ऐसा क्यों होता है कि स्त्री को जन्म से पहले ही भ्रूण की अवस्था में ही मार दिया जाता है ? ऐसा क्यों होता है कि पुत्र पुत्री से अधिक प्यारा होता है ?
ऐसा क्यों होता है कि यदि साधन सीमित हों तो वे सीमित साधन केवल पुरुष को दिए जाते हैं ?
ऐसा क्यों होता है कि त्याग की अपेक्षा केवल स्त्री से की जाती है ?
ऐसा क्यों होता है कि नालायक बेटे को भी पढ़ने के लिए कहा जाता है और लायक बेटी को घर के काम काज करने को कहा जाता है ?
ऐसा क्यों होता है कि अबला नारी से नौकरी करके आने के बाद घर के सारे काम करने की अपेक्षा की जाती है और सबल पुरुष से गर्मागर्म चाय के बाद आराम की ?
ऐसा क्यों होता है कि स्त्री यदि कहे कि वह कुछ निर्णय पति से पूछ कर लेगी तो सब उसकी वाह वाह करते हैं, यदि पुरुष कहे कि पत्नी से पूछ कर बताएगा तो वह कमजोर या दब्बू माना जाता है ?
ऐसा क्यों होता है कि यदि स्त्री कहे कि उसे घर जाना है पति आ गए होंगे तो कोई उसे उलाहना नहीं देता किन्तु यदि पुरुष यही कहे तो हास्य का पात्र बन जाता है ?
ऐसा क्यों होता है कि पत्नी का कहा जरा भी मानने वाला बीबी का गुलाम कहलाता है किन्तु ऐसी किसी उपाधि से स्त्रियों को सुशोभित नहीं किया जाता ?
ऐसा क्यों होता है कि जन्म स्त्री देती है, बड़ा वह करती है किन्तु बच्चा पिता का ही कहलाता है?
ऐसा क्यों होता है कि अधिकतर झगड़ा पुरुष करते हैं, गाली भी वही देते हैं किन्तु गालियों में नाम स्त्रियों का आता है ?
ऐसा क्यों होता है कि अधिकतर युद्ध पुरुष आरम्भ करते हैं व लड़ते भी वही हैं किन्तु युद्ध की कीमत स्त्रियों को चुकानी पड़ती है ?
ऐसा क्यों होता है कि बलात्कार पुरुष करता है और अनादर स्त्री का होता है, न कि बलात्कारी का?
ऐसा क्यों होता है कि मृत्यु स्त्री लिंग है और जन्म पुल्लिंग ?
ऐसा क्यों होता है कि अग्नि स्त्री लिंग है और जल पुल्लिंग ?
ऐसा क्यों होता है कि भूख स्त्री लिंग है और भोजन पुल्लिंग ?
ऐसा क्यों होता है कि घृणा स्त्री लिंग है और प्रेम, स्नेह पुल्लिंग ?
घुघूती बासूती
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बिल्कुल परेशान करने वाले प्रश्न हैं. अगले जन्म में - अगर लेना पड़ा, तो मैं वर्तमान जीवन की कमियां दूर करने की सोचता हूं. पर कभी भी यह विचार नहीं आया कि नारी बनूंगा. नारी जीवन की विकट सीमायें हैं जो बहुत हद तक पुरुष की दुष्टता के चलते हैं; पर कुछ नारी जन्य भी हैं.
