घुघूती बासूती क्या है, कौन है ?
उत्तराखंड का एक भाग है कुमाऊँ ! वही कुमाऊँ जिसने हिन्दी को बहुत से कवि, लेखक व लेखिकाएँ दीं, जैसे सुमित्रानंदन पंत,मनोहर श्याम जोशी,शिवानी आदि ।
वहाँ की भाषा है कुमाऊँनी । वहाँ एक चिड़िया पाई जाती है जिसे कहते हैं घुघुति । एक सुन्दर सौम्य चिड़िया । मेरी स्व दीदी की प्रिय चिड़िया । जिसे मामाजी रानी बेटी की यानी दीदी की चिड़िया कहते थे । घुघुति का कुमाऊँ के लोकगीतों में विशेष स्थान है ।
कुछ गीत तो तरुण जी ने अपने चिट्ठे में दे रखे हैं । मेरा एक प्रिय गीत है ....
घूर घुघूती घूर घूर
घूर घुघूती घूर,
मैत की नौराई लागी
मैत मेरो दूर ।
मैत =मायका, नौराई =याद आना, होम सिक महसूस करना ।
किन्तु जो गहराई, जो भावना, जो दर्द नौराई शब्द में है वह याद में नहीं है । नौराई जब लगती है तो मन आत्मा सब भीग जाती है , हृदय में एक कसक उठती है । शायद नौराई लगती भी केवल अपने मायके, बचपन या पहाड़ की ही है । जब कोई कहे कि पहाड़ की नौराई लग रही है तो इसका अर्थ है कि यह भावना इतनी प्रबल है कि न जा पाने से हृदय में दर्द हो रहा है । घुघूती बासूती भी नौराई की श्रेणी का शब्द है ।
और भी बहुत से गीत हैं । एक की पंक्तियां हैं ...
घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती ।
या भै भूक गो, मैं सूती ।
भै = भाई
आलो=आया
भूक गो =भूखा चला गया
सूती=सोई हुई थी
यह एक लोक कथा का अंश है । जो कुछ ऐसे है , एक विवाहिता से मिलने उसका भाई आया । बहन सो रही थी सो भाई ने उसे उठाना उचित नहीं समझा । वह पास बैठा उसके उठने की प्रतीक्षा करता रहा । जब जाने का समय हुआ तो उसने बहन के चरयो (मंगलसूत्र) को उसके गले में में आगे से पीछे कर दिया और चला गया । जब वह उठी तो चरयो देखा । शायद अनुमान लगाया या किसी से पूछा या फिर भाई कुछ बाल मिठाई (अल्मोड़ा, कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध मिठाई) आदि छोड़ गया होगा । उसे बहुत दुख हुआ कि भाई आया और भूखा उससे मिले बिना चला गया , वह सोती ही रह गई । वह रो रोकर यह पंक्तियाँ गाती हुई मर गई । उसने ही फिर चिड़िया बन घुघुति के रूप में जन्म लिया । घुघुति के गले में, चरयो के मोती जैसे पिरो रखे हों, वैसे चिन्ह होते हैं । ऐसा लगता है कि चरयो पहना हो और आज भी वह यही गीत गाती है :
घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती ।
किन्तु कहीं घुघुति और कहीं घुघूती क्यों ? जब भी यह शब्द किसी गीत में प्रयुक्त होता है तो घुघूती बन जाता है अर्थात उच्चारण बदल जाता है ।
इस शब्द के साथ लगभग प्रत्येक कुमाऊँनी बच्चे की और माँ की यादें भी जुड़ी होती हैं । हर कुमाऊँनी माँ लेटकर , बच्चे को अपने पैरों पर कुछ इस प्रकार से बैठाकर जिससे उसका शरीर माँ के घुटनों तक चिपका रहता है, बच्चे को झुलाती है और गाती है :
घुघूती बासूती
माम काँ छू =मामा कहाँ है
मालकोटी =मामा के घर
के ल्यालो =क्या लाएँगे
दूध भाती =दूध भात
को खालो = कौन खाएगा
फिर बच्चे का नाम लेकर ........ खालो ,....... खालो कहती है और बच्चा खुशी से किलकारियाँ मारता है ।
मैं अपने प्रिय पहाड़, कुमाऊँ से बहुत दूर हूँ । पहाड़ की हूँ और समुद्र के पास रहती हूँ । कुमाऊँ से मेरा नाता टूट गया है । लम्बे समय से वहाँ नहीं गई हूँ । शायद कभी जाना भी न हो । किन्तु भावनात्मक रूप से वहाँ से जुड़ी हूँ । आज भी यदि बाल मिठाई मिल जाए तो ........
