कुछ दिन पहले पति के कॉलेज के समय के साथियों ने एक पार्टी की जिसमें हम पत्नियों को भी बुलाया गया। एक दम्पत्ति से मैं लगभग तीस साल पहले मिल चुकी थी, शेष सबसे पहली बार मिल रही थी। लगभग सब पुरुष व कामकाजी स्त्रियाँ रिटायर हो चुके थे। तीन स्त्रियाँ थीं जो नौकरी नहीं करती थीं।
कुछ मेज जोड़ दिए गए थे और जैसी कि परम्परा है, एक तरफ आमने सामने पुरुष बैठे थे और दूसरी तरफ स्त्रियाँ। सो कॉलेज व हॉस्टेल के जमाने के पति के मित्र कैसे व कौन थे यह जानने व उनके उस समय के किस्से सुनने की मेरी हल्की सी जिज्ञासा जो थी वह ज्यों की त्यों धरी रह गई। एक बार फिर मैं पति के मित्र/ सहयोगी/ बिरादरी या किसी भी अन्य प्रकार से सम्बन्धित पुरुषों के समूह की बिल्कुल ही आपस में असम्बन्धित, अनजानी पत्नियों के बीच थी और मुझे उनके साथ समय बिताना था, जानपहचान करनी थी और उनके साथ पार्टी व अपना मनोरंजन करना था। मैं समाज की इस आशा से सदा ही स्तब्ध रह जाती हूँ कि वह स्त्री से सदा यह अपेक्षा करता है और उसके जरा से विरोध से स्तब्ध व आहत हो जाता है।
खैर, पिछले ३७ वर्ष से सदा स्वयं को ऐसे ही समूहों में पाती रही हूँ सो अनजानी स्त्रियों से बतियाने का गुर सीख चुकी हूँ। जिस स्त्री से ३० साल पहले मिली थी और जिसे मिलने की मुझे जरा भी याद न थी वह मेरे बगल में बैठी थीं। कुछ देर अतिथी धर्म निभाने को उसके पति भी मेरी दूसरी बगल में बैठे और मेरी बेटियों के बारे में पूछने लगे। मेरे बड़ी बिटिया के पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च करने पर उन्होंने उसका विषय पूछा। उसका विषय बताते ही सामने बैठी स्त्री के कान खड़े हो गए। पति के मित्र तो पाँच मिनट खबर लेने को साथ बैठने के बाद उठकर पुरुषों के बीच जा बैठे। ये स्त्री जिन्हें मैं डॉ क कहूँगी मुझसे बोलीं,"एक्सक्यूज़ मी। मैंने आपकी थोड़ी बात सुनी। आपकी बेटी कहाँ रिसर्च कर रही है? कहाँ से एम एस सी की? कहाँ से पी एच डी की? यह मेरे क्षेत्र का विषय है।"
ऐसा कम ही होता है कि कोई मुझे बिटिया के विषय या उसके विषय से सम्बन्धित क्षेत्र का मिले। मेरी तो उसके विषय में स्वयं की जानकारी बहुत कम है। मुझे यह सोच बहुत खुशी हुई कि मेरी पीढ़ी की कोई स्त्री उस विषय से सम्बन्धित है। मैंने उनसे पूछा, "अरे वाह, आप तो क्षेत्र में बहुत सीनियर होंगी। आप कहाँ काम करती हैं?"