ReplyDeleteसमाज में एक आमूल परिवर्तन की जरूरत है जिससे कि यह विषमता मिट सके -- शास्त्री
ReplyDeleteमेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteऐसा समाज में आमूनन होता हो पर हर घर में नहीं होता है। कई घरों में तो शायद इसके विपरीत होता है। जरूरत है ऐसे घरों की संख्या बढ़ाने की।
ReplyDeleteआपने बहुतही अच्छा प्रश्न उठाया है।जी जहाँ तक आपके प्रश्न है तो इसके लिए हमारा पुरूष प्रधान समाज का होना ही प्रमुख कारण है। मै मानता हूँ कि समाज में स्त्रियों के साथ भेदभाव जरूर होता है पर मै आप को ये भी बताना चाहता की हम वैदिक संस्कृति से यह उदाहरण ले सकते है की पूर्व समय मे स्त्रिर्यों की दशा कितनी सुदृढ़ थी परन्तु जब से मुगल कालीन शासन आया सारी स्थित विपरीत हो गयी । वैसे स्त्री हमेशा से अपने को समर्पित करती है परिवार के लिए , समाज के लिए।
ReplyDeleteबहुत ज्वलंत प्रश्न। एक विस्तृत टिप्पणी की बजाय इन प्रश्नों के उत्तरों (जो अगर हम ईमान्दारी से सोचें तो हम सब के पास हैं)को कार्यान्वित करने की दरकार अधिक है। उसी का प्रयास कर रहा हूँ। पर शायद केवल नारी प्रधान अथवा पुरुष प्रधान प्रश्नों का उत्तर ढूंढने से सदा आंशिक समाधान ही हो पायेगा। एक अंश ठीक तो दूसरा गलत हो जायेगा और सदा ही यह फेर-बदल चलता रहेगा। शायद आवशयकता पूर्ण प्रश्नों की है…पूर्ण उत्तरों के लिये…जो पूरी मानवता का उत्थान कर सकें। इसी में सब की जीत है…नर-नारी दोनो की।
ReplyDeletethe woman is herself responsible for her own detoriation. she lives with a slave mentality because she wants always to be protected. she will accept wrongs done by her husband and protect him socially because she feels she is vunreable and cant live without the support of her husband in the society . she will protect all wrongs done by her son because she feels in old age he will protect her an she feels proud when she gives birth to a son . even when a woman blesses another pregnant woman she says " may you get a son " . the woman always will teach the daughter how to protect herself from strangers by telling the daughter not to move out in darkness but she will never teach her son that he should not misbehalve with woman .
ReplyDeletewhen a woman is a daughter she will wait to get married , if she is not happy with her father the only revolt she will do is to marry a perosn who is not of her fathers choice .
woman when they grieve show it in open by sheding tears does that mean that man dont greive no but man dont show thier weekness . man moves ahead if something wrong happens in a relationship but woman does not .
and worst of all woman will never support woman.
its not necessary to change the mans attitude its more important that woman changes their attitude. they have to learn to be mentally independent , they have to learn to support the "right " and speak when things are wrong .
The silence of woman has been taken to be her acceptance of wrong . Gender Equality is state of mind and we dont need to prove that we are free . Man and woman are equals and should be treated as equals . Being woman is the blessing becuase you can think from not only mind but also from heart which means that woman are comeptent to think rationally and emotionally . And MAm , i respect you because you are senior to mein age and experience but if such questions are still bothering you then things need to change fast and you should please make a move to support all woman oriented issues not by just writing { this is jsut one way } but by wriotng again and again and by supporting each voice that comes from any remote corner in fovour of woman . ANd above all by repremanding people who are writitng trash about woman on their hindi blogs . dont let them go scot free , there are many of them , jsut send in strong comment or post . if a senior person like you will make a move we juniors will have some one to look up and discuss .
i hope i will be excuse d if i ahve written something that has hurt any one because the intention is to highlight the issue
http://hindinewspaper.blogspot.com/2007/09/blog-post_04.html
ReplyDeletehttp://myoenspacemyfreedomhindi.blogspot.com/2007/09/gender-bais.html
aap kae saath kee yahan bahut zarurat hae kya daegee ??
बहुत परेशान करने वाले सवाल हैं ! आपने स्त्री जीवन का रत्रासद सत्य सामने रख दिया है ! पता नहीं कब इन सवालों का जवाब मिलेगा या कि फिर कब ये सवाल अप्रासंगिक हो जाऎंगे ...
