Saturday, December 11, 2010

नाम में क्या धरा है? शेक्सपियर से नहीं, मुन्नी व शीला दो बहनों से पूछो।

जी हाँ, पूछो मुन्नी व शीला नामक दो बहनों से। मैं पहले भी 'नाम' के बारे में लिख चुकी हूँ। मेरा ब्लॉग नाम 'घुघूती बासूती' क्यों है, स्त्रियों का नाम बदलना 'भावनात्मक अत्याचार' है, उन्हें व्यक्ति से थोड़ा कम समझना है, आदि आदि मैं लिख चुकी हूँ। किन्तु कोई न कोई शेक्सपियर भक्त आकर 'नाम में क्या धरा है'? 'किसी भी नाम से गुलाब गुलाब ही रहेगा' आदि ज्ञान देकर चलता बनता था। अरे भाई किसी 'रोज़' नामक स्त्री को 'जैस्मीन' कहकर पुकारो। 'राम नाम सत्य है' कि जगह 'रावण नाम सत्य है' कहते हुए जरा किसी शवयात्रा में जाकर देखिए। छोड़िए, रावण क्या 'कृष्ण नाम सत्य है' ही कहकर देखिए। यदि 'शेक्सपिरियन दर्शन' ठिकाने न लग जाए तो मैं मानूँगी कि भारतीय समाज गजब का सहिष्णु हो गया है। भारत जैसे देश जहाँ राजनीति व शासन पिछले ६३ वर्ष से केवल 'परिवार नाम' के इर्द गिर्द घूम रहा है, में यदि हम नाम का महत्व न स्वीकारें तो यह आँखें मूँदने सा होगा।

खैर, वह भी जाने दीजिए। अभी तो आप फिल्मी संसार, प्रसिद्ध कुप्रसिद्ध गीतों, नाच आदि में किन्हीं बेचारी दुर्भाग्यवान स्त्रियों के नाम के उलझने की दुखद कथा सुनिए। प्रायः कहते सुना है कि 'अपनी करनी का फल' भोगना पड़ता है किन्तु यहाँ तो किसी गीतकार, फिल्मनिर्माता की तिजोरी भरती है और कोई मुन्नी बेचारी मुफ्त में 'बदनाम' हो जाती है। उस बेचारी ने तो जीवन में कभी एक ठुमका तक नहीं लगाया होता, कोई गीत नहीं गुनगुनाया होता, तो भी उसका जीना हराम हो जाता है।

मेरी कल्पना को 'अत्यधिक सक्रियता' की बीमारी है, सदा 'ऊँचे गियर' पर मस्तिष्क की कल्पनाओं की गाड़ी दौड़ाती है। बहुत दिन से मुन्नी के लिए चिन्तित थी। बचपन में कितनी ही मुन्नियों को जानती थी। एक प्रिय मुन्नी तो हमारे ही परिवार की सदस्य थी। सोचती थी कि यदि यह गीत तब आया होता, उसपर भी यदि तब टी वी भी रहा होता, तो मैं कैसे सारे जग से, कक्षा से अपनी मुन्नी दी के लिए भिड़ रही होती। न जाने कितनी ही बहनें, बेटियाँ व शायद भाई व पुत्र भी अपनी मुन्नी दी, बिटिया या अम्मा के लिए संसार से भिड़ रहे होंगे। फिर जब 'शीला' जी का आगमन हुआ तो सोचने लगी कि यदि किसी माता पिता ने दुर्योग से अपनी दो बेटियों का नाम मुन्नी व शीला रखा हो कैसे माथा पीट रहे होंगे।

किन्तु 'कल्पना व सत्य में बहुत अधिक दूरी नहीं होती'। मेरा यह विश्वास तब और पक्का हो गया जब मैंने कुछ दिन पहले 'मुम्बई मिरर' में समाचार पढ़ा कि सच में ठाणे की दो बहनों का यही नाम है व इन गानों ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है़ यहाँ तक कि वे अपना नाम तक बदलने को मजबूर हो गई हैं।
कहते हैं न कि 'जा के पैर न फटी विबाई वो क्या जाने पीर पराई'! शीला भी पहले अपनी बहन मुन्नी का कष्ट ठीक से नहीं समझ पा रही थी किन्तु 'शीला की जवानी' ने आकर उसे नाम का दर्द क्या होता है सही सही समझा दिया।

