वे भी क्या दिन थे, वे भी क्या होली थीं ............
एक बार फिर होली हमें हमारे अकेलेपन व बालों में बढ़ती चाँदी की याद कराने आ गई है ।
अब बहना आ ही गई हो तो पधारो , बैठो । न,न वहाँ अन्दर नहीं, यहीं आँगन में बैठो । देख नहीं रहीं कैसे रंगों से सराबोर हो, यहीँ कुर्सियाँ डली हैं, आओ बैठते हैँ । पहले रंग खेलना है, क्यों नहीँ, अवश्य खेलेंगे । यह रहा थाली में टेल्कम पावडर व हल्दी । न,न बहना ये रंग न लगाओ,ये तो औद्योकिक रंग या डाई हैं । यदि असली अबीर गुलाल लाई होतीँ तो और बात थी ।
क्या कहा, पहले तो इन से भी खेल लेती थी ? हाँ सच है, तब सबकुछ चलता था, कालिख और एल्यूमिनियम पैन्ट भी , और पानी वाले रंग भी सिर पर डालने देती थी । क्यों नहीं, बिल्कुल डालने देती थी । मन तो आज भी होता है कि सब चलता है कि धुन पर होली खेलें, पर क्या करें अब नहीं चल सकता । हाँ मैं तो वही हूँ, मन भी वही है, पर ये निगोड़े बाल देख रही हो ? ये तो वे नहीं हैं । पहले की होली में तो हम रंगते थे, मन रंगता था पर अब तो सबसे पहले ये बाल रंग जाते हैं । फिर महीनों हरे, नीले, बैंगनी व गुलाबी बालों को लिए घूमना पड़ता है । बच्चे भी कहीं पीछे से नीले बालों वाली की फब्तियाँ कसने लगेगें तो क्या अच्छा लगेगा ?
फिर पहले जहाँ पति को रंग कर हम गुनगुनाते थे..
तेरो कुर्तो रंगीलो , कुर्तो वालो रंगीलो ,
..मना,मोहिनी मदनमाला मेरो मन ले रंगीलो ।
वहीं अब महीनों तक गाना पड़ेगा .....
तेरो कुर्तो रंगीलो,कुर्तो वालो रंगीलो ,
...मना,मोहिनी मदनमाला मेरो खोर ले रंगीलो ।
अर्थात पहले उनके कुर्ते व कुर्ते पहनने वाले को रंगीला पाते थे और अपने मन को भी ।
दूसरी पंक्ति के मदनमाला शब्द के बारे में पक्का नहीं कहा जा सकता,वैसे शब्दकोष देखने से लगता है मदन शब्द ठीक बैठता है, मोहिनी सूरत वालो भी हो सकता है किन्तु अब तो कहना पड़ेगा कि मेरा खोर यानि सिर भी रंगीला है ।
खैर सिर को बचाते हुए भी क्या खाक होली खेली जाती है ? सोचती हूँ कि बाथ कैप पहन कर खेलूँ । पर वह होली ही क्या जिसमें सिर की टोपी सिर पर ही कायम रहे ?
