तुम बिन
आज हम अकेले हैं इतने
सबसे दूर निकल आये हैं कितने
जो तुम थाम लो पल भर को
थकी साँसों को सहारा मिले तेरी साँसो का
थकी बाँहों को मिले सहारा तेरी बाँहों का
तू बुला ले मुझे समीप इतने
तेरी खुशबू के पहन लूँ मैं गहने।
खोई हुई हूँ तेरे खयालों में
उलझी हुई हूँ मैं सवालों में
क्यों रूठा हुआ है जीवन हमसे
रुकी हुई हूँ बँधी झरने की धारा की तरह
ठहरा हुआ है समय बाँध के पानी की तरह
तू तोड़ दे इन सारे किनारों को
मिलने दे अपने में ए सागर मुझको ।
टूटे हैं हम कुछ इतने
छूटे हैं जबसे कोई अपने
खो गया है आलम्बन मेरा
भूले तुम कि लता जीती नहीं बिन तरू के
कि घटा होती नहीं घटा बिन जल के
बिन मेरे तुम भी तो मेहुल हो अधूरे से
भर ले अपने बादलों को मेरे जल से ।
जल रही हूँ मैं तुम बिन,बिन लौ के दीए की तरह
भटक रही हूँ मरूस्थल में प्यासी हिरनी की तरह
आ जाओगे जो तुम मेरी दुनिया में
खिलने लगेगें पुष्प फिर से पतझड़ में
उड़ने लगेगीं तितलियाँ फिर से उपवन में
तुम जल तो मैं कमलिनी बन जाऊँगी
तुम फूल तो मैं तेरी महक बन जाऊँगी ।
घुघूती बासूती
Friday, February 09, 2007
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भावनाओं से ओत-प्रोत अत्यंत सुंदर रचना…एक-एक शब्द हृदय को छू गये…पहली बार यहाँ पर आया हूँ कुछ अच्छी सी बाते पढ़कर जारहा हूँ…बधाई!
ReplyDeleteधन्यवाद divine india जी । मैंने भी आपकी रचना आज पहली बार पढ़ी ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ekdam kat miththi se hai apki bhaasha... "kamalini" aur mahak ek saath, ek saath likha hai.. thaki sanson ko sahara mile teri sanson ka aur fir "tu bua le mujhe sameep itane".
ReplyDeleteBahati huye se geet, par pure pake huye vicharon ke saath, thode se akharate se lage. Par saralata ka apana alag hi madhurya hai...
Bhavon ke baare me kuch bhee kahna, mere liye sambhav nahi, mere hriday ko chu bhi nahi paaye ye bhaav, kyonki aisa koi vyaktigat anubhav nahi...
कविता बहुत अच्छी लगी। क्षमा कीजियेगा "घुघूती बासूती" मैने कभी लिखा, पढ़ा, सुना नही है। कृपया कुछ प्रकाश डालें।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बासुती जी
ReplyDeleteआपकी कवितायें बिना शीर्षक ही आ रही हैं, क्यों कि आपने Title option को बन्द कर रखा है, इसे चालू करने के लिये-
Dash Board- Settings- Formatting में जाकर Show Title field में No को हटाकर Yes करना होगा।
खोई हुई हूँ तेरे खयालों में
ReplyDeleteउलझी हुई हूँ मैं सवालों में
क्यों रूठा हुआ है जीवन हमसे
रुकी हुई हूँ बँधी झरने की धारा की तरह
bahut hi sunder rachna likhi hai aapne ..yahan aa ke isko padhana aacha laga !!
बहुत ही सुन्दर कविता, हमेशा की तरह बेहतरीन।
ReplyDeleteसुन्दर कविता, आखिरी पैराग्राफ (कविता में क्या बोलते हैं इसको) खास पसंद आया।
ReplyDeleteसागर भाई वाली बात मैं भी कहने की सोच रहा था।
घुघूती जी, मेरी तरह आप भी अपना नाम समझाने हेतु एक पोस्ट लिख डालिए। फिर जो भी पूछे लिंक दे दीजिए।
ReplyDelete" tu bula le mujhe sameep itne,
ReplyDeleteteri khushboo ke pahan lun mai gahane"
"mere bin tum bhi to ho mehul adhure se"
apni tanhaai, aur priya ke adhurepan ka achcha sangam hai...
i dont know what to comment but do want to write two lines in your praise the peom is very good and the words used is excellant and the feeling is so powerful that it make me think that who is this घुघूती बासूती
ReplyDeletei dont know what to comment but do want to write two lines in your praise the peom is very good and the words used is excellant and the feeling is so powerful that it make me think that who is this घुघूती बासूती
ReplyDeleteबडी अच्छी तरह से भावनाओं को व्यक्त किया है।
ReplyDeleteघूघुती बासूती उत्तरांचली (कुमाऊँनी) शब्द है, बचपन में बहुत सुना है घूघुती बासूती। घूघुती वास्तव में एक चिडिया का नाम है, आपने मेरे उत्तरांचल की साईट पर शायद गाना सुना हो "घूघुती ना बासा, आमे की डाई मा" (http://www.readers-cafe.net/uttaranchal/?p=10), गढवाली में भी एक गीत है "घुघूती घुराण लगे मरे मैत की" ये गीत भी मैं आपको जल्द ही सुनाऊंगा । बासुती (Adhtoda basica) एक हमेशा हरी रहने वाली श्रब है जिसको ईलाज के लिये भी काम में लाते हैं।
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ReplyDeleteधन्यवाद उपस्थित जी, मिश्रा जी, नाहर जी, रन्जू जी, जोशी जी, श्रीश जी, मान्या जी, तरुण जी, प्रभाकर जी व man1 जी । आप सब ने मेरी कविता पढ़ी व उसपर टिप्पणी की, अपने सुझाव दिये, मैं आभारी हूँ ।
उपस्थित जी, मैंने आपकी टिप्पणी पढ़ी और आपके चिट्ठे पर जाकर आपकी कविताऐँ पढ़ी । यदि कविता के भाव आपको छू न सके तो इसमें कविता का व उसको लिखने वाली का दोष है । यह आवश्यक नहीं है कि हर भाव की अनुभूती के लिए हर किसी के जीवन में सब कुछ घटे ।
अतः व्यक्तिगत रूप में आप इन भावनाओं से न भी परिचित हों तब भी यदि कविता जीवंत होती तो आप अवश्य अनुभव करते । हो सके तो अन्य कविताओं को भी पढ़िए ।
मिश्रा जी, अपने नाम के चिषय में मैं पिछली कविता की टिप्पणी में लिख चुकी हूँ ।
घुघुती एक पहाड़ी चिड़िया का नाम है । कुमाऊँ ,याने उत्तराँचल में इस चिड़िया का बहुत महत्व है । अनेक गीतों व लोरियों में इसका उल्लेख होता है ।शायद ही कोई कुमाँउनी बच्चा होगा जिसकी माँ ने घुघूती बासूती गाकर उसे खिलाया या सुलाया न हो । मैंने अपना यह नाम रखकर अपने प्यारे पहाड़ को अपना प्रणाम कहा है ।
विस्तार से एक अलग से चिट्ठा लिखूँगी ।
नाहर जी कुछ कठिनाई आ रही है Dash Board खुल ही नहीं रहा है । वैसे भी मेरे पास ब्रौड बैन्ड नहीं है और मेरा कनेक्शन बहुत धीमा है ।
श्रीश जी, हाँ अपने नाम के विषय में एक अलग चिट्ठा लिखूँगी ।
man1 जी, कभी अपना परिचय भी दूँगी , वैसे परिचर्चा में दे रखा है ।
हाँ तरुण जी, मैं आपके चिट्ठे पर गई थी व सब गीत पढ़े थे । धन्यवाद ।
पर उसमें घूर घुघुती घूर घूर नहीं था ।
एक बार फिर आप सबका धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
Ghughutibasuti ji
ReplyDeleteaap ki kavita THUM BIN ... maha kaviyitri mahadevi varma ke chhaya waad se prabhaawit lagthi hai ....mai neer bhari duukh ki badli.....
prem insaan ke jeewan ka sabse imp pahlu hoti hai ..bhakt ka apne bhagwaan se ya premika ka apne premi se milne ki gahri vedna aap ki kavita me jhalkti hai
bhushan
धन्यवाद भूषण जी, आपने तो बहुत बड़ी बात कह दी । यदि मेरी कोई पंक्ति भी उनकी याद दिलाए तो मेरा सौभाग्य है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/