Saturday, January 30, 2016

मैं बनी बेबी मगरमच्छ

आज याने ३० जनवरी को मेरी नतिनी तन्वी तीन साल की हो जाएगी।
और २९ की मेरी शाम कुछ ऐसे बीती उसकी नतिनी बनकर।

जब से प्ले स्कूल जाना शुरु किया है उसे जुकाम पकड़े रहता है। बीच बीच में बुखार भी हो जाता है। शायद यह उसकी वायरसों से पहली मुठभेड़ है इसलिए। आज भी जुकाम अधिक था इसलिए निश्चय किया गया कि शाम को उसे पार्क खेलने नहीं ले जाया जाएगा, (पार्क भी मैं ही ले जाती हूँ) और घर में ही उसका मनोरंजन किया जाएगा।

उसका जन्मदिन आज स्कूल में मनाया गया। कल घर में और परसों बाहर जाकर मनाया जाएगा। उसका मन बहलाने को निर्णय किया गया कि दो उपहार आज ही दे देंगे। किन्तु तन्नी तो इतनी मस्त है, आज के भौतिकतावादी समय के बिल्कुल विपरीत है कि कमसे कम दस बार उपहार की बात करने पर भी उसे उपहार लेने में जरा भी रुचि नहीं थी। बाज़ार जाने पर भी कुछ चुनने को कहो तो अधिक से अधिक एक खिलौना उठा लेती है और कहती है, 'मेरे पास हैं।'

सो जो खेल उसने खेला उसका आरम्भ उसका दूध खत्म करवाने के लिए मैंने ही किया था। उसके पास कुछ चुम्बक वाली सपाट मछलियाँ, व्हेल, डोल्फिन, कछुआ, स्टार फिश, ओक्टोपस, लाइट हाउस आदि हैं। मैंने धूप में बैठकर अपनी उंगलियों से मुँह की आकृति बनाई और उसे मगरमच्छ कहा और उसकी मछलियों पर और दूध पर इस आकृति से आक्रमण करवाया, क्योंकि मगरमच्छ भूखा था सो यदि दूध  नहीं पीती तो दूध भी पी लेता। उसने दूध तो पी लिया किन्तु उसे खेल इतना पसन्द आया कि घंटों मेरे साथ यही खेल खेलती रही।

कुछ देर तो उसकी उँगलियाँ मगरमच्छ का मुँह बन मेरे हाथ से मछलियाँ खाती रहीं किन्तु बाद में मैं याने मेरी उँगलियाँ बेबी मगरमच्छ बना दी गईं। और वह याने उसकी उँगलियाँ नानू मगरमच्छ। उसकी उँगलियाँ शिकार पकड़ उन्हें चबाती और फिर 'च्यू च्यू ग्राइंड ग्राइंड' करने के बाद मेरी उँगलियों को खिला देतीं। (इस बात का संकेत कि चबाने का काम उसे कितना उबाऊ लगता है इसलिए नानू बन वह मुझे चबा कर खिला रही थी।) सब तरह की मछलियाँ कछुआ आदि खिलाने के बाद उसने मुझे लाइटहाउस भी खिला दिया। स्वाभाविक था कि मेरे नन्हे मगरमच्छीय पेट में दर्द भी हुआ। फिर उसने मुझे दवाई पिलाई जो अलग अलग चुम्बक वाले अक्षर थे और खेल जारी रखा। पहली नीले अक्षर वाली दवाई जब बेबी मगरमच्छ को पिलाई गई तो उसने कड़वी है की शिकायत की। तब वह लाल अक्षर वाली दवाई लाई और बोली कि लाल याने मीठी। मेरे द्वारा पेट भर गया कहने पर वह मेरे पेट के ओने कोने में कहीं जगह ढूँढ और खिलाती ही रही।

उसके उपहार ज्यों के त्यों पैक किए हुए पड़े ही रह गए। किन्तु साठ वर्षीय बेबी मगरमच्छ को एक तीन साल की ऐसी मगरमच्छ नानू मिल गई जो 'च्यू च्यू ग्राइंड ग्राइंड' करके उसके मुँह में खाना ही नहीं लाइटहाउस भी डाल देती है। वैसे आज तो उसने मुझे भयंकर माँसाहारी भी बना दिया।

स्कूल वाला केक मुझे क्यों नहीं मिला पूछने पर उसने बताया कि वह केवल बच्चों के लिए था और सुबह के समय तक मैं नानू ही थी, बेबी मगमच्छ नहीं, सो मैं केक के लिए अयोग्य थी।
घुघूती बासूती

9 comments:

  1. आनन्दम।
    तन्वी को स्नेह।

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  2. अहा!👌
    तन्वी को शुभाशीष ।

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  3. अहा!👌
    तन्वी को शुभाशीष ।

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  4. बस यूँ ही खेलते रहें, और आनन्दित हो जाये। तन्वी को शुभाशीष।

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " अविभाजित भारत की प्रसिद्ध चित्रकार - अमृता शेरगिल - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. तन्वी को शुभाशीष और आपको बधायी हो।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2016) को "माँ का हृदय उदार" (चर्चा अंक-2238) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. तन्वी के लिये शुभाशीष ।

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  8. बच्चों के साथ बच्चा बनकर सच में सुकून भरे होते हैं ..भले ही वे परेशान करते हैं लेकिन उसमें भी अलग ही मजा है ....
    तन्वी को शुभाशीष व प्यार ...

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  9. बहुत ही रोचक। जहाँ पर मन लग हो, वह उस जगह का हो गया।

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