डॉ क ने बताया कि शादी के कुछ समय बाद ही उनपर परिवार का इतना उत्तरदायित्व आ गया कि उन्हें रिसर्च छोड़ घर पर ही रहना पड़ा। उनके गाइड या रिसर्च इन्चार्ज ने दो साल तक उनके लिए जगह बनाए रखी किन्तु दो साल बाद डॉ क ने कह दिया कि वे इतनी व्यस्त हो गई हैं कि कभी लौट नहीं पाएँगी अतः उनकी प्रतीक्षा न की जाए।
मेरे यह कहने पर कि बच्चे बड़े हो जाने पर वे फिर से काम शुरू कर सकती थीं वे बोलीं कि काम बच्चों के उत्तरदायित्व के कारण नहीं इन लॉ उत्तरदायित्व के कारण छोड़ा था। उनकी उम्र का ध्यान कर मैंने कहा कि क्या अभी सास ससुर हैं तो वे बोलीं नहीं। मैंने कहा कि अब तो आपको खालीपन सताता होगा। किन्तु इतनी देर से रिसर्च में तो नहीं लौट सकतीं ना। तो वे बोलीं कि नहीं मेरा उत्तरदायित्व तो अब भी चालू है।
मैं कुछ चकित हुई तो उन्होंने बताया कि उनकी दो ननदें हैं जिनका उन्हें ध्यान रखना होता है। वे अपना ध्यान नहीं रख पातीं। एक मानसिक रूप से काफी चैलेंज्ड हैं और दूसरी भी कुछ कम किन्तु वैसी ही हैं।
वे शाम भर कभी अपने अमेरिका में रिसर्च के समय के किस्से सुनाती रहीं तो कभी भारत के। कभी अपनी पी एच डी के जमाने के तो कभी अपने गाइड के।
आकर्षक व्यक्तित्व वाली उस सौम्य सी दिखने वाली स्त्री में मैं कुछ ऐसी उलझी कि अन्य किसी से कम ही बात हुई।
जब से उनसे मिली तब से यही सोच रही हूँ कि यदि विवाह बाद किसी दुर्घटना के कारण यह सब हुआ होता तो बात अलग थी। किन्तु यह कोई दुर्घटना नहीं थी। यह परिस्थिति तो पहले से ही थी। फिर बात वहीं आती है कि
१. उनका प्रेम विवाह तो था नहीं। तो उन्होंने इस विवाह के लिए सहमति क्यों दी? क्या उन्हें यथास्थिति का पता नहीं था?
२. उनके पति तो अपने विवाह से पहले से ही अपनी बहनों की स्थिति जानते थे। सो यह भी जानते थे कि उनकी पत्नी से क्या अपेक्षाएँ होंगी। सो उन्होंने किसी ऐसी स्त्री का चयन क्यों नहीं किया जो कामकाजी न थी। जो इतना अधिक पढ़ी लिखी न थी।
३. कैसे उनके सबसे अच्छे कॉलेज से ही पढ़े, चाहे खूब कमाते इन्जीनियर किन्तु ग्रेजुएट पति ने अपने लिए पी एच डी, विदेश में भी पोस्ट डॉक करी स्त्री का चुनाव किया, यह जानते हुए कि उसे काम छोड़ घर रहना होगा?
४. क्या ऐसा करने में उनकी अन्तर्आत्मा ने उन्हें कचोटा या नहीं? या उन्हें स्त्री का कैरियर महत्वहीन लगता था?
५. डॉ क के माता पिता ने उसके लिए ऐसा घर क्यों चुना?
६. क्या माता पिता को उनकी बहनों के बारे में पता नहीं था? पता था तो क्या उन्हें लगता था कि सास के बाद या सास के वृद्ध या बीमार होने के बाद उनका कुछ और प्रबन्ध हो जाएगा?
७.क्या उन्होंने इस बारे में जानने के बाद अपनी बेटी के काम करते रहने के बारे में कुछ भी सुनिश्चित नहीं किया था?
८. क्या बेटी के काम छोड़ने के बाद उन्हें अपने चयन पर अपराध बोध हुआ होगा?
क्या आप सबको यह पढ़कर सामान्य सा लग रहा है या एक प्रतिभा की समाप्ति पर दुख, क्षोभ या क्रोध आ रहा है?
या आपको यह त्याग महान और अनुकरणीय लग रहा है?
क्या वह स्त्री अपने त्याग और तपस्या के आलोक से ही प्रसन्न व सन्तुष्ट होंगी?
यदि हाँ तो उन्होंने लगातार मुझसे अपनी रिसर्च की बातें क्यों कीं?
