Sunday, February 18, 2007

मैं सूर्यमुखी

मैं सूर्यमुखी वह मेरा सूरज
दिन भर उसको मैं तकती जाऊँ,
पाकर उसको अपने सम्मुख
मैं विचित्र सा सुख पाऊँ,
उसकी किरणें हैं जीवनदायी
ना पाऊँ तो मुरझाऊँ ।

जब पड़ती दृष्टि उसकी मुझपर
मैं हँसती और मुस्काती,
जब आता वह मेरे आकाश में
झूम झूम मैं बलखाती,
पाकर उसकी धूप की गर्मी
हर पँखुड़ी मेरी खिल जाती ।

क्या है उसमें ऐसा
जो देख उसे मैं इठलाती,
उसकी एक मुस्कान पा
मदहोश सी मैं हो जाती,
चाहत है उसकी कुछ ऐसी
उसकी दिशा में मैं मुड़ती जाती ।

जब वह ना दिखे गगन में
व्याकुल सी मैं हो जाऊँ,
बादल कहें, अरी कृतघ्नी,
मैं भी तो तुझपर जल बरसाऊँ,
चंदा कहता, देख मुझे भी
मैं ही चाँदनी से तुझे नहलाऊँ ।

भंवरा आता गीत सुनाता
मंद पवन मुझे झुलाए,
तितली आती मंडराती
मेरे रस के गुण गाए,
पराग कणों में लिपट लिपट
मेरे रंग में वह रंग जाए ।

पर मैं तो उस रंग रंगी हूँ
जिसपर ना कोई रंग चढ़े,
प्रतीक्षा में बैठी हूँ उसकी
कब मुझपर उसकी किरण पड़े,
उसको ही लेकर तो मैंने
न जाने कितने स्वप्न बुने ।

पलकें बिछाए उसकी राहों में
बैठी हूँ कितने युग से,
सारा वैभव ले लो वापिस
ना छीनो मेरा सूरज मुझसे,
मुझे लौटा दो मेरा सूरज
जीवन चाहे ले लो मुझसे ।

मैं सर्यमुखी वह मेरा सूरज
उसपर तो मैं वारी जाऊँ,
पकड़ पकड़ उसकी किरणों को
मैं प्रेम करूँ और सहलाऊँ,
उसे समेट अपने अन्तः में
मैं स्वयं से ही छिप जाऊँ ।

घुघूती बासूती

19 comments:

  1. Elaine ki kuch panktiyan aapke liye ...

    I see you there in glory shining bright,
    Following the sun and its path of light.
    Standing tall above all others in the field,
    You grow, conquer, and do not yield.

    ReplyDelete
  2. The unwearied sun, from day to day,

    Does his Creator's power display.

    —Addison.

    ReplyDelete
  3. Anonymous12:41 am

    मैं सर्यमुखी वह मेरा सूरज

    bari achi lines hain, puri kavita hi bari achhi legi mujhe, suryamukhi ke udgar bare hi ache dhang se vyakt kiye hain

    ReplyDelete
  4. वाह सूरजमुखी और सूरज की उपमा का बखूबी प्रयोग किया है आपने। चातक जैसे प्रेम की अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete

  5. भंवरा आता गीत सुनाता
    मंद पवन मुझे झुलाए,
    तितली आती मंडराती
    मेरे रस के गुण गाए,
    पराग कणों में लिपट लिपट
    मेरे रंग में वह रंग जाए ।


    -बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है, पसंद आयी. बधाई.

    ReplyDelete
  6. Anonymous8:34 am

    Bahut bhaawpurn puaari kavita.. Suryamukhi ke maadhyam se apne priytam ke prati anuraag aur samrpan ka adbhut chitran hai..

    पलकें बिछाए उसकी राहों में
    बैठी हूँ कितने युग से,
    ye lines dil ko chhuti hain..khusshi, intezaar,prem sab-kuchh hai aapki kavita mein...

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  8. Anonymous12:10 pm

    बहुत बढिया अंदाज़ है - बधाई

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर कविता है, अन्तिम पन्क्तियाँ मुझे बहुत पसँद आईं.

    ReplyDelete
  10. धन्यवाद अभिजीत जी व तरुण जी, खुशी है कि आपको कविता पसन्द आई । तरुण जी, यहाँ आप सूरज और सूर्यमुखी को प्रिय व प्रियतमा के रूप में भी देख सकते हैं ।
    अभिजीत जी, आपने जो कविता की पंक्तियाँ लिखी उनके लिए धन्यवाद ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com
    miredmiragemusings.blogspot.com/

    ReplyDelete
  11. धन्यवाद श्रीश जी, उड़न तश्तरी जी, मान्या जी, व शुएब जी, आपने दिल खोल कर सराहा है, मैं आभारी हूँ, जैसे आपने सराहा वैसे ही दिल खोल कर लिखती रहूँगी ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com
    miredmiragemusings.blogspot.com/

    ReplyDelete
  12. सत्य प्रेम-दिव्य प्रेम और शाश्वत भी…प्रकृति के एक सुंदरतम प्रेमाबंधन को मानवीय स्नेह की उच्छृंखल वास्तविकता को अनोखा मायने इस कृति के तहत दिया है…अत्यंत निराला यह दृष्टांत शुद्ध से शुद्धतम की ओर प्रवाह से सबतक पहुंच रहा है…।
    Its a Jubiliation fo work!!!

    ReplyDelete
  13. मजा आ गया ! लिखते रहिये...

    ReplyDelete
  14. अति सुन्दर भाव। उत्सर्गपूर्ण प्रेम का जीवंत चित्रण। साधुवाद।

    ReplyDelete
  15. धन्यवाद रचना जी व दिव्येश जी । आपने मेरी रचना को पढ़ा व सराहा । मेरा लिखने का उत्साह आपके शब्दों से और बढ़ गया । ऐसे ही पढ़ते रहिये और मुझे उत्साहित करते रहिए ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com
    miredmiragemusings.blogspot.com/

    ReplyDelete
  16. धन्यवाद तपस जी व सृजन जी । ऐसे ही कभी कभी मेरे चिट्ठे पर आते रहिए और मेरा उत्साह बढ़ाते रहिए ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com
    miredmiragemusings.blogspot.com/

    ReplyDelete
  17. मैं किसके द्वारा देखा जाता हूं... मुझे पता नहीं... मैं किसे देखता हूं यह मुझे पता है...।
    मैं किसे देखना चाहता हूं, जो दर्शन हेतु मेरा प्राप्य है... यह मेरे दिल कोपता है... मेरी आंखों को पता है... मेरे रोम-रोम को पता है... तब तो उनके दर्शन मात्र से मेरा रोम-रोम पुलकित हो जाता है... मैं आनंद सागर में डुबकियां लगाने लगता हूं...
    उनके दर्शन के पार मेरे लिए कुछ शेष नहीं बचता... सौम्य और साश्वत प्रणय का सहज चित्रण।
    अत्यंत मधुर।

    ReplyDelete
  18. Anonymous9:03 pm

    'पर मैं तो उस रंग रंगी हूँ
    जिसपर ना कोई रंग चढ़े,
    प्रतीक्षा में बैठी हूँ उसकी
    कब मुझपर उसकी किरण पड़े,
    उसको ही लेकर तो मैंने
    न जाने कितने स्वप्न बुने।'
    बहुत सुंदर लिखा है।

    ReplyDelete
  19. बेहद ख़ूबसूरत कविता...इतनी सुन्दर प्रेमाविव्यक्ति जैसे मीरा गा रही हो,अपने श्याम के लिए...सूरजमुखी के मन के भावों को सुन्दर शब्दों में पिरोया

    ReplyDelete