वहाँ का घर का बनाया चूड़ा ( पोहा जो मशीनों से नहीं बनता , धान को पूरा पकने से पहले ही तोड़ लिया जाता है ,फिर आग में थोड़ा भूनकर ऊखल में कूट कर बनाया जाता है ।) अखरोट के साथ खाने को जी ललचाता है । आज भी उस चूड़े की , गाँव की मिट्टी की महक मेरे मन में बसी है । मुझे याद है उसकी कुछ ऐसी सुगन्ध होती थी कभी विद्यालय से घर लौटने पर वह सुगन्ध आती थी तो मैं पूछती थी कि माँ कोई गाँव से आया है क्या ? मैं कभी भी गलत नहीं होती थी । यदि कोई आता तो साथ में चूड़ा , अखरोट , जम्बू (एक तरह की सूखी पत्तियाँ जो छौंका लगाने के काम आती हैं और जिन्हें नमक के सा पीसकर मसालेदार नमक बनाया जाता है ।), भट्ट (एक तरह की साबुत दाल) , आदि लाता था और साथ में लाता था पहाड़ की मिट्टी की महक ।
वहाँ के फल , फूल, सीढ़ीनुमा खेत , धरती, छोटे दरवाजे व खिड़कियों वाले दुमंजला मकान ,गोबर से लिपे फर्श , उस फर्श व घर की चौखट पर दिये एँपण , ये सब कहीं और नहीं मिलेंगे । एँपण एक तरह की रंगोली है जो कुछ कुछ बंगाल की अल्पना जैसी है । यह फर्श को गेरू से लेप कर भीगे पिसे चावल के घोल से तीन या चार उँगलियों से बनी रेखाओं से बने चित्र होते हैं । किसी भी कुमाऊँनी घर की चौखट को इस एँपण से पहचाना जा सकता है । दिवाली के दिन हाथ की मुट्ठियों से बने लक्ष्मी के पाँव ,
जो मेरे घर में भी हैं बनते हैं । वे जंगलों में फलों से लदे काफल, किलमोड़े, व हिसालू के वृक्ष । जहाँ पहाड़ों में दिन भर घूम फिर कर अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए घर नहीं जाना पड़ता, बस फल तोड़ो और खाओ और किसी स्रोत या नौले से पानी पियो और वापिस मस्ती में लग जाओ । वे ठंडी हवाएँ ,वह बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ, चीड़ व देवदार के वृक्ष !
बस इन्हीं यादों को , अपने छूटे कुमाऊँ को , अपनी स्व दीदी की याद को श्रद्धा व स्नेह के सुमन अर्पण करने के लिए मैंने स्वयं को नाम दिया है घुघूती बासूती ! है न काव्यात्मक व संगीतमय, मेरे कुमाऊँ की तरह !
घुघूती बासूती
पुनश्च : यह पढ़ने के बाद यदि अब आप मेरी कविता उड़ने की चाहत पढ़ें तो आपको उसके भाव सुगमता से समझ आएँगें ।
घुघूती बासूती
Sunday, February 25, 2007
घुघूती बासूती क्या है, कौन है ?
Labels:
kumaun,
uttarakhand,
उत्तराखंड,
कुमाँऊनी,
घुघुति,
घुघूती बासूती,
लेख
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
वाह घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने । असल मे, मै जब भी कहीं आपका कमेन्ट देखता था, मुझे बड़ा अजीब सा लगता था ये नाम कि आखिर क्या है ये घुघूती बासूती । मेरा गेस ज़्यादा से ज़्यादा गया बँगाल की ओर । सोचा शायद कोई बँगाली नाम है । आपने ना सिर्फ़ मेरी उलझन दूर कर दी वरन् इतने अच्छे से सब कुछ बयाँ किया है कि वो जीवन्त लगने लगा ।
बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी के लिये ।
पहली बार आप के इलाके के बारे में मनोहर श्याम जोशी जी की पुस्तक क्याप
ReplyDeleteसे जानकारी मिली थी । परिचर्चा में आपका अपनाया ये नाम सबके लिए कौतूहल का विषय होता था । हमें अपनी संस्कृति और लोकगीतों से परिचित कराने का शुक्रिया !
