मेरे पिछले चिट्ठे 'दिल्ली में पहला दिन' http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/04/blog-post_15.htmlपर बहुत सी टिप्पणियाँ आईं । दो डॉक्टरों की भी थीं । यहाँ मैं उन्हें उत्तर दे रही हूँ । शीघ्र ही ऐसे डॉक्टरों का जिक्र भी करूँगी जिन्होंने मेरा मन जीता है । यदि कोई उद्दडंतता हुई है तो डॉक्टर वर्ग से क्षमाप्रार्थी हूँ ।
अजित जी व महक जी,
यह लेख डॉक्टरों के विरुद्ध नहीं लिखा गया है । प्रवीर कुछ ऐसा बना कि चाहकर भी डॉक्टरों से मेरा नाता छूटता ही नहीं । डॉक्टर मनुष्य है, यह तो हम सब जानते हैं,वैसे ना होता तो शायद बेहतर होता । तब जब उनका व मरीजों का अनुपात गड़बड़ाता दिखता तो कुछ और मॉडेल बना लिए जाते ! खैर यह तो मजाक है परन्तु ऐसी भी क्या कठिनाई है कि स्वतंत्रता के ६० वर्ष बाद भी हम अधिक मेडिकल कॉलेज नहीं बना पा रहे ? क्यों जीवन से पिटे हुए लोगों को अधिक सुविधाएँ नहीं दिला पा रहे ? क्यों दवाइयों पर कर लगाते हैं ? कैसा होता होगा उस मरीज का दुख जो जानता है कि उसके इलाज में उसका घरबार गिरवी रख दिया गया है ? कैसी वितृष्णा स्वयं के जीवन से होती होगी जब जानते हैं कि उनके इलाज ने उनकी आने वाली पीढ़ियों से उनकी कमाई का एकमात्र साधन उनकी जमीन छीन ली है ? क्यों मेडिकल बीमा हमें हमारी बीमारी के समय बिना हेराफैरी के सहायता नहीं दे सकता? क्यों २४ घंटे हस्पताल में रहना आवश्यक है ?
जहाँ तक डॉक्टर की थकान की बात हे तो फिर वही प्रश्न उठता है कि एक व्यक्ति जिसके हाथ में किसी का जीवन है, उसकी मुस्कान है, उससे इतने लम्बे घंटे काम ही क्यों करवाया जाता है ? क्या कभी कोई एयरलाइन एक थके पायलट को विमान थमा देती है ? फिर एक थके डॉक्टर को मरीज क्यों थमाए जाते हैं ? क्या भारत में छात्रों का ऐसा अकाल पड़ गया है कि कोई भी डॉक्टर बनने के लिए तैयार नहीं है ? हम सब जानते हैं कि डॉक्टरों की कमी है, कि हस्पतालों की कमी है । तभी तो मैं भी उपायों की भी बात कर रही हूँ । क्यों नहीं AIIMS जैसे दो चार और हस्पताल नहीं खुलते ? क्यों नहीं AIIMS जैसे हस्पताल जाने से पहले ही मरीजों को फिल्टर कर केवल वे मरीज वहाँ नहीं भेजे जाते जिनका इलाज एक साधारण या कुछ कम विशिष्ट हस्पताल में नहीं हो सकता है ? क्या किसी बढ़िया मैनेजर से हस्पताल मैनेज नहीं करवाए जा सकते ? क्या मरीज को एक ऐसा समय नहीं दिया जा सकता जिसमें केवल एक या दो घंटे की प्रतीक्षा हो? जैसी एमर्जैन्सी हस्पताल में आ पड़ती हैं वैसी ही जीवन के हर क्षेत्र में शायद छोटे पैमाने पर आ पड़ती हैं । कारखानों में भी मशीनें रूकती हैं टूटती हैं, दुर्घटनाएँ घटती हैं । इन्जीनियर रात दिन भागते हैं कारखाने को चलाने को ।
हम शुक्रवार को दिल्ली पहुँचे, शनिवार को AIIMS में ही फोन आया कि एक बहुत बड़ी दुर्घटना कारखाने में हो गई है । ऐसी जो पति ने छत्तीस वर्ष के कार्यकाल में नहीं देखी । किसी को चोट तो नहीं लगी या कोई दबा तो नहीं जानने के बाद पति ने चैन की सांस ली । सौभाग्य से कम्पनी के डायरेक्टर वहीं पर थे सो तीन दिन उन्होंने सम्भाल लिया और बुधवार की सुबह सुबह मुझे हस्पताल में दाखिल छोड़कर ही पति वापिस लौट गए । ये सब लोग भी थकते हैं । अन्तर केवल इतना है कि इनकी गल्तियों से नौकरी जाती है,या कोई दुर्घटना घटती है,या उत्पादन रूकता है । सीधे सीधे किसी की जान इन लोगों के हाथों में नहीं होती । परन्तु हर घाटे में चलता कारखाना देर सबेर बंद होता है और इसके साथ ही जाती हैं सैकड़ों नौकरियाँ व सैकड़ों अन्य लोगों का रोजगार हो अप्रत्यक्ष रूप से कामगारों व कारखाने से जुड़े होते हैं ।
प्रश्न डॉक्टर बनाम मरीज नहीं है प्रश्न केवल मनुष्य बनाम कष्ट है और हमें कुछ ऐसा करना होगा कि जहाँ भी कष्ट है उसके निवारण के उपाय सोचे जाएँ । विशेषकर जो समाज अपने बच्चों को कष्ट में जीने दे सकता है वह समाज समाज ही नहीं है ।
घुघूती बासूती
Wednesday, April 16, 2008
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बुनियादी सवाल उठाये हैं स्वास्थ्य-नीति से जुड़े ।
ReplyDeleteसामूहिक प्रयास की कमी है समाज में. लोग सामजिक कम निजी ज्यादा सोचते हैं
ReplyDeleteवाजिब बात .
