Tuesday, December 28, 2010

स्त्रियों में आत्मविश्वास जगाती खेल प्रतियोगिताएँ

पढ़ाई, नौकरी व आर्थिक स्वतन्त्रता ने स्त्रियों के स्वाभिमान व आत्मविश्वास में जहाँ वृद्धि की है वहीं समाज की नजरों में भी उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। यही काम या उससे भी कुछ अधिक खेलों व खेल प्रतियोगिताओं ने स्त्री खिलाड़ियों के लिए किया है। जब लड़कियाँ तमगे, पुरुस्कार, नाम व धन जीतकर अपने गाँव, कस्बे या शहर के मोहल्ले में आती हैं तो वे अनेक अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं और न जाने कितनी अन्य लड़कियों के माता पिता को प्रेरणा देती हैं कि बेटियों को भी खेलकूद में भाग लेने दें। उस देश में जहाँ अभी कुछ वर्ष पहले तक बहुत से कम सुविधा सम्पन्न परिवारों में बेटियों की पढ़ाई भी समय व धन की बर्बादी मानी जाती थी और 'पढ़ लिख कर क्या कलेक्टर बन जाएगी' पूछा जाता था, वहीं जब कई माता पिता देख रहे हैं कि बेटियाँ खेलकर नाम व धन दोनों कमा रही हैं तो वे न केवल बेटियों को खेलने दे रहे हैं अपितु उन्हें प्रोत्साहन तक दे रहे हैं।

इस बार के राष्ट्रमण्डल खेलों व एशियन खेलों में छोटे कस्बों व गाँव की बहुत साधारण परिवारों से आने वाली आर्थिक समस्याओं के बावजूद बिना सही जूतों, किट आदि के भी पदक जीतने वाली स्त्री खिलाड़ियों ने न जाने कितनी लड़कियों का पथ प्रशस्त कर दिया। उन्हें घर से बाहर जाने, सुविधाजनक वस्त्र पहनने आदि की स्वतन्त्रता इन्हीं खेलों ने दिलवाई है।
मुझे याद हैं हमारे कॉलेज के दिनों के महीने में केवल तीन बार छात्रावास से बाहर जाने की अनुमति वाले वे दिन! गाय भैंस को भी शायद तबेले से बाहर निकलने को मिलता है। तब भी खेल ही मेरे बचाव को आते थे। खेल, टूर्नामेंट, अभ्यास आदि के कारण मुझपर कम रोकटोक थी।

यही बात शायद साऊदी अरब के शिक्षा विभाग को भी पता है कि खेल स्त्रियों को मुक्ति का आभास दिला सकते हैं। तभी तो वहाँ लड़कियों के स्कूलों में न केवल खेलों का कोई स्थान नहीं है अपितु वे अवैध भी हैं। हाल ही में जब रियाध के छः निजी स्कूलों ने छात्राओं के लिए खेल टूर्नामेंट आयोजित किए तो शिक्षा विभाग ने उन्हें अवैध गतिविधि घोषित किया।
मुझे याद है कि तीन साल के अपने प्रवास में मैंने सिवाय भारतीय बच्चियों के कभी वहाँ किसी स्थानीय बच्ची को खेलते हुए नहीं देखा। यह समाचार पढ़ने के बाद तो मैंने अपने मस्तिष्क में और भी जोर डाला किन्तु वहाँ की स्त्रियों या बच्चियों के खेलने का केवल एक ही दृष्य याद आया।

तीस साल पहले कारखाने की उस बस्ती में (जहाँ भारतीय, अरब, मिस्र व कुछ अन्य देशों के लोग रहते थे ) हम भारतीय कर्मचारियों व उनके परिवार को बहुत सी विशेष सुविधाएँ व अनुमति मिली हुई थीं। हम यहाँ की तरह ही बिना परदे के रह सकती थीं, अपनी बस्ती में बिना पिता, पुत्र, पति के घूम सकती थीं, महिला मंडल में खेल सकतीं थीं, पार्टी कर सकती थीं, यहाँ तक कि यहाँ की तरह वहाँ भी हमारा स्पोर्ट्स क्लब था जहाँ हम स्त्री, पुरुष, बच्चे जा सकते थे। यह अनुमति हमें किस मजबूरी में दी गईं थीं यह तो पता नहीं। शायद कारखाना चलाने में उनकी असमर्थता व कारखाना चलाने को हमारी भारतीय कम्पनी को अनुबन्ध देने के कारण विदेशियों पर निर्भरता ही उन्हें उदार बनने को बाध्य करती रही हो, या अनुबन्ध ही इस शर्त के साथ कि हम अपना सामान्य सामाजिक जीवन जिएँगे, बनाया गया हो।

