Friday, March 02, 2007

मेरे उत्तर

चेतावनी ..मुझे संक्षिप्त में लिखना नहीं आता। विद्यालय के दिनों में सारांश लिखने बैठती थी तो वह मूल रचना से लम्बा हो जाता था ।
अपनी सुविधानुसार कोई भी पाँच उत्तर चुन लें, सभी समान महत्व के हैं ।
हममम् !हम तो किनारे खड़े होकर मजा ले रहे थे । भई, जुम्मे जुम्मे बीस दिन हुए थे हमें चिट्ठाकारिता में । कम ही लोगों को पता था कि कोई घुघूती बासूती नामक चिड़िया चिट्ठाकारिता के आकाश में विचरण करती है । सो हम तो अपनी गुमनामी में बहुत सुरक्षित महसूस कर रहे थे । कभी सोचा भी न था कि कोई हमारा नाम भी इस प्रश्नोत्तर के खेल में सुझाएगा । खैर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी ? सो हम भी इस चपेट में आ गए । और मजा यह कि हमें पता भी न चला । हम तो खुशी खुशी अपने छात्रों के प्रश्नपत्र बना रहे थे, हमें क्या पता था यहाँ हमारे लिए भी प्रश्नपत्र बन रहे हैं । राजीव जी, सच सच बताना, आपकी हमारे किसी छात्र से तो कोई साँठ गाँठ तो नहीं है । किसी छात्र ने तो हमारा नाम नहीं सुझाया था ? यदि ऐसा कुछ है तो अभी भी परिक्षाएँ बाँकी है और हम उसे ....
खैर, अब जब ऊखल में सिर दिया है तो मूसल से क्या डरना ? सो हम शुरू हो जाते हैं ।
प्रश्न १ आपकी दो प्रिय पुस्तकें और दो प्रिय चलचित्र (फिल्म) कौन सी है?
उत्तर ..पुस्तकें तो मेरे लिए ऐसी हैं जैसे प्यासे के लिए पानी । कुछ भी पढ़ सकती हूँ । बस शब्द हिन्दी या अंग्रेजी में होने चाहिए । हिन्दी की पुस्तकें पढ़े जमाना बीत गया है । पढ़ना चाहती हूँ पर जहाँ भी मैं रहती हूँ वहाँ मिलती नहीं । सो अंग्रेजी में मुझे एलेक्स हेली की रूट्स बहुत प्रिय है । यह अमेरिका में काले लोगों की कहानी है, कैसे उन्हें अफ्रीका से पकड़ा गया और कैसे उन्हें जहाजोँ द्वारा अमेरिका लाया गया , गुलाम बनाया गया, भागने पर सजा दी गईं आदि
आदि । यह पुस्तक किसी का भी दिल दहलाने के लिए काफी है । मैं इसे पढ़कर अपने आँसू काबू नहीं कर पाई । यह पुस्तक पढ़े जमाना बीत गया पर आज भी किन्टा कुन्टे(या शायद कुन्टा किन्टे), इस पुस्तक का नायक, मेरे मानस पटल पर बसा हुआ है । मेरे लिए किन्टा उतना ही जीवन्त है जैसे मैं स्वयं । इस पुस्तक ने मुझे सिखाया कि मृत्यु से भयानक हो सकता है जीवन । स्वतन्त्र मरना गुलाम जीने से बेहतर है ।
दूसरी पुस्तक ऐन रैन्ड की एटलस श्रग्ड हो सकती है । दरसल बहुत सारी हो सकती हैं । किसी एक पुस्तक को दूसरे से बेहतर कहना ठीक वैसा ही है जैसे अपने एक बच्चे को दूसरे से अधिक चाहना ! फिर भी राजीव जी ने कहा है सो करना पड़ेगा । इस पुस्तक में , जैसा कि इस लेखिका की हर पुस्तक में होता है समाजवाद की धज्जियाँ उड़ाई गईं हैं । मैं उससे शत प्रतिशत सहमत हूँ । यहाँ मैं यह बता दूँ कि मैंने समाज के दोनों पहलू देखें हैं । जन्म लिया कामगार वर्ग में और आज मेनेजमेन्ट वर्ग में पत्नी के रूप में हूँ । सो दोनों वर्गों का दर्द समझ सकती हूँ । जानती हूँ कि पिताजी के पास हमारे लिए व अपने लिए, अपने भगवान के लिए समय था पर मेरे पति के पास स्वयं के लिए समय नहीं है । हर समाज में लगभग १ प्रतिशत या उससे भी कम ऐसे लोग होते हैं जो समाज की गाड़ी चलाते हैं, क्यों , पता नहीं । पर वे चलाते जाते हैं ओर उन्हीं के बल पर यह समाज टिका हुआ है । अब आप चाहें तो उन्हें सूली पर लटका दें । पर यह सच है ।
