कहने को तो कानून है कि कोई भी १८ वर्षीय स्त्री या २१ वर्षीय पुरुष अपने मन से विवाह कर सकता है। परन्तु यह कानून बदल दिया जाना चाहिये। कुछ अरब देशों की तरह स्त्री पुरुष को अलग रखा जाना चाहिए। अलग अलग विद्यालय, कॉलेज, रैस्टॉरैंट, सिनेमा इत्यादि का प्रबन्ध होना चाहिए। अब आप सोचेंगे कि यह क्या बात हुई। हम तो देश में स्वतंत्रता की बात करते हैं परन्तु यह स्वतंत्रता खत्म करने की बात कर रही है। जी हाँ, बिल्कुल कर रही हूँ। और यह हमारे युवा बच्चों की भलाई के लिए ही कर रही हूँ। क्या लाभ ऐसे कानूनों का जिनके भरोसे बच्चे एक दूसरे से मित्रता करें, मिलें, घूमें फिरें, साथ चाय पीयें, आइसक्रीम खाएँ, पार्क में बैठें, मिलकर जीवन बिताने के स्वप्न देखें, परन्तु अचानक अपने आप को पुलिस की गिरफ्त में पाएँ ? जितना लज्जित किया जा सकता है किये जाएँ, माता पिता को बुलाने की धमकी दी जाए, सरे आम शहर भर में ऐसे घुमाए जाएँ जैसे ये कोई अपराधी हों। ये युवा देश की सरकार बना सकते हैं, मजदूरी कर सकते हैं, बाल विवाह कराकर माता पिता बन सकते हैं परन्तु अपने मित्र या जीवनसाथी का चुनाव नहीं कर सकते। जी हाँ, देश के भाग्य का निर्णय तो ये ले सकते हैं परन्तु अपने भाग्य का नहीं।
यह वही देश है जिसे अपनी संस्कृति पर गर्व है। कौन सी संस्कृति ? विदेशियों के गुलाम बनने से पहले की या बाद की ? इसी देश में कई तरह के विवाहों को मान्यता दी गई थी। यहाँ पर ही स्वयंवर रचाए जाते थे। क्या वे स्वांग थे ?
क्यों हमारे युवा इस गलतफहमी में रहें कि उन्हें किसी से भी बात करने, मित्रता करने, प्रेम करने और फिर शायद विवाह करने की स्वतंत्रता है ? ये कानून शायद उच्चतम न्यायालय में मान्य हों। हमारे बच्चों का पाला तो हमारी पुलिस से पड़ सकता है। फिर उन्हें क्यों अन्धेरे में रखा जाए ? आज बरेली में हमारे युवाओं की धर पकड़ हुई, कल मेरठ में हुई थी और कल कहीं और होगी। उनकी दुर्गति देखकर कौन यह कह सकता है कि यह एक स्वतंत्र देश है , कि यहाँ कानून के रखवाले कानून को जानते हैं ? क्या बिना एक दूसरे से मिले, साथ समय बिताए, एक दूसरे को जाने कोई प्रेम कर सकता है ? क्या बिना प्रेम विवाहों के कभी हमारे समाज में से जाति, धर्म, प्रान्त, दहेज, पुत्री को बोझ समझना जैसी कुरीतियाँ खत्म हो सकती हैं ? नहीं, कभी नहीं। क्या हम माता पिता द्वारा ठहराए विवाहों को रोक रहे हैं ? नहीं ना, तो फिर आप प्रेमियों को प्रेम करने से भी मत रोकिए। वे ही आपको लाखों के विवाह समारोहों, खर्चे, पुत्री के विवाह की चिन्ता से बचा सकते हैं। वे ही हमारे इस टूटते देश को जोड़ सकते हैं।
यह औपरेशन मजनूँ क्या है ? क्यों इसकी आवश्यकता होती है ? सड़क पर, बस में, या कहीं भी छेड़ी जाती युवतियों को तो हम गुण्डों से बचा नहीं सकते। परन्तु उन्हीं के द्वारा चुने गए उनके मित्रों से बचाना क्यों हमारा कर्त्तव्य बन जाता है ? बलात्कार होता है तो युवती के वस्त्रों का दोष है, छेड़ा जाता है, सताया जाता है तब भी उसके वस्त्र गलत हैं। क्यों नहीं हम यह मानते कि हम स्वयं ही गलत हैं ? कि हमने अपने बच्चों को दूसरे के अधिकारों, या उनके ना कहने के अधिकार के प्रति सजग नहीं किया ? कि हमने उन्हें अच्छा आचार व्यवहार करना नहीं सिखाया ? कि यदि किसी औपरेशन की आवश्यकता है तो वह है अपने गली मोहल्लों, बसों, सड़कों को सबके लिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष या बच्चा, सुरक्षित बनाने की ? क्यों हम अपने बच्चों को बिना किसी अपराध के इतना असहाय, लज्जित व गुनहगार महसूस करवा रहे हैं ? कैसे सोएँगे आज रात वे युवक युवतियाँ या उनके माता पिता ?
