जब मैंने लड़के को देखा व स्वयं को उसे दिखाया !
रवीश जी ने एक चिट्ठे में लड़की की दिखाई में लड़कों द्वारा लड़कियों को विवाह के लिए देखने के विषय में लिखा है । बचपन से ही मुझे यह प्रक्रिया बहुत ही विचित्र व कुछ अपमानजनक लगती रही है । क्यों, कह नहीं सकती । शायद कारण यह रहा हो कि मुझे प्रेम के अतिरिक्त विवाह करने का कोई भी कारण जंचा नहीं । मैं गलत भी हो सकती हूँ, क्योंकि आज मैं प्रेम में हारे हुए अपने मित्रों को वैवाहिक साइट्स पर जाकर किसी सही व्यक्ति से मिलने की सलाह देती ही रहती हूँ । कारण यह भी है कि जो इन साइट्स पर अपने नाम, फोटो आदि देते हैं वे विवाह करने के विषय में में वाकई संजीदें होंगे अन्यथा इतना कष्ट क्यों करते। सो उनसे कहती हूँ कि उनसे मिलो , उन्हें जानो व हो सकता आप एक दूसरे को चाहने लगेंगे ।
खैर, मैं तो आपको इस विषय से सम्बन्धित एक किस्सा सुनाना चाहती हूँ जो मुझे रवीश जी का चिट्ठा पढ़ याद आ गया ।
बात यूँ हुई कि मैं हॉस्टल से अपने घर गई थी । बातों ही बातों में मुझे बताया गया कि अमुक परिवार, उन्हें अ ब स कह सकते हें, अपने बेटे का विवाह मुझसे करना चाहते हैं व बेटे के साथ मुझे देखना चाहते हैं । मुझसे पूछा कि क्या बात आगे बढ़ाएँ । उस शहर में हमारे समाज के कुछ ही घर थे व उन्हें मेरे विषय में पता चला था, या शायद उन्होंने मुझे देखा भी हो । बचपन से ही मैं बहुत ही बिन्दास व मजाकिया प्रवृत्ति की थी, किन्तु कुछ विषयों में बहुत ही संजीदी भी थी जैसे कि लड़के वालों द्वारा लड़की को देखने के विषय में, स्त्रियों के अधिकारों के विषय में आदि । मैंने माँ से उनके बारे में पूछा । जहाँ वे रहते थे, उसी इलाके में हमारे जान पहचान के, हमारे छोटे से समाज का एक और परिवार भी रहता था, जिनसे हमारी कुछ रिश्तेदारी निकलती थी व जो हमारे घर आते जाते थे।
सो मैं अपनी जान पहचान वालों के घर के लिए चल पड़ी । वहाँ पहुँचकर मैंने कहा कि अ ब स भी तो यहीं रहते हैं । वे बोले हाँ । मैंने कहा उनसे भी मिल लिया जाए । सो हम उनके घर चले गए । रिश्तेदार मुझे वहाँ पहुँचा कर अपने घर वापिस चले गए । मैंने अपना परिचय दिया कि मैं क ख ग ज्यू की बेटी हूँ । बेचारा लड़का बनियान पहने हुए बैठक में बैठा हुआ था । न उससे उठते बनता था न बैठते । वह इन्जीनियर था । मैं उससे कहाँ पढ़ा है, किस ब्रान्च में इन्जीनियरिंग की है , वह अपने भविष्य के विषय में क्या सोचता है आदि पूछती रही । साहित्य में उसकी क्या रुचि है , यदि हाँ तो कौन पसन्द हैं । ऍन रैन्ड को पढ़ा है , उसके किन उपन्यासों से वह प्रभावित हुआ है आदि बातें करती रही । कौन से खेल में उसकी रुचि है व अपना प्रिय खेल जिसमें मैं छोटी मोटी चैम्पियन थी के बारे में बताया। घर से जब दूर रहे तो क्या घर का कुछ काम काज जैसे बेसिक खाना बनाना सीखा या नहीं । पहाड़ के लड़कों को तो कुछ खाना बनाना आता है जैसे मेरे पिताजी को, आदि पूछती रही । उसके व उसके माता पिता का चेहरा देखते ही बनता था । मैं प्रतीक्षा कर रही थी कि कब वह चाय लेकर आयेगा । मैं चाय तो पीती नहीं थी, सो उसके पूछने पर मुझे मना करना पड़ा । आधे घंटे उनके घर बैठ मैं वापिस घर आ गई । वह कमीज पहन मुझे रिक्शा स्टेंड तक छोड़ने आया। शायद उसने ऐसी लड़की पहले नहीं देखी थी, ना ही कल्पना की थी । वह मुझसे बोला कि आप तो बहुत बोल्ड हो ।