ReplyDeleteघुघूती जी, आपके प्रश्न अपनी जगह सही हैं, किन्तु अर्धसत्य और पक्षपात से भरे लगते हैं। 'भ्रूण हत्या' जघन्य अपराध है, 'नर-भ्रूण' का भारी संख्या में विनाश किया जा रहा है। चाहे अवांछित गर्भ ही हो? परन्तु सरकारों ने भी 'MTP' की कानूनी अनुमति क्यों दे रखी है??
ReplyDeleteकई दम्पत्तियों की सिर्फ कन्या सन्तानें हैं। एक दम्पति को 11 लड़कियाँ हैं। सभी का जन्मदिवस धूमधाम से मनाते हैं।
कुछ अन्य प्रश्न भी हैं:--
बेटियों को अधिक सुरक्षा तथा सुविधाएँ क्यों प्रदान की जाती है, जबकि बेटों को 'अपने-सहारे' पर छोड़ दिया जाता है क्यों?
ऐसा क्यों होता है कि पत्नी या प्रेमिका की जरा सी इच्छा के लिए पुरुष अपनी जान देने को भी कूद पड़ता है?
ऐसा क्यों होता कि ऋषि-मुनि, देव-दानव सभी 'नारी' पर मोहित होकर सुध खो बैठते हैं?
ऐसा क्यों होता है कि 'नारी' के आह्वान पर, प्रेरणा पर हर पुरुष में जोश भर जाता है?
ऐसा क्यों होता है कि युद्ध में (सैनिकों), घर से बाहर दुर्घटनाओं में, संघर्ष में पुरुषों की ही मृत्यु हो जाती है?
पिछले ईराक युद्ध में भारी संख्या में पुरुष मारे गए, सिर्फ महिलाओं जनसंख्या 80 प्रतिशत हो गई थी। विदेशी पुरुषों को उन महिलाओं से विवाह करने हेतु कई सरकारी प्रोत्साहन देने पड़े थे सद्दाम हुसैन को, क्यों?
सम्राट अशोक द्वारा कलिंग युद्ध के दौरान लगभग सारे पुरुष मारे गए, सिर्फ महिलाएँ बच गईं, जिन्हें अनन्तः युद्ध में उतरना पड़ा, किन्तु सम्राट अशोक ने 'नारियों' से युद्ध नहीं किया और बौद्ध धर्म अपनाया था, क्यों?
जहाँ कहीं लाइन लगी हो, रेलवे टिकट हेतु हो या बस में चढ़ने हेतु हो, महिलाओं को आगे क्यों छोड़ दिया जाता है?
महिला कर्मचारी और पुरुष कर्मचारी दोनों को बराबर वेतन मिलता है, लेकिन 'महिला' होने का विशेष लाभ उठाकर वे सरल और हल्के काम ही करती हैं और सारे कठिन और दुष्कर तथा परिश्रम वाले काम पुरुषों पर टाल देती हैं क्यों?
एक फल के दो टुकड़े हैं नर और नारी। एक-दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं, फिर नारी को ज्यादा सुरक्षा, ज्यादा सहानुभूति, ज्यादा प्रेम, विशेषकर "आरक्षण" क्यों दिया जाता है?
घुघूती जी बधाई बहुत ही सुन्दर और ह्र्दय स्पर्शी लिखा है आपने आपकी लेखनी को नमन है यह सारे सवाल मेरे जेहन में भी कई बार उठते है और चारो ओर इनका जवाब नजर नही आता...हाँ कोशिश करती हूँ खुद से ही लड़ने की...शायद कहीं कोई जवाब मिल ही जायें...
ReplyDeleteशानू
आप के और ललितजी के पूछे प्रश्न दोनों ही अपनी जगह सही हैं.....लेकिन इनका उत्तर....?