घुघुति जी,
ReplyDeleteघुघुति का वर्णन तो पहले परिचर्चा और तरुण जी के उत्तरांचल वाले चिट्ठे पर देख था, गीत भी सुना । आपने उसका विस्तृत विवरण बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया है - यहाँ तक कि उसके उच्चारण का भी स्पष्टीकरण। लोक कथा का भी बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण है।
कुमाँऊं से आपका भावनात्मक लगाव सहज ही है।
कुमाँऊं और गढ़वाल अपने शांत, सुरम्य वातावरण, सीढ़ीदार खेत व निर्मल जल के संगीतमय निर्झरों के कारण - दोनों ही मेरे प्रिय स्थान रहे हैं विशेषकर कुमाँऊं में अल्मोड़ा, कौसानी और गढ़वाल में उत्तरकाशी, गोमुख तक।
आपने बाल मिठाई की याद दिला कर अच्छा नहीं किया। खैर, मुझे तो अगले सप्ताह बाल मिठाई का स्वाद मिलेगा ही।
अंत में यह याद दिला दूं कि आपसे पूछे गये प्रश्नों की प्रतीक्षा है। यदि न देखा हो तो संदर्भ लें प्रश्नव्यूह - चिट्ठे, फिल्में, पुस्तकें और वरदान ।
Ghughuti, an Indian spotted dove ...a bird ..a song of love and a cry ..a relationship..a brother and a sister..a dance which is so beautiful ..and a great Kumaon touch !
ReplyDeleteWhy, Ghughuti Basuti?
a question, which was always creeped in mind of many people who came through this blog so far.
twitter..
the answer, Basuti(vo suti, she was sleeping)and a cry is heard .
What makes her more beautiful is that she could be seen on a mango tree, and the mangos are always found near a source of water.peace and a silence has kept.
a pretty detail of folk colourful Kumaon.
A milestone!
The song of the mountain..Echoes everyone's heart.
मैं आज इस चिट्ठे के नाम का अर्थ समझ पाया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विवरण है. मेरी सहेली भी वहीं से है.
ReplyDeleteउसके घर के आगे भी लक्ष्मी जी के पाँव रचे हुए हैं.
लोकगीत बहुत अच्छे हैं.
but ghughuti ko hindi me kya bolte hai
Deleteसारा लेख पढ़ना बहुत अच्छा लगा। आपका अपनी जन्मभूमि से जुड़ी चीजों से अनुराग, प्यार के बारे में पढ़कर मन खुश-खुश हो गया!
ReplyDeleteइस विषय पर पढ़ना एक सुखद अनुभूति रहा. एक बार पहले भी आपका इस विषय में विश्लेषण परिचर्चा में पढ़ा था. आज ज्यादा विस्तार में पढ़ कर और अच्छा लगा.
ReplyDeleteअब सही सही समझ में आया. अच्छा लेख. अपनी मिट्टी की महक में डुबे हुए शब्द.
ReplyDeleteघुघूती को देखा...पहाड़ों के बीच...माला भी थी...भाई उठा ही देता!!...
ReplyDeleteयह घुघूती दीदी का कोई संदेश भी लाई है शायद...
घुघूती का गीत आपके शब्दों में छलक रहा है....बहुत सुंदर !!
मार्मिक है ...दिल को छू गया..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा । अब समझ में आया घुघुती बासूती का मतलब ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं मार्मिक लेख ।
ReplyDeleteदेखा बन गई न बात। इसीलिए मैंने कहा था एक पोस्ट लिख डालिए नाम समझाने को। अब पहली बात तो ज्यादातर लोग समझ ही चुके होंगे और आगे से जो पूछे ये लिंक दे दीजिएगा। :)
ReplyDeleteलोककथाओं की मिठास और दर्द को आपने बखूबी अपने परिचय में उतारा है.
ReplyDeleteसच में पहाड़ों की बात ही और है. और वहां के लोग भी ऐसे जिनकी हर दिल को छू जाये. अब देखो न आपकी ये बात भी हौले से दिल को छू गई.
ReplyDeleteघुघूति बासूति का समुच्चय।'परिचर्चा' में दिए गए आश्वासन की सुन्दर पूर्ति।
ReplyDeleteमेरी बेटी है प्योली(या फ्यूँली ?)।उत्तराखण्ड के लोक गीतों में उसका जिक्र भी आता है,न?लोक कथाओं में भी?
सजीला वर्णन…नाम को वैसे भी आप सार्थक कर ही रही हैं नये-नये लम्हों के गीतों की छटा से…तरुन के चिट्ठे पर इसकी चर्चा पढ़ी थी तभी यह शब्द समझ में आया था किंतु भावनात्मक और अपने
ReplyDeleteअनुशासन में स्थित भावार्थ से उद्देश्य बदल जाता है…विस्तार दिया है…अच्छा लगा…।
आप का परिचय पा कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteThe Ghughuti Basuti tale is an example of how things in human life appear from sources as unusual as a legend ridden singing bird in the Kumaon Himalayan hills,create their own parallels in human relations, symbomizing feelings and relations, and get embodied in a larger social psyche. I have heard a similar legend about thrush found in Shimla region of Himachal. Thrush resembles a crow in colour, but is slightly bigger than house bird, and sings long rhythmic notes beginning at 5.00 o'clock in the morning. It is known as prayer bird(Largan chipa) among Himachal's Buddhist communities, and as Khlag among others. I wonder whether this is same bird.