माँ से बोला निश्चिन्त रहो अब वे आपसे मेरे बारे में बात नहीं करेंगे । मैं स्वयं अपने को उन्हें दिखा आई हूँ व उनके सपूत को भी देख आई हूँ । आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब इस सबके बावजूद वे लोग बात आगे बढ़ाने को हमारे घर आ गए । मैं तो वापिस हॉस्टेल चली आई थी । माता पिता ने कहा कि अभी तो मैं पढ़ रही हूँ, अभी विवाह के विषय में नहीं सोचा आदि । शायद माँ को तब भी मेरे मन के बारे में अनुमान था कि मैं ऐसा तय किया विवाह नहीं करूँगी ।
सो मैं भी एक बार अपने को लड़के को दिखा आई व लड़के को देख आई । शायद वह लड़का किसी लड़की को देखने से पहले चार बार सोच अवश्य लेता होगा । आज न तो मुझे उसका नाम याद है न उसकी शक्ल और यदि रवीश जी का चिट्ठा न पढ़ती तो इस बात की याद भी न आती ।
घुघूती बासूती
Wednesday, November 21, 2007
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आपने लीक से हट कर किया,
ReplyDeleteकुछ माडर्न या उदार वादी दृष्टिकोण रखने
वाले लोग अच्छा कहेंगे।
और कुछ आर्थोडोक्स प्रवृत्ति के लोग
इसे बदतमीज़ी तक कह सकते हैं।
परन्तु आज के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
ये अनुचित तो नही ही ठहराया जा सकता।
कमाल का अनुभव है आपका. बहुत अच्छा किया आपने.
ReplyDeleteआप ने सवेरे-सवेरे मुस्कराने की वज़ह दे दी..:)
ReplyDeleteआज कोई ऎसा करे तो आश्चर्य नहीं होगा लेकिन उस जमाने में यह सचमुच बहुत बढ़ी चीज रही होगी.
ReplyDeleteवाह, मजेदार संस्मरण्!
ReplyDeleteअरे आप तो बड़ी जबरदस्त निकली लेकिन आपने ये खूब कहा कि पहाड़ के लड़कों को खाना बनाना तो आता ही है, हम भी उसी लाईन में हैं।
ReplyDeleteबढि़यॉं मजेदार
ReplyDeleteकुछ भी कहो...लड़का समझदार ही रहा होगा...नहीं तो फिर मिलना नहीं चाहता।
ReplyDeleteहाँ लड़का वास्तव मे काफी समझदार रहा होगा. लेकिन आप भी कम नही थी. कमाल किया जी.
ReplyDeleteवोय होय क्या सीन रहा होगा. गनीमत है लडका बनियान मे था सिर्फ अन्डर वियर मे होता तो सीन ही कुछ और
ReplyDeleteक्या मस्त पोस्ट ! पढ़कर दिल गदगद हो गया !
ReplyDeleteमस्त!!
ReplyDeleteये तो आज के समय मे भी बोल्ड होने की निशानी हुई तो तब के वातावरण मे तो यह एक बड़ी बात रही होगी!!
गज़ब हो आप भी!!
यह एक अच्छा सामाजिक दस्तावेज बनता जा रहा है। और संस्मरण आने चाहिएं। मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है। मजा आ गया। :)
ReplyDelete:) :)आप के आगे नतमस्तक हो हम तो बस मुस्करा रहे हैं...!
ReplyDeleteआप ऐसा कर सकती है मान लिया हमने ..पर सच में बहुत मजेदार बात है ,यह मज़ा आ गया
ReplyDeletemaza aa gayaa ghughutii jii.
ReplyDeleteआज भी इस तलाश में हूँ की अगर ऐसे नहीं तो फ़िर कैसे जोड़े जाते हैं जन्म जन्मांतर के रिश्ते. शायद मेरी ये तलाश मेरी ख़ुद की शादी पर जाकर ख़त्म हो. पर फ़िर भी, आपके अनुभव से मुझे भी सोचने का नया कोण मिला.
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