कल रात अच्छे बच्चे की तरह बैठ कर राजीव जी के प्रश्नों के उत्तर दिये । अपने अनूठे नेट कनेक्शन के चलते सारी रात निकल गई भेजते भेजते । इस प्रक्रिया में करीब बीस बार डिसकनेक्ट हुई और मजा यह कि जब मेरा चिट्ठा गया तो दो बार चला गया ! फिर भी यत्न किया कि एक को हटा दूँ पर कुछ तो ऊपर का माला वैसे ही खाली है, कम से कम कमप्यूटर के मामले में, ऊपर से ब्रह्म मुहूर्त में वहाँ सब काम ठप्प पड़ जाता है । सो हारकर, वैसे मैं आसानी से हार नहीं मानती , मानती होती तो कब की इस नेट के चक्कर को छोड़कर राम भजन कर रही होती । सो क्षमा करना मित्रो , वही भोजन दो अलग अलग थालियों में परोस दिया । अब इतनी जिद से किन्तु प्रेम से बनाया है तो कृपया खा भी लीजिएगा और अब आप तो समझदार हैं सो आपको क्या करना है आप जानते हैं ।
जब सारी रात प्रश्नपत्र हल करते बीती हो तो मीठी नींद तो क्या ही आती । सुबह की सुहानी वेला में मैं अपने बचपन के विद्यालय के गलियारों व कक्षा में भटक रही थी । कमी थी तो अध्यापिका ने सारी कक्षा को खड़े होने की सजा भी दे रखी थी । सो कुछ घंटे खड़े खड़े बिताए । सुबह तीन अलार्मों के, पहले अलग अलग फिर समवेत चीखने से उठी । चश्मा ढूँढा , फिर चीखते बच्चों से अलार्म बंद किए । फिर सोचने लगी कल की परीक्षा में बहुत गड़बड़ हो गई , और मुझे जीवन में दूसरी बार सजा मिली । और कितने घंटे खड़ा रखा था , मेरे तो पाँव दुख रहे थे ! सोच रही थी आज तो अध्यापिका से बात नहीं करूँगी । पिछली बार जब सजा मिली थी तब भी तो यही किया था मैंने । यह सोचती हुई जब मुँह धोने लगी तो दर्पण से झाँकते चेहरे को देख हँसी आ गई । हाहा , मैं तो बच्ची नहीं हूँ । मैं तो सजा दे सकती हूँ पा नहीं सकती । भला हो इन प्रश्नों का , मेरे तो पाँव अबतक दुख रहे हैं ! सो आज के उत्तर तो दिन में ही दे दूँगी । नहीं तो आज के सपनों में कहीं पिटाई ही न हो जाए ।
सो श्री गणेशाय् नमः ।
प्र *लेखन का आपके जीवन में क्या मह्त्त्व है?
उत्तर चोली दामन का सा साथ है । पहले केवल पत्र लिखती थी , बचपन में बड़े भाई को खासकर तब जब कुछ समझ नहीं आता था तो सहायता की गुहार लगाते हुए, छात्रालय से माँ को, फिर अपने उस मित्र को जो आज मेरे पति हैं , फिर विवाह उपरांत माँ को , जब बच्चे छात्रालय गए तो प्रतिदिन उन्हें पत्र लिखती थी । फिर मोबाइल का युग आ गया तो डायरी के सिवाय लिखना बंद सा हो गया । किन्तु इतना तो जानती हूँ कि मुझ जैसों के बल पर ही डाक विभाग चलता था, अब अवश्य घाटे का बजट होगा उसका ! कभी कभार कुछ कविता या ब्लाह ब्लाह अंग्रेजी में भी लिख लेती थी । जब जब अधिक अकेली या दुखी होती या किसी ने मन दुखाया होता तो भी डायरी का ही सहारा लेती
थी । अब यहाँ देखती हूँ लोग मुझे कितना सह पाएँगे ।
प्र *अपनी स्वरचित पसंदीदा रचना कौन सी है?
