मैं प्रतिदिन थोड़ा और मर रही हूँ
किसी दिन कुछ अधिक
तो किसी दिन थोड़ा कम
इस नित दिन मरने से
क्या एक बार ही
पूरा का पूरा मरना
कुछ बेहतर ना होगा?
क्या एक बार में ही
काल, तुम मुझे नहीं मार सकते?
मैं थक गई हूँ
बेहद थक गई हूँ
या तो मुझे मार लो
या मुझे कुछ थमकर साँस लेने दो
ताकि फिर से मैं
इस असमान युद्ध में कूद सकूँ
और काल, बन सकूँ मैं
तुम्हारे मनोरंजन का साधन !
परन्तु क्या तुम्हें पता है
कि तुम भी हो मेरे
मनोरंजन का ही एक साधन
क्योंकि मैं थक चाहे जाऊँ
ऊब भले ही जाऊँ
तुमसे लड़ते लड़ते
परन्तु हारती मैं
कभी नहीं हूँ ।
मरने पर भी नहीं हारूँगी
नहीं होगी एक बेबसी मुझमें
तुम सोचोगे कि यह विजय है तुम्हारी
परन्तु देखोगे तो मेरे अधरों पर
एक मुस्कुराहट
कुछ ऐसी जैसे
तुम भी रहे हो
सदा से मेरे मन बहलाव
के ही एक साधन !
घुघूती बासूती
Monday, February 25, 2008
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निराशा से आरम्भ ....धीरे...धीरे..आशा की ओर... पढ़ते पढ़ते उदास होते चेहरे पर मुस्कान ला दी.. अंतिम पंक्तियों में जीवन दान देने का भाव अति सुन्दर !
ReplyDeleteनिराशा से आशा की बजाय आशा से और आशा वाली अभिव्यक्ति की प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteशुरू मे पढ़कर तो हमे लगा की आप फ़िर से ऐसी कवितायें क्यों लिखने लगी पर अंत पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteआज ही तो आपसे कहा कि आपको पढ़कर हिम्मत मिलती है…
ReplyDeleteअच्छी और सुंदर कविता.
ReplyDeleteमौत से जंग बहुत अच्छी लगी.
और अंत मे मौत सचमुच हार गई.
वाह!
परन्तु हारती मैं
ReplyDeleteकभी नहीं हूँ ।
jis shakhs ki yeh spirit ho, use aisi baat nahi sochani chahiye. meri samajh me yeh negative hai. aap to positive attitude waali hain. ladne ka hausala, badi cheez hai... jo aap me hain.
bahut sundar,aakhari panktiyan bahut aashavadi hai.
ReplyDeleteमरना भी सीखा जाये। बिना मरे जीना भी नहीं सीखा जाता। रोज मरें रोज जीने को!
ReplyDeleteआप की इस जिजिविषा को प्रणाम। मृत्यु पर विजय ही तो मनुष्य का अंतिम स्वप्न है। आप ने उसे पूरा कर लिया।
ReplyDeleteकाश आप जैसी हिम्मत सब को मिले। ऐसी स्कारातमक सोच के होते तो काल आने के साथ ही हार गया था…जितना जिएं जिन्दादिली से जिएं जीना इसी का नाम है और आप ये कर रही हैं ,
ReplyDeleteबहुत हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
ऐसा न हो तो जीवन निरस न हो जाए
ReplyDeleteवैचारिक द्वन्द्व को प्रदर्शित करती एक बढ़िया रचना॰॰
ReplyDeleteकृपया यह न भूले कि हम आप से बहुत कुछ सीख रहें हैं
सोचने को मजबूर करती है आपकी कविता...
ReplyDeleteमन में उमड़ती निर्मल भावनायें काव्य में प्रस्फ़ुटित हो रहीं हैं ....अच्छा लगा
bahut sahi u-turn le liya ant me, varna hum kehne wale thai ki ye nirasha ke geet kyon. aati sundar.
ReplyDeletekaal yaani yamraaj na
भावुक..
ReplyDeleteghughuti jee,
ReplyDeletesaadar abhivaadan. bahut samay se apke blog par tippnni nahin kar paar rahaa tha magar aaj safal ho hee gaya. niraasha bharee panktiyaan kyon? magar shukra hai ki ant achha hai .
Waah,bahut badhiya.Aisi hi likhti rahen.Aapme bahut kuch sundar rachne ki pratibha hai,uska sahi upyog hi aapko kaljayi banayega.Meri shubhkamnayen aapke saath hain.
ReplyDeleteAapki bahan.
Ranjana
सब कुछ ....
ReplyDeleteफिर भी हार नहीं मानूगी, इसी बात मे दम है ।
भावुक कविता
मैं केवल एक ही शब्द कह सकता हूं और वह शब्द है ----- उम्दा
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन...आनन्द आ गया..वाह!!!
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