Monday, November 19, 2007

ओस की एक बूँद


ओस की एक बूँद हूँ मैं
सुबह आएगी तो खो जाऊँगी मैं,
धरती की आँख से निकली एक बूँद हूँ मैं
जब सूरज धरा को चूमेगा तो खो जाऊँगी मैं ।

तेरे हृदय से निकली एक आह हूँ मैं
जब तू सो जाएगा तो खो जाऊँगी मैं,
तेरे स्वप्न का एक भाग हूँ मैं
जब तू जागेगा तो खो जाऊँगी मैं ।

तेरे आँगन के फूल की एक पंखुड़ी हूँ मैं
जब हवा चलेगी तो उड़ जाऊँगी मैं,
तेरे बगीचे के पेड़ की एक पीली पाती हूँ मैं
जब पतझड़ आएगा तो उड़ जाऊँगी मैं ।

दूर पहाड़ी पर गिरी एक हिमकणिका हूँ मैं
वसन्त आएगा तो पिघल जाऊँगी मैं,
तेरे हाथ में एक मोम की पुतली हूँ मैं
तेरी साँसों की गर्मी से पिघल जाऊँगी मैं ।

इस धरती पर किसी के प्यार की छाया हूँ मैं
प्यार न होगा तो नज़र न आऊँगी मैं,
किसी के दर्द का मीठा सा एहसास हूँ मैं
दर्द न होगा तो नज़र न आऊँगी मैं ।

तेरे दिल की धड़कन की एक गूँज हूँ मैं
जब दिल न धड़केगा मेरे लिये, चली जाऊँगी मैं,
तेरे मन की यादों की एक मौज हूँ मैं
जब तू भुला देगा चली जाऊँगी मैं ।

तेरी साँसों की महकती खुशबू हूँ मैं
जब तू कहेगा चली जाऊँगी मैं,
तेरे हाथों की एक रेखा हूँ मैं
जब तू मिटा देगा तो मिट जाऊँगी मैं ।

घुघूती बासूती

12 comments:

  1. खो जाना जड़ हो जाते से लाख दर्जे बेहतर है। It is better to go through many transformations than to remain as such.

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  2. क्या लाईने लिखीं है घुघूतीजी, बूँद जो बन गयी मोती।

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  3. सीप के मुख में गिरूंगी, तो मोतौ बन जाऊंगी
    पर मैं गिरूं तो उस मुख में जो हो प्यासा

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  4. "प्यार न होगा तो नज़र न आऊँगी मैं,
    किसी के दर्द का मीठा सा एहसास हूँ मैं
    दर्द न होगा तो नज़र न आऊँगी मैं ।"
    बहुत सुन्दर अनुभूति जो एक प्यारा सा एहसास दे गई ...

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  5. आम जीवन के एक साधारण से घटक (ओस) को लेकर आपने जो शब्द बुने हैं वे भावना से भरे हैं एवं पारखी के दिल को स्पर्श करते हैं -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

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  6. "तेरे हाथों की एक रेखा हूँ मैं
    जब तू मिटा देगा तो मिट जाऊँगी मैं"
    हाथ की रेखाएं मिटाए नहीं मिटती , मिटाने की कोशिश में घाव हो सकता है.
    आत्म समर्पण की परकाष्टता है आप की कविता में.
    नीरज

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  7. अपने को मिटा कर भी किसी को पाने की चाहत और उस चाहत की पराकाष्ठा!!

    सुंदर अभिव्यक्ति!!

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।बधाई।

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  9. सुन्दर, अति सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  10. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ती है, पूरी की पूरी कविता ही अति सुन्दर है, एक दो लाइन चुनना मुश्किल है

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  11. ये रचना वाकई सीप के मुंह से मोती निकालने जैसी है वह भी गहरे पानी उतर कर , अति सुन्दर!

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