एक बार हमने अपने महिला मण्डल में एक पार्टी रखी जिसमें कई खेल भी रखे थे। हमने कुछ स्थानीय स्त्रियों को भी बुलाया था। प्रायः वे नहीं आती थीं। चाय नाश्ते के बाद खेल चल रहे थे जब दो घंटे देर से हमने कुछ स्त्रियों को आते देखा। हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम चाय नाश्ता तैयार कर परोसते, समेटते रसोइये को विदा कर सकें क्योंकि ऐसा करने पर उसे उनके सामने से गुजरना होता जो शायद केवल स्त्रियों के बीच आने के विचार से आईं स्थानीय स्त्रियों को अनायास अपने सामने परपुरुष देख न केवल हतप्रभ कर देता अपितु शायद उनके अनुसार अनुचित होता। सो हमने रॉबर्ट को जिस कमरे में वह खाना समेट रहा था वहाँ से बाहर निकलने को सख्त मना किया और उस कमरे के दरवाजे को बाहर से बन्द कर दिया।( उल्टी गंगा बहाने की अपनी यह आदत काफी पुरानी है। पुरुष को छिपा दो तो भी स्त्री का परदा हो गया!)

जितना आनन्द उन स्त्रियों को हमारे द्वारा आयोजित उन भाग, दौड़, मस्ती वाले खेलों में आया, जिस प्रकार वे पुलकित हो किलकारियाँ मार रही थीं वह देख हम दंग रह गईं। हममें से केवल एक को ही अरबी आती थी वही उन्हें खेल समझा रही थीं। उनकी हँसी, खुशी व उत्साह से हमें यह तो समझ आ रहा था कि उन्हें मजा आ रहा था और रॉबर्ट को बन्द करना व्यर्थ नहीं गया था। हमें तब भी यही लगा था कि शायद वे जीवन में पहली बार खेल रहीं थीं। २३ दिसम्बर २०१० के टाइम्स में पढ़े समचार ने लगभग २५ साल बाद मेरे उस संदेह कि 'वे पहली बार खेल रहीं हैं' की पुष्टि कर दी। यदि आज भी बच्चियों को खेलने की स्वतन्त्रता नहीं है तो उनके बचपन में तो क्या ही रही होगी? यदि पंख काटने की बजाए उनका उपयोग शुरू से निषेध कर दिया जाए तो वे पंख केवल सजावटी रह जाते हैं, पक्षी शायद उन्हें फड़फड़ाना भी भूल जाता है।

घुघूती बासूती

25 comments:

  1. एशियाड व राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं की सफलता ने इस उत्साह में एक नया अध्याय जोड़ दिया।

    ReplyDelete
  2. समान मौका दिया जाए .. तो महिलाएं पुरूषों से पीछे क्‍यूं रहेंगी .. किसी प्रकार के खेल से जुडी तमाम महिलाओं को मेरी शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  3. भारत में पंखो को मिली ये आजादी भी केवल खेलो तक ही सिमित है | कुछ समय पहले एक पूर्व महिला हाकी खिलाडी को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने की खबरे सभी ने देखी थी और आश्चर्य इस बात पर था की वो कई सालो से ये सब सह भी रही थी और घरवाले उसका कोई साथ नहीं दे रहे थे | महिलाओ की सबसे बुरी स्थिति के लिए बदनाम राज्यों में एक हरियाणा से जब कई लड़कियों के खेलो में सफलता की कहानी बाहर आती है तो अच्छा लगता है पर साथ ही इस बात का भी एहसास भी रहता की ये पंखो की फडफडाहट केवल खेलो तक ही सिमित है सामाजिक और निजी फैसलों में अभी भी उनके पंख बंधे ही है | उम्मीद है एक दिन यो बंधन भी खुल जायेंगे |

    ReplyDelete
  4. "'पढ़ लिख कर क्या कलेक्टर बन जाएगी" जैसी मानसिकता का धीरे-धीरे खात्मा हो रहा है ,
    यह एक शुभ संकेत है ,
    आभार..................