दोनों बहनें जो कोई बच्चियाँ नहीं बल्कि स्वयं बच्चों की माएँ हैं वे घर से बाहर नहीं जा सकतीं। बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जा पातीं क्योंकि जहाँ भी वे जाती हैं ये गीत लोगों के होठों पर बरबस बजने लगते हैं। अब तो लोग मजाक में उन्हें एस एम एस भी करने लगे हैं कि कौन सा गीत आगे है, मुन्नी बेहतर है या शीला।

गीतकारों का अधिकार है कि कोई भी नाम गीत में डालें। हम तो बस यही कह सकते हैं कि 'भाग्य सदा हमारे बनाए नहीं बनता' कभी कभी बड़े ही अटकलपच्चू यानि रैन्डम तरीके से आकर हमारे या किसी के जीवन को बिन बात उथल पुथल कर जाता है। शेक्सपियर या किसी और के कहने से कुछ नहीं बदलता। यदि विश्वास नहीं है तो किसी पप्पू, मुन्नी या शीला से पूछो।

घुघूती बासूती

43 comments:

  1. 'भाग्य सदा हमारे बनाए नहीं बनता' कभी कभी बड़े ही अटकलपच्चू यानि रैन्डम तरीके से आकर हमारे या किसी के जीवन को बिन बात उथल पुथल कर जाता है।

    मुन्नी और शीला ने तहलका मचा रखा है ....पप्पू तो चल गया क्यों कि लड़का था बेचारी ये लडकियां क्या करें ...मुम्बई मिरर भी पढ़ा ..सच बहुत दुखद है मुन्नी और शीला के लिए ...

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  2. आप दोनों ( खुशदीप सहगल http://deshnama.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html ) ने एक ही नाम से दो पोस्टें लिखी हैं ...यही है नाम की महत्ता :-)

    हमारे समाज की मानसिकता बताने की कोशिश करती हुई एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई घुघूती जी !
    इसमें हम सब जिम्मेवार है जिसमें एक दूसरे का आदर करना नहीं सिखाया जाता ...हाँ हमें दूसरों से आदर अवश्य चाहिए !
    यही विडम्बना है !
    सादर

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  3. अललटप्पू यानि रैन्डम ! अटकलपच्चू पर ’शब्द-चर्चा’ में चर्चा होनी बाकी है !

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  4. वैसे आजकल मुन्ना-मुन्नी का दौर हैं .बहुत सटीक व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति .... .. हा हा हा .... आभार

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  5. जी सहमत है आप की बात से.बहुत बढ़िया व्यंग्य लिखा है.
    मुन्नी और शीला नामों के गीतों ने जिस तरह से हाहाकार मचा दिया ..देख सुनकर समाज की बदलती मानसिकता के बारे में मालूम चलता है .
    -----

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  6. नाम में क्या रखा है...लोंग अक्सर कह जाते हैं...पर नाम बदलने से अपनी पहचान अपना अस्तित्व बदल जाता है... .भूल जाते हैं लोंग

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  7. अभी खुशदीप जी के ब्लोग पर भी यही पढा…………लेकिन वहाँ अजीत जी ने एक प्रश्न उठाया जो काफ़ी हद तक सही भी लगता है कि सिर्फ़ ये ही दोनो तो मुन्नी और शीला नही है पूरे देश मे ना जाने कितनी औरतो के नाम होगे मगर वो सामने नही आयी ना ही आपत्ति जताई उनका कहना है कि कही ये सब नाम पाने का चक्कर तो नही…………और उनका ये प्रश्न भी अपनीजगह ठीक लगता है।

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  8. मान गए जी , नाम में ही सब कुछ धरा है ।
    वैसे कभी कभी नाम भी एक मुसीबत न बनकर लाभकारी भी साबित हो सकता है ।

