कई कारण हैं कि मुझे स्त्रियों की कहे जाने वाली पत्रिकाएँ पसन्द नहीं हैं ।
१ एक तो यह है कि हिन्दी में वे पत्रिकाएँ तीन या साढ़े तीन प्रान्तों को छोड़ सब जगह मिल जाती हैं । सो हमारा ये रोना रोते ही कि हिन्दी का कुछ नहीं मिलता यहाँ, वे हमारे सामने कर दी जाती हैं ।
२ उन्हें पढ़कर हमें अच्छी गृहणी बनने का रोग जकड़ना शुरू कर देता है ।
३ इतनी सारी खाने की चीजें व उनकी विधियाँ दिखाकर हमारा वजन बढ़ाया जाता है । पति के मुँह में भी पानी आ जाता है और कई बार इसी से मधुमेह की शिकायत बढ़ जाती है ।
४ तरह तरह के वस्त्र दिखाकर और आमतौर पर भयंकर से रूप में दिखाकर हमें कपड़ों की खरीददारी से ही डरा देती हैं । उन्हें देख लगता है जो हैं वे ही बेहतर हैं ।
५ आमतौर पर बताया जाता है कि कैसे सास ससुर, जो अब नहीं हैं, से अच्छे सम्बन्ध बनाए जा सकते हैं । कई बार तो हमें अच्छे सम्बन्धों का इतना लोभ हो जाता है कि बस जल्द से जल्द ऊपर जाकर सम्बन्ध सुधारने का जबर्दस्त मन होता है । यहाँ ध्यान दिया जाए कि हमारा घर इकमंजिला है ।
६ उनमें अपने को सुन्दर बनाने के इतने फॉर्मूले होते हैं जितने शायद ओर्गेनिक केमिस्ट्री, इनॉर्गेनिक केमिस्ट्री,व बॉइकेमिस्ट्री में भी कुल मिलाकर ना हों । किसे अपनाएँ व किसे छोड़ दें हमारे जैसे समतावादी के लिए निर्णय कठिन हो जाता है ।
७ एक और समस्या भी है , यहाँ सब्जी भाजी वैसे ही कम मिलती है और फल तो मिलते ही नहीं । अंडे भी १५ कि. मी . दूर से मंगाने पड़ते हैं । अब यदि इन सब को अपने पर कूट पीस कर चिपड़ लूँ तो खाएँगे क्या ?
८ पति पत्नी के लिए एक दूसरे को खुश रखने के १० नायाब तरीके पढ़ने से ही आमतर पर हमारे झगड़े होते हैं । गौर किया जाए कि अन्यथा नहीं होते ।
९ गर्मियाँ आते से ही दर्शनीय स्थलों , पहाड़ों, यहाँ, वहाँ सब जगह घूमने के बारे में बताया जाता है, जिससे महीना भर तो हमें पहाड़ की नौराई लग जाती है । करीब दस दिन गुस्सा आता है , २० दिन उदासी में बीत जाते हैं । शेष दस महीने यह निर्णय करने में बिताते हैं कि अगली गर्मियों में कहाँ कहाँ नहीं जाएँगे ।
१० दसवाँ और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इन पत्रिकाओं, विशेषकर सौन्दर्य सम्बन्धी, याने बिना खाए फ्रिज को कैसे खाली करें वाले पन्नों की हिन्दी कुछ यों होती है हमारा मन करता है दोनों हाथों में लाल पेन लेकर बैठ जाएँ काटपीट करने । उदाहरण देखिये ....
सबसे पहले अपने फेस को कोल्ड वॉटर से वॉश कर लें । फिर लूफा से सक्रबिंग करें । ध्यान रहे कि सक्रबिंग करते टाइम खूब रबिंग भी हो जाए। इससे फेस की परफेक्ट मसाज भी हो जाएगी और स्किन हैल्दी होकर ग्लो करेगी । अब फ्रिज में से फलां सब्जी को लेकर जेन्टली सक्वीज करो । ज्यूस में .......का पल्प डाल कर स्टर करो । इसमें कॉर्न फलार मिक्स करें । अब फेस में लगाकर हाल्फ आवर छोड़ दो । जब ड्राय हो जाए तो जेन्टली कॉल्ड वॉटर से वॉश करके टॉवेल से ड्राय कर लें । अब ......लोशन से मसाज करें ।
पहले तो यह भाषा देखकर हमारा पारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है । फिर हम सोचते हैं कि यह सब करेंगे तो बढ़िया खाने बनाने के लिए रसोई और फ्रिज में बचेगा क्या ? यदि बच भी गया तो यह सब करने के बाद कुछ करने का समय बचेगा क्या ?
घुघूती बासूती
पर कितने मजे की बात है कि यह पत्रिकायें बिकती बहुत हैं। मुझे लगता है कि इन्हें ज्यादातर पुरुष खरीदते होंगे!