उत्तर यह उत्तर दे चुकी हूँ ,
प्र *अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के बारे में कुछ बताइये।
उत्तर एक नहीं तीन हैं , तीनों मेरे मित्र हैं। मेरे पति, मेरी बेटियाँ । पति के बारे में ही बताती हूँ। शिव हैं वे ! भगवान का नाम लेते तो शायद ही कभी सुना है किन्तु स्वभाव में शिव व जीवन दर्शन में गीता को जीते हैं। कर्मण्येव अधिकारस्ते को तो शायद स्वयं कृष्ण ने भी इतना न जिया हो, विशेषकर मा फलेषु कदाचन वाले भाग को। परिश्रम करते ही सदा देखा है। सारा दिन काम में और रात देर से घर आना । फिर फोन तो हैं ही । एक होली के दिन को छोड़कर कभी कोई छुट्टी नहीं होती। दिवाली , रविवार हर दिन दफ्तर , कारखाने जाना होता है।
शान्त स्वभाव के हैं , जियो और जीने दो में विश्वास है। बच्चों से भी बहुत स्नेह है जबकि उनके साथ बहुत कम समय बिताया है। ऊँची आवाज जीवन में एक दो बार ही की है। बहुत अच्छे वक्ता हैं। अच्छे मेन्टर, सलाहकार हैं। घर के बारे में कुछ पता नहीं है, न ही समय है या कहें कि न ही समय देते हैं। जब भी कोई खाली क्षण मिलता है तो पढ़ते हैं। कोई बुरी बात याद नहीं रखते। किसी से नाराजगी या शत्रुता नहीं।
प्र *अपनी एक बुराई और एक अच्छाई कहिये?
उत्तर एक बुराई तो यह है कि संक्षेप में लिखना नहीं आता। पर बुराई तो बहुत हैं। भावनाओं में बहती रहती हूँ । अकेले रहने की आदत हो गई है सो बड़े परिवार में नहीं रह सकती। स्वप्न बहुत देखती हूँ। किसी से भी जल्दी मोह हो जाता है। किसी से झगड़ नहीं सकती, बचपन में भी नहीं। भयंकर भुलक्कड़ हूँ। लोगों के नाम व चेहरे याद नहीं रहते। भाषा में अशुद्धि सह नहीं सकती, किन्तु अब स्वयं करने लगी हूँ, आदि।
अच्छाई यह कि किसी को मानसिक या शारीरिक कष्ट नहीं दे सकती । विद्यार्थियों पर हाथ नहीं उठाती।
प्र *मूड खराब होने पर कौन सा गीत सुनते हैं?
उत्तर मुझे जितने रोन्दू गीत हों उतने ही पसन्द हैं । सहगल व गीता दत्त प्रिय हैं। फिर गीत तो मूड एनहान्सर का काम करते हैं , यदि दुखी हो और दुख के गीत सुनो तो दुख की पराकाष्ठा पर पहुँच जाते हैं और बस 'जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया 'की स्थिति पर पहुँचा देते हैं, सो दुखी होने पर कभी गीत नहीं सुनती । कुछ सैर के लिए अकेले चले जाती हूँ, बगीचे में पौधों से बात कर लेती हूँ। बच्चों से फोन पर बात कर लेती हूँ या फिर कुछ नहीं ।
अब मेरा उत्तीर्ण हुए का प्रमाणपत्र शिघ्राति शीघ्र भेज दीजियेगा ।
परीक्षा क्रमांक १११
घुघूती बासूती
कक्षा लोअर के जी
विद्यालय नारद गुरूकुल
चिट्ठाजगत ।
अब मेरे प्रश्न ....
१ आपको गीत, कविता, कहानी, लेख इनमें से क्या अधिक पसन्द है ?
