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Tuesday, August 03, 2010

बुरुंश के फूल


बुरुंश के फूल
जब मन बुरंश शब्द को भूल जाए
जब पढ़ यह शब्द, पूछूँ
माँ बुरुंश क्या होता है
माँ फूल कैसे होते हैं
पत्ते कैसे होते हैं
बताओ ना माँ, बताओ
प्लीज़, याद कराओ
पत्तों का आकार बताओ
फूलों का रंग, आकार बताओ
बताओ ना माँ,
बुरुंश क्या होता है?

मस्तिष्क में बार बार विचार कौंधता है कि
यह गुलाब सा होता है किन्तु
झाड़ी ही नहीं, पेड़ भी होता है
माँ न समझा सकीं तो
गूगल शरणम् गच्छामि
किन्तु ट्री रोज़ या
रोज़ ट्री में उत्तर नहीं मिलता।
(ध्यान ही नहीं आया कि
बुरुंश भी गूगल किया जा सकता है!)

आज कुछ पढ़ते समय शब्द मिलता है
रोडडेन्ड्रन जिसे पढ़ हम
रोडोडेन्ड्रॉन भी कह सकते हैं
मस्तिष्क में बिजली चमकती है
हाँ यही तो, यही तो मेरा
बुरुंश है
जिसे पहाड़ के साथ साथ
मैंने खो दिया।

फूल, पेड़ पहाड़ ही नहीं
मैंने तो अपनी भाषा के
तार तक खो दिए
खोए या अंग्रेजी के तारों में
कुछ यूँ उलझे
कि सुलझाने को अब
रोडडेन्ड्रन शब्द चाहिए।

उसके मिलते ही यादों में
रंग बिरंगे फूलों वाले पेड़ उग आए
हर पेड़ पर इक तख्ती भी टंगी थी
उसपर लिखा था
केवल और केवल, बुरुंश
किन्तु वहाँ तक जाने की राह
जब रोडडेन्ड्रन से होकर जाए।

तो समझ लेती हूँ कि
माँ , इजा, अम्मा अब मॉम हो गई
दी, दीदी, दिदम अब सिस हो गई
मौसी, कैंजा, काकी, जेठजा आँट हो गईं
माँ, बन नानी तुम जब ग्रैनी हुईं तो
(हमारे बिन कहे ही हो गईं होंगी
यह भाषा बिन बताए ही
मस्तिष्क हृदय में घुसपैठ करती है)
क्यों नहीं बुरुंश को रोडडेन्ड्रन
कहना सीख लिया?

सीखा होता तो क्यों
वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता
मेरे सपनों में भी बिन फूलों
बिन रंगों के आता?
काश, यह आर्द्रता आँखों की
सोख लेता फूल बुरुंश का
लगता कि उसने माफ़ किया
हिमालय की इस परित्यक्त बेटी को।

घुघूती बासूती

(चित्र विकीपीडिया से साभार।)
घुघूती बासूती