Friday, June 29, 2007

चक्करों का चक्कर

चक्कर की दिशा कौन सी ? क्लॉकवाइज या एन्टीक्लॉकवाइज ?

बहुत दिन से हमें चक्कर आ रहे हैं । हम जानते हैं कि २६ जनवरी २००१ के भूकम्प के जमाने से हमें चक्कर आना शुरू हुआ था । मुझे तो लगता है कि भूकम्प के दिन जब चक्कर सबके सर में आया था तभी से उसे हमारा सर पसन्द आ गया । सो अब तक बीच बीच में जब चक्करों को हमारी याद आती है तो मेहमान बन आ जाता है हमारे घर, नहीं नहीं सर ! अब सर आए मेहमान का अनादर तो कर नहीं सकते । तो हम भी चक्करों को सर आँखों पर लेते हैं ।
शुरू शुरू में तो जब यह आता था तो मैं सोचती थी कि भूकम्प के ही विदाई झटके, आफ्टर शॉक्स, हैं । पर जब हमारे सिवाय किसी को ये महसूस नहीं होते थे तो हमें शक हुआ । फिर डॉक्टर महोदय ने भी हमारी यह खुशफहमी कि हम कुछ अधिक ही संवेदनशील हैं व जो झटके किसी को नहीं लगते हम ही महसूस कर पाते हैं, दूर कर दी । उन्होंने बताया कि हमें जो धरती अपने नीचे से खिसकती लगती है वह वास्तव में खिसकती धरती न होकर हमारे कान के मध्यम भाग में हमारे संतुलन के केन्द्र का खिसकना होता है । सो हम कुछ गोलियाँ , कुछ निराशा व कुछ खिसकते संतुलन के साथ अपना सा मुँह लिए व एक नई बीमारी ‘ वर्टिगो ’ का नाम लिए घर वापिस आ गए ।
कुछ दिनों से चक्करों ने फिर से बहुत परेशान कर दिया है । सो आज फिर अपनी नई जगह के नए डॉक्टर के पास गए । यहाँ भी वही वर्टिगो ही बताया गया पर वे चाहते थे कि ई. एन.टी . याने नाक ,कान व गले के डॉक्टर भी हमें, हमारे कानों व चक्करों को देखकर हमारे चक्करों पर वर्टिगो की मुहर लगा दें । सो चकराते हुए हम दुमंजिले या शायद तिमंजिले, भाई , हम इतने चकराए हुए थे व अपना संतुलन बनाए रखने में इतने व्यस्त थे कि कितनी सीढ़ियाँ चढ़ीं और उतरीं याद नहीं । वैसे हमारे घुटनों को जो याद है उससे लगता है कि सौ,दो सौ तो रही ही होंगी, पर हमारे घुटनों को कुछ बढ़ा चढ़ा कर बोलने की आदत है । खैर, जैसे तैसे लड़खड़ाते चकराते हम डॉक्टर के पास पहुँचे । उन्होंने हमारे कान के अन्दर कोई यंत्र डाला जिससे हम और वह हमारे कान के अन्दर का नजारा मॉनिटर पर देख सकते थे । वे उस दृष्य से प्रसन्न हुए व हमारे कानों को सफाई के मामले में पास कर दिया । ऐसे ही हमारा दूसरा कान व नाक भी पास हो गए । पर सुनाई देने के मामले व कुछ अन्य मामलों में वे प्रसन्न नहीं थे । फिर उन्होंने हमसे हमारे चक्करों के बारे में पूछना आरम्भ किया । कब से आते हैं, कितनी बार आते हैं, क्या करते समय आते हैं , किससे पूछ कर आते हैं, आदि आदि ।
यहाँ तक तो सब ठीक था फिर उन्होंने पूछा कि किस दिशा में आते हैं । हम थोड़े चौंके । हमने पूछा दिशा, वे बोले हाँ, क्लॉकवाइज यानी घड़ी की सूई कि दिशा में या एन्टीक्लॉकवाइज यानी घड़ी की सूई के चलने की विपरीत दिशा में । हमारा सर तो इस प्रश्न से और भी चकरा गया पर फिर भी हम चक्करों की दिशा न बता पाए । हम तो यही कह पाए कि हमें तो केवल यह लगता है कि हम झूले में बैठे हैं या खड़े हैं या लेटे हैं । कुछ कुछ सिम्पल हार्मोनिक मोशन की तरह याने पैन्ड्युलम की तरह झूला झूलता लगता है । हम तो अपने ३० या ३२ वर्ष पहले पढ़े फिजिक्स के कारण उन्हें उत्तर दे पाए और वे हमारे उत्तर से थोड़े खुश भी हुए पर हम अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि चक्करों की दिशा कौन सी है । यदि वे सिम्पल हार्मोनिक मोशन की तरह हैं तो क्या उन्हें चक्कर कहा जा सकता है या क्या सिम्पल हार्मोनिक मोशन को केवल कोई घनचक्कर ही चक्कर कहेगा ? यही सब सोच सोच कर हम चकरा रहे हैं ।
घुघूती बासूती

