते हैं.
ReplyDeleteवाकई अदभुत अंदाज से आपने अपनी बात कही है....ओर बचपन ही आज की दुनिया मे मासूम रह गया है खरा ओर सच्चा ....
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी कहानी है और सहजता के साथ एक सन्देश छोड़ती है....बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteachhi rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती और सादगी से आपने अपनी बात कही है, कई बार बच्चे हम से ऐसी बात कह जाते हैं कि दिल बस सोच में पड़ जाता है कि हमारी संवेदनशीलता कौन ले गया, समय, हालात या हम ने ख़ुद ही उसे कहीं खो दिया,....बहुत खूब...
ReplyDeleteबच्चे कभी कभी बहुत पते की बात कह जाते हैं और हमारे लिये छोड जाते हैं एक प्रश्न-चिन्ह.
ReplyDeletesachmuch bahoot sunder aur marmsparshi rachna hai, bahoot kuch sochne ko majboor kar deti hai.
ReplyDeleteहाँ हम बडे हो जाते है,बच्चे हमेशा अच्छे रहते है। अपने अन्दर एक बच्चा जिदां रखना चाहिए।मर्मस्पर्शी है।
ReplyDeleteसचमुच कई बार बच्चे हमारी आँखें खोल देते हैं। इस हृदयस्पर्शी रचना का ऑडियो http://radioplaybackindia.blogspot.com/2015/01/kya-agle-saal-by-ghughuti-basuti.html पर उपलब्ध है।
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