ReplyDeleteमेरे अफसोस सुनिए--इन पत्रिकाओं से सामना बहुत होता है । किसी बुक स्टॉल पर पत्रिकाएं खरीदने जाओ तो सबसे आगे यही पत्रिकाएं मुंह चिढ़ाती खड़ी होती हैं ।
ReplyDeleteकिसी डॉक्टर, वकील, किसी संस्थान में जाएं, जहां इंतज़ार करना होता है--वहां ये पत्रिकाएं टेबल पर सजी होती हैं कि आईये हमें पढि़ये । और आप कुढ़ते हुए बगलें झांकते रहते हैं ।
कभी कभी इन पत्रिकाओं की वार्षिक सदस्यता के पत्र बिन बुलाए घर चले आते हैं ।
मुझे तो वे महिलाएं भी पसंद नहीं जो इन पत्रिकाओं को पढ़ती हों ।
आपकी पीड़ा जायज है।
ReplyDeleteये महिलाओं की नहीं, महिलाओं से पुरुषों की चाहत को बयां करनेवाली पत्रिकाएं हैं। खैर, मेरे घर में तो ये पत्रिकाएं कभी-भी नहीं आतीं। वैसे, मैं आपकी खीज समझ सकता हूं।
ReplyDeleteमुझे हिन्दी की स्त्री पत्रिकाओं से सबसे बडी शिकायत यह है कि वे अपनी पाठिकाओं को मानसिक रूप से बहुत दरिद्र मानकर चलती हैं. चलती बस या ट्रेन से अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें या खाना-खाने से पहले अपने हाथ अच्छी तरह धो लें किस्म की सूचनाएं देकर वे समझती हैं कि अपनी पाठिकाओं का स्तर उन्नत कर रही हैं. बुनाई की बात करेंगी तो बताएंगी कि नीले रंग का स्वेटर कैसे बुना जाए, जैसे कि नीले रंग का स्वेटर बुनने का तरीका लाल रंग के स्वेटर के बुनने के तरीके से अलग होगा. इसी तरह की बेहूदगियां इन पत्रिकाओं में मिलती हैं.
ReplyDeleteअजी आपने हमारी महिला पत्रिका पढ़ी ही नहीं है, जिसमें लेख इस प्रकार के होते हैं-
ReplyDeleteएरियर के पैसों के पति की नजरों से कैसे बचायें
पति से असली इनकम कैसे छिपायें
सास को घऱ में न आने देने के लिए सौ स्मार्ट झूठ कैसे बोलें
सास की सैट कैसे करें, जिससे वो गोल्डन पैंडेंट का वो वाला डायमंड का हार जेठानी को न दे
ननद को हमेशा दूर रखने के लिए सौ नुस्खे
एनआरआई बुआजी को सैट कैसे करें.
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आपको शायद मालूम ना हो आलोक जी की पत्रिका में हमारे लेख भी अक्सर छ्पते रहते हैं. तो जल्दी सब्स्क्राइब करें.
ReplyDeleteवैसे हम आपका दुख समझ सकते हैं.
क्या वजह है की पुरूषो की टिप्पणीयाँ ज्यादा मिली है? :)
ReplyDeleteसुना है, महिलाओं की पत्रिकाएं पुरूष ज्यादा पढ़ते है.
एक अच्छाई भी है, जब यह पत्रिकाएं पढ़ी जा रही होती है, उस दौरान सास-बहू के सिरियल नहीं देखे जाते.
:):) बहुत मज़ेदार विषय चुना है आपने. दो तीन साल पहले जब छुट्टियों में भारत आए थे तो किसी के घर एक हिन्दी पत्रिका पढ़ने का अवसर मिला था जिसे पढ़कर आज तक नहीं भूले... "मैले कुचैले पति के साथ कैसे गुज़ारा किया जाए" कभी कभी ऐसे पते की बात भी मिल जाती है लेकिन तब से पतिदेव हिन्दी पत्रिकाओं का नाम सुनकर ही बौखला जाते हैं.
ReplyDeleteगज़ब है!!
ReplyDeleteक्या नज़र डाली आपने और क्या खूब लिखा है!!
exceelent piece, mam
ReplyDeleteआपका दुख देखा नहीं जा रहा. आँख भर आई. आग लगे ऐसी पत्रिकाओं में. आप तो बस ब्लॉग पढ़ा करो-उड़न तश्तरी.
ReplyDeleteमैं आपसे सहमत हूँ....
ReplyDeleteसिलाई , कड़ाई के पेंच अपने पल्ले कभी नही पड़े , इस लिए अपुन तोह जी इन पत्रिकाओं के देखते ही नही, अब पता चल रहा है कि कुछ गलत नहीं करते, धन्यवाद
ReplyDeleteपता नहीं यह लेख कैसे छूट गया....मज़ा आ गया। सही है। :))
ReplyDeleteगंभीर मुद्दे पर बेहद रोचक आलेख…आभार
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