10 comments:

  1. अरे, बिमारी का मजाक नहीं करते. वर्टिगो है तो जरा जतन से, जरा कम ही लिखें, अपना इलाज करा लें.
    इस मजाक का मेरा बड़ा खराब अनुभव है. मैने एक मोटे का मजाक उड़ा दिया था बहुत पहले, तब मैं दुबला था. फिर वो बाल गिरने वाली कविता लिखी थी, तब बाल भी पूरे थे. इधर मजाक उडाया और उधर गाज गिरी. :)
    -ईश्वर आपको शीघ्र स्वस्थ करे और घुटने भी सही सलामत रहें, यही कामना करता हूँ. लिखती रहें, वैसे घुटने का लेखनी में क्या रोल...बस यह वर्टिगो वाली दवा करवा लें.

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  2. आपतो इलाज करा ही लीजीये पूरी गंभीरता से.
    और समीर भाइ ये टोटका पुरा काम करता है...?
    तो भाइ मै किसी दुबले पतले स्मार्ट से सिर पर ख्ब बालो वाले का मजाक उडाता हू :) क्या पता उसकी बददुआ से भी वैसा ही हो जाउ

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  3. आप क्यों किन्ही चक्करों में पड़ती हैं..आप तो बस जल्दी से स्वस्थ हो जाइये...वैसे सुना है कि कभी कभी स्थान परिवर्तन और पहाड़ों पर रहने से बीमारियां अच्छी हो जाती हैं तो कहीं घूम आइये ..अब तो जुलाई भी आने ही वाला है..

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  4. आप जल्द स्वस्थ हो जायं, यही कामना है लेकिन साथ ही आपकी लेखनी की दाद देनी होगी। आपमें किसी भी विषय पर बेहतरीन ढंग से लिखने की अद्भुत क्षमता है।

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  5. ईश्वर करे आ जल्द स्वस्थ हों। आपका SHM भी रैस्ट पर आ जाए।

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  6. क्या ज्यादा चक्कर आते है आपको? बैठे-बैठे ही आते है या खडे़ भी आते है...वैसे आप किस घनचक्कर के चक्कर में पड़ गई है...आज कल कविता तो लिखिये... बहुत दिन हो गये है हो सकता है इसीलिये चक्कर आ रहे हो...पेट में कविताओं ने अपच कर दी होगी...

    आपकी अपनी

    शानू
    कंडीशन्स अप्लाई

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  7. आपके जल्द स्वास्थ होने की कामना करता हूँ.

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  8. समीर भाई सच कह रहे हैं तनिक भिचारें ।

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  9. अच्छा तो इसीलिये आज कल आप कम दिखती है ,आप जल्दी स्वस्थ हो जाये यही कामना है और हाँ सुनीता जी की बात से हम भी सहमत है।

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  10. अब सबै बात तो हमरे गुरुजी ने कह ही दी है तो अब हम का कहें!!

    हम तो बस इहै कहेंगे कि ई- जौन आजकल के बच्चे हैं ना इ बस उधर मचाना , घूमना-फ़िरना जानते हैं अरे कभी आराम-उराम भी कर लिया करौ!!

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