आप को आश्चर्य हो रहा है ? मुझे भी बहुत हुआ था । अरे, जब आज तक खालीस्तान बना ही नहीं तो वहाँ राम तो क्या कोई भी जन्म नहीं ले सकता ।
बात उन दिनों की है जब बिटिया को हिन्दी के पाठ्यक्रम में संक्षिप्त सी रामायण भी पढ़ाई जाती थी । वही अपना छुट्टियों का गृहकार्य करते हुए हमसे पूछ रही थी कि यह खालीस्तान क्या होता है । कुछ तो हम धर्म आदि के प्रति उदासीन थे और कुछ बच्चियों का कुछ स्टेरेलाइज्ड से वातावरण में जीने के कारण संसार की जानकारी कम और पुस्तकों व काल्पनिक चीजों की जानकारी अधिक होने के कारण हमें कई बार ऐसे प्रश्नों का सामना करना पड़ता था । परन्तु हमें यह समझ नहीं आ रहा था कि वह खालीस्तान के बारे क्यों पूछ रही है । फिर भी हमने अपने जीवन के मूलमंत्र, कि बच्चियों की कोई बात नहीं टालेंगे, उन्हें उनकी उम्र व समझ के अनुसार उत्तर अवश्य देंगे, के चलते उसे समझाना आरम्भ किया कि कैसे कुछ लोग एक नया राष्ट्र चाहते हैं आदि आदि । वह बोली कि फिर दे देना चाहिये ना । मैं इस विषय में कुछ समझाती उससे पहले ही वह बोली कि माँ यह राष्ट्र तो पहले भी रहा होगा क्योंकि टीचर कहती हैं कि राम का जन्म खालीस्तान में हुआ था ।
अब हम बुरी तरह चौंके । माना कि जिन छोटी सी जगहों में हम रहते आए हैं वहाँ का पढ़ाई का स्तर बहुत नीचा रहता है क्योंकि अध्यापक ही नहीं मिलते, फिर भी यह तो अति थी । मैंने कहा आगे क्या लिखाया है वह भी पढ़ो। वह सुनाने लगी " राम को १४ वर्ष का खालीस्तान हुआ था । रावण सीता को उठाकर खालीस्तान ले गया । "
अब बात हमें समझ में आई । यह खालीस्तान रिक्त स्थानों को भरो वाला डैश था । हम लोग हाल में ही इस नई जगह आए थे सो बिटिया को नई टीचर के पढ़ाने का तरीका व शब्द नहीं पता थे । पहले वाले विद्यालयों में डैश कहा जाता था और यहाँ खाली स्थान ।
घुघूती बासूती
क्या मजेदार बात है। खाली स्थान खालीस्तान हो गया। पोस्ट चौंककर पढ़ी और पढ़ने के बाद बरबस हंसी आ गई।
ReplyDeleteहा! हा! हा! लेकिन सच शीर्षक देखकर मैं भी चौंक गया था. लेकिन पढने के बाद हँसी आगई. बहुत खूब.
ReplyDeleteसमझ तो गया था लेकिन पढ़ने से खुद को नहीं रोक पाया. घुघूती जी आपने मुस्कुराने का एक अवसर दिया इसके लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteआपने तो अच्छा कंटिया फंसाया! हम तो खालीस्तान के नाम से फंस गये!
ReplyDeleteपोस्ट का शीर्षक पढ़ कर टू चौक ही गया था की ये क्या... खैर, एक मनोरंजक पोस्ट. बच्चों के मुह से जो भी निकले, एक बार सबके चेहरे पर मुस्कराहट आ ही जाती है. आपकी बिटिया रानी के लिए शुभाशीष
ReplyDeleteसबसे मजेदा तो पुनीतजी की टिप्पणी है.. उन्हें नहीं पता कि बिटिया की बिटिया को शुभाषीश देना है :)
ReplyDeleteसचमुच चौकाने ,हसाने और पहेली सी पोस्ट
ReplyDeleteA naughty and provocative title!
ReplyDeleteCompelling reading for this curious and temporarily idle fellow.
Thanks for the smile at the end.
G Vishwanath, JP Nagar, Bangalore
मज़ा आ गया। सही जगह राम पहुंचते पहुंचते रह गए। वरना राज करेगा खालसा से टकरा
ReplyDeleteसच में आपने मुस्कराने का कारण दे दिया और हिन्दी अध्यापन के दिन याद दिला दिए... अपठित गद्यांश का शीर्षक प्रभावित हो तो पूरे अंक मिलते हैं ऐसा छात्रों का कहा करते थे..आपका शीर्षक तो जबरदस्त .... आपको पूरे अंक :) :)
ReplyDeleteहा हा, मस्त!!
ReplyDeleteवैसे एक बात तो है , जब से आप स्मृतियों के जंगल में भटक रही हैं, लेखन ज्यादा और बढ़िया होता जा रहा है!!
रोचक!
ReplyDeleteशीर्षक के पूरे अंक. :)
ReplyDeleteमजेदार किस्सा.
वाह......... जितनी तारीफ करी जाये कम है।
ReplyDeleteआपके पोस्ट तो पढ़ने से पहले हीं चौंका दिया , वैसे पढ़ने के बाद भी काफी मजेदार रही .कोटिश: बधाइयां !
ReplyDeletemazedar.....
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