एक भारत तो संसार में सबसे आगे भागा जा रहा है सबसे पहले अगली सदी में पहुँचने को। दूसरा भारत पता नहीं किस प्रागेतिहासिक युग की ओर सरपट दौड़ रहा है ? कोई इसे पीछे जाने से रोक दे, इसका मुँह भूतकाल से भविष्य की ओर मोड़ दे।
नोटः १६ मई की रात समाचार सुनने लगी तो एक चैनल पर बरेली में औपरेशन मजनूँ के नाम पर युवक युवतियों की धरपकड़ व उनके साथ हुए दुरव्यवहार से बहुत विचलित हुई। उसी समय लेख लिख डाला। बहुत बार स्वयं को इसे पोस्ट करने से रोका। परन्तु जब तक इसे पोस्ट नहीं करती मुझसे पहले का लिखा हुआ कुछ और भी पोस्ट नहीं हो पा रहा। आशा है पाठक भी इस विषय पर अपनी राय यहाँ देंगे। कहीं लेखन में अति हुई है तो इसके पीछे की भावना समझ क्षमा करेंगे।
घुघूती बासूती
Sunday, May 18, 2008
हमारे देश में कानून बन जाना चाहिये कि केवल परिवार द्वारा तय किये विवाहों को ही मान्यता दी जाएगी
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बिल्कुल सही विचार हैं आपके। आपस में मिलने, हँसने बोलने, मित्रता करने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिये।
ReplyDeleteआलेख में शब्दों के पईछे छिपी भावनाओं को समझ पाया, इअसीलिये सहमती दर्ज कर रहा हूँ. :) काफी गहराई में जाकर सोचा है, बधाई.
ReplyDeleteउपर टिप्पणी का सुधार:
ReplyDeleteपईछे=पीछे
इअसीलिये=इसीलिये
:) वैसे तो सब समझ गये होंगे.
मै आपसे पूर्ण सहमत हूँ तथा अपने पूर्व के लेखों में अपनी बात को कहा है।
ReplyDeleteमै आपकी बात का समर्थन करता हूँ।
meri sahamati bhee aap ke saath hai.
ReplyDeletegundaee rokane ke liye police aur samaj kisee ke andar saamrthay nahee hai, aur naagrik adhikaro kaa har star par hanan hai...
Best
swapandarshi
हमारी तथाकथित महान संस्कृति की यही विडंबनाएं हैं.
ReplyDeleteपूर्ण सहमति है आपसे.
ReplyDeleteआप की ही तरह हमें भी गुस्सा बहुत आता है। पुलिस का संस्कार अलग तरह का है। उसे कानून से कोई लेना देना नहीं है।
ReplyDeleteघुघूती जी आपने जो लिखा वो कैसा है उससे कही आगे आपकी जो सोच है मैं उसकी काफी इज्जत करता हू. ये सोच एक दिन में नही बना होगा. कई किताबे, कई लोगो के विचार और कई जगहों पर हुए निजी अनुभव का परिणाम होगा. लेकिन ये सारी चीजे भारत में लोग कम ही करते हैं. किताब को स्कूल-कालेज से आगे की चीज नही मानते हैं. जति और धर्म से ऊपर होने की बात करना उनके लिए पश्चिमी सभ्यता का पीछा करना मात्र है. प्रेम विवाह को संस्कृति का दरकाना मान लिया जाता है.
ReplyDeleteएक बढ़िया मुद्दे पे बहुत बढ़िया विचार रखे हैं आपने!
ReplyDeleteआपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत हूं.हमारे देश की पुलिस अपराधियों और अपराध की रोक थाम तो कर नहीं पा रही,आपरेशन मजनूं के ज़रिये सस्ती लोकप्रियता बटोरने का छिछोरा काम कर रही है.
ReplyDeleteएक भारत जो आगे विकास की ओर बढ़ रहा है उसे देखकर जितनी खुशी और गर्व होता है , उतना ही खौफ़ से भर जाते है जब दूसरी दिशा की ओर भागते भारत को देखते हैं....जिस दिन यह दोहरापन दूर होगा उस दिन अपने देश की तस्वीर ही कुछ ओर होगी.
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteइससे पैना कटाक्ष शायद ही हो सकता है..
एकाद दिन पहले समाचार में देखा था पुलिस अब पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर प्रेमीयों की कैमरे से शूटिंग कर रही है/ करेगी.. यह तो हुई सामने की बात।
ReplyDeleteपीछे की बात यह है उस शूटिंग को दिखा कर आसानी से प्रमियों या उनके माता- पिताओं को ब्लेकमेल किया जा सकेगा और पैसे ऐठें जा सकेंगे।
आपने अपने भावनात्मक विचलन को स्वयं स्वीकार किया है। कितुं विश्वास किजीए विषय की समझ और सरोकार तभी तो पैदा होता है। आपको बधाई। हालाँकि मै व्यकिगत रुप से नियंत्रण का पक्षधर हूँ,कितुं आपकी बात से पूर्ण सहमत भी। एसा नियंत्रण नही चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा आपने व्यक्तिगत अधिकारों का ऍसा हनन निंदनीय है। पुलिस वहाँ सुरक्षा देने में असफल रहती है जहाँ देनी चाहिए और इन soft targets पर अपना डंडा दिखा कर अपनी पीठ ठोकती है.