२ क्या आपको सपने याद रहते हैं ? कोई दिलचस्प सपना सुनाइये । यदि याद नहीं तो कैसा देखना पसन्द करेंगे ?
३ क्या कभी कोई चिट्ठा आपको ऐसा लगा कि यह तो मेरे मन के भाव कह रहा है ? कौनसा?
४ जीवन का कोई मर्म स्पर्शी पल जो भूले नहीं भूलता ?
५ आपके जीवन का दर्शन (philosophy) क्या है ?
जिनसे पूछे जा रहे हैं वे हैं......
१ महेन्द्र जी
२ लावण्या जी
३ गिरीन्द्रनाथ झा जी
४ आशीष श्रीवास्तव जी
५ क्षितिज जी से ।
धन्यवाद और जो प्रश्नों से परेशान हो गए हों वे केवल अपना एक प्रिय चिट्ठा बता सकते हैं ।
घुघूती बासूती
घुघूति जी,
ReplyDeleteआपके दोनों उत्तर सराहनीय, सीधे और सरल शब्दों में व्यक्त हैं। अभी पहले चिट्ठे पर टिप्पणी लिख ही रहा था कि दूसरी उत्तरमाला भी दिख गयी। देखिये अभी तो मुझे पहले पर भी टिप्पणी पूरी करनी है।
घूघूती जी आपके वर्तमान नेट कनेक्शन के चलते आपके लिए सब से सही तरीका है कि आप डेस्कटॉप ब्लॉगिंग क्लाइंट का इस्तेमाल करें। विंडोज लाइव राइटर एक बहुत अच्छा डेस्कटॉप ब्लॉगिंग क्लाइंट है। इसे डाउनलोड तथा इंस्टाल करिए। आप ऑफलाइन रहकर इसमें पोस्ट लिखें, पूरी होने पर ऑनलाइन होकर पब्लिश कर दें। यह एमएस वर्ड के जैसा होता है, जिसमें आप कई चरणों में ड्रॉफ्ट बनाकर लिख सकती हैं। फुरसत से लिखने वालों और स्लो नेट कनेक्शन वालों के लिए तो यह वरदान है। इसके बारे में क्लासें फिर से शुरु करने वाला हूँ। तब तक आप मेरे चिट्ठे पर इसकी समीक्षा पढ़कर प्रयोग करने का मूड बनाइए।
ReplyDelete“
ReplyDeleteयह उत्तर दे चुकी हूँ , है। (बहुत बहुत धन्यवाद ePandit जी ! अब कोई कोष्ठक लगाना भी बता दे ! अपनी ऊपर की मंजिल भी काम करने लगी।पहली हाइपर लिंक ठोकी है। )”
आपकी पहली हाइपरलिंक दिख नहीं रही ??
पोस्ट में हाइपरलिंक देने के लिए कोड के झंझट में पड़ने की जरुरत नहीं, उसके लिए तो टूलबार में बटन होता है। इसके लिए ब्लॉगर के पोस्ट एडीटर में ऊपर से चौथा बटन है, जिसमें पृथ्वी के ऊपर एंटीना जैसा बना दिखता है।
कोष्ठक लगाने से आपका क्या मतलब है समझा नहीं ? कृपया सपष्ट करें।
और हाँ आप उधर आई थीं लेकिन टिपियाईं नहीं, ये अच्छी बात नहीं है जी, पाठशाला की फीस भी लगती है, हर क्लास में एक टिप्पणी देनी होती है, बस :)
“एक बुराई तो यह है कि संक्षेप में लिखना नहीं आता। भाषा में अशुद्धि सह नहीं सकती।”
ऊपर वाली दो बुराइयाँ तो मुझमें भी हैं। संक्षेप में लिखने बैठता हूँ लेकिन लंबा होता जाता है। अशुद्धि वाली बात का नमूना देखना हो तो, हर चिट्ठे पर मेरी टिप्पणियाँ देखिए, सबको सीख देता हुआ मिलूँगा।
मुझे लगता है कि आपके पास बीएसएनएल का या एयरटेल का लैंडलाइन युक्त मॉडम कनेक्शन है. इससे छुटकारा पाने के लिए आप या तो उनका ब्रॉडबैंड कनेक्शन ले सकती हैं अगर उपलब्ध हो या फिर ज्यादा उचित होगा कि रिलायंस मोबाइल या टाटा इंडिकाम मोबाइल के जरिए नेट चलाएँ - (यदि आपके क्षेत्र में इनकी सेवा उपलब्ध हो )इनके कनेक्शन आमतौर पर टूटते नहीं और ये तेज गति के भी होते हैं - थोड़े से मंहगे जरूर हैं.
