रियाज़ जी का होली के खिलाफ 'एक पर्चा' पढ़ा । बहुत विचित्र सा लगा कि वे प्रेम , मिलन व हर नाराजगी को भुला देने वाले इस त्यौहार के बारे में ऐसा लिख रहे हैं । मैं उनकी बातों को काट नहीं सकती क्योंकि जहाँ की वे बात कर रहे हैं, वे गाँव मैंने देखे नहीं हैं । न ही मैंने होली का ऐसा कुरूप रूप देखा है । यदि ऐसा हो रहा है तो इसे बदलने की भरपूर चेष्टा होनी चाहिये । परन्तु हर बार जब कोई वस्तु, समाज या प्रथा कुरूप हो जाए तो इलाज क्या उसे बैन कर देने में है ? क्या उसे सुधारने की आवश्यकता नहीं है ? मेरा देश गंदा है, जहाँ तहाँ कूड़ा पड़ा रहता है, कानून व्यवस्था चरमरा रही है, तो मैं देश को ही छोड़ दूँ ? मेरे धर्म का रूप कुछ बिगड़ रहा है, तो क्या मैं अपने धर्म को बदल लूँ ? मेरी भाषा पिछड़ी जा रही है, अंग्रेजी बहुत आगे निकल गई है, तो क्या मैं अंग्रेज बन जाऊँ ? क्या सुधार की कोई संभावना नहीं है ? किस किस से भागेगें हम ? क्या जो नया देश, धर्म, भाषा मैं अपनाऊँगी वे बिल्कुल साफ सुथरे, निर्दोष व आदर्श होंगे ? क्या किसी दिन इस कचरे, विष से भरी पृथ्वी को भी छोड़ भाग जाऊँगी मैं ?
नहीं , मैं पलायन नहीं करूँगी । मैं इसी समाज में रहकर इसे थोड़ा बदलूँगी । यदि मुझे ऐसे अवसर मिले हैं जिनमें मुझमें कुछ बदलने की सामर्थ्य आ गई है, तो मैं इनका अवश्य सदुपयोग करूँगी । मैं पूरे समाज का जिम्मा नहीं ले सकती । मैं कोई समाज सुधारक, राजनीतिग्य या विदुषी नहीं हूँ । मैं केवल और केवल एक संवेदनशील परन्तु आम मनुष्य हूँ । मुझमें कष्ट झेलकर गाँधी सी सेवा करने की हिम्मत नहीं है । मेरा चमित्कृत करने वाला व्यक्तित्व नहीं है । मैं शायद धर्म को नहीं मानती । परम्पराओं की लकीर को नहीं पीटती । परन्तु मैं जहाँ हूँ, उस स्थान व समाज को थोड़ा सहनीय, बेहतर व उत्सवपूर्ण बनाने का यत्न अवश्य कर सकती हूँ । जीवन इतना कठिन है कि यदि हम थोड़ा सा भी स्नेह बाँटें तो यह स्नेह व खुशी का एक बहुत सुन्दर सा चक्र चल पड़ता है । मैंने आपसे मुस्करा कर बात की आपने अगले से और उसने किसी अन्य से ।
खैर, बात होली की है । आपके शहरों , गाँवों में यह चाहे जितनी भी विकृत हो, हमारे यहाँ तो यह एक उत्साह व मस्ती का पर्व है । आप अकेले छप्पन भोग खा सकते हैं, गहने पहन सकते हैं , अमीर हो सकते हैं , परन्तु होली तो बिल्कुल नहीं मना सकते । मेरे विचार से होली जैसे पर्व मनाने के पीछे यही मिलकर मनाने की भावना रही होगी । हमारे यहाँ हर साल थोड़ा बहुत परिवर्तन व सुधार करके हम हर होली को यादगार बनाने का यत्न करते हैं । पहले होली व रावण एक बहुत छोटे से मैदान में जलते थे । पिछले साल से एक बड़े क्षेत्र को समतल कर दिया गया है ताकि होलिका दहन, रावण दहन वहाँ हो और फिर अपनी कॉलोनी के बच्चे वहाँ मजे से क्रिकेट आदि खेलें । हर साल होलिका दहन के बाद होली की परिक्रमा करते थे , प्रसाद खाते थे, थोड़ा रंगों से खेलते थे व हँसी मजाक कर घर लौट आते थे ।
हमारे यहाँ सबसे बड़ी समस्या पुरुषों को कारखाने से बाहर निकाल घर लाने या फिर कहीं एकत्रित करने की है । सो इस बार विचार हुआ कि जब होलिका दहन के लिए ये लोग घर लौट ही आएँगे तो क्यों ना आज ही अपने क्लब में एक खाने व खेलने का कर्यक्रम भी रख दिया जाए । कोशिश रहती है कि यह हर महीने हो परन्तु काम के चलते, या बच्चों की परीक्षा के कारण यह हर महीने हो नहीं पाता । सो आज होली जलाने के बाद हम सब क्लब में इकट्ठे होंगे । वहाँ तम्बोला होगा । हो सकता है एक दो गीत, चुटकुले भी हो जाएँ । फिर सब मिलकर छोले भटूरे खाएँगे । हँसी मजाक तो रहेगा ही । फिर हम सब घर लौट आएँगे ।