ReplyDeleteआपने थके हुये डाक्टर और पायलट की तुलना कर विचारो को वाकी एक नयी दिशा दे दी है..:)
ReplyDeleteसारा का सारा धन तो नेताओं की सुरक्षा, दौरों और तन्खवाह में चला जाता है... बुनियादी ढांचा मजबूत कैसे हो किस को पडी है.. जो धन उपलव्ध होता है उसे बिचोलिये खा जाते है... सारी योजनाये सिर्फ़ कागजों पर रह जाती हैं.
ReplyDeleteजागरूक लेख के लिये साधुवाद
ghughutiji bahut sahi sahi sawal uthaye hai aapne,bahut achha laga ye padhkar.hum bhi aapke har shabd ke saath hai.hum mohindar ji se bhi sehmat hai,these politicians r eating all money of nation,and all yojana remain on paper only.
ReplyDeletebaki rahi doctor aur pilot ki tulana,hamare khayal se,thake pilot ke haathon mein duty nahi hoti kyunki unko emergency mein kisi tadapte patient ki jaan nahi bachani hoti.par ek doctor kobachani hoti hai.
ur true,doctor ki bahut kami hai apne desh mein,even i live in nice big city,still our hospital is overcrowded like aims hosp,there r very few seats for specialization these days,us mein bhi katauti ho rahi hai,kaha se doctor banenge phir jyada,govt only wants that govt hospitals should run,but they dont appoint doctors,naukri ki jagah khali hote huye bhi,they always show some problem to fill the vacancy.
u know ghughuti ji aapne hamse thodasa pyar jataya,ankhen bhar aayi,vaise hi koi patient hame pyar se bole puchhe ,we forget we r tired,doguni utsah se kaam karte hai.we doctors r all the time aware that patient come from small village long way for treatment aur jald se jald davapani ilaj ho ye ham bhi chate hai.
onething i will tell u,i work as gyneacologist,aur jab private mein patient ko ceaserean ke liye bolte hai,they run to givt hospital just to save thier thousands rupess as in private one ceasersection cost around 15 to 25 thousand,and in our hosp the charges with special room will be merely 2 to 3 thousnad,garib patient ka thik hai,amir bhi.khair ye to har patient ko tay karna hai unko ilaj kaha karana hai,we just do our duty.we just wish that patient shoud be cooperative.
will u believe in oneday only we hv 40 to 50 deliveries and maximum10-to 12 ceaserean section all in just 24hrs,our duty par doctor hote hai 4.har adhe ghante ko labour room ka round lo,operation karo,delivery karo,notes likho,u mein chuki nahi honi chahiye,har delivery ka time thik se likho,sisters dont do aal these things,they just tk the baby after delivery here.phir complicated patient hote hai iccu duty.
still we enjoy our duty,its a very satisfactor job,kisi ki life bachane se achha aur kya hoga.
kuch jyada likh diya humne,bhulchuk mafi.
wish u get well soon.tk cr of health,sadar pranam,mehek.
घुघूती जी,
ReplyDeleteनमस्कार!
डॉ. महक जी के इतना कुछ लिखने के बाद अब मेरे पास शब्द ही नहीं बचे हैं शेष कुछ कहने को.
आपने अपनी भावनाओं को बखूबी उतारा है.
पर हमारे कहने का सार यही है कि मरीज़ ये न समझें कि हम अपने कर्तव्यों में कहीं ढिलाई बरतते हैं.
आप स्वास्थ्य लाभ करें, आपकी सेहत अच्छी बनी रहे. इन्हीं शुभकामनाओं सहित.
विचारणीय तथ्य.
ReplyDeleteघुघूती जी,
ReplyDeleteनेताओं को आरक्षण और चापलूसी जैसे ज्वलंत मुद्दों से फुरसत ही कहाँ है जो नए मेडिकल institute खोलेंगे. और उन्हें क्या पड़ी है... उनकी सेहत तो बनी ही रहती है... अगर कभी बिगड़ गई तो दुनिया के इतने सारे देश किस दिन काम आयेंगे...
