अपने गुजराती चिट्ठाकार साथी पंकज बेंगानी की पोस्ट शांतिभाई, देखो भाई अब शांति है! पर अभी मैंने एक टिप्पणी की है, जो यहाँ पुन: प्रस्तुत है:
सात वर्ष पहले मैं गुजरात आई थी और तब से यहीं हूँ । क्षमा करना, किन्तु भारत के 16 से अधिक प्रदेश देख चुकी हूँ, 12 से अधिक में रह चुकी हूँ , सो शायद मुझे कहने का थोड़ा सा अधिकार बनता है। जब यहाँ आई थी तो समाचार पत्रों में कम अपराध की घटनाएँ होती थीं । इतना सुरक्षित मैंने स्वयं को कहीं भी नहीं पाया था । फिर आया भूचाल और मैं गुजरातियों के बड़े हृदय से बहुत प्रभावित हुई । जितनी स्वतंत्रता ,सम्मान व सुरक्षा स्त्रियों को यहाँ है, भारत में कहीं नहीं है । यहाँ के लोग बुद्धिमान, स्वाभिमानी, कर्मठ हैं । अपना भाग्य स्वयं बदलते हैं । सामन्तवादियों को हर बात का दोषी ठहराने मे समय नहीं बरबाद करते । अच्छे लोग हैं । दूसरे राज्यों से आए लोगों को परदेसी नहीं महसूस करवाते । मैं बहुत खुश थी । फिर आया वह पागलपन जिसने मुझे अपने आप, अपने धर्म व भारतीयता पर लज्जित कर दिया । माना डिब्बा जलाना गलत था । जिन्होंने जलाया था उन्हें सजा देते , मोदी जी की सरकार थी , पकड़ते उन्हें ! किन्तु नहीं, वह शेर और मैमने की कहानी दोहराई गई । किसी के किए की सजा किसी और को दी गई । मैं स्तब्ध थी । फिर वही बात, जैसा कि मैंने अपनी कविता में कहा है, 'यह मैं भी तो हो सकती थी ।' मैंने अपना धर्म सब धर्मों को पढ़कर सोच विचार करके नहीं चुना था । ठीक वेसे ही अधिकतर लोग किसी धर्म में जन्म लेते हैं, किसी देश, रंग में जन्म लेते हैं अतः उन्हें उसके लिए सजा देना गलत है । जब भी आप स्वयं को किसी अन्य के स्थान पर रख कर देखेंगे तो आप अत्याचार नहीं कर सकेगें । यदि हर महिला स्वयं को उन बेबस मुसलमान औरतों के स्थान पर रख कर देखतीं तो वे अपने पति, भाई, पिता को रोकतीं । किन्तु वे तो यह सब मूक हो देख रही थीं या फिर मुसलमानों की दुकान लूटने में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहीं थीं । जिस बात ने सबसे अधिक मुझे उद्वेलित किया वह थी आम आदमी का यह उत्तर कि जो हो रहा है ठीक हो रहा है । और भूकम्प के समय सब तरह के उत्सव स्थगित हो गए थे , पर तब वे सब चलते रहे, जैसे जो हो रहा था उससे हमारा कोई लेना देना ही नहीं था । जो जीवित जलाए जा रहे थे वे हमारे कुछ नहीं लगते थे । तो यदि उनमें से कुछ आतंक की राह पकड़े तो क्या आश्चर्य है ? और आज मैं केसे स्वयं को कहीं भी सुरक्षित समझ सकती हूँ ? मैं क्या गारंटी दे सकती हूँ कि कोई उत्तराखंडी, कोई ब्राह्मण, मेरे पति, भाभी, चाची, जवाईं आदि की जाति , धर्म या प्रदेश का व्यक्ति कोई भी आगजनी , अन्याय आदि नहीं करेगा ? और जब करेगा तो उसकी सजा उन्हें या उनसे सम्बन्ध रखने के लिए मुझे नहीं मिलेगी । सो कोई भी बंगाली, पंजाबी, बिहारी, मराठी, राजस्थानी, कन्नड़,तेलगू, मुसलमान, ईसाई, अमेरिकन, कनेडियन ,पोलिश, या रुसी कहीं कोई गड़बड़ी करे तो आप मुझे भी मार सकते हैं । फिर आप सब भी तो मेरे अपने हैं , सो यदि आप अपराध करे तो मुझे सूली पर चढ़ाया जा सकता है । फिर मैं तो माँ और अध्यापक वर्ग की प्रतिनिधी भी हूँ , अतः सबसे पहले तो सजा की अधिकारी मैं हूँ । मैंने व मुझ जैसों ने आपको बनाया है, अच्छों को भी व हत्यारों को भी । सो लज्जा से मेरा सिर झुक गया था । हमारे पास एक मुसलमान महिला रहती थीं, सदा सोचती थी उन्हें कैसा लगता होगा । उन्हें फोन करती थी व अपनी विवशता पर क्षमा याचना भी करती थी । गुजरात कई बातों में महान है व मैं उसपर गर्व करती हूँ । बस कोई इस दाग को मिटा दे । कोई यह दिलासा दे दे कि हत्यारे व रेपिस्ट अपने कारनामे दुबारा नहीं दोहराएँगे ।हाँ , यह सब सब जगह होता है पर इसका मतलब यह नहीं कि गुजरात भी इस दौड़ में भाग लेने को भाग पड़े ।
Thursday, March 08, 2007
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Play is one of the most important tools necessary in the development of the human species. Through play, children first explore the world around them. A baby may tinker with a spoon, trying to find out how to use it and in the process find that the spoon is a eye patch, a shovel, an arm pit scratcher and an attention-grabbing device. Through play humans first enter the world in order to rearrange it, make sense of it and, alas, accept it as it is.
ReplyDeleteSome dangerous political or anti social elements dicovered a new play as riots.several people are killed in the name of religion is inhuman. " Mazhab nahi sikhata aapas mein bair karna".
You have raised a voice which would never be shattered . your views stand like a rock, tells us path to living. we the living !
Woman, you rock! Keep rocking! The sound of sanity in a completely insane world. Do not pay attention to those who cannot tolerate toleration. Stay yourself.. and blog on that other hindi site the way you've always done. Do not delete this post! It needs to stay if it was asked to be removed!
ReplyDeleteLove,
Neha
The callousness of humanity doesn't seem ever to amaze me... shock me...
ReplyDeleteThe issues that you've put into words should stay up.
Abhijeet says it in words where I wouldn't have given credit to him otherwise. I don't believe in the importance of religion. But what he said is true.
The Narad fellows can't drown your words. Not without losing their credibility. Don't pull down your post. Let them do it... they can't afford it :).
Can't read it, but there's always Tum to read it out to me.
Proud of you,
Love,
Tum.