वह भी क्या समय था जब बचपन में बच्चों की टोली सारी की सारी कॉलोनी में रंग खेलती घूमती थी ! फिर आया छात्रावास का समय जब पागलपन अपनी चरम सीमा पर था । फिर पति के साथ सुबह सुबह होली खेलना और जब तक मुँहबोली ननदें व देवर भाभी से होली खेलने आते तब तक चेहरा पहचान में न आता था तो नाराज होते कि अब क्या रंगे आपको । फिर सब स्त्रियों की टोली निकल पड़ती और हर घर में जाकर रंग खेलना । वह पानी की हौदी में लगाई गई डुबकियाँ । फिर जब बिटिया आ गईं तो हमारा खेलने न जाना और ग्यारह बजे तक होली का रंग न जमना और पड़ोस की आंटी का हमसे बिटिया छीनकर जबर्दस्ती होली खेलने भेजना ! वापिस आकर बिटिया का हमें पहचानने से इन्कार व घंटो नहाने पर हमारे पास आना ।
जब बच्चे कुछ बड़े हुए तब अलग ही रंग जमना शुरू हुआ । उनके मित्र होली से पहले दिन ही हमारे घर आ जाते थे । सारी रात उनकी मस्ती चलना । सुबह से रसोईघर में बड़े बड़े भट्टों में सारी कॉलोनी के लोगों के लिए खाना बनना , नाश्ता तो हम कई दिन से बना रहे होते थे । बगीचे में सामने के लॉन व आँगन में स्त्रियों व बच्चों की होली चलती थी व पीछे की तरफ पुरुषों की । जिसने जन्म में भी होली न खेली हो उसे भी हम होली खेला कर ही दम लेते थे । पूरे भूत बन जाने के बाद वहीं पर पहले से रखे चार छः साबुन की टिकियाओं से चेहरे व बाँहों का रंग छुटाया जाता था और तेज पानी की धार में पाइप से एक दूसरे को नहलाते थे । फिर धूप में सूखने बैठ जाते थे । तब तक गरम कॉफी आ जाती थी और हम सब मिठाई व नमकीन पर टूट पड़ते थे । गर्मागर्म पकोड़ों या मसाले वड़े और कॉफी का स्वाद जो तब गीले सिर, गीले कपड़ों में आता था वैसा फिर कभी नहीं आया । खूब मस्ती होती, गीत होते, मजाक होते और तब तक खाना लग जाता ।
कल भी सब आएँगे, पर हम अपना सिर बचाएँगे । मस्ती भी होगी खाना पीना भी । पर अब न साथ में बच्चे हैं न आज रात बच्चों के मित्र होंगे । न कल घर के हर स्नानागार में कोई न कोई बच्चा नहा रहा होगा । न वह हमारे पुराने मित्र हैं न वह जगह । जीवन में बाईस घर बदले हैं व लगभग उतनी ही जगहें, पर अब लगता है हम स्वयं ही बदल गए हैं । तभी तो गुझिया, गोजे, सिहल आदि बनाने की जगह यह लिख रहे हैं । और गहरे गाढ़े रंग बनाने की जगह हल्दी व टैल्कम पावडर से खेलने का मन बना रहे हैं !
फिर भी जानती हूँ कल सुबह होते न होते होली का पागलपन सिर पर सवार हो जाएगा ।
शायद आज रात होली दहन से ही शुरू हो जाएगा । और शुरू होगा ढोलक की थाप के साथ
होली है !
और मन गा उठेगा..
तेरो कुर्तो रंगीलो ,कुर्तो वालो रंगीलो ,
..मना,मोहिनी मदनमाला मेरो मन ले रंगीलो ।
घुघूती बासूती
Sunday, March 04, 2007
तेरो कुर्तो रंगीलो ,कुर्तो वालो रंगीलो ,
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क्या खूब सम्बन्ध जोड़ा है बालों की रंगत और होली खेलने में। अरे यह तो सिर्फ अपने आप को रोकने का बहाना है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह से विभिन्न अवस्थाओं और परिवेश में होली की इन्द्रधनुषी स्मृतियों को न केवल सहेज कर रखा है, बल्कि प्रस्तुत भी किया है। शायद पूर्व-स्मृतियों के इस प्रकार स्मरण हो आने और उसमें स्वयं के विस्मृत हो जाने को ही नौराई कहते है? मैं नहीं जानता पर सिर्फ अंदाज़ा ही लगा सकता हूँ।
अब तो होली का पूरा वातावरण है, कहां हम टिप्पणी करने बैठ गये। हम तो चले होली मनाने। आपको सपरिवार होली की शुभकामनाएं। होली खूब प्रसन्नता और मस्ती से मनाएं और पूर्ववत ही आनन्द अनुभव करें।
बासूतीजी,
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपके ब्लाग पर ढूंढने से भी आपका नाम नहीं मिला । दूसरा मैं क्षमा चाहूँगा परन्तु मुझे "घुघूती बासूती" का अर्थ नहीं मालूम ।
आपकी इस पोस्ट को पढकर बरबस ही घर की याद आ गयी। आज छ: वर्ष हो चुके हैं घर पर होली अथवा दीवाली मनाये हुये । बचपन में याद है कि कम से कम एक हफ़्ता पहले से घर में पकवान पकना शुरू हो जाते थे । आज माताजी से बात की तो पूछा कि कौन कौन से पकवान बनायें हैं, तो माताजी ने कहा कि बच्चे साथ रहें तो ही मन भी करता है पकवान बनानें का । सच में मन बडा क्षुब्ध हुआ कि मैने ऐसा बेतुका सवाल क्यों पूछा ।
छोडिये मैं भी कहाँ कि बात ले बैठा, आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें ।
और बालों के रंगने के डर से होली खेलने का लुत्फ़ न छोडिये । जो कुछ भी कीजिये डंके की चोट पर कीजिये फ़िर जो होगा देखा जायेगा,
कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गये,
कुछ लोग हैं जो वक्त के सांचे बदल गये ।
jis tarah aapne apni yaadon ko yahaan likha .. aapki wo saari holiyan meri aankhon ke aage sajeew ho uthi.. gujhiyon ki mahak yahaan tak aa rahi h.. par is saal to aapne banaye nahi.. to humein kya bin amithaai ke rahnaa padegaa.. hum bhi to bachche hn .. holi to aapko rangon se hi khelni padegi talcum powder dressing table par rakh dijiye aur haldi kitchen mein.. aur rang kheliye. enjoy .. :)
ReplyDeleteखूब यादें सांझी की आपने। सच है अच्छे दिन जा कर वापस नहीं आते। खैर निश्चित रहिए चिट्ठाजगत आप को नहीं छोड़ेगा आप भले ही छोड़ दें।
ReplyDeleteवर्णन की आपकी शैली प्रभावशाली हैं। सजीव शब्दचित्र तैयार हो जाता है। होली मुबारक।
ReplyDeleteवाह!! कितनी यादे ताज़ा हो गयी इस को पढ़ के
ReplyDeleteबहुत ही सजीव लिखा है आपने ..फिर कैसा रहा आपकी इस बीती होली का दिन
जानने की उत्सुकता रहेगी :)
होली की स्मृतियां बांटने के लिए धन्यवाद! कर्ता/स्वामी/घर के मालिक का कुर्ता ही नहीं उनका मन भी प्रसन्नता और आत्मीयता के रंगों में रंगा रहे.आमीन!
ReplyDeleteMadam aap ne mail id to diya hi nahi.. aap ka hukum sar aankhon par.. jo aapko laga mujhme kuchh hai samajhne laayak..
ReplyDeleteबहुत सुंदरता से यहाँ प्रस्तुत किया है अपनी अनमोल यादों को…व्यस्त होने के कारण पहले नहीं आ सका पर…।इतनी सुंदर रचना को अभिव्यक्तती जो दे सकता है उसकी प्रंजल भावनाएँ पर्व को और मनोहारी बनायेंगी…। होली की शुभकामनाओं के साथ!!बधाई!!
ReplyDeleteHoli Ho!
ReplyDeleteRag Rag josh chadhe nas nas mein desh ke jawani ..
Jawani paakal mochhiyaa pe aayel Kunwar ke.
बासूती जी
ReplyDeleteपता नहीं क्यों आपके लेख को पढ़ कर आंखे नम हो गयी। पता नहीं क्यों? मुझे अपनी कहानी याद आई कि आपके लेख के अन्तिम शब्द पढ़ कर या फिर मैने भी पन्द्रह साल से कोई भी त्यौहार अपने माता पिता के साथ नहीं मनाया उसकी कसक।
आपकी लेखन शैली वाकई कमाल की है।
अब तो बहुत देर हो गयी पर हमारे राजस्थान में सात दिनों तक होली मनायी जाती है अत: आपको यही कहूंगा कि होली की शुभकामनायें। और हाँ होली बीत चुकी है कृपया बतायें कि आपकी होली कैसी बीती?
॥दस्तक॥
यादों की जुगाली की परिणाम एक सुंदर पोस्ट के रूप में, भई वाह!
ReplyDeleteधन्यवाद राजीव जी,मान्या जी, श्रीश जी, नीलिमा जी, रंजू जी, प्रियंकर जी, दिव्याभ जी, अभिजीत जी, नाहर जी, अतुल जी ।
ReplyDeleteनाहर जी, पहले समय में कुमाऊँ में भी सात दिन की होली खेली जाती थी ।
नीरज जी धन्यवाद । मैंने अपने नाम का अर्थ व उससे सम्बन्धित सारी जानकारी अपने २५ फरवरी के लेख 'घुघूती बासूती क्या है, कौन है 'में दे रखी है । कृपया उसे पढ़ लें ।
घुघूती बासूती
bahut sundar,
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