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ReplyDeleteएम्स जैसे अस्पतालों में इलाज करवाना वाकई अत्यंत कष्टसाध्य प्रक्रिया है। जो लोग इस समस्या का समाधान कर सकने की स्थिति में हैं, उन्हें अपने इलाज के लिए कभी कतार में नहीं लगना पड़ता।
ReplyDeleteवीआईपी को छोड़कर एम्स में सुविधाजनक रूप से इलाज करवाना केवल उसी के लिए संभव है जिसका अपना कोई घनिष्ठ परिचित वहां डॉक्टर या स्टाफ के रूप में कार्यरत हो। कुछ वर्ष पहले मुझे यह देखकर हैरानी होती थी कि रोजाना सैकड़ों लोग एम्स में इलाज करवाने के लिए पहले स्वास्थ्य मंत्री के पास सिफारिश के लिए आते थे। कई बार पत्रकार भी इस तरह की सिफारिशों का सहारा लेते थे। हालांकि मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री के साथ एम्स के निदेशक एवं डॉक्टरों के छत्तीस के रिश्ते के कारण अब इस तरह की सिफारिशें भी काम नहीं आती। हाल ही में एक पत्रकार ने मुझे बताया कि उसकी पत्नी के प्रसव हेतु एम्स के मेटरनिटी विभाग में एडमिट करवाने के लिए उसे दस हजार रिश्वत देने पड़े और यह धंधा वहां धड़ल्ले से चल रहा है।
एक बार के अत्यंत कटु अनुभव के बाद मैं एम्स में इलाज के लिए जाने से खुद परहेज करता हूं।
एम्स के स्तर के अस्पताल देश के कुछ अन्य राज्यों की राजधानियों में खोले जाने के प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार तकरीबन एक दशक से गंभीर रही है, लेकिन केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने के कारण उनके बीच तालमेल और सहयोग की कमी की वजह से इस तरह के प्रस्ताव अधर में लटकते रहे हैं। राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को अस्पताल खोलने और उनमें बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने से अधिक चिंता इस तरह के कार्यों का क्रेडिट लेने की रहती है।
एम्स में सबसे अधिक मरीज बिहार और उत्तर प्रदेश से आते हैं। एनडीए की पिछली केन्द्र सरकार के दिनों में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. सी.पी. ठाकुर ने पूरी कोशिश की कि पटना में एम्स के स्तर का अस्पताल खुल जाए, किन्तु लालू यादव ने इसके लिए पटना में जमीन उपलब्ध कराने या वहां स्थित मौजूदा किसी अस्पताल के हस्तांतरण से सिर्फ इसलिए इन्कार कर दिया कि उसका क्रेडिट सीपी ठाकुर और एनडीए को मिल जाता।
गरीब लोगों के लिए किफायती और सही इलाज के लिए एम्स जैसे सरकारी अस्पतालों की बहुत आवश्यकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव से लेकर सचिव स्तर के अधिकारी फाइलों में मगजमारी करने के बजाय समय-समय पर अस्पतालों में खुद जाकर औचक निरीक्षण करें तो हालात में काफी सुधार लाए जा सकते हैं। स्वास्थ्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति को भी इस तरह के दौरे बीच-बीच में करते रहने चाहिए।
नही जानता आपने अपने इस अनुभव के आधार पे क्यों एकं धारणा बनाई . यदिपी आपकी कुछ भावनाये विचार योग्य है पर एक बात कहना छठा हूँ ,हम जिस समाज मे रहते है उसी समाज का एक हिस्सा ये डोक्टर है ,हमारे आपके परिवार का एक व्यक्ति ,जिस तरह हर विभाग या हर field मे अच्छे बुरे तरह के व्यक्ति होते है ,चिकत्सा विभाग भी जाहिर है इससे अछूता नही है.मैं नही जानता औरो की बात पर जब गुजरात मे प्लेग आया तब भी मैं वही था ,cyclone आया तो उस टीम मे मैं गया था ,भूकंप आया तब भी मैं वही था ....आज भी प्राइवेट प्रक्टिस मे हूँ पर जरुरत मंद ओर गरीबो से फीस नही लेता .....ओर जब लगता है की दवाई की जरुरत है तो अपने पास उपलब्ध दवाई दे देता हूँ.......मुझे याद है मेरे sir ने एक बार कहा था फीस जरूर लेना भले ही उसे बच्चे के सर पे रखकर वापस कर देना या उन पैसो से दवा खरीद कर दे देना क्यूंकि मुफ्त के इलाज की कद्र मरीज नही करता ......आप जैसा इस समाज को देंगे समाज वैसा ही आपको देगा ,वास्तव मे व्यक्ति का नैतिक पतन हुआ है ...हम ओर आप अगर वास्तविक जीवन मे भी वैसा ही आचरण करते है ,जैसा हम लिखते है तो हम समाज मे बहुत बड़ा योगदान कर रहे है ......रही बात थकान की तो अप क्या जानते है की ओर्थोपेदिक मे हमारे कॉलेज मे परवेश लेने के बाद १८ महीने तक अपने कमरे मे उस लड़के का आना नही होता था...खैर ये पेशा हमने अपनी मर्जी से चुना है तो इस से जुड़े सभी हालात से जाहिर है हमे गुजरने मे कोई शिकायत नही होनी चाहिए .....वैसे मेरे लिए ये पेशा नही ......एक सपना था......... ..
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