मैं ऐसे पुरुषों को भी जानती हूँ जिन्होंने परिवार के लिए ऐसे त्याग किए किन्तु वे परिवार उनके जन्म के परिवार थे न कि विवाह के बाद के जहाँ मनुष्य के पास चुनाव का विकल्प होता है। मैंने ऐसा एक भी पुरुष नहीं देखा जो चुनाव करके ऐसी स्थिति को अपनाए जहाँ उसे अपनी पत्नी के लिए ही नहीं उसके परिवार के सदस्यों के लिए अपने प्रिय विषय व जाने पहचाने जीवन को छोड़ त्याग व सेवा का जीवन जीना पड़े।
कुछ उलझन में,
घुघूती बासूती
बढिया लिखा है और आपसे सहमित हूं
ReplyDeleteयह त्याग है उनका।
ReplyDeleteयदि यही कार्य समाज के लिए किया होता तो सामाजिक कार्य कहलाता। आपके के अलावा कुछ और लोगों की नजरों में भी उनकी पहचान होती।
यदि यह परिस्थिति विवाह के बाद अचानक आ जाती तो त्याग कहलाता. किन्तु मेरा प्रश्न यह है कि एक पुरुष को जिसे पता था कि उसके परिवार में अनंत उत्तरदायित्व हैं, किसी गृहणी, अकामकाजी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए था क्या?
Deleteघुघूतीबासूती
मुझे लगता है उस महिला डॉ क की कुछ मजबूरियां रही होंगी नहीं तो वे अपनी महत्त्वाकांक्षाओं पर ऐसा कुठाराघात नहीं होने देतीं. एक संभावना यह भी है कि कुछ अक्वायर्ड जानकारी के आधार पर किया जा रहा स्वांग हो.
ReplyDeleteआपके प्रश्न अपनी जगह पर उचित हैं, लेकिन बहुत से प्रश्न, जो इनके उत्तर दे सकते हैं वे अनुत्तरित हैं. इस पोस्ट में जिन महिला का ज़िक्र है उनसे अलग, उन परिस्थितियों को समझने की कोशिश करता हूँ जिनके कारण यह अवस्था पैदा हुई तो मन में एक प्रश्न कौंधता है.
ReplyDeleteविवाह जो एक अति प्राचीन संस्था है, वह आज भी "समस्या" के रूप में हमारे समाज में व्याप्त हैं, ख़ासकर अरेंज्ड मैरिज के परिप्रेक्ष्य में. गुजरात में आकर मुझे सिर्फ दो वर्ष हुए हैं, जिसमें मैंने अपने कर्मचारियों की चार या पाँच सगाई में भाग लिया, जिनमें से मात्र एक का विवाह सम्पन्न हुआ, बाकी की सगाई टूट गईं. यहाँ लड़कों के लिये शादी उतनी ही विकट समस्या है जितना हम उत्तर भारत (बिहार/उ.प्र.) में लड़कियों के लिये सोचते हैं.
ऐसे में केवल दो ही विकल्प बचते हैं
1. प्रेम विवाह - इसमें भी वो सब नहीं घटेगा जिसकी आपने आशंका जताई है, इसकी कोई गारण्टी नहीं
2. आजन्म अविवाहित रह जाना
बहुत कटु लगता है यह विकल्प, किंतु सच है (उचित या अनुचित मैं नहीं कह रहा)
मेरी एक बुआ की छ: लड़कियाँ हैं. पाँच बिल्कुल ही बदसूरत और एक सुन्दर. सुन्दरता के साथ साथ गुणी भी. कभी द्वितिय स्थान पर नहीं आई. और उसने भी पी-एच.डी की संस्कृत में. महिला कॉलेज में व्याख्याता भी हो गई और बहुत अच्छी पगार भी मिलने लगी उसे. बाकी की पाँचों बहनें पढने में अच्छी.