ReplyDeleteपास होगयीं वह भी प्रथम श्रेणी में
ReplyDeleteआप वर्ड प्रोसेसर में ही ऑफ लाईन लिखें पर पोस्ट करते समय HTML मोड पर जा करें कर कट और पोस्ट करें फिर Compose मोड पर जायें तथा फॉरमैट करें। यहां पर प्रश्न नंबर १८ देखें।
बहुत अच्छा लगा,परिचय पाना ।शुभ होली ।
ReplyDeleteकल के आपके परिचय की चिंतन लीला
ReplyDeleteअभी समाप्त भी नहीं कर पाया था कि
यह नया और ज्यादा प्रांजल व्यक्तित्व
उभर कर सामने खड़ा हो गया…।
अब अध्यापिका जो ठहरी हर क्षण नये
तेवरों में विकास का परिणामी गुण जो
पाया है…।बधाई!!
धन्यवाद।
सबसे पहले तो देर से comment करने के लिये माफ़ी चाहती हूं.. और आपकॊ जो कष्ट हुआ .. उसके लिये भी क्षमाप्रार्थी हूं.. आपके दोनो> उत्तर पढे.. और जानना अच्छा लगा आपकी सरलता को.. और आपके दीर्घ उत्तरों ने बिल्कुल भी bore नहीं किया.. आपने जिस विस्तार से अपने बारे में बताय सब्कुछ सजीव थ.. आखिर आप हैं भी अध्यापिका तो ये तो स्वभविक हि है.. और आप स्वयम को यहां भी शिक्षक वर्ग में ही रहें.. हमारी पीढी बहुत कुछ सीख सकती है आपके अनुभवों से.. धन्य्वाद..और हां मुझे मान्या जी कह के शर्मिंदा न करें..
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर देर से आने के लिए माफ करें..
ReplyDeleteसवालो के ज़ाल मे मुझे मत फंसाये..बेहद कमजोर छात्र रहा हूं...गलतियो की भरमार लग जायेगी..
वैसे सवालो का जबाब जरूर दूंगा..थोडा वक्त दें.
गिरीन्द्र नाथ झा
धन्यवाद श्रीश जी । मैं तख्ती पर लिखती हूँ और लेख पूरा हो जाने पर उसे पोस्ट करती हूँ ।
ReplyDeleteहाइपर लिंक बनाया तो था किन्तु मेरा चिट्ठा कुछ अपने मन से काम कर रहा है सो वह गायब हो गया । आजकल तो टाइटल को छोड़ कर सारी पोस्ट ही गायब हो जा रही है । दो पोस्ट दूसरों से पोस्ट करवाईं ।
धन्यवाद रवि जी, हाँ मेरे पास लैंड लाइन ही है वह भी मूडी ! नहीं यहाँ ब्रॉड बैंड उपलब्ध नहीं है । कोई भी मोबाइल घर के अन्दर नहीं चलता । जंगल जो है ।
गिरीन्द्र जी ठीक है । फिर कभी ।
धन्यवाद राजीव जी, उन्मुक्त जी , अफलातून जी, दिव्याभ जी, व मान्या ।
घुघूती बासूती