तब क्या करोगी
जब तुम्हारा सूर्य
भूल जाये देना तुम्हें
अपना प्रकाश?
जब बादलों से घिरा रहे
हरदम तुम्हारा आकाश।
जब इतना अँधेरा छा जाये,
कि तुम स्वयं को भी ना देख पाओ।
इस अँधेरे में दिन क्या
वर्ष बीत जाएँ।
क्या करोगी युगों
उसका इन्तजार ?
या फिर इक दीया जलाकर
कुछ पाओगी प्रकाश ?
आरती का थाल सजाकर,
चाँदी के पात्र में ले जल
अर्घ ले रहोगी हरदम तैयार?
शायद आज सूर्य निकल आए
शायद आज होगा नव प्रभात,
सूर्य किरण बिखराएगा,
शायद वह घर आयेगा,
शायद छूएगा मन का आकाश,
अपनी रश्मि से तन मन
बारम्बार नहलाएगा।
क्या तुम स्वयं प्रतीक्षा
बन जाओगी ?
या फिर किसी चाँद की
खोज में निकल जाओगी?
वह चाँद जो अपनी चाँदनी
लिए कर रहा है इन्तजार,
क्या सूर्य किरण की चाहत लेकर
शशि प्रभा ही बन जाओगी?
या फिर युगों तक बन धरा
सूर्य की चाहत में
परिक्रमा उसकी हर पल लगाओगी ?
चाहे सूर्य ना दे तुम्हे अपना प्रकाश
फिर भी उसकी आस में
अँधेरे दिन बिताओगी ?
तब क्या करोगी
जब तुम्हारा सूर्य
पा जाए अवकाश
किन्तु तुम पाओ
कि अब नही आँखें
सह पाती प्रकाश।
भूल गया है तन
सूर्य का मादक स्पर्श
भूल गया है मन
उसकी गर्माहट
अब तो तुम हिम शिला
में हो गयी परिवर्तित।
क्या तब तुम्हारा सूर्य
तुम्हे पिघला पाएगा?
क्या वह बिसरे दिन
वापिस ला पाएगा ?
क्या वह गुजरा यौवन
लौटा लाएगा ?
बालों में तब चाँदी होगी
चेहरे पर तब बीते वर्षों ने
छोड़ी होंगी कितनी सारी रेखाएँ
हाथों में तब कम्पन होगा
साँसो पर ना काबू होगा।
क्या तुम बुन पाओगी
तब भी कल से सपने ?
तब क्या करोगी ?
बोलो तब क्या करोगी ?
घुघुती बासूती
Monday, January 21, 2008
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sunder bhav purn
ReplyDeleteशाश्वत प्रतीक्षा। वस्तुत: नारी यही करती है। बहुत सरल-सुन्दर वर्णन! साधुवाद।
ReplyDeleteu always write wonderful poems their is no doubts and i remember and long for that lucky day when i have the heard them from u which that day may come again miss u and your poems a lot, you know what famous poet have in their poems they are precise and short and give their impression in 2 lines you to do make a punching start but why make it so long it make it dull in middle some where loses main track and why too much question a poet have a answer of heart to the world when it raises so many question it look like you want a discussion want listener to react on that but poet like the air flows on its own and don't care how its blowing. your poem is very good and next time don't write more than 20 lines and u put all your thought in that 20 lines then see how it looks .
ReplyDeletei think i have spoken too much having no knowledge and caliber as you have but i only spoken of my heart with a hope to see u again i depart your truly anu (man1)
sundar ghughuti ji
ReplyDeleteअति सुन्दर घुघूती जी !
ReplyDeleteमैं खुद होऊंगी अपना आकाश
ReplyDeleteखुद से खुद को दूंगी प्रकाश
मैं खुद होऊंगी खुद के लिए
मैं सूरज की रौशनी से चमकने वाला
कोई सितारा नहीं
मैं सूर्य हूं
खुद अपनी ही रौशनी से दीप्त,
उन्नत माथ।
एक पूरी उम्र गुजर जाए
वृथा इंतजार में
वह उम्र, जो खुशबू बनकर बिखर सकती थी
जो संगीत बन वीणा के तारों से झरती
हवाओं, पर्वतों, दरख्तों में
अपने अस्तित्व का सत्व खोजती
नदियों के संग-संग फिरती
हवाओं के संग-संग उड़ती
एक समूची उम्र
कट जाए वृथा इंतजार में
यह नहीं हो सकता,
यह नहीं होगा।
मैं खुद होऊंगी अपना आकाश
खुद से खुद को दूंगी प्रकाश
मैं खुद होऊंगी खुद के लिए।
ऊपर सितारा की जगह चंद्रमा है। टाइप करके दोबारा पढ़ने की भी जहमत न उठाने की वजह से यह गलती हुई है। उसे चंद्रमा पढ़ें।
ReplyDeletebahut saral sundar
ReplyDeleteबालों में तब चाँदी होगी
ReplyDeleteचेहरे पर तब बीते वर्षों ने
छोड़ी होंगी कितनी सारी रेखाएँ
हाथों में तब कम्पन होगा
साँसो पर ना काबू होगा।
तब भी सपने देखना बंद नहीं होगा। सूरज को साध लेने की हौसला तब भी रहेगा। आपकी कविता तो अच्छी है ही, मनीषा ने भी टिप्पणी में जो पेश किया है, वह कविता भी अच्छी है।
मैडम, आपने बेहद सुंदर ढंग से आपने अपने प्रश्न को एक कविता के माध्यम से रखा,पढ़ कर एकदम सिट्टी पिट्टी गुम हो गई कि अब इस का क्या जवाब दें मैडम को, लेकिन जैसे ही टिप्पणीयों वाला बक्सा खोला तो मनीषा पांडेय जी का जवाब सुन कर तबीयत खुश हो गई। बहुत ही अच्छा लगा, यूं लगा जैसे पांच मिनट में किसी कवि सम्मेलन से ही होकर लौट रहा हूं.
ReplyDeleteइतनी ज्यादा गहराई से रची रचना के लिए आभार ..हम लोग इस 20 पंक्तियों वाली बंदिश से सहमत नहीं हैं।
बहुत खूब.
ReplyDeleteकितना गुनती है आप, तब जाकर आपके शब्द आकार लेते हैं या कागज पर उतरते हैं।
ReplyDeleteहर पंक्ति भावपूर्ण है।
वाकई आपकी कविता से उठते सवाल को एक दिशा देने की कोशिश मनीषा जी ने की है, दोनो ही शानदार!
सोच रहा था कि मैं क्या करूंगा और मनीषा जी ने मेरा जवाब दे दिया।
ReplyDeleteदोनों रचनायें बहुत ही शानदार है।
बधाई
AAP KI KVITA KE HER SHABD ME HAZAR MATLAB HOTE HAIN, AAPKO PADHTE HUWE LAGTA HAI KI MAIN JADOEE DUNIYA ME AAGAYA HON :)
ReplyDeleteदिल को छू लिया आपकी रचना ने।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है..
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद मुझे मेरे टाईप की कविता पढने को मिली है..
लिखते रहें..
bahut sundar likha hai,ghughutiji aapne.Yah ek swabhavik manodasha hai,jab man apne ko akela aur upekshit pata hai.Par ise man par hawi na hone den.Maneesha ji ne jo kaha,hamesha use chetna me dipt rakhen.To ham to urja ka wah shrot hain ki kuch bhi nahi jo nahi kar saktin.Jo koi bhi sthiti ya vyakti peeda de to yah to nahi kah sakte ki man aahat hi nahi hoga par aisa hi karen jaisa govinda ne kiya tha,yaad hai naa????Qes.''Tune mujhe dhakka kyon diya???Ans.''achcha maan lo maine tujhe dhakka diya,tujhe pasand nahi aayaa,to tune dhakka kyon liya""jab ham aahat ho ho jayenge,toot jayenge to jeet to usiki hogi na jo hame aahat karna chahta hai.Buri nazar waale tera munh kaala ,kahen aur mast hokar khush ho jayen.Aahat karne waala apna sar dhun lega.
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