कालांतर में उन पाँचों बहनों (उस सुन्दर वाली बहन से छोटी वाली की भी) अच्छे घर में शादी हो गई. लेकिन वो कुँवारी रह गई. मुझसे दो साल बड़ी है. बाद में उसने पारिवारिक/सामाजिक सारे अनुष्ठानों में जाना छोड़ दिया. फिर बुआ ने भी आना जाना कम कर दिया, क्योंकि जो मिलता वो यही पूछता कि उसकी शादी क्यों नहीं हुई.
बुआ का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और कुछ वर्षों पहले उनकी मृत्यु हो गयी. दीदी आज भी अकेली उस घर में रहती है और आज बड़ी प्रोफेसर है!
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घुघूती जी! पता नहीं आपके सवालों का जवाब मैं दे पाया या नहीं, लेकिन यह भी एक सच है. अपने घर-परिवार की बात खुले आम इस मंच पर शेयर करना अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन कुछ सवालों के जवाब सवालों से ज़्यादा विचलित करने वाले होते हैं.
उस जमाने में भी बहुत से ऐसे पुरुष थे जिन्हें पत्नी के काम करने पर कोई आपत्ति नहीं थी. यह स्त्री किसी ऐसे पुरुष से विवाह कर सकती थी. और पति अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों को देखते हुए किसी नौकरी न करने वाली स्त्री से. न वह संसार का अंतिम पुरुष था न वह अंतिम स्त्री.
Deleteघुघूतीबासूती
aur uskae vivaah naa karnae sae kyaa usko koi pareshani hae , ho saktaa usko koi pareshani ho hi naa
Deletebas duniyaa kae swaal pareshaani kaa karan ho aur is liyae bhi wo kahin naa jaati ho
vivaah itna jaruri kyun banaa diyaa gayaa haen
ho saktaa haen salil ji ki behan us samay jitna kamati ho ladko ko utna naa mil rahaa aur apnae sae kam kamaane waale sae wo vivaah hi naa karna chahtee ho
baat utar daitv sae hat kar bhi apni pasand aur jarurat ki hotii jisae sab nahin samjh saktae kyuki wo sab samaaj ji bandhi badhaii lakeer par chaltae haen
विवाहित महिलाओं को लेकर घर की दहलीज़ के भीतर कब कुठराघाकुठाराघात हो जाता है पता ही नहीं चलता | ये तब भी होता था और आज भी होता है ..... वजहें तो अपने आप में एक शोध का विषय है....अनगिनत हैं
ReplyDelete* विवाहित महिलाओं के करियर को लेकर घर की दहलीज़ के भीतर कब कुठाराघात...
ReplyDeleteआपने जो लिखा सत्य है। बहुत बार ऐसे अनुभव पीड़ा दायक भी होते हैं। पर मेरे मत से अच्छी शादि और अच्छी नौकरी में से अच्छी शादि स्त्री के लिए ज्यादा सुख कर है। यह त्याग नहीं मात्र प्राथमिकता की बात है।
ReplyDeleteparmeshwari choudhary, यदि पति किसी गृहणी से विवाह करता, जो वैसे भी नौकरी नहीं करने वाली थी तो क्या बेहतर न होता? यह प्रेम विवाह तो था नहीं कि स्त्री को विवाह या नौकरी में से एक चुनना पड़ता.
Deleteघुघूतीबासूती
स्त्री ने भी विवाह बाध्यता में तो न किया होगा। उनका भी अपना चयन रहा होगा। अपनी मर्जी रही होगी। मेरे विचार से तो स्त्री का कामकाजी होना उसकी जिम्मेदारियाँ दोहरी तिहरी कर देता है जिनके बोझ तले उसकी सारी सुकुमारता और ख़ुशी स्वाहा हो जाती है।जीवन के पूर्ण संतोष के स्थान पर उसे मात्र व्यावसायिक उपलब्धि का सुख मिलता है। मैं नहीं कहती कि यह महत्व-पूर्ण नहीं,और न ही यह सर्वकालिक सच है,पर चयन अपना अपना है।
DeleteThe story that you have related is of a different era now things have improved a lot .
ReplyDeleteNo I will not call this "Tyaag" this is a compromise that woman do to get a social prestige that comes with marriage .