ReplyDeleteअवधी में एक गीत है जिसका सार है, 'जो मैं जानती कि मुझे बेटी होने वाली है तो मैं मिर्चा घोल पी लेती ताकि मिर्च के तीखेपन से बेटी मर जाती और मुझे तकलीफ नहीं सहनी पड़ती।'
ReplyDeleteठीक इसी तरह एक लोकगीत बिहार का है, जहां मां कहती है, 'मैंने तो सोचा था कि राम जी मुझे बेटा देंगे, लेकिन मुझे बेटी हुई है और इससे न सिर्फ मेरे पति मुझसे नाराज हैं और बोलचाल बंद कर दी है बल्कि सास-ससुर ने तो सोने के लिए चटाई भी नहीं दी।'
एक और गीत है, जिसमें बेटी अपनी तकलीफ बयान कर रही है, 'हे मेरी मां, जब मेरा भाई पैदा हुआ था तो तुमने सोने की छुरि से अपना नार काटा था लेकिन जब मैं पैदा हुई तो तुमने नार काटने के लिए सबसे पहले लोहे की छुरि तलाशी, फिर घास साफ करने वाली खुरपी खोजी जब वो भी नहीं मिली तो तुमने झिटक कर नाड़ अलग कर दिया।'
यह हमारे समाज का नज़रिया अपनी बेटियों के प्रति। यह गीत, लोक के बीच से हैं- इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे समाज में बेटियों के खिलाफ और बेटों के हक में कितनी मज़बूत विचारधारा है।
घुघूती जी, आज आपने उस विषय को छू दिया जो मेरे दिल के काफी करीब है। मैं पिछले दस सालों से लिंग चयनित गर्भपात या कन्या भ्रूण हत्या पर सक्रिय रूप से लिख रहा हूँ। और मैं बहुत दुख के साथ यह कह सकता हूँ कि सन् 2011 में होने वाली जनगणना बेटियों के लिए और बुरी खबर लेकर आने वाली है। हालांकि मेरी दुआ है कि मैं गलत साबित होऊँ।
मैं पिछले दिनों बुंदेलखंड में कन्या भ्रूण हत्या पर खोजबीन कर रहा था। वहां मशहूर एक कहावत से अपनी बात खत्म करूंगा, बिन ब्याही बिटिया का मरना वैसी ही खुशी की बात है जिस तरह खेत में खड़े ईंख का बिक जाना।'
यह हमारी पितृसत्ता है, जिसे हम बचाकर रखने में जीतोड़ लगे रहते हैं। दंगों और बम धमाकों में मारे जा रहे लोगों के शव हम फिर भी गिन लेते हैं, पर इन अदृश्य संहार का हिसाब किसके पास है। क्या हमारे पास अपने घरों में मारे जा रही बेटियों का हिसाब है।
यही सारे प्रश्न अनुत्तरीत से विचार भूमि पर रोज किसी न किसी रुप में दंड मारते है. आपने इतने सारे प्रश्नों का इस पृष्ठभूमि के एक साथ समावेश कर पूरा समाज का कच्चा चिट्ठा रख दिया है. कितने सारे परिवर्तनों की आवश्यकता है एकदम ग्रासरुट लेवल से.
ReplyDeleteहर स्तर पर बदलाव की जरुरत है. सभी की मानसिकता में-महिलाओं की भी. एक सास की ही ज्यादा अपेक्षायें देखी है पोता प्राप्ति की.
आयेंगे यह बदलाव भी बल्कि आने ही लगे हैं. समय लगेगा.
जो असमर्थ या कमजोर हैं उनके पास सवाल होते हैं. ऎसे सवाल पहली बार नहीं उठाए गए हैं. इनके जवाब नए हो सकते हैं. समय और प्रगति के माने भी यही हैं. मैं एक बेटी का पिता हूँ. और वह मेरी एकमात्र सन्तान है. मैने उसके प्रति सद्भाव बरता, पर सवाल तो अपनी जगह है. हाँ, स्त्रियॊं की यह दशा ऎतिहासिक कारणों से है तो समाधान भी इतिहास देगा. आज से शुरू होने वाला इतिहास.उसका एक प्रमुख पात्र मैं हूँ. आप भी हैं. पुरुष ही नहीं स्त्रियां भी. वे सिर्फ दर्शक या कठपुतली नहीं हैं.