ReplyDeleteP.C. Bodh(pcbodh@yahoo.com)
Ghughuti
ReplyDeleteBasuti
Bhaiyalo
Maisuti..
read the whole post though it's in hindi.. pretty cool.. liked it.. can't say I'm surprised, anyway.. good one!
भाई बहन की बड़ी ही मार्मिक कथा लिखी है, पढ़ते पढ़ते आँखे भर आईं। यह तो मनुष्य का प्रकृति के प्रति प्रेम है जो उस चिड़िया के लिए ये लोककथा बनी। काश! भाई अपनी बहन को जगा ही देता। आपने घुघूती की व्याख्या तो की परंतु बासूती का क्या मतलब है? क्या इसका अर्थ 'बहन सोती' है?
ReplyDelete''किन्तु जो गहराई, जो भावना, जो दर्द नौराई शब्द में है वह याद में नहीं है । नौराई जब लगती है तो मन आत्मा सब भीग जाती है , हृदय में एक कसक उठती है । शायद नौराई लगती भी केवल अपने मायके, बचपन या पहाड़ की ही है । जब कोई कहे कि पहाड़ की नौराई लग रही है तो इसका अर्थ है कि यह भावना इतनी प्रबल है कि न जा पाने से हृदय में दर्द हो रहा है ।''
वाकई इस भावना को शब्दों में नहीं समझाया जा सकता। स्त्री नानी-दादी बन जाए तब भी मायके के लिए ऐसी ही नौराई लगती है। भारत के लगभग सभी प्रांतों में बच्चों को लेकर मामा के घर जाने के गीत अवश्य होंगे। माँ बच्चे को मामा के घर जाने की बात करती है तो एक प्रकार से वह अपने मायके को ही याद करती है।
मनुष्य का बचपन जहाँ बीता हो उसकी जड़ें संभवत: वहीं होतीं हैं। वहाँ की याद आने पर जो होता है उसे बताया नहीं जा सकता। आपने जो शब्द नौराई बताया है, शायद अंग्रेजी शब्द नॉस्टेल्जिया इसी को बयां करता है। पोस्ट पढ़ के मुझे ही अपने बचपन की नौराई लगने लगी। आपने अपने अंचल का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। आप पहाड़ों की रहने वाली हैं और अब समुद्र किनारे रहतीं है। ये तो भारत के दो छोर हो गए। आपने लिखा है कि आप वर्षों से पहाड़ों पर नहीं गई और शायद जाना भी न हो। मुझे उम्मीद है कि आप कुमाँऊ अवश्य जा पाएँगी और बार बार जाएँगी।
बहुत संभव है कि वेल्स या वहॉं की अन्य जगहों से जुड़ी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति अंग्रेजी में हो भी जाए पर घुघूति बासूति की महक अपनी मिट्टी अपनी भाषा में ही हो सकती है।
ReplyDelete'पहाड़ की हूँ और समुद्र के पास रहती हूँ । कुमाऊँ से मेरा नाता टूट गया है । लम्बे समय से वहाँ नहीं गई हूँ । शायद कभी जाना भी न हो।...'
कोई पहाड़ी कैसे ये सह पाता होगा। हम तो पहाड़ के नहीं हैं पर चार महीने में एक बार न जा पाएं तो दिल उमड़ने लगता है।
अच्छा विवरण
मेरे साथी चिट्ठाकारो , कैसे मैं आप सबका धन्यवाद करूँ , समझ नहीं आ रहा है । एक नए व्यक्ति को आप सबने अपने बीच सम्मिलित कर लिया । लगता ही नहीं कि मैं यहाँ अभी हाल में ही आई थी । अपने परिवार में मुझे स्थान देने के लिए व मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteनमस्ते !
आपने कुमाऊँ का कितना सजीव चित्रण किया है कि पढकर मन प्रसन्न हो गया -
आपके नामवाली चिडिया की लोक कथा बहोत पसँद आई -
"काफल" के बारे मेँ भी सुना है कि, एक दूसरी चिडिया बोलती है, " काफल पाक्यो मैँ ना चाख्यो "
मेरे पापा जी कविवर सुमित्रानँदन पँत के घनिष्ट मित्र रहे और कुमाँऊ, अल्मोडा को बम्बई मेँ रहते हुए भी अक्सर याद किया करते थे और कहते थे कि," मैँ महानगर मेँ रहते हुए ऊब गया हूँ पहाडोँ पर जाना चाहता हूँ "
- अल्मोडो कौसानी और कुमाँउ उन्के सबसे प्रिय स्थल रहे --
आपका ये लेख पढकर उनकी भावना समझ रही हूँ
बधाई ! लिखती रहेँ
http://antarman-antarman.blogspot.com/
ये मेरी नूतन प्रविष्टीयाँ अवश्य देखियेगा और आपकी बहुमूल्य टिप्पणी भी बोल्ग पर रखने की कृपा करेँ -
स - स्नेह
--लावण्या
आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
ReplyDeleteआपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
लेख पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा...