चलचित्र... मैं देखती ही नहीं । देख सकती भी नहीं , क्योंकि कोई थिएटर कभी भी आसपास नहीं था । अपने कॉलेज के दिनों में जब टेबल टेनिस के लिए अपनी यूनिवर्टी के लिए मैच खेलने लखनऊ गई थी तब कुछ फिल्में देखी थीं । तब ही बैजू बाँवरा देखी थी । उसके गाने मुझे इतने पसन्द आए कि अगले ही दिन फिर से देखने पहुँच गई ।
दूसरी साहिब बीबी और गुलाम हो सकती है । बहुत सी स्त्रियाँ उस फिल्म की नायिका मीना कुमारी जितनी ही अकेली हैं । कारण कुछ भी हों , पति जो भी करे, अच्छा या बुरा, अकेलापन तो अकेलापन ही है । आप अपने पति पर गर्व कर सकती हैं किन्तु अकेलेपन का दंश इससे कम नहीं होता, सो मैं उसका दर्द समझ सकती हूँ । अन्तर इतना ही है कि आप अपने जीवन को कौन सा मोड़ देंगे । मेरा मोड़ रचनात्मक रहा । पढ़ना लिखना मेरा जीवन बन गया । मीना कुमारी उस फिल्म में यह न कर सकी ।
प्रश्नन २ इन में से आप क्या अधिक पसन्द करते हैं पहले और दूसरे नम्बर पर चुनें - चिट्ठा लिखना, चिट्ठा पढ़ना, या टिप्पणी करना, या टिप्पणी पढ़ना (कोई विवरण, तर्क, कारण हो तो बेहतर)उत्तर ....चिट्ठा लिखने से तो कुछ भी बेहतर है । .चिट्ठा लिखना कुछ कुछ बच्चे को जन्म देने जैसा है, सो कठिन है । पढ़ना सबसे सरल है । पर टिप्पणी करना दूसरे दर्जे की सरलता में आता है । इसमें तर्क की बात ही कहाँ से आती है ? दूसरे के बच्चे को पुचकारना अपना बच्चा पैदा करने से कभी भी सरल है ।
वैसे एक बात है , मुझे लगता है चिट्ठा लिखना , पढ़ना ,टिप्पणी करना व पढ़ना हमें एक दूसरे के विचारों से मिलवाता है। यदि आपको आपत्ति न हो तो कहूँगी कि ..
It's a kind of meeting of minds. Minds that get free from the limitations of physical bodies, time and space and and in the cyberspace they meet, touch, influence and merge . I think , this cyber world , blogging and chatting are about the best things that happened to humankind in the last century. No other means of communication can compete with it. I am sure, the net is going to make the world a better place, because we are learning to share ideas and understand each other much better than ever before.
बस एक ही बुराई है इस सबमें कि यह सब पुस्तकें पढ़ने के समय पर डाका डालता है ।
प्रश्नन ३ आपकी अपने चिट्ठे की और अन्य चिट्ठाकार की लिखी हुई पसंदीदा पोस्ट कौन-कौन सी हैं?(पसंदीदा चिट्ठाकार और सर्वाधिक पसंदीदा पोस्ट का लेखक भिन्न हो सकते हैं)उत्तर ...यह भी कठिन है । अपनी बताना तो सरल है क्योंकि हमें तो जुम्मे जुम्मे बीस दिन हुए हैं । सो मेरी कविता उड़ने की चाहत मेरी सदा पसंदीदा पोस्ट रहेगी । क्योंकि मैं सच में उड़ना चाहती हूँ । मैं अपने सपनों में भी उड़ती हूँ । दुर्भाग्य से उस ही पोस्ट को सबसे कम लोगों ने पढ़ा । पर वह ही मेरी कहानी कहती है ।