हमारी कॉलोनी दो भागों में विभक्त है । कल सुबह लोग ढोल लेकर एक दूसरे के घर जाएँगे, सबके घर रंग खेलेंगे कुछ खाएँगे और उस परिवार को भी साथ लेकर अगले घर निकल जाएँगे । इस तरह से यह समूह बढ़ता जाएगा । दूसरी तरफ की कॉलोनी वालों के लिए कम्पनी की बस खड़ी रहेगी जो इन्हें दो तीन चक्करों में गेस्ट हाउस ले आएगी । जो लोग हमारे घर आना चाहेंगे वे थोड़ा पहले हमारे घर के पास उतर यहाँ आ जाएँगे । हमारी तरफ की कॉलोनी वाले भी इसी प्रकार से एकत्रित होंगे व अन्त में हमारे घर पहुँचेंगे । एक दूसरे के गले मिलेंगे । कोई छोटा बच्चा भी कह देगा, "आँटी मुझे भी आपके गले मिलना है ।" फिर जमकर होली खेलेंगे । स्त्रियाँ आँगन में व पुरुष लॉन की घास पर डेरा डालेंगे । बच्चे तो भागते दौड़ते ही रहेंगे । यहाँ गरमागरम पकोड़े, कचौड़ी, मट्ठी, कुछ अन्य नमकीन, मिठाई व गरमागरम जलेबी का प्रबन्ध रहेगा । ठंडे पेय भी रहेंगे । कुछ खापीकर, रंग खेलकर हम सब भी गेस्ट हाउस पहुँच जाएँगे ।
वहाँ बाहर पेड़ों के नीचे कुर्सियाँ लगी रहती हैं । कुछ मस्ती करने वाले लोग जमीन पर ही लाउडस्पीकर के सामने ढोल आदि लेकर गाने का कार्यक्रम करेंगे । पिछले वर्ष तो स्त्रियों पुरुषों के बीच अन्ताक्षरी खेली गई थी । फूहड़ व भद्दे गीत ! नहीं मुझे ऐसी कोई याद नहीं है । यहाँ भी पकड़ पकड़ कर लोगों को रंगा जाएगा । कब किसकी बुरी तरह से रंगने की बारी आ जाए कहा नहीं जा सकता । कोई बचने के लिए भाग रहा होगा तो कोई रंगने को ! कुछ मित्र हर बार कुछ नया ही जुगाड़ करते हैं । किसी बार विशेष हिप पॉकेट्स में विशेष रंग तो किसी बार गले से लटकती रंगों की बोतलें । कोई छोटी सी बच्ची या बच्चा जब लाड़ से मुझे या किसी विशेष आँटी या अंकल को रंगना चाहेगा तो झुककर प्रेम से उसे रंग लगाने देंगे । हर बार कॉलोनी के किसी ना किसी बच्चे का होली का डर दूर होता है और वह भी बड़े बच्चों के बीच रंग खेलने लगता है । इस बार देखूँ कि क्या हमारी कॉलोनी में रहने वाली छोटी सी खुशी होली खेलेगी क्या ! कुछ गरमागरम खाने व ठंडा पीने के बाद एक बजे तक लोग अपने अपने घर वापिस जाएँगे ।
हमारी तरफ के लगभग १६ या १८ परिवार स्नान कर तीन बजे तक मेरे घर के सामने वाले गोले में एक बार फिर दोपहर का भोजन मिलकर खाने के लिए इकट्ठे होंगे । तबतक लोग थके व उनींदे से होंगे । महिलाएँ खुश होंगी क्योंकि खाने की चिन्ता किये बिना मस्ती से होली खेल सकेंगी । पुरुष खाना खाकर शायद उसी समय या एक घंटे बाद फैक्टरी चले जाएँगे । सो इस तरह से एक और दिन हम अपने जंगल में मंगल मना कर बिता देंगे । ये ही सब दिन हम लोग यह जगह छोड़ने या रिटायर होने के बाद याद किया करेंगे । मेरे जीवन में ऐसी ही न जाने कितनी सुन्दर मीठी यादें भरी पड़ीं हैं । आशा है कि बचे हुए कुछ वर्षों में इनमें वृद्धि ही होती रहेगी ।
आप सब को भी हमारी ओर से होली मुबारक !
घुघूती बासूती
Friday, March 21, 2008
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मस्त!!
ReplyDeleteमैं आ रेला हूं होली खेलने !!
होली मुबारक आपको भी॰
होली मुबारक हो आप को भी… हमारे मन में भी होली मनाने की कुछ ऐसी ही तस्वीर है।
ReplyDeleteदेखिये हमें यह सब खाने पीने की चीजों और इस तरह समुह में होली मनाने की बातें कर चिढ़ाईये और तरसाइये मत... यह अच्छी बात नंई( नहीं) है!!
ReplyDeleteआपको भी होली की बहुत शुभकामनायें।
सोचा था कि कुछ दिनों तक कोई चिट्ठा नहीं पढ़ूँगा, पढ़ कर केवल दुख ही होता है और दूरी अधिक निष्ठुर लगती है पर फ़िर भी खुद को रोक नहीं पाया. सोचा, अपनी न सही, औरों की होली का पढ़ कर ही दिल बहल जायेगा! आप को होली की बहुत शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसुनील
घुघुतीजी, सबसे पहले आपको होली की शुभकामनायें.महानगरीय सभ्यता के चलते, सही मायने में होली का जो रूप रह गया है,वो हम जैसे सेन्सिटिव नागरिक नहीं झेल सकते.कहने को तो जिस सोसायटी में मेरा निवास है, वहां भी मिलजुल कर होली मनायी जाती है किन्तु उसे मनाने के तरीके से कई लोगों का मज़ा ,सज़ा में बदल जाता है.
ReplyDeleteबहुत सही.
ReplyDeleteहोली सब के लिए मंगलमय हो. और हाँ - खाना-पीना तो भैया खूब जम के है.
होली की शुभकामनाएं.
आपको होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteholi ki mubarak bad. aapki asawadita gajab hai. par jara sochiye ki kya samaj, desh or dharam ka bigdna bikul ek jesa hi hai ? varn vyvastha hi apne aap mai ek galat avdharna hai, fir usko kya sudharengi ?
ReplyDeletebahut sundar varnan,khane ki chize man bha gayi,holi mubarak
ReplyDeleteहोली पर आपका लेख पढ़कर बस सपनों में ही होली खेलने की सुन्दर कल्पना कर सकते हैं.
ReplyDeleteहो सके तो हमारे नाम की गरम गरम जलेबी और मिर्ची का एक पकौड़ा चख ले तो आनन्द आ जाएगा.
मीनाक्षी
(टिप्पणी के रूप में भी चाहें तो इस सन्देश को पोस्ट पर लगा दें)
व्यस्त दिन के शुरू होने से पहले - होली की शुभ कामनाएं - साभार - मनीष
ReplyDeleteबासूती बेन; बहुत मुबारक होली आपको और आपके परिवार को।
ReplyDeleteहोली पर्व की आपको रंगीन हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़ कर,आप को और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteइसी आशा और विश्वास के साथ की होली आपके जीवन को रंगों से भर दे...
ReplyDeleteनमस्ते, आपका नाम में नहीं जानती, पर क्या आप बताएंगी कि घुघूती बासूती का अर्थ क्या है? मुझे ऐसा जान पड़ता है कि शिवानी कि किसी कहानी में मैंने ये शब्द पढ़ा है, पर विश्वास के साथ तो नहीं कह सकती. विषय से हट कर टिपण्णी के लिए क्षमा करें.
ReplyDelete"जब कोई वस्तु, समाज या प्रथा कुरूप हो जाए तो इलाज क्या उसे बैन कर देने में है ? क्या उसे सुधारने की आवश्यकता नहीं है ?"
ReplyDeleteब्लाग जगत में अब तक मेरे द्वारा पढ़े गए लेखों में इसे मैं सबसे शानदार लेख कहूंगा. दरअसल यहां यह प्रथा सी बन गई है कि हर बात में नकारात्मक देखना ही बुद्धिमानी का पर्याय बन गया है. जिसने जितना नकारात्मक देखा उसे उतना ही ज्ञानी माना गया. इससे न समाज अछूता है न हम और तो और मीडिया भी... सकारात्मकता लेकर चलने वाले पुरातन सोच के या फिर कम ज्ञानी होते हैं वहीं गलतियां देख कर उसका उद्धरण तो सभी कर देते हैं लेकिन उसके मूल में जाने व उसके सुधार के प्रयास करने वाले बिरले ही होते हैं.
इस शानदार लेखन के लिये बधाई....
- रमाशंकर शर्मा
मोहिनी जी, मेरे चिट्ठे पर आने और टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद । मैंने घुघूती बासूती के विषय में एक पोस्ट लिखी थी जिसमें पूरे विस्तार से वर्णन किया था । कृपया घुघूती बासूती क्या है, कौन है ? पढ़ने के लिए http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/02/blog-post_25.html देखिये ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर जाने का यत्न किया पर वह खुल नहीं रहा ।
घुघूती बासूती
नमस्कार घुघूतीजी,
ReplyDeleteआपका ये लेख पढ़कर आंखों के आगे बहुत सारे दृश्य एक साथ घूम गए. अब तो एक अरसा हुआ है होली मनाये, पर यादों में अभी तक होली का सुरूर कायम है.
बाकी जहाँ तक नकारात्मक सोच का प्रश्न है, "जाकी रही भावना जैसी" वाली ही बात मन में आती है.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं तथा आपका ब्लॉग पढ़ना सदा संवेदनाओं को नए अनुभवों और एहसासों से परिचित करवाता है.
आपको तथा आपके परिवार को होली की अनेक शुभकामनाएं.