ReplyDelete...समाज को बदलने कोई, कभी, कहीं से आएगा ऎसा नहीं सोचना चाहिए.
ReplyDeleteइन प्रश्नों का उत्तर देना कठिन है पर पुरूष होने के नाते इतना कह सकता हूँ कि हमारे मानवमुल्यों को समझने कि अभिलाषा ही बहूत सारे पश्नों का समाधान दे सकते है ।
ReplyDeleteघुघूती जी
ReplyDeleteआप ने अपने लेख में कई ऐसे प्र्श्न उठाए हैं जो हर सवेंदनशील व्यक्ति को परेशान करते है। जहाँ इन प्र्श्नों की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता ,पर ये भी सच है कि ये त्रासदी पावर गेम का परिणाम है जो सदियों से चला आ रहा है। वैसे अब बद्लाव आ रहा है। बाकी जो टिप्प्णियाँ रचना जी ने की है वो भी गौर करने लायक हैं और जो प्रश्न ललित जी ने उठाए है अपने घावों को सहलाने की व्यस्तता में उन्हें भी नकारा नहीं जा सकता
वैसे मैं आपको बधाई देना चाहती हूँ कि आपने चर्चा करने के लिए एक ज्वंलत विषय दे दिया है
ReplyDeleteआईना देखना हम पुरुषो को शायद थोड़ा कष्टदायी लगता है और आप आईना ही दिखा रही हैं।
ReplyDeleteइन सवालों के जवाब ढूंढ पाना तो शायद हमारे आज के इतने प्रगतिशील समाक को भी संभव नही है , पर हम चाहें तो शायद कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन हम पितृसत्तात्मक समाज के आदी क्या इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना चाहेंगे। यह विचारणीय है। क्या पौरुषित अहं स्वीकार कर पाएगा इन सवालों को यह भी विचारणीय है।
ऐसा क्यों होता है कि मृत्यु स्त्री लिंग है और जन्म पुल्लिंग ?
ReplyDeleteऐसा क्यों होता है कि अग्नि स्त्री लिंग है और जल पुल्लिंग ?
कौन देगा इसका जवाब ?
अफ़सोस की इतना कुछ बदल रहा है पर यह मानसिकता नही बदल पा रही
कितने कानून बना लो पर यह जध्न्य काम करने वाले अपना रास्ता बना लेते हैं
हरियाणा के गांव में आज भी डाक्टर लड़का लड़की के लिंग की पहचान लाल इंक और नीली
इंक के रूप में देते हैं लाल इंक का मतलब लड़की होता है ..अब उसका क्या नतीजा होता होगा यह आप
अच्छे से समझ सकते हैं ...पटियाला का हास्पिटल के आँगन का पिछला हिस्सा खोदने पर १००० से ज्यादा
स्त्री भूर्ण के अवशेष पाये जाते हैं और हम सब यह ख़बरें सुनते हैं और एक आह भर के फ़िर से अपने कामो में लग जाते हैं
यह विषय मेरे दिल के बहुत क़रीब है बहुत कुछ लिखा है इस पर की शायद इस को पढ़ के आने वाली पीढी कुछ सबक ले
और यह नन्हे फूल यूं खिलने से पहले न मुरझाये !!
कोख में कब्र दे दी उस नन्हे फूल को
जब नाम बेटी का था उस से जुड़ा......
किस से करती वो फ़रियाद अपनी ,
जब बाग़ का माली ही था उसको उजाड़ने पर था तुला!!
रंजना
कुर्रतुल ऐन हैदर के एक उपन्यास का शीर्षक है: 'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजौ'..
ReplyDeleteरचना जी के विचारो से काफी हद तक सहमत हूँ। इस विषय मे निजी चर्चा से उठकर समाधानात्मक चर्चा हो तो हिन्दी चिठ्ठाजगत की उपयोगिता मे चार चाँद लग जायेंगे।
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहिये। बधाई एवम शुभकामनाए।