हम लोग तब नए नए यहाँ आए थे । यह तो पता था कि हम शेरों के इलाके के बहुत निकट हैं परन्तु कितना निकट हैं यह नहीं पता था । यह तब पता चला जब हमारा ड्राइवर बोला कि उसे अगले दिन की छुट्टी चाहिए, उसे अपने मामा को देखने जाना है । हमने पूछा कि मामा को क्या हो गया । जो उत्तर हमें मिला उसे सुनने की तो हमने बिल्कुल आशा नहीं थी । हम बहुत बड़ा सा 'क्या' कहकर आश्चर्यचकित रह गए । वह बोला, 'उसके मामा को शेर ने काट लिया है ।'
यदि वह बोला होता कि कुत्ते ने काट लिया है, या साँप ने तो मामा से सहानुभूति तो होती परन्तु बात समझ में तो आती । हमने सोचा शायद यह भाषा की गड़बड़ है , हमें उसकी बात समझ नहीं आ रही । हमने एक बार फिर पूछा, "मामा को शेर ने काफी घायल कर दिया होगा ।"
वह बोला, "हाँ, दो तीन दाँत लगा दिये हैं छाती पर ।"
"बस?"
"हाँ ।"
"ऐसा कैसे ?"
"शेर उन्हें पहचानता था ।"
यह तो एक और ही नई बात सुनने को मिल रही थी । हम तो बस केवल कुछ मानवों, कुत्ते, बिल्लियों द्वारा ही पहचाने जाते हैं और यहाँ इन मामाजी को शेर भी पहचानता था । हीन भावना तो हुई परन्तु पूरी बात जानने की उत्सुकता भी थी। आखिर रोज रोज शेर लोगों को काटता तो नहीं , मार भले ही देता हो।
"यह सब हुआ कैसे ? क्या वे जंगल में थे ?"
"नहीं वे तो गाँव में ही गायें चरा रहे थे ।"
"फिर?"
"शेर ने गाय पर हमला किया । गलती से मामा बीच में आ गए ।"
"शेर उन्हें कैसे पहचानता था ?"
"वह शेर तीन और शेरों के साथ बहुत दिनों से हमारे गाँव में घूम रहा है । कभी खेत में मिल जाता है तो कभी आते जाते रास्ते में ।"
"फिर तुम लोग क्या करते हो ?"
"कुछ नहीं, शाम को अपने जानवर घर के अंदर बाँध लेते हैं ।"
"ओह ! कहाँ इलाज हो रहा है ?"
"अभी तो जूनागढ़ के हस्पताल में भर्ती हैं । एक दो दिन में छुट्टी मिल जाएगी ।"
शेर का हमला, नहीं नहीं , काटना,शेर से जानपहचान,शायद शेर ने मामाजी से ओह सॉरी भी कहा हो , यह सब सुनकर हमें लग रहा था या तो हम स्वप्नलोक में थे या कार्टूनलोक में ।
आज यह सब बात इसलिए याद आ गई क्योंकि शहर से घर आते आते बहुत देर हो गई थी । रास्ते का एक बहुत बड़ा भाग सुनसान है । एक सूखी नदी को पार करते हैं । कई बार नदी के पास ठीक सड़क के किनारे चिता जल रही होती है और लोग उसके आसपास ऐसे बैठे होते हैं जैसे आग ताप रहे हों । सियारों की हूहू सुनाई दे रही होती है । ( अभी भी सुनाई दे रही है ।) कभी कोई लोमड़ी या सियार रास्ता काट जाता है ।
मैंने उससे पूछा," क्या कभी इस रास्ते पर शेर मिला है ।"
वह बोला "तीन बार तो कार से लौटते समय का उसे ध्यान में है । एक बार तो जब दीदी लोगों को अहमदाबाद छोड़कर आ रहा था तब ।"
"फिर क्या किया ?"
"कुछ नहीं , कार देखकर वह सड़क के किनारे खड़ा हो जाता है। हम कार दूसरी तरफ से निकाल लेते हैं।"
"जब तुम मोटरसायकल पर होते हो तब क्या करते हो ?"
"कुछ नहीं , किनारे से निकाल लेता हूँ ।"
"शेर क्या करता है ?"
"बस वह किनारे पर खड़ा हमारे गुजरने की प्रतीक्षा करता है । फिर चल पड़ता है ।"
"यदि पैदल हो तो ?"
"तब भी कुछ नहीं । एक किनारे से निकल जाते हैं ।"
"उसके पास से ? वापिस नहीं लौट जाते ? "
"नहीं शेर को छेड़ो नहीं तो कुछ नहीं कहता है ।"
देखिये शेर तक इतने भले होते हैं कि छेड़ो ना तो अपने रास्ते ही नहीं जाते अपितु आपके लिए रास्ता भी छोड़ देते हैं । आज अपने ड्राइवर से बहुत सी बाते हुईं । अधिकतर शेरों की । चर्चा कल या परसों या जब मन हुआ तो जारी रखूँगी ।
घुघूती बासूती
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मज़ा आ गया...'शेर ने काट लिया' आपके ड्राइवर के बातों से ऐसा लगता है कि उसे अपने मामा को देखने नहीं बल्कि उस 'मित्र' शेर को देखने जाना है...ये भी अच्छा लगा शेर केवल हमला ही नहीं करते वो काटते भी है...
ReplyDeleteअरे घुघूती जी आप गुजरात के किस प्रांत में रहतीं हैं जो शेरों के इत्ते करीब है ? आप आगे जो बातें हुईं वे भी बतलाईयेगा ..आपका ड्राईवर वाकी बहादुर है - और शेर जी ..जंगल के राजा !!
ReplyDeleteअब वे भी क्या करें जब बस्तीयाँ , वन - प्रान्तों को निग्ल्तीं जा रहीं हैं ..
जानवर कहलाने वाला जन्तू इन्सान से बडा जानवर नही है,वो मजबूरी मे मारता है (खाने की) ये शौकिया.
ReplyDeleteमज़ेदार है ये तो ! आगे भी बताईये ।
ReplyDeleteबड़ी रोचक बातचीत चल रही है...आगे की बातचीत बताईये.
ReplyDeleteअनेक नई बातें पता चलीं। लोगों ने नाहक ही शेरों की इमेज इतनी खराब कर रखी है। इस पोस्ट के लिए हमारे साथ-साथ शेर भी आपके बहुत शुक्रगुजार होंगे :)
ReplyDelete- आनंद
रोचक किस्सा.
ReplyDeleteपहले लगा आप कोई चुटकुला सुनाने वाली हैं.
वाकई मजेदार है यह तो!!
ReplyDeleteरोचक, जारी रखें!!
नाहक सारे जमाने ने शेर के इमेज की वाट लगा रखी है फिर तो!!
आज के जमाने में,इन्सान से किनारा कर करके निकलना मुश्किल है.पशुप्रेमी होने के नाते दावे से कह सकती हूं,बिना छेडे पशु कभी हमला नहीं करता.
ReplyDeleteदेखिए, कैसी खुशकिस्मत हैं आप, ऐसे इलाके में रहती हैं.. हम तो जहां रहते हैं, वहां ट्रैक्टर, टैंक से भी जा रहे हों, कुत्ता दांत गड़ाने का मज़ाक किये बिना आगे जाने नहीं देता! ऐसे ही नहीं है कि आप गुजरात-गुजरात गाती रहती हैं?
ReplyDeleteआगे की चर्चा सुनने के लिए हम भी उत्सुक हैं।
ReplyDeleteअरे हम तो बेसब्री से इन्तजार कर रहें हैं।
ReplyDeleteवाह रोचक है यह तो.... :)
ReplyDeleteमहोदय, आप देख के आयें की क्या चक्कर है...अगर सच हो तो भाई विडियो हमे भी दिखाएँ... कमाल है...
ReplyDeleteवैसे सुना और पढ़ा था शेर जब भूखा होता है तभी हमला करता है लेकिन आपके यहाँ के शेर तो कुछ ज्यादा ही भले निकले
ReplyDeleteHi, do open comments for other bloggers too on your 'musings' too.
ReplyDeleteRegards,
PI.
hi prudent. thanks for visiting.the comments on musings r open and unmoderated.u r free to comment.
ReplyDeleteghughutibasuti