    ReplyDelete
  5. आज कल की महिलाऐं किसी बात में भी पुरुषों से कम नहीं हैं| सिर्फ मौका मिलना चाहिए|

    ReplyDelete
  6. आज भारत की तमाम खिलाडी लडकियां अपने-अपने समाज में मिसाल कायम कर रही हैं। मानसिकता बदल रही है।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  7. मैने भी स्मृति पर भरपूर जोर डाला और "प्रिंसेस ऑफ सउदी अरेबिया " (जिसमे एक उच्च वर्ग की स्त्री की गाथा है)...पुस्तक को याद करने की कोशश की कि कहीं भी उसमे किसी लड़की के खेलने का जिक्र है...ना नहीं है ...लड़कियों का आपस में ही पार्टी करना ,इन सबका जिक्र तो है..पर खेल का नदारद.
    भारत में थोड़ा सुधार आ तो रहा है..भले ही स्वार्थ के लिए ही सही....याद आ गया "चक दे' फिल्म में उस गोलकीपर की कहानी जिसे खेलने की इजाज़त ,सरकारी नौकरी और सरकारी आवास के लालच के एवज में मिली थी

    ReplyDelete
  8. परिवर्तन तो आ रहा है मगर बहुत धीरे।आभार।

    ReplyDelete
  9. हमारे समाज से अभी ये मानसिकता गयी नहीं की 'खेलना-कूदना लड़कियों का काम थोड़े है'

    ReplyDelete
  10. परिवर्तन की रफ़्तार बेशक धीमी है मगर सही दिशा मे है।

    ReplyDelete
  11. अफ़सोस तो इस बात का है कि इकीस्वीं सदी में भी विश्व के कई कोनों में स्त्रियों को बाँध कर रखा जाता है पर्दे में ।
    यह तो एक किस्म का अत्याचार ही है ।
    ख़ुशी है कि हमारी बच्चियों ने विश्व में अपनी धाक जमा दी ।

    ReplyDelete
  12. बेहतरीन प्रस्तुति,सार्थक प्रयास.

    ReplyDelete
  13. pahli baar jana arab desh ke is kroor nishedh ke baare me aur vaha ki naari jaati ke liye dukh ho raha hai. ye to bahud badi vidambana hai ki 21vi sadi me sansaar ke kayi kone aise bhi hain.

    sunder prabhaavshaali prastuti.

    ReplyDelete
  14. आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएं।

    ReplyDelete
  15. हम तो वैसे भी हर जगह समझौता कर लेते हैं..

    ReplyDelete
  16. सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
    यह हमारी आकाशगंगा है,
    सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
    कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
    आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
    किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
    मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
    आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
    मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
    उनमें से एक है पृथ्वी,
    जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
    इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
    भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
    मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
    भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
    एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
    नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
    शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
    यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
    -डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

    नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  17. सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
    यह हमारी आकाशगंगा है,
    सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
    कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
    आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
    किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
    मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
    आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
    मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
    उनमें से एक है पृथ्वी,
    जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
    इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
    भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
    मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
    भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
    एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
    नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
    शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
    यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
    -डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

    नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  18. आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  19. शानदार प्रस्तुति। अपको भी सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  20. सच कहा - अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"

    ReplyDelete
  21. यकीनन महिलाएँ पुरूषों से कम नहीं हैं

    ReplyDelete
  22. हमेशा की तरह सुन्दर पोस्ट ! वैसे सउदी अरेबियाई मानसिकता पर एक पोस्ट तो बनती ही है !
    नव वर्ष की शुभ कामनाएं !

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  24. http://mithileshdubey.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html नारी उत्थान में निहित भारत विकास-

    ReplyDelete