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  9. नाम तो पहचान है। इसमें कोई शक नहीं। पर यह बहस बेफिजूल की है। इसके पहले भी बहुत से गाने चर्चित हुए हैं और उनमें भी किसी न किसी के नाम थे। केवल इतना ही नहीं फिल्‍में ही नहीं बाकी क्षेत्रों में भी लोगों के ऐसे नाम होते हैं जिनमें बदनामी जुड़ी होती है। अब लोग अगर इससे घबराने लगें तो फिर तो दुनिया चलेगी ही नहीं।
    *
    हां मैं इससे भी सहमत हूं कि लोगों को एक दूसरे का आदर करना सीखना चाहिए।

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  10. वंदना जी और राजेश उत्साही जी कि बात से सहमत हूँ और मुझे भी मामला थोडा जरुरत से ज्यादा ही खीचा गया सा लगता है. इससे पहले भी इस प्रकार के कई गाने आए हैं जिनमे किसी नाम को लेकर बात कही गयी है. और फिर लाखो शीलायें और मुन्नियाँ भारी पड़ी है इस देश में. मेरी गली में ही तीन चार शीलायें तो रहती ही हैं और मैं दिल्ली के गुजरों के एक बहुत ही बदनाम से गाँव में रहता हूँ पर मेरी नजर में कोई ऐसी घटना तो अभी तक नहीं आयी हाँ कुछ दिन पहले ही एक शीला के गले की चैन जरुर मेरे घर के आगे लुटी थी.

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  11. घुघूती बासूती जी,
    आज तो वाकई कमाल हो गया...शीर्षक भी एक जैसा...विषय भी एक...दोनों ने अलग-अलग वक्त में लिखा...लेकिन चिंता एक ही है...

    चुनाव आयोग ने पप्पू कान्ट डांस गाने के बाद स्लोगन दिया था- पप्पू मत बनिए, वोट डालिए...क्या मतलब है, इसका क्या सारे पप्पू गैरजिम्मेदार या नासमझ होते हैं...पप्पू के नाम का इस्तेमाल ही क्यों...

    पाकिस्तान के कराची में जनरल स्टोर चलाने वाली मुन्नी गाना गाकर छेड़ने वालों से इतनी तंग आई कि अपना स्टोर ही बंद कर दिया...

    पाकिस्तान में ही एक स्कूल की प्रिंसिपल मु्न्नी शाहीन की छेड़ ही छात्रों ने मुन्नी बदनाम गाने को बना लिया..

    ये गाने लंबे समय तक लोगों के ज़ेहन में रह भी सकते हैं जैसे कि मोनिका, ओ माई डॉर्लिंग...

    जिस तन लागे वही तन जाने...ये सही है कि ये गाने थोड़े दिन ही क्रेज बनते हैं...लेकिन थोड़े ही दिन क्यों किसी को इन गानों की वजह से परेशान होना पड़े...क्यों प्रचलित नामों को गानों में इस्तेमाल की सेंसर बोर्ड इजाजत देता है...
    प्रोडयूसर तो पैसा कूट लेते हैं, अब भले ही पप्पू, मुन्नी और शीला कितने ही परेशान क्यों न हों...

    जय हिंद...

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  12. इन दो नामों को बदनाम जो कर दिया है, हर्जाना तो देना चाहिये, उन दोनों को।

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  13. यक़ीनन नाम में बहुत कुछ रखा है ... यह तो वही समझ सकता है जो इतने सालों बाद अब नए नाम को अपनाएगा ...... किसी अच्छी वजह नहीं ..... दो बेहूदा फ़िल्मी गीतों की वजह से .... अफ़सोस

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  14. गीतकारों को भी कोई न कोई नाम तो चाहिये ही..

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  15. नाम बहुत कुछ रखा है ..पूरा एक व्यक्तित्वा समता है उसमें.
    सच कहा है ..जाके पैर नहीं फटी बिवाई .....

