आज के समाचार पत्र में एक समाचार पढ़ा कि राजकोट का एक ३० वर्षीय व्यापारी चेन छीनकर भागते हुए पकड़ा गया। साथ में उस रोते हुए व्यक्ति की फोटो भी थी। एक नौजवान व्यक्ति जिसका स्वयं का कारोबार था, जिससे वह प्रति माह ५०,००० रूपये कमाता था, जिसका भविष्य साधारण परिस्थितियों में उज्जवल ही माना जाता, वह हथकड़ियों में रोता हुआ क्या कर रहा था ? वह ऐसी दयनीय स्थिति में कैसे पहुँचा ? दिन में कितनी ही बार उसका चेहरा मेरी आँखों के सामने आ जा रहा है। जीवन के एक दो गलत निर्णयों ने उसे कैसी जगह ला खड़ा किया ?
यह उसकी पहली चोरी थी। उसने सट्टे में बहुत रूपया लगाया था जो वह हार गया था। हाल ही में चाँदी में उसे हानि हुई थी। कुल मिलाकर लगभग १२ लाख रूपये उसने गंवाए थे। गुजरात में यह कोई नई बात तो नहीं है। यहाँ लोग लाखों बनाते हैं और लाखों गंवाते भी हैं। बाज़ार में थोड़ा क्या, बहुत रिस्क भी लेना पड़ता है। कभी हानि कभी लाभ, चंचलता तो लक्ष्मी का स्वभाव ही है। यदि उसे लाभ हुआ होता तो उसके अपने ही परिवार वाले व नाते रिश्तेदार उसकी वाहवाही कर रहे होते। मित्र उससे किसमें पैसा लगाएँ की टिप्स ले रहे होते। परन्तु यहाँ वह लुट पिट गया तो हम सब उसकी मूर्खता पर उसे दोष देंगे। हम कहेंगे कि सभी हानि उठाने वाले चोरी तो नहीं करने लगते। सही है, कुछ आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ पूरे परिवार के साथ मिलकर आत्महत्या करते हैं।
यह चोरी व आत्महत्या वाली स्थिति तब आती है जब व्यक्ति उधार के पैसे को इस बाज़ार में लगाता है। यह उधार भी शायद कोई साधारण नहीं होता होगा। यह शायद प्रति दिन, सप्ताह या मासिक ब्याज वाला होता होगा। यह कोई बैंक से लिया उधार भी नहीं होगा। लेनदार डंडा लेकर पीछे पड़े होते हैं। उन्हीं को शान्त करने के लिए इस व्यापारी ने चोरी व लूट का रास्ता अपनाया। उसका कहना था कि रोज वह चेन छीनने के समाचार पढ़ता था और कभी किसी को पकड़े जाते व सजा पाते उसने नहीं देखा था । सो उसने भी उधार का कम से कम कुछ भाग चुकाने का यह आसान रास्ता अपनाने की ठानी। अपने ही एक कर्मचारी की मोटरसाइकिल माँगकर वह इस काम के लिए निकला। चेन भी झपट ली परन्तु भागते समय मोटरसाइकिल फिसल गई और लोगों ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।
एक तरह से देखा जाए तो पहली गलती करने पर पकड़े जाने से शायद वह एक बड़ा अपराधी बनने से बच गया। परन्तु क्या अपने किए की सजा पाने के बाद वह पहले जैसा या पहले से भी बेहतर मनुष्य बन सकेगा ? बन सकता है, यदि जेल सुधारघर का काम करें। यदि पहली बार अपराध किए अपराधी पक्के व ढीठ अपराधियों के साथ ना रखे जाएँ। यदि समाज यह मानकर चले कि सजा काटकर अपराधी ने समाज का ॠण चुका दिया।
क्या वह और उसका परिवार ऐसी स्थिति से उभरने के लिए एक और राह नहीं निकाल सकता था ? यदि उनका अपना मकान है तो उसे बेचकर एक कमरे के किराये के मकान में जा सकते थे। घर का सामान व गहने बेचे जा सकते थे। कुछ ही वर्षों में वे फिर से आराम का जीवन बिता सकते थे। अब उसके परिवार वालों की स्थिति तो और भी अधिक बुरी होगी।
लोगों को सट्टा बाज़ार या शेयर खरीदने के लिए केवल अपनी बचत का उपयोग करना चाहिए और वह भी बचत के उस हिस्से का जिसकी उन्हें तत्काल आवश्यकता न हो। यह मानकर चलना चाहिए कि हानि या लाभ दोनों हो सकते हैं। यदि ऐसा हो तो ना तो बाज़ार में इतनी उथल पुथल होगी और ना ही किसी को अपनी इज्जत या जान से हाथ धोना पड़ेगा। जो भी लोग निवेष के बारे में लिखते हैं उन्हें लोगों को यह भी बताना चाहिए कि आमदनी के किस भाग का निवेष करें। पैसा बनाना बुरा नहीं है परन्तु अति लालची भी होना हानिकारक होता है।
आखिर में यह भी कहना होगा कि क्या ही अच्छा होता कि अपराध करने पर आमतौर पर अपराधी पकड़े जाते और सजा भी पाते ताकि अन्य लोग अपराध की राह पर जाने की नहीं सोचते। सजा भयंकर और लंबी होना आवश्यक नहीं है। आवश्यकता है लोगों में इस विश्वास की कि लगभग प्रत्येक अपराध की सजा अवश्य मिलेगी।
घुघूती बासूती
Friday, May 30, 2008
सट्टे ने क्या दिन दिखाया !