ReplyDeleteऔर आपके नाम का अर्थ भी स्पष्ट हो गया..
अनुमान ज़रूर लगाया था कि "घुघुति बासुती" के पीछे कुछ खास रहस्य अवश्य छिपा होगा...
बहुत अच्छा लिखा है,
ReplyDeleteआनन्द चरम सीमा पर है आज आपका यह भावपूर्ण लेख पढ़कर. अभय तिवारी जी के ब्लॉग की सैर कर रही थी जिनके कारण यहाँ तक आ सकी.
ReplyDeleteसच में आपका नाम काव्यात्मक और संगीतमय है . अब मैं 'उड़ने की चाहत' पढने जा रही हूँ .
Thanks Ghughutiji, aapne mera anurodh rakhaa. kuch aur bhee likhe, kumaoun ke lokgeeton ke baare me
ReplyDeleteप्रिय घुघूति जी, आप का ब्लाग पढ कर बहुत खुशी हुई। मैं मूल रूप से मध्य नेपाल के गुल्मी जिले से हूँ, जो कहीं से भी भारतीय सीमा से नहीं लगता है, मगर फिर भी मैंने प्रस्तुत कविता अपने बचपन से ही अपनी दीदीयों से सुना हुआ है। नेपाली भाषा में भी बस कुछेक ही शब्दों की हेरा-फेरी के साथ ये लोक गीत सैकडौं सालों से पूरी की पूरी रची बसी है। देश अलग हों क्या फरक पडता है, लोक कथाएं, शब्द-शब्दावलीयाँ, मुहावरों में घुलते हुए, उलझते हुए, भाषाओं की नदीयों में बहते-डुबकियाँ लगाते हुए नदीयाँ दूर दूर तक निकल जाते हैं।
ReplyDeleteभारत हमारा पौराणिक काल से मित्र राष्ट्र रहा आया है। सो भाषिक समानताएँ तो होंगी ही। परन्तु ये नदीयाँ इतनी छोटी नही हैं। आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि नेपाली भाषा में कानूनी क्षेत्र के अधिकांश शब्दावली अरबी और फारसी से भारत के विभिन्न भाषाओं की लम्बी यात्रा पूरी करके आ पहुँचे हैं। टर्किश में बजार, साबुन, किताब, नहर और तराजू जैसे हजारों यात्री शब्दों की भरमार है। जो शताब्दियों से हिन्दी और नेपाली सहित अनेक भाषाओं में घुल-मिल गए हैं। इनको यहाँ से भी दूर दूर तक निकल विश्व यात्रा करना है।
Shukria. Aakhir-kaar mystery solve ho gayee. Bohat arsay se ham bhii is udhed bun mein the...
ReplyDeleteGhughuti ka bahut achchha varnan kiya hai. Ek jaankaaree aur-
ReplyDeleteDarasal Ghughuti maidaanon men Fakhta naam se jaani jaatee hai.
Aap Ghughuti ko Paharee Fakhtaa kah sakte hain.
Maine anek baar Fakhtaa aur Ghughuti men antar khojne ki koshish kee. Donon ek jaise hain. Ek hi antar hai- Ghughuti kaa gaan marmik hota hai, jabki fakhta ko kabhi gaate hue naheen sunaa.
Govind Singh Kholia
Respected Ghughuti Basuti ji,
ReplyDeleteAapake Blog aur uske content ke liye dhanyvad. बहुत सुन्दर. बहुत अच्छा लिखा है.
Ek Nivedan hai:
Harmar Pahad (formerly Kumaun Lok Parishad, Reg) is social cultural organization of non-resident Uttranchalis at Faridabad and working in the direction of spreading our cultural values/heritage to generation next for last 08 years
In continuation of our tradition, this year also we are going to publish our annual souvenir/magazine “Devbhoomi. To publish in “Devbhoomi” we invite articles from eminent intellectuals. You are a well known person who in actively involve in writing issues to related to “hamar pahad”. May I request you to contribute article/poem/view/stories etc. etc. to this issue ( if possible "घुघूती बासूती" + others)
Thanking you in advance.
