Thursday, August 28, 2014

अपेक्षाओं के पेड़

अपेक्षाओं के पेड़
अपेक्षाओं के पेड़ उथले छोटे गमले में उगाना
उन्हें अधिक खाद पानी न खिलाना पिलाना
न अधिक धूप दिखाना व धूप से ही बचाना
उन्हें कमरे की खिड़की के आले पर न रखना.
उन्हें नजरों से बहुत दूर किसी बालकनी या
छत के इक कोने पर ही कुछ स्थान दिलाना
उन्हें इक दूजे के बहुत पास भी न सजाना
न ही पड़ोसी के घने बड़े पेड़ के पास रखना.
ये अपेक्षाएँ इक दूजे से चुगली करती हैं
ये अपेक्षाएँ तो महामारी सी फैलती हैं
गाजर घास सी बढ़ती, बुद्धि ढकती हैं
बरगद के पेड़ सी इनकी जड़ जटाओं सी
इक बार जो निकलती हैं तो धरती फोड़
इक नया पेड़ रच ही कुछ पल ठहरती  हैं.
बेहतर है कि इन्हें बहुत न पालो न पोसो
न निर्मल जल से न आंसुओं की धारा से
इन्हें तो बस समय समय पर, बार बार
नई कोपलों के फूटने से ही बहुत पहले
कलियां खिलने, फलों में बदलने से पहले
काट छाँट कर वापिस सही आकार दे दो.
गमले की मिट्टी से इसकी जड़ो को निकालो
उचित आकार में उन्हें  भी काटो, और  छाँटो
नहीं फैलने दो कभी उन्हें जरा भी असीमित
अपेक्षाओं का पेड़ है ,उसकी बोन्साई बनाओ
छायादार, फलदार वृक्ष न उसको कभी बनाओ
अपेक्षाओं के पेड़ उथले छोटे गमलों में उगाओ.

घुघूती बासूती

13 comments:

  1. माया महाठगिनी हम जानी ...

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  2. अपेक्षाएं इतनी न बढ़ जाएँ कि दुःख देने लगें .
    अपेक्षा का वृक्ष , बिम्ब और उसका प्रयोग अत्युत्तम है !

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (29.08.2014) को "सामाजिक परिवर्तन" (चर्चा अंक-1720)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  4. आभार राजेंद्र कुमार जी.

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  5. हमारी अपेक्षाएं बौंजाई ही बनी रहे, तभी हम और परिवार सुखी रहता है। अच्‍छा सार्थक चिंतन।

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  6. अपेक्षाएं स्‍व:स्‍फूर्त हैं

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  7. अपेक्षाएं स्वत: भी उग आती हैं ....
    छोटी रहें तो भी पनपने के लिए रिस्क ही होती है

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  8. वाकई। उम्मीद दुख की जननी है

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  9. अपेक्षा बोन्साई ही रखूंगा

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  10. अच्छे प्रतीकों के साथ सुन्दर प्रस्तुति।

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  11. कई बार पढ़ा और हर बार एक अजब सी मीठी वेदना तैर पड़ी.

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  12. सुन्दर प्रस्तुति!

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  13. अपेक्षाओं का पेड़ है, उसकी बोन्साई बनाओ..

    सहज सार युक्त रचना...बहुत खूब....

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