Wednesday, May 07, 2008

कल रात सपने में अमेरिकी गिलहरियाँ भारतीय गिलहरियों को हड़का रहीं थीं।

सपने तो सोते व कभी कभी जागते हुए भी दिन रात देखती हूँ। परन्तु कल के सपने की तो बात ही अलग थी। हट्टी-‍कट्टी, लाल‍‍‍-भूरी, किसी छोटे पॉमेरियन कुत्ते के आकार की गिलहरियाँ हमारी पतली दुबली देशी गिलहरियों को हड़का रहीं थीं। कह रहीं थीं कि वे पतली होती जा रही हैं , कि उनके यहाँ खाने की बहुत कमी हो गई है और यह सब हमारी देशी गिलहरियों के बढ़ते आहार के कारण है। जितनी जल्दी हो वे वापिस अपनी औकात( और तौंद रहित आकार ) में आ जाएँ, अन्यथा !

यह अन्यथा सुनना था कि हमारी गिलहरियाँ बेचारी डर गईं। साद्दाम के बारे में शायद वे पढ़ सुन चुकीं थीं। उसने भी तो WMD इकट्ठे करके बेचारे शान्तिप्रिय बुश पर एक अनन्त सा युद्ध थोप दिया था जिसकी कीमत बेचारे अमेरिकी आज तक चुका रहे हैं। अब हमारी गिलहरियाँ फल,अन्न के दाने,बीज,गुठलियाँ आदि इकट्ठा करके अमेरिकी गिलहरियों को कुछ ऐसा अहसास दिला रहीं हैं कि वे भी FMD {food for (american body) mass destruction} इकट्ठा कर रहीं हैं। अब अमेरिकियों के पास संसार की शेष सभी वस्तुओं के अलावा body mass भी कुछ अधिक ही है। तो उसका डिस्ट्रक्शन होने का संशय मात्र ही उनके कान खड़े कर देता है।

काफी देर तक तो हमारी गिलहरियाँ अमरत्य सेन के argumentative indian की तरह उनसे बहस करती रहीं कि देखो तो बहन तुम्हारी अपेक्षा हम कितनी मरियल सी हैं। हम तो केवल अपने देश में ही उपजे फल बीज आदि खाती हैं। बाहर का तो कुछ छूती भी नहीं हैं। पर वे कहाँ मानने वाली थी। हारकर साद्दाम की तरह हमारी गिलहरियाँ भी बोलीं कि चलो तुम्हें अपने घोंसले दिखला देते हैं, गुठली छिपाने की जगह दिखा देते हैं,तुम खुद ही तसल्ली कर लेना कि हमने तुम्हारा खाना नहीं खाया,छिपाया। पर वे अमेरिकन गिलहरियाँ तो गुर्राने ही लगीं। खैर हमारी गिलहरियों ने उन्हें वचन दिया कि अब वे नपा तुला आहार ही खाएँगी।

जब वे चलीं गईं तो अपनी गिलहरियों में से एक का अपने भूखे मृतप्राय बच्चे के लिए रोना सुनकर मेरी नींद टूटी। मैं तो सिहर गई। सीधे वजन की मशीन पर खड़ी हुई। वास्तव में मेरा वजन बहुत अधिक था और मैं अमेरिका में भोजन के अभाव का एक कारण स्वयं को मान बेहद शर्मिंदा हुई। मैंने भी निर्णय ले लिया है कि अबसे कम खाऊँगी। और मित्र देश के कष्ट को कम करने में सहायता करूँगी।

सपने में मैंने दोनों देशों की गिलहरियों की फोटो भी खींचीं। तो प्रस्तुत हैं हट्टी-कट्टी अमेरिकन गिलहरी और मुँह में पेड़ की छाल या रस्सी दबाए मेरे बगीचे की एक गिलहरी ।


घुघूती बासूती

नोट: फोटो बिटिया के कैमरे से।

20 comments:

  1. ओह, मेरे सपने में तो अमरीकी बिल्ला था और भारतीय गिलहरी।

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  2. kyaa baat hai.. sabhi ka sapna ek sa hi hai.. :)

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  3. Anonymous4:44 pm

    दोनों प्यारी गिलहरियाँ मानव-छाया से बचें ।

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  4. Anonymous4:46 pm

    ये तो अमरीकीयों की पुरानी आदत है. अब गिलहरी भी ऐसा करने लगी है आज पता चला. फोटो बढिया हैं.

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  5. आपकी बात सही निकली रामदास जी सोनिया जी से इसी मसले पर मिलने और गिलहरियो को देश से बाहर निकालने के लिये बिल लाने की बात करने गये है :)

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  6. वल्लाह, क्या बात है!

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  7. Anonymous5:52 pm

    gilhari ke pics bahut sundar,aur lekh ati ati sundar,what a beautiful comparison with lace of smiles,nice.

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  8. बहुत खूब लिखा है..काश अमेरिकन हिन्दी पढ़ना जानते तो शायद आप की पोस्ट पढ़ कर चुल्लू भर पानी में डूब मरते...(क्या इतने वो इतने भले मानुष हैं भी?)
    नीरज

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  9. एकदम बढ़िया चोट की है आपने…

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  10. Excellent Photographs.

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  11. एक करारी चोट, अमिरिकियों के सोच पर.

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  12. नीरज जी, उनके आकार को देखकर तो नहीं लगता कि एक चुल्लू पानी काफी होगा। उसमें तो शायद उनकी नाक भी ना डूब पाए !
    घुघूती बासूती

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  13. अच्छा लिखा है लेकिन मैं अफलातून जी की बातो से सहमत होता हू
    राजेश रोशन

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  14. Anonymous10:09 pm

    आपने हिला कर रख दिया है.

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  15. बेहतरीन!!! आनन्द आ गया.

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  16. व्यंग्य शैली अमदाबाद करने का शुक्रिया! वह भी फोटोजेनिक!
    यह साहित्य में नया प्रयोग ठहरा . आज यकीन हो गया कि आपके अन्दर एक बुनियादी समझ है.

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  17. जबरदस्त। भिगो के जूता मारा है आपने।

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  18. काश बुश और कोन्डेलिज़ा राइस हिन्दी पढ पाते.पढ कर मज़ा आया,सही चाबुक मारा आपने.

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  19. Bahut hi badhiya likha hai.
    Regards

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