मेरे खयाल से बचपन से ये उड़ने के स्वप्न देखना शायद हर प्रकार की स्वतंत्रता के प्रति मेरा दृढ़ विश्वास ,आस्था व लगन दर्शाता है । मुझे किसी भी प्रकार के बंधन सह्य नहीं हैं । न मैं किसी प्रकार की पराधीनता को स्वीकार कर सकती हूँ न किसी पर यह थोप सकती हूँ । यह स्वतंत्रता से प्रेम इस सीमा तक है कि मैं कभी एन सी सी आदि को भी न सह सकी। मैं किसी के कहने पर क्यों बाँया पैर उठाऊँ मुझे कभी समझ नहीं आया । बात हास्यास्पद तो है किन्तु सच है।
अन्य चिट्ठाकार में सृजन शिल्पी की सुभाष चन्द्र बोस पर लिखी पोस्ट है । वैसे उनकी गाँधी जी पर लिखी पोस्ट भी पसन्द है, जिससे मैं कतई भी सहमत नहीं हूँ ।
मुझे सुनील दीपक के कैमरे से कैद कुछ चित्र बहुत पसन्द हैं । उनकी समलेंगिकों पर लिखी रचना भी अच्छी लगी ।
प्रश्न4. आप किस तरह के चिट्ठे पढ़ना पसन्द करते हैं?
मैं भावना प्रधान व्यक्ति हूँ । सो भावनाओं से ओत प्रोत चिट्ठे पसन्द हैं । पर जानती हूँ जीवन भावनाओं से परे भी कुछ है । सो सब तरह के चिट्ठे पढ़ती हूँ । हास्य भी अच्छा लगता है । मुझे नई पीढ़ी के लोगों का लिखा पढ़ना पसन्द है क्योंकि मुझे लगता है कि वे ही संसार को बेहतर बनाएँगे और उनके चिट्ठों से उनकी नब्ज पहचानी जा सकती है । प्रसन्नता की बात यह है कि वे अच्छा लिखते हैं , अच्छा सोचते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वे हिन्दी में लिख रहें हैं सो मेरा यह संशय कि हिन्दी लुप्त हो जाएगी दूर हो गया है ।
प्रश्न ५ चिट्ठाकारी के चलते आपके व्यापार, व्यवसाय में कोई बदलाव, व्यवधान, व्यतिक्रम अथवा उन्नति हुई है(जो किसी व्यवसाय अथवा सेवा में नहीं हैं वे अन्य प्रश्न चुनें)
नहीं भाई, कुछ बदलाव नहीं हुआ है सिवाय इसके कि लगता है कि कोई हमारी भी सुन रहा है । और यह भी पता चल गया कि हम ही एक भावुक अजूबे नहीं हैं बहुत से और भी इस रोग से ग्रस्त हैं । अभी तो यहाँ नई हूँ पर लगता है यह मुझे शायद एक बेहतर अध्यापिका भी बना दे ।
6. आपके मनपसन्द चिट्ठाकार कौन है और क्यों?
यह तो पिटवाने वाली बात है । कैसे कहें कौन पसन्द है ? बाँकी लोग हमारा चिट्ठा पढ़ना बंद न कर देंगे ? सो भाई लोगों हमें माफ करना, इसका उत्तर नहीं दे सकते । सो अब क्या कहें ? किसी बच्चे का नाम ले सकते हैं पर वह हमें शायद माफ न करे । कुछ नवयुवक हैं जो हमारे भविष्य हैं । उन्हें मेरा सादर प्रणाम !
7. अपने जीवन की सबसे धमाकेदार, सनसनीखेज, रोमांचकारी घटना बतायें(इसके उत्तर में विवाह की घटना का उल्लेख मान्य नहीँ है ;) )
भई ऐसा धमाका हुआ था कि आज तक नहीं भूले हैं । न कभी भूल पाएँ । आशा है बच्चे इसे नहीं पढ़ रहे । यह घटना एक पल ,एक दिन या एक सप्ताह की भी नहीं है । कुछ इतना खिंच गई कि लगभग बीस दिन चली ।
चलो छोड़ते हैं इसे और अगले प्रश्न को हल करते हैं । वैसे ही बहुत लम्बा खिंच गया है
8. आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है? और क्यों?उत्तर बहुत से लोगों से मिलना चाहूँगी । अपने परिवार के सदस्यों के अलावा मैं आजतक किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जिसकी पढ़ने में रुचि हो । कारण मेरा जन्म से लेकर आजतक का जिया वनवास है । सो अपने जैसी रुचि वालों से मिलना सौभाग्य होगा । कैसा लगेगा जब पुस्तकों पर चर्चा होगी ! जब शब्दों से खेलेंगे! मुझे शब्द बहुत मोहित करते हैं । कई बार तो वे मनुष्यों से भी अधिक जीवंत लगते हैं । अच्छे अच्छे शब्द जब मुख से निकलते होंगे तो कैसा लगता होगा ! आजतक तो वे मुझे केवल पुस्तकों में से झाँकते ही मिलते हैं । जब चर्चा मुद्दों पर होगी, कुछ बहस भी हो शायद !
मैं सुनील दीपक जी से मिलना चाहूँगी क्योंकि कुछ विषयों पर उनके विचार मुझे कुछ कुछ अपने जैसे लगे । वैसे अभी कम दिन हुए हैं मुझे यहाँ आए इसलिए कोई भी धारणा बनाना गलत होगा । सृजन जी व उनकी पत्नी से मिलना चाहूँगी । वैसे हमारे विचार बहुत अलग हैं शायद ।
या शायद न मिलना चाहूँ , कहीं ऐसा न हो जीवन के बहुत से अन्य भ्रमों की भाँति पढ़ने लिखने का चाव रखने वालों के बारे में जो मेरा विचार है वह भी न टूट जाए ।
आशा है यदि प्रथम श्रेणी न भी दें तो उत्तीर्ण तो राजीव जी कर ही देंगे ।
धन्यवाद ।
मुझे नहीं लगता कि कोई भी सदस्य अब तक उत्तर देने से बचा होगा ।
खैर हम पूछ ही लेते हैं ।
मेरे प्रश्न ये है
प्रश्न१ एक अच्छी पुस्तक और एक अच्छे टी वी कार्यक्रम में से आप क्या चुनेंगे ?
प्रश्न२ यदि एक सप्ताह तक आपको कमप्यूटर से दूर रहना पड़े तो आपको कैसा लगेगा ?
प्रश्न३ यदि आपकी सलाह से भगवान काम करने लगे तो आप उसे पहली सलाह क्या और क्यों देंगे ?
प्रश्न४ यदि आपको किसी पत्रिका का सम्पादक बना दिया जाए तो आप किन चिट्ठाकारों की रचनाएँ अपनी पत्रिका में छापेगें ?
प्रश्न५ यदि आपको जीवन का कोई एक दिन फिर से जीने को मिले तो वह कौन सा होगा और क्यों ?
मैं ये प्रश्न जिनसे पूछना चाहती हूँ उनके नाम हैं ...
अचानक गणित याद आया, मेरा प्रिय विषय और मैं क्या मूर्खता करने जा रही थी ? यदि हर व्यक्ति ५ लोगों से प्रश्न पूछेगा और यह क्रम चलता रहेगा तो यदि १ व्यक्ति से आरम्भ करें तो ५वें राउन्ड तक ७८१ लोग उत्तर दे चुके होंगे । तो अब मेरी पकड़ में कौन आएगा ?
फिर भी यत्न तो करा ही जा सकता है। मैं ये प्रश्न जिनसे पूछना चाहती हूँ उनके नाम हैं .
१ अभय तिवारी जी
२ अतुल शर्मा जी
३ देवेश वशिष्ठ जी
४ पूनम जी
५ रजनी भार्गव जी
देर से उत्तर देने के लिए क्षमा चाहती हूँ । जब आपको पता चलेगा कि मेरा आधे से भी अधिक समय नेट कनेक्ट करने में जाता है और मेरे नेट की गति कभी ४.५ के बी पी एस तो कभी १४ होती है तो आप मुझे अवश्य क्षमा कर देंगे ।
और अपने नेट से संघर्ष करते अभी अभी मान्या जी के उत्तरों पर पहुँची तो पाया उन्होंने भी प्रश्न किये हैं । सो रात के ढाई बज रहे हैं , अब अपनी यह उत्तर पुस्तिका जमा कराती हूँ, मान्या जी के उत्तर अगले अंक में ।वैसे अब सुबह के ४ बजने वाले हैं और मेरा नेट से युद्ध जारी है । पर आज भेज कर ही रहूँगी ।
घुघूती बासूती