Marriage is matter of responsibility and one person has to take care of disabled and usually its the wife in any household because "man are supposed to work " and all wifes are mostly happy if their husbands go out to work so we cannot call it TYAAG .
Why such woman constantly talk abt their lost career JUST TO PROVE THAT THEY ARE educated , qualified and dont you dare think them otherwise
The point here is why should a man with such never ending family responsibilities marry such a highly qualified working woman/ a woman doing research? Is it possible that the woman did not know what she was getting into? She never said she had regrets or not. The reason we had this detailed conversation was because I like to understand people and their lives. I came to know about the mentally challenges sil only at the fag end of our long conversation.
Deletegb
A woman with similar never ending family responsibilities would usually not marry at all. She would usually not expect her husband to even share the responsibilities.
Deletegb
Why man marry highly qualified woman primarily for second source of income they assume she will like a super woman do every thing including family and office
DeleteBut latter on woman cant cope up and then giving up marriage or career is choice to make and you know woman mostly chose marriage for social security
http://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/Women-cannot-have-it-all-PepsiCo-CEO-Indra-Nooyi-says/articleshow/37689157.cms
read this and you will understand many things
woman expect but most of them { 30 years back } dont like to see their husbands doing household work etc
DeleteRachna , that would hold true if the family responsibility meant cooking and cleaning and doing work which can be done before and after office. Here I am talking about looking after someone for the whole day which cannot be done by remote even by a super woman.
Deletethat is why she left the job because she could not manage , whether she knew it before marriage , parents would have said , groom is good , earning and you are educated TUM MANAGE KAR LENA pati ko samjhaa lena , maid rakh lena so on so forth
Deleteif her career was not important for her then how will be it important for others
Deletei am sure she must have had a marriage with dowry as well
why pay money to grooms family for what ???
ऐसी परिस्थिति को आम तौर पर अपने समाज में त्याग की पदवी से ही नवाज़ा जाता है। खासकर स्त्री के ससुराल पक्ष और पति की ओर से। वह हर जगह अपनी पत्नी के त्याग की सराहना करता नहीं थकता लेकिन कभी यह नहीं बताता कि अगर इसी परिस्थिति में वह होता तो वह त्याग करता या नहीं ताकि उसकी पत्नी को भी उसकी तारीफ का मौका मिल सके।
ReplyDeleteदूसरी बात यह कि स्त्रियाें की भी मेंटल कंडिशनिंग इस तरह की की जाती है कि वे उस त्याग की भावना और दूसरों की प्रशंसा से गदगद हो जाती हैं और अपना जीवन सफल समझ लेती हैं। इसके लिए पहले जरूरी यह है कि हम अपने दिल की बात पहले सुनें, दूसरों की बाद में। समझौते हर शादी में पति पत्नी दोनों को करने होते हैं और करने भी चाहिए। लेकिन एक सिर्फ दे और दूसरा सिर्फ ले, यह नहीं होना चाहिए। अगर हम खुद से प्यार करना सीख लें, तो हम अपने ख्वाबों, अपनी उम्मीदों, अपनी जिन्दगी, अपने सपनों से भी प्यार करने लगेंगे। मुश्किल यह है कि हम खुद को समाज की नजर से, दूसरों की नजर से देखते हैं और खुद को वह सब नहीं दे पाते, जिसके हकदार हैं।