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  16. कुछ सालो पहले संजय दुत्त और उर्मिला की फिल्म आयी थी 'खूबसुरत'. उसमे भी ऐसा ही एक गाना था 'ए शिवानी'. तब इस नाम की लडकियो की शामत ही आ गयी थी. फिल्मो मे ही क्यो, वास्तविकता मे भी ऐसा होता है. उत्तर प्रदेश मे झांसी की लड्कियो को कई बार लक्ष्‍मीबाई कहकर चिढाया जाता है

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  17. कुछ सालो पहले संजय दुत्त और उर्मिला की फिल्म आयी थी 'खूबसुरत'. उसमे भी ऐसा ही एक गाना था 'ए शिवानी'. तब इस नाम की लडकियो की शामत ही आ गयी थी. फिल्मो मे ही क्यो, वास्तविकता मे भी ऐसा होता है. उत्तर प्रदेश मे झांसी की लड्कियो को कई बार लक्ष्‍मीबाई कहकर चिढाया जाता है

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  18. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

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  19. आपने एकदम बजा फ़रमाया जी। शेक्सपियर से मुन्नी-शीला-पप्पू तक उतरा हुआ समाज अब स्पष्ट नज़र आने लगा है।
    और नाम में क्या रखा है ये तो हमारे नाम से भी ज़ाहिर है। हा हा।
    एकदम सटीक तन्क़ीद है यह आपकी।
    नमस्कार।

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  20. भारत में नाम ही बहुत कुछ है ..यहाँ तो देवी देवताओं के सहस्र नाम तक हैं!
    मुन्नी शीला के नामों के अभिशाप की आपकी आपकी यह गाथा सामयिक विडम्बनाओं के प्रति आगाह कर रही है !
    अब कौन परिवार इन नामों को अपने यहाँ प्रश्रय देगा ?

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  21. भारत में नाम ही बहुत कुछ है ..यहाँ तो देवी देवताओं के सहस्र नाम तक हैं!
    मुन्नी शीला के नामों के अभिशाप की आपकी आपकी यह गाथा सामयिक विडम्बनाओं के प्रति आगाह कर रही है !
    अब कौन परिवार इन नामों को अपने यहाँ प्रश्रय देगा ?

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  22. मैडम,
    आपकी पोस्ट पढ़ता जरूर हूँ और बहुत प्रभावित भी होता हूँ, कमेंट करने की हिम्मत बहुधा नहीं जुटा पाता। आप पहले ही सब कुछ इतने सलीके से कह चुकी होती हैं कि सहमत होने के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं और ऐसे कमेंट्स मेरी नजर में सिर्फ़ गिनती बढ़ाते हैं, जिसकी आप की नजर में कोई वैल्यू नहीं है।
    आज भी सहमत ही हूँ, बल्कि एक दो उदाहरण और देता हूँ। आप खुद पंजाब से और यहाँ की संस्कृति से परिचित हैं, कितअने ही पुराने गानों में ’बिल्लो’ जैसे नामों का इस्तेमाल सुन रखा होगा आपने। कुछ समय पहले तक टीवी में 'HARI SADHU' नाम पर एक एड आती थी। और फ़िर छेड़ाखानी करने वालों के लिये यह एकमात्र क्राईटेरिया नहीं है, जिसने यह गंदगी फ़ैलानी ही है वो तरीके भी ईजाद कर लेते हैं। व्यक्ति विशेष को फ़र्क जरूर पढ़ता है ऐसी बातों से, लेकिन इसका कोई ईलाज भी नहीं दिखता। नाम से फ़र्क तो पड़ता है, लेकिन इस दुनिया में हर किसी को हम लोग गाईड नहीं कर सकते। अकेली चीज जो अपने हाथ में है, खुद को कंट्रोल करना, खुद को बदलना जिसके लिये अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिये।
    ऐसे गीतकारों को सही मायने में तो गीतकार ही नहीं मानता मैं, तो सपोर्ट करने का सवाल ही नहीं उठता। समय के साथ ऐसे गीतों(?) का क्या हश्र होता है, हम सब जानते हैं।
    आपका लिखा पढ़्कर लगता है कि कुछ पढ़ा है, पठनीय सा।
    आभार स्वीकार करें।

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  23. ये तो आप ने एक दम ठीक लिखा है मित्र|

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  24. उन लडकियों या औरतों की व्यथा और मन:स्थिती की कल्पना करते हुये भी दुख होता है जिनका रास्ते पर चलना भी मुहाल हो गया है। क्या सिनेमा वालों ने पूरी शर्म उतार कर नाली मे फेंक दी है? ऐसा भोंडा शरीर प्रदर्शन कर ये नायिकायें क्या साबित करना चाहती है? ये नारी जाति पर् कलंक हैं। नाम मे बहुत कुछ है जो इन लोगों ने सस्ता कर दिया नाम की गरिमा को। शुभकामनायें।

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  25. बड़ी बिचित्र समस्या है यह। समाधान कोई दिखता ही नहीं। बस समय के साथ जब मुन्नी-शीला के स्थान पर कोई दूसरा नंबर हिट हो जाएगा तो पब्लिक इसे धीरे-धीरे भुला देगी।

    एक अपरिहार्य असहजता के चक्कर में इन्हें कुछ समय तक उलझा रहना पड़ेगा।

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  26. बहुत सटीक आलेख !

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  27. बहुत ही खुबसूरत रचना...मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ मेरी कविताएँ "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी हर सोमवार, शुक्रवार प्रकाशित.....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे......धन्यवाद

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  28. जीबी ,
    ये तो मुमकिन नहीं कि दोनों बहने एक साथ रहती हों और एक साथ तंग की गईं हों , बच्चों वाली हैं सो अलग अलग रहती होंगी और उनके नाम भी अलग अलग समय और स्थान में गाये गए होंगे पर न्यूज से ऐसा लगता है कि वे अब भी एक ही परिवार में हैं और एक साथ तंग की गईं हैं ?

    मुझे तो यह बात ख्याति के लिए एक 'न्यूजपेपरीय' स्टंट सी लगी वर्ना गाने तो आते जाते रहते हैं ! मुन्नी बदनाम वाला गाना मूलतः २५-३० वर्ष पहले से सार्वजानिक तौर पर , 'नसीबन' के लिए गाया जाता रहा है , अत्यंत कामुक अंदाज में गए इस गीत से कितनी सारी ऐसी महिलायें भी तंग होती रही हैं जिनका नाम नसीबन नहीं है , तो क्या इन पर भी कोई न्यूज बनी ?

    और हाँ ...'बेनाम' के गानों से तंग होने वाली करोड़ों लड़कियों पर वो न्यूज पेपर कोई न्यूज बनाए ऐसी उम्मीद मत पालियेगा क्योंकि न्यूज पेपर्स गीतों और नामों के साम्य वाले स्टंट के स्तर से बाहर नहीं आ पाए हैं अभी !

    लड़कियों से छेड़छाड़ वाकई में एक गंभीर समस्या है और उसके सामने , मुन्नी , चुन्नी ,शीला ,जमीला ,पारो वगैरह के नाम से , सस्तेपन / हल्केपन / मसखरेपन जैसे अंदाज में पेश नहीं आना चाहिए !

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  29. बेहतरीन पोस्ट ........बहुत सटीक आलेख/....

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  30. हो सकता है कि मुन्नी व शीला ख्याति के लिए समाचार पत्र में पहुँची हों किन्तु जिस भी स्त्री को अपनी किशोरावस्था याद हो वह शायद मुन्नी व शीला का कष्ट समझ पाएं.वे दिन, जब सड़क पर जाना समरभूमि में जाने सामान होता था.निकलने से पहले एक मानसिक कवच व ढाल भी साथ लेनी होती थी.जिन सौभाग्यशालियों को इसका सामना नहीं करना पडा हो वे नहीं समझ सकेंगी.उनसे बस ईर्ष्या ही की जा सकती है.
    वैसे व्यक्ति कहाँ रहता है उससे भी वह इस बात को समझ या नहीं समझ सकता.मुम्बई में यह होना विचित्र लगता है किन्तु नवीं मुम्बई तो उत्तर भारत ही है.शायद ठाणे के भी यही हाल हों.
    घुघूती बासूती

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  31. किन्तु नवीं मुम्बई तो उत्तर भारत सी ही है.
    घुघूती बासूती

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  32. नाम में तो बहुत कुछ रखा है पर एक और नाम जो मेरे ज़हन में इन दोनों गीतों को सुनकर उठा था, वह था "मोनिका"
    सोचने पर लगा कि भैया जब यह गाना आया होगा तो बड़ा ही भूचाल मचा होगा ऐसे नाम वाली लड़कियों के दिल में तो... पर फिर मेरे एक करीबी रिश्तेदार हैं जिनका नाम यही है और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है..
    इसलिए मुझे लगता है कि सब वक्त की आंधी में बह जाते हैं.. कोई फर्क नहीं पड़ता है..
    वैसे यह बात भी सही है कि २ दिन की चांदनी में सब आना चाहते हैं लाईम-लाइट में... तो हो सकता है कि ये दोनों बहनें भी वह कोशिश में सफल रही हों...

    आभार

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  33. ओह ! बिन किसी गलती के... भाग्य का खेल !

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  34. सिद्धार्थ जी से सहमत।

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  35. नाम में कुछ नही रखा है फिर भी बहुत कुछ बदल जाता है। सही है कि पप्पू भाई तो चल गए मगर मुन्नी और शीला का चलना भी दूभर हो रहा है..बहुत सुंदर व्यंग...

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  36. हम्म
    या तो फ़िल्म वालों को इस तरह के नाम प्रयोग नहीं करने चाहिये या फिर लोगों को वह नाम नहीं रखने चाहिये जो आगे चलकर फ़िल्म वाले प्रयोग कर लें...लेकिन अब कोई झंडू सिंह नाम भी रख ले तो भी बादनामी न होने की कोई गारंटी नहीं. स्टेट बैंक आफ पटियाला के एक MD का नाम तो गंडा सिंह भी था. नाम की जगह नंबर भी नहीं रखा जा सकता.. पहले ही जावेद अख्तर ने 1 से 13 पर माधुरी नचा दी थी.. आगे की गिनती की भी कौन गारंटी दे...
    (हम्म मैं अभी भी सोच रहा हूं..अनिर्णीत)

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  37. मुझे नहीं लगता कि गानों में नामों के इस्तेमाल से ऐसी बड़ी भयंकर परेशानिया हो रही होंगी लड़कियों को.. जो विकृत मानसिकता के लोग हैं वो तो तो सीता और सावित्री नाम वाली लड़कियों को भी छेड़ेंगे और गंदे कमेन्ट पास करेंगे.. हाँ स्कूल-कॉलेज की मित्र मंडली में कोई इस नाम की लड़की हो तो उसको जरुर चिढाते हैं लोग.. लेकिन यह शुद्ध मौज-मस्ती के लिए होता है और लडकियां इसका बुरा भे नहीं मानती..
    ब्लॉगिंग: ये रोग बड़ा है जालिम

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  38. मुझे नहीं लगता कि गानों में नामों के इस्तेमाल से ऐसी बड़ी भयंकर परेशानिया हो रही होंगी लड़कियों को.. जो विकृत मानसिकता के लोग हैं वो तो तो सीता और सावित्री नाम वाली लड़कियों को भी छेड़ेंगे और गंदे कमेन्ट पास करेंगे.. हाँ स्कूल-कॉलेज की मित्र मंडली में कोई इस नाम की लड़की हो तो उसको जरुर चिढाते हैं लोग.. लेकिन यह शुद्ध मौज-मस्ती के लिए होता है और लडकियां इसका बुरा भे नहीं मानती..
    ब्लॉगिंग: ये रोग बड़ा है जालिम

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  39. नाम में क्‍या रखा है; रणछोड्दास छांछड् कहो या फुनसुख वांगडू, बस 'प्रतिभा' होनी चाहिएा

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  40. Anonymous7:16 pm

    yes nam me ky rakha ha vese bhi hamare hindi song bina kisi lady ke naam ke bina nahi chal sakte

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  41. नमस्कार जी
    बहुत खूबसूरती से लिखा है.

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  42. एक और सुन्दर सारगर्भित पोस्ट. आभार.

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  43. मैं सोचता हूँ कि मुन्नी और शीला अगर दो देवियों के नाम होते तो अब तक ऐसे गीत बनाने वालों का क्या हश्र होता ?

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