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हमारे यहाँ मुकदमे की लम्बी प्रक्रिया सजा का अहसास ही समाप्त कर देती है।
ReplyDeleteअपराध का दण्ड, अपराधी में पश्चाताप और सुधार की भावना के विलोमानुपाती होना चाहिये। पर न्यायव्यवस्था इन फैक्टर्स को नाप नहीं पाती।
ReplyDeleteसट्टे का अंत हमेशा ही बुरा ही है चाहे किसी भी जगह हो. बहुतोम को बनते और फिर डूब कर पुरानी से भी बदत्तर स्थितियों में देखा है. आपका आलेख जागरुकता की दिशा मे अच्छी पहल है. शायद भटके लोगों को मार्ग दिखाये. आभार एवं साधुवाद.
ReplyDeleteकई चीजें सोचने को मिली.
ReplyDeleteBahoot achcha likha hai. Sab ki jad me jaayen to Laalach aur dikhave ki duniya ne jaise sabhi ko jakad rakha hai, koi nikalna chaahe to bhi nikal nahi paata. Aise kisse roj hi dekhne me aa rahe hain, dhyaanaakarshan ke liye dhanyavaad.
ReplyDeleteआपने अच्छा लिखा लेकिन इन सब बातो से भी ऊपर इंसान की अपनी समझ. कहा, कितना कैसे निवेश किया जाए उसे समझ में आना चाहिए. बिना जानकारी के कोई भी दाव नही खेलना चाहिए.
ReplyDeleteघुघूती जी आपने निवेश के श को ष लिख दिया है. माफ़ कीजियेगा आपकी लेखनी को मैं उत्तम और अति उत्तम रूप में देखना चाहता हू, इस कारण इस ओर ध्यान दिलाया.
यही जीवन है इसके कुछ रस्ते सिंगल ट्रेक होते है ....सिंगल वे भी ....आप उनमे जाकर वापस नही आ सकते
ReplyDeleteसट्टा! इस चीज ने व्याकुल सा कर रखा है। अपने शहर में हर गली मोहल्ले चौराहे पर सट्टेबाज़ी चलता देखकर!
ReplyDeleteराजेश जी, ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। मैं अपने खराब नेट कनैक्शन के कारण सुधार नहीं कर पा रही। बाद में अवश्य कर लूँगी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
पर जिन के लिये जीवन ही एक जुआ है वो क्या सुधरेगे :) वैसे लाटरी हो या स्ट्टा दोनो की ही परीणिती तो खराब ही होती है .
ReplyDeleteऐसा नही है कि इस युवक व्यापारी को पहले से सट्टे के खतरों का एहसास नही था पर भावनात्मक परिपक्वता न होने के कारण न पहले अपने लालच पर नियंत्रण रख पाया न नुक्सान होने पर क्या सही निर्णय होगा ये तय कर सका। आप ने सही कहा जेल जाने पर उसके बड़े अपराधी बनने की पूरी संभावनाएं हो सकती है।
ReplyDeleteBalraj Sahni abhinneet 'Satta Baazar' film men barson pahale samajhaya gaya tha ki satta khelne valon ka kya hashra hota hai.
ReplyDeleteमेरे चाचाजी का बेटा MCQ का कां करता था, तब मैने देखा है कई बार लोगों को सोना- चांदी पर सट्टा करते।
ReplyDeleteहारने वालों का अनुपात जीतने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा होता था और हारने-जीतने की राशि का भी।
वह सट्टा ही तो था जिसकी वजह से धर्मराज युधिष्टिर तक का दिमाग खराब हुआ और अंतत: महाभारत हुआ।
दुनिया में सबसे बुरी कोई आदत है तो वह है सट्टेबाजी। इससे जितना बचा जाये उतना ही अच्छा।