ReplyDeleteसहमत!
ReplyDeleteआपकी बात से कोई असहमत कैसे हो सकता है भला.ये कायर पुलिस वालों की मोटी कमाई की एक लेटेस्ट तकनीक है.पुराने तरीके से ये बोर हो गए हैं न,इन्हे भी तो चेंज चाहिए. कोई बात नही चलिए हम इन पुलिस वालों के ख़िलाफ़ एक मोर्चा निकलते हैं और एक और मोर्चा सरकार के ख़िलाफ़ निकाल यह मांग रखते हैं की ..समस्त सार्वजनिक स्थलों पर युवाओं को प्रेम प्रदर्शन की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए और साथ ही हर आधे किलोमीटर पर एक पंडित की व्यवस्था होनी चाहिए जो जैसे ही प्रेमी युगल चाहें उनके लिए टू मिनट मेगी नूडल स्टायल मे फटाफट शादी करवा दें. यही नही,यदि किशोरों के माँ बाप विवाहोपरांत उन्हें घर मे न घुसने दें तो जबतक नाबालिक काम न करने लगें तबतक की रोजी रोटी की व्यवस्था भी सरकार ही करे.
ReplyDeleteबहन जी,ये पुलिस वाले तो सही नही ही कर रहे पर आज के युवा जिस उम्र मे और जिस तरह से सार्वजनिक स्थलों पर प्रेम व्यापार करते हैं,लगता है आपने कभी ख़ुद उन नजरों को देखा नही है.ख़ुद से देखा होता तो इतनी विचलित न होती पुलिसिया बर्बरता पर.दहेज़ एक कोढ़ है,पर विस्वास मानिये सभ्य समाज मे यह बहुत तेजी से समाप्त हुआ जा रहा है.दहेज़ ही क्या इस तरह की बहुत सी कुरीतियाँ जैसे जैसे साक्षरता बढ़ती जा रही है,लोगों की सोच उन्नत हो रही है समाप्त की ओर अग्रसर है.
यह सही है कि अंतर्जातीय,अंतर्राजिया या अंतर्देशीय विवाह से दहेज़ व्यवस्था पर लगाम लगती है.पर एक तरह से देखिये तो जो युगल और परिवार इस प्रकार के विवाह से सहमत होतें हैं,वे अपने आप ही दहेज़ की भूख से पीड़ित भी नही होते. आपने सही कहा कि हमारी पुरानी संस्कृति परम्परा मे स्वयंवर की व्यवस्था थी.सामाजिक रूप से इसे मान्यता मिली हुई थी.पर इस तरह के विवाह भी वयस्क होने पर ही क्रियान्वित होते थे. पर कभी पार्क या साईबर कैफे,एकांत के होटलों मे लिपटे चिपटे बच्चों को देखिये ,तो अधिकांश भीड़ आपको किशोरों की ही मिलेगी.और उनमे भी अधिकांश से पूछ कर देखिये की बच्चे ..प्यार करते हो.....चलो तुम्हारी शादी करवा दूँ,तो जवाब मिलेगा ..........''अरे नही ईट ईस ओनली फ़ार फन,नथिंग सिरिअस अबाउट इट '' आज कल की अधिकांश किशोरों और जवान होते बच्चों का यह प्रिय गेम है. अब गेहूं मे घुन तो पिसता ही है.सो इन के साथ कुछ निर्दोष भी पीड़ित हुए.एक बार पुनश्च कहती हूँ,कि मैं पुलिस वालों के कार्य से भी सहमत नही हूँ.पर मुझे लगता है यदि एक लड़के और लड़की मे स्वस्थ मित्रता है तो स्वस्थ रूप से उन्हें घर परिवार स्कूल कालेज या ऐसे ही किसी भी स्थल पर जिस तरह एक लड़का लड़के से और लड़की लड़की से मिलते हैं ऐसे ही मिलना चाहिए.और जब आत्मनिर्भर हो जीवन साथी कि आवश्यकता हो तो आजकल तो उपायों की कमी नही है.मनमुताबिक साथी ढूंढ सकते हैं.
ReplyDeleteLove and marriage are two different things: Where love is a natural phenomenon; marriage is a man-made institution. You were not born by chance. Why are you here on this planet? Love of course. Alienation and frustration—as well as the dream of a more exciting life on another planet than this—occur no matter, which back water of the world you’re from.
ReplyDeleteMarriage seeks many compatibilities and a discussed future before it actually takes place. It’s always fair to keep own freedom in a perspective.
Condemn any law! which seeks any approval from families or society--smile :) ghughuti ji , Have you heard this proverb before--"Miyan Biwi Raji To Kya Karega Kaji"
All is well ..let people to breath in fresh air:)
what a good article!
ReplyDelete:)badhai deta hun..
aakhir prem aur vivah to logon karne dijiye--wo bhi azaadi ki saath :)..
Shukriya