व्यक्ति परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढ़ाल लेता है। यदि सिर्फ नारी और पुरूष के भेद से अलग, व्यक्तिपरक होकर देखा जाय तो तब यही समझ आता है कि MAN PROPOSES BUT GOD DISPOSES. सब कुछ प्रारब्ध में नियत है।
ReplyDeleteपारिवारिक जिम्मेदारियां महिलाओं को ही मजबूर करती हैं , उन्हें ही अपने कॅरियर का त्याग करना पड़ता है , पुरुष किसी न किसी बहाने बच ही जाता है , मजे की बात ये भी है कि यह व्यवस्था केवल भारतीय समाज में ही नहीं सारे विश्व में देखने को मिलती है
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन का आभार.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
कुलदीप ठाकुर जी आपका और नयी पुरानी हलचल का आभार.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
पुरुष प्रधानता समाज की विरासत है । ये सही हैया गलत ये अलग प्रश्न है । ये स्थितियाँ व्यक्ति से व्यक्ति और परिवार से परिवार में अलग अलग होती हैं और आज के समय में इनका सामान्यीकरण करना सँभव नहीं है । हम बस ये कर सकते हैं कि वर्तमान पीढ़ी सहयोग करे और नई पीढ़ी को तैयार करे ताकि वो महिलाओं को इन समझौते वादी व्यवस्थाओं से उबरने में मदद कर सके।
ReplyDeleteसमस्याएं अरेन्ज्ड मैरिज एवं लव मैरिज दोनों में विद्यमान हैं। अरेन्ज्ड मैरिज में लड़कियों के पास चयन के विकल्प ही नहीं होते। लव मैरिज में होते हैं लेकिन शायद लव मैरिज में दोनों की एक दूसरे के प्रति अपेक्षाएं कुछ अधिक ही होती हैं जिसकी वजह से तमाम लव मैरिज का अन्त तलाक के रूप में होता है। समस्याओं के कारण अनेक हैं, किन्तु कोई ऐसा फार्मूला या समाधान नहीं जो भिन्न-भिन्न परिवेश एवं परिस्थतियों में रहने वाले परिवारों में उपजी इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए एकसमान रूप से लागू किया जा सके।
ReplyDeleteघनश्याम मौर्य जी,
Deleteतमाम शब्द कुछ अधिक नहीं हो गया? मेरे परिवार में तो अधिकाँश विवाह प्रेम विवाह ही हैं, हमारा भी. खैर हमारे विवाह की अंतिम परिणति क्या होगी देखना शेष है किन्तु मेरे सास ससुर का भी प्रेम विवाह था और ससुर को गुजरे ३१ वर्ष और सास को गुजरे २३ वर्ष हो गए. वह विवाह अनेक प्रेम विवाहों की तरह सफल था.
बिना अपेक्षाओं के जीवन शायद ही कोई जीता है. प्रेम विवाह में अपेक्षाएँ अधिक तो होती हैं किन्तु अपने चयन से तो सभी अधिक अपेक्षा रखते हैं चाहे वह पति पत्नी हो, मकान हो या सामान. दान में या विरासत में तो जो भी मिल जाए उससे काम चलाया जाता है. यह भी सच है की जो प्रेम विवाह करते हैं उनमें प्राय: इतना साहस होता है कि एक असफल विवाह को ढोने की बजाए वे सब विकल्प खत्म होने पर तलाक ले सकते हैं.
सच में जीवन का कोई एक फोर्मूला भी नहीं है. होता तो जीवन बहुत सरल हो जाता.
घुघूतीबासूती
विवाह का मतलब ही है परिवार बनाना ,और उसे बनाना किन परिस्थतियों में होना है ये बात लड़की के माता-पिता पहले लगा लेते हैं उसके बाद अपना प्रस्ताव देते हैं.लड़की की रुचि का ध्यान वह स्वयं, अथवा माता पिता रखते या बता देते कि उसे आगे पढ़ना है और केरियर बनाना है .तो स्थिति कुछ और होती .
ReplyDeleteविवाह के बाद अपनी प्रबंधन -क्षमता से कुछ करना या उसी में रम कर रहना
-स्थिति का निर्वाह जैसे भी करे अपेक्षा गृहिणी से की जाती है.
अपने लिए परिवार तोड़ दे ,या उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करे अन्यथा जो आ पड़ा उसका जितनी अच्छी तरह निर्वाह किया, उसका श्रेय लेकर खुश रहे.
जो कुछ पहले से विद्यमान है उसे बदला नहीं जा सकता.
Saty aur sathak lekh ....kuch baatein aisi bhi padne mili Jo Mann ko chu gyi ