Wednesday, January 23, 2008

मेरी कविताओं में उदासी क्यों है ?

मेरे कुछ मित्र मुझसे पूछते हैं कि मेरी कविताओं में इतनी उदासी, इतना दर्द क्यों होता है ? मैं मानती हूँ कि उनमें दर्द की मात्रा कुछ अधिक होती है । किन्तु यह भी तो आवश्यक नहीं कि यह दर्द मेरा अपना ही हो ,या मन का दर्द ही हो । कुछ दर्द शारीरिक, मानसिक व आत्मिक भी होते हैं । कुछ रचनाएँ अपने जीवन की सच्चाई से प्रेरित होती हैं, कुछ अपने आसपास के जीवन से, तो कुछ अपने काल्पनिक पात्रों पर लिखी होती हैं । कुछ पात्र इतने सजीव हो जाते हैं कि वे स्वयं के जीवन पर ही छा जाते हैं । कभी कभी तो मैं उनकी तरह सोचने भी लग जाती हूँ । यह भी सच है कि कुछ रचनाएँ तब लिखती हूँ जब मन गहरी उदासी से घिरा होता है , कुछ तब जब शरीर पीडा से युद्ध कर थक गया होता है ।

एक बात और है, मनुष्य आम तौर पर मित्रों के बीच हँसी ठिठोली करता है, किन्तु उन क्षणों में वह कागज कलम लिए हुए नहीं होता, न ही कमप्यूटर के सामने । उदासी तो बादलों की तरह तब घेरती है जब वह अकेला होता है और लिखना भी तब ही होता है । शायद यह भी सच है कि हास्य लिखना बहुत कठिन है व उसके लिए भाषा की पकड गहरी चाहिए, जो मेरी नहीं है । हल्का फुल्का लिखने के लिए बाहर के जीवन के अनुभव चाहिए जो कि मेरे पास कम ही हैं । कविता मन में एक आँधी की तरह आती है और स्वयं को लिखवा कर चली जाती है । तब लिखने या न लिखने या आलस्य का प्रश्न ही नहीं उठता, वह तो मुझे केवल माध्यम बनाती है । उस पर मेरा वश ही कहाँ है ? आवश्यकता होती है तो किसी भी प्रकार के कागज, चाहे वह टिशू पेपर ही हो या हाथ के समाचार पत्र का हाशिया और एक अदद कलम की ।

मेरा लेखन मेरे मन में वर्षों से घूमती कुछ कहानियों के कारण आरम्भ हुआ । इन पात्रों ने ही मुझे लिखने को बाध्य किया । कविताएँ भी इन्हीं पात्रों की देन हैं । मैंने अपनी पहली कविता अंग्रेजी में अपनी नायिका के लिए या यूँ कहिए अपनी नायिका से लिखवाई थी । कमप्यूटर के सीमित ग्यान के कारण मैं अपनी मेहनत खो बैठी । गद्य तो खो बैठी किन्तु कुछ कविताएँ डायरी में भी लिखी होने के कारण बच गईं । महीनों की मेहनत इस प्रकार से खोने के बाद गद्य के प्रति उदासीन हो गई थी । शायद अंग्रेजी से भी । फिर हिन्दी लिखने का शौक चर्राया और उसी शौक को ही आप लोग झेल रहे हैं और आशा करती हूँ कि झेलते रहेंगे । अब तो कभी कभी गद्य लिखने का भी यत्न करने लगी हूँ ।

घुघूती बासूती

11 comments:

  1. उदासी, दुख, वियोग, बेवफाई तो साहित्‍य का गहना है

    ReplyDelete
  2. आप लिखती रहें.. हम आपको झेलने को तैयार बैठे हैं..
    वैसे मुझसे भी लोगों को यही शिकायत है..
    लेकिन मैं आपके जैसा नहीं लिख सकता हूं.. :)

    ReplyDelete
  3. udasi aur dukh bhi to zindagi ka hissa hai agar hissey jyada aye to vahi lakhni mein bhi chalk jana aam baat hai...

    ReplyDelete
  4. आपका गद्य भी पठनीय होता है। मुझे लगता है आपको संस्‍मरण, चिंतन इत्‍यादि अधिक लिखना चाहिए। लिखते रहिए, हम पढ़ने के लिए तैयार हैं। - आनंद

    ReplyDelete
  5. कोई संशय नहीं आपका लेखन बहुत अच्छा है।
    पर मेरा मानना है कि न दर्द स्थाई है न मुदित भाव।

    ReplyDelete
  6. घुघुती जी मैं कविताओं के साथ साथ आपके गद्य का फैन हूं । आपकी वसीयत वाली पोस्‍ट तो इतने लोगों को पढ़ाई है कि क्‍या कहें । आपके पास ग़ज़ब की दृष्टि है और ग़ज़ब की शैली भी ।

    ReplyDelete
  7. lekin ek baat to pakki hai, ye udasi logo ko bahut pasand aati hai tabhi to mere aane tak 28 log blogvani se par chuke thai.

    hum to udasi me bhi khushi dhoondh sakte hain, tareeka ye reha.

    Jaise Aaj aapne ek BAHUT udasi bhari kavita likhi, lekin ho sakta hai kal aap sirf udasi bhari kavita likhen yaani jisme aapki purani kavita ke mukabale kam udasi ho...To samjah lijye ye to khushi ki kavita hai :)

    ReplyDelete
  8. ……………आह से उपजा होगा गान!!
    उदासी मन का ऐसा भाव है कि यह आपको लिखने के लिए प्रेरित करेगा ही ( अगर आप लिख सकते हैं तो) और इस भाव मे लिखी गई चीजों में उदासी की झलक दिखेगी ही!!
    कई बार बहुत अच्छा लेखन इस उदासी वाले भाव मे ही होता है।

    युनूस भाई से सहमत, अपन पंखे है आपके लेखन के!!

    ReplyDelete
  9. हमे पता है किस भयावह दर्द से आप गुजर रही है फिर भी आप जो समाज को दे रही है वह अनुकरणीय है।

    ReplyDelete
  10. आप जो भी लिखती हैं, अच्छा लिखती हैं। आपको ज्यादातर लोग पढ़ते हैं। पठनीयता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।

    ReplyDelete
  11. घुघूती जी,
    आप की बात मन से निकली, सीधी और सच्ची होती है ...उदासी , जीवन का सच भी है --

    ReplyDelete