4 comments:

  1. घुघुती बासुतीजी,मैं भी अपने प्रिय पुस्तक में "रूट्स" के बारे में लिखना चाहती थी.अच्छा हुआ आपसे सुना.मुझे बहुत पसंद है . कुन्ता किन्ते की विवशता पर दिल दहल जाता है .आपने उत्तर माँगे हैं पर राजीव ने मुझे भी टैग किया था इसलेये मेरे जवाब मेरे चिट्ठे पर मौजूद हैं.

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  2. Question is the answer. so it's important to ask questions. In the world of keys .. I am agree with my beloved Ghughuti ..Haha!
    From the East you toss to me
    the sun over comb of sea
    And I to you the moon each morn
    for safe-keeping as you sleep.

    Abhi
    http://007abhijeet.blogspot.com

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  3. आपको हिन्दी में लिखते देखकर बहुत खुशी होती है। आपके परिवार का विस्तार हो गया है और निश्चय ही आपको यह महसूस भी हो रहा होगा। स्वतंत्रता के लिए आपका दीवानापन और अहैतुकी प्रेम की भावना ही वह बात है जो मुझे आपमें सबसे अच्छी बात लगती है।
    आपसे मिलने की आकांक्षा तो मेरे मन में भी रही है। लेकिन शायद आपके मन की दुविधा या आशंका ही वह वजह रही होगी, जिसके कारण मुलाकात के संयोग उपलब्ध होने के बावजूद हमलोग आज तक मिल नहीं पाए। मेरे ख्याल से, विचारों की असहमति अलग बात है और अच्छे रिश्ते होना बिल्कुल अलग बात। वैसे भ्रम पर किसी रिश्ते का टिका होना अच्छी बात नहीं है। यदि कोई ऑनलाइन रिश्ता किसी भ्रम पर टिका है तो बेहतर है कि वह टूट जाए।

    वैसे, अब तक कई चिट्ठाकारों के साथ प्रत्यक्ष मुलाकात के जो अनुभव रहे हैं, उसके आधार पर यह कह सकता हूँ कि ऑनलाइन परिचय के आधार पर एक-दूसरे के बारे में बनी हमारी धारणा प्रत्यक्ष मुलाकात के बाद और अधिक बलवती और घनिष्ठ ही हुई है। देबाशीष जी, शशि सिंह जी, नीरज दीवान जी, जगदीश भाटिया जी, अमित गुप्ता जी, पंकज बेंगानी जी, अनूप शुक्ला जी आदि कई चिट्ठाकार हैं, जिनसे मुलाकात के बाद लगा कि हमलोग लंबे अरसे से एक-दूसरे को जानते रहे हैं। कई चिट्ठाकारों से मुलाकात तो नहीं, किन्तु फोन पर बात हुई है। कई चिट्ठाकार घर भी आ चुके हैं। पेन नेम के अलावा मैं किसी अन्य मुखौटे का इस्तेमाल नहीं करता। आपके लिए तो यह मुखौटा भी नहीं है। आपसे ऑनलाइन परिचय चिट्ठाकारी से पहले की है।

    वैचारिक असहमतियों का मैं हमेशा स्वागत करता हूँ, किन्तु उसके कारण आज तक किसी के साथ मेरे रिश्ते खराब नहीं हुए।

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  4. धन्यवाद पढ़ तो लिया किन्तु बहुत कठिन लगा पढ़ना।
    किसी को भी दबाना है तो पहला काम यह करना होता है कि उसका आत्मसम्मान खत्म कर दो। अंग्रेजों ने भी यही किया। और वे यहाँ धन कमाने, साम्राज्य करने आये थे कोई हमसे मिलने या हमारी सभ्यता सीखने तो नहीं। सो कोई आश्चर्य नहीं।
    घुघूती बासूती
    आपकी इस सोच का मै पुर्ण समर्थन करता हू
    बासुति जी कभी आपने सोचा है कि यह सिर पर मैला उठाने की प्रथा कब से शुरु हुई ये हिन्दुओ को पददलित करने का उनके मनो बल को तोडने का एक ढंग था मुस्लिम आतातायियो द्वारा

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