With regards
Email: hamar.pahad@gmail.com
aapne to ekdam senti kar diya...bachpan ki yaad aa gayi...
ReplyDeleteaati sunder vernan.:)
ReplyDeleteघुघूती चिड़िया का नाम होता है ये तो पता था पर बासूती किसलिए ये आज पता चला और इसके पीछे की मार्मिक कथा भी. लक्ष्मी के पांव हमारे यहाँ भी दिवाली में बनाये जाते हैं.
ReplyDeleteऔर जिस तरह आपने बच्चे को पांव पर झुलाने का जिक्र किया है हमारे यहाँ भी होता है और उसकी पहली लाइन है...घुघुआ घुग, मलेल पुर...पता नहीं इसका मतलब क्या होता है...आज आपके तरफ की बात सुनी तो अपना गाँव बड़ी शिद्दत से याद आने लगा. ये पोस्ट बड़ी अच्छी लगी.
बासूती बोलने के समानार्थी है। इस चिड़िया की आवाज में एक अलग प्रकार की टीस होती है जो सोचने पर मजबूर कर देती है।
Deleteआपकी पोस्ट यदा कदा पढ़ता हूँ और एक दो बार टिप्पणि भी दी है. यह पोस्ट नहीं पढ़ पाया था.आपने लिंक दे कर उपकार किया.मेरे अनुमान से (सुनिश्चित नहीं हूँ) बासूती का अर्थ कुहूकने से है. घुघूती के गले में चरयो वाली बात की जानकारी मुझे नहीं थी.आपने अपनी पोस्ट के माध्यम से एक नयी जानकारी देकर एक और उपकार किया है. घुघूती का सम्बन्ध भिटौली और घुघूती बासूती के अलावा घुघूती के त्यौहार से भी है.
ReplyDeleteघुघूती के बारे में आज विस्तार से जानकारी मिली. बच्चे को घुटनों पर झुलाते हुए ऐसा ही एक गीत Bihar में भी प्रचलित है.
ReplyDelete(gandhivichar.blogspot.com)
Shukriya Aapka
ReplyDeleteआपका ब्लॉग १ दिन ऐसे ही ब्लॉग दुनिया में भटकते भटकते मिल गया....बहुत सुखद आश्चर्य हुआ ब्लॉग का नाम पढ़ के...:), मैं गढ़वाल से हूँ, और घुघूती बासूती बचपन में बहुत खेला है....:), आपने जिसे नौराई लिखा है, गढ़वाल में उसे "खुद" बोलते हैं, और १ दम सच कहा, खुद मुझे बस अपने बचपन और पहाड़ की ही लगती है..:)), पहाड़ की संस्कृति का बहुत ही सुंदर विवरण किया है, आपने इस पोस्ट में..:). भट्ट, काफल, किन्गोर, बाल मिठाई ...१ दम घर की याद दिला दी....इन्नी लिखना रा, मी या टिपण्णी गढ़वाली माँ लिखन चांदू छौ....फेर मिन सोची कुजनी ठीक से लिखे जाली भी की न.....:) चलिए keep blogging..:))
ReplyDeleteआपकी गढ़वाली पढ़कर ख़ुशी हुई. मुझे तो पहाड़ की खुद लगी ही रहती है.
Deleteसस्नेह,
घुघूती
बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी के लिये ।
ReplyDeletekuamon mei rah kar bhi apni kumaoni bhasha ka sahi uchharan bhi nahi kar paate hai.
Kumaoni teej tyoharon k visay mei agar keo lekh ho to manyawar liken. padh kar achha lagega.
this is the best one. also coz of the time when it was posted. nandankumar11@gmail
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ReplyDeleteइन शब्दों के अर्थ ने मुझे भाव-विभोर कर दिया है
मैं कितना प्रसन्न हूँ इसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकतीं
मेरा बचपन भी माँ की गोद में इन्हीं शब्दों के इर्द-गिर्द घूमा है
लेकिन मैं इनका अर्थ नहीं जानता था
मैं आपका तहे दिल से आभारी हूँ
-शुक्रिया
Sir ji,
ReplyDeletebhaav vibhor ho gaya aur likhne ki halat mei nahi hoon.aankon ka pani keyboard ko gila kiye jaa raha hai.
many thanks-Rupin
Wah Ghuguti Basuti ji, mere to aakhon mein aasun aa gaye jabki main Kumaon main rahi bhi nahi. Mere Pati Pahadon ke hain. Itna acha lekh likhne ke liye dhanyavaad!
ReplyDeleteघुघूती जी ....पैलग
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग पड़ा ...मै भी पहाड़ से हूँ और शादी के बाद मुंबई आ गई हूँ
आज आपका ब्लॉग पड़कर मै अपने आप को रोक ही नाही पाई और बस इतनी नौराई लगी की रोती ही रही मम्मी, पापा, घर और पहाड़ को याद करके ....हर एक शब्द दिल को छूने वाला है
सच मे हमारे पहाड़ जैसा प्यार, लगाव कही नाही मिल सकता
आज अपने मेरी सारी यादें ताज़ा कर दी ...और अपने जो meaning घुघूती का बताया ये तो मुझे आजतक किसी ने नाही बताया
आपका बहुत बहुत धन्यवाद...
नमस्ते सिम्मी. तीन साल पहले तक मैं भी मुंबई में थी. तब पता होता तो आपसे मिलती.
Deleteसस्नेह,
घुघूती.
घुघुती-बासुती में घुघुती का जिक्र क्या हुआ कि मेरा मन पाखी भी पंख फटफटा कर दूर अपने उन पहाड़ों की ओर उड़ चला जहां ‘घुघुती बासेंछी कुरू...रू...रू..
ReplyDeleteबचपन से अपने घर आंगन में नाज के दाने चुगती घुघुती के जोड़ों को देखता था। ईजा कहती थी, इन्हें कभी नहीं सताना चाहिए। नहीं तो, घुघुती मंदिर में जाकर जार-जार आंसू बहाती है। देवताओं को अपना दुख सुनाती है।
मेरे गांव की चिड़ियों से मिलेंगी आप? अगर हां, तो www. Apna uttarakhand.com या http://dmewari.merapahad.in के इलाके में उड़ान भरिएगा।
sir,apke dawra banayi gayi site pahali bar me hi mantermugadh kar deti h,or apne pahar ki yad dilati h. thanks for ghuguti basuti
ReplyDeleteप्यार और स्नेह से सिंची हुई यह रचना आपके एक नए रूप को दर्शाती है , ब्लागजगत में ऐसे मार्मिक और स्नेही लेख दुर्लभ होते जा रहे हैं..... ! कोई नहीं लिखता ममत्व पर भाई बहिन के स्नेह पर ...शायद आपसी स्नेह के लिए समय ही नहीं है !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
It was great reading this post.......however, I would not agree with the comment "इस शब्द के साथ लगभग प्रत्येक कुमाऊँनी बच्चे की और माँ की यादें भी जुड़ी होती हैं । हर कुमाऊँनी माँ लेटकर , बच्चे को अपने पैरों पर कुछ इस प्रकार से बैठाकर जिससे उसका शरीर माँ के घुटनों तक चिपका रहता है, बच्चे को झुलाती है और गाती है " as I have also grown listening to these words, so did my brother, sister, my wife and now my kids.......And, I am a Garhwali.....Infact, I have just posted a video of my daughter and my brother's son playing "ghuguti basuti" few days back.....It would be much better to call this as a common heritage of Uttarakhand rather than just of Kumaon as almost every other kid in Garhwal too grows with this........
ReplyDeleteYou can see my daughter and her bro sing that song on a video here on (albeit background music is very loud) www.reveda.blogspot.com
Ghuguti basuti is also used in western Nepal. I m from Assam of western Nepal origin n it's used to to make small children sleep in our society
DeleteReveda Prisha Umankshi Bhatt जी, आपकी बात से सहमत हूँ. गढ़वाल के कुछ मित्र बने हैं जिनसे यह पता चला. पिछले साल गढ़वाल की लम्बी यात्रा भी की. अब वहां से भी लगाव, जुड़ाव हो गया है.
DeleteBhatji, You have genuinely commented. ghughuti is the most known, lovely, pitiable, friendly, homely and innocent bird of Uttarakhand. Ghughuti- Basuti is as proper in Garhwal as it is in Kumaun. The adults get their kids rested on knees and move up and down singing this beautiful fun song. It still continues from our forfathers. Let it be named as a pretty bird of Hills ( Uttarakhand ) by the blogger.
ReplyDeletethanks to Ghughuti ji for the heart touching narration.
wow nice quote... i like it...
ReplyDeleteaaj ise padke mujhe apne kumaun ki bahut yaad aa rahi hai....
kyonki apna kumaun hai hi kuch aisa, ki na chahte huve bhi gaon ki yaad aane par aankhon par Aanshu aa jate hai.....
i am sorry ab main is se aage nahi likh sakta...
by the way jisne bhi ye likha hai bahut hi achcha likha hai.. aaj phir se gaon ki yaad taza ho gayi hai....i love it....
byeeeeeeeee.....
इस लेख को पढकर अपने बचपन की यादें बरबस चली आती हैं ।
ReplyDeleteAapne bahut hee acha likha hai .. man ko andar tak choo gaya apka ye article..
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाला वर्णन। पहले भी पढा था, तब टिप्पणी नहीं कर सका था। आज एक मित्र को पढाते हुए फिर से पढा। ये लोकगीत/कथा इतने मार्मिक क्यों होते हैं?
ReplyDeleteapka blog ab achchhe se pada jaan kar achchha laga.aaj bhi ye jagah kafal ,hisalu. kilmode, bhwaron. se ladi hai.
ReplyDeletemarmik post. gramin uttarakhand ka satik chitran...
bachpan ki yaad diladi.. great.!!
ReplyDeletebahut achha hai ji..
ReplyDeleteghughutiji pranaam. aap yaha se chale gaye aur mai yaha fenka gaya hu lekin bahut hi achcha lag raha hai. kabhi pahaad par aana ho to jaroor almora jile mai mujhe smaran kijiye. mai someshwar mai hu kousani se 12 km pahle.
ReplyDeleteमाफ करें आपने सुंदर जानकारी दी, किन्तु दी घुगूती तो पूरे उत्तराखंड मे पाई जाती है। मात्र कुमाऊँ मे ही नहीं। बुरा ना माने
ReplyDeleteGhughuti to pure desh me payi jati hai English me ise "dove" kahte hai. lekin garhwal me bhi ghooghuti ka utna hi mahtva hai jitna kumao me
Deletenice information...
ReplyDeleteghooguti pure to uttrakhand me hi nahi desh me payi jati ise egglish me "dove" ke naam se jana jata hai lekin uttrakhand ki lok jeevan me iska vishesh mahtva raha hai.
ReplyDeleteबताओ इत्ते साल यही सोचता रहा कि ये नाम क्या है और क्यों रखा होगा | अब फेसबुक पर मित्र भी बन गये हम तब भी लगता रहा कि रिजर्व स्वभाव कि होंगी न पूंछो और पर आज पूंछ ही डाला उत्तर में ये खूबसूरत पोस्ट पढ़ने को मिल गई |
ReplyDeletess
ReplyDeleteaaj ghughuti basuti ka matlab samajh main aaaya hai...bachpan main papa apane pairon par jhulaate hue ye gaaana gaate the ...
ReplyDeleteआपको नमन ..
ReplyDeleteकमाल की बात है के यही बहन भाई वाली कथा और यही गीत हरियाणा में भी प्रचलित है
आपको नमन ..
ReplyDeleteकमाल की बात है के यही बहन भाई वाली कथा और यही गीत हरियाणा में भी प्रचलित है
आपको नमन ..
ReplyDeleteकमाल की बात है के यही बहन भाई वाली कथा और यही गीत हरियाणा में भी प्रचलित है
छह साल बाद यहां आया हूं। इसके लिए आप अनुराग शर्माजी को धन्यवाद दे सकती हैं।
ReplyDeleteऔर घुघुती बासूती से परिचय कराने के लिए आपका आभार।
मजा आ गया...आभार..
ReplyDeleteAt the age of 49 years, I came to know about Ghughuti Basuti today. As a child, I still remember playing on the feet of my mother who sang ghugghuti basuti for me. Every person in Nepal has an experience of playing ghughuti basuti, but I wonder, if any one has understood the term ghughuti basuti. Thank you ghughuti ji. Navin Kumar Verma
ReplyDeleteThank you Navin.
Deleteजी धन्यवाद
ReplyDeletevery nice blog. loved it
ReplyDeleteThanks.
DeleteBasically from haryana...mai himachali songs me bot suna h ghughuti k bare me.vaise mje itna pta tha k ye ek pakshi ka naam but dont no still searched ghughuti on google today...n got to know such a great information...really heartthrobing article...hats off
ReplyDeleteTkank you my friend from Haryana. I was born in Haryana and you can( at least could see from 50s to 80s). I think you call them ghuggi in Haryana. It is a little almond or grey coloured dove.
DeleteMy nani, Mami and even my mom have sung ghuguti basuti to us children. I sing it to my daughter now.
ReplyDeleteHi silent historian. :) I sing it to my granddaughter now. Is it not beautiful to pass on our traditions in this way?
DeleteShaandaar post. Apne to ghar ki yaad dila di. Aapka blog main Facebook par share kar rhi hun, taaki zyada se zyada logon tak Kumaon ki khusboo pahunche. Dhanyawad ghar ki yaad dilane ke liye
ReplyDeleteJust A Writer, पोस्ट पसंद करने और फेसबुक पर शेयर करने के लिए आभार. मैं भी इसी Ghughuti Basuti नाम फेसबुक पर हूँ.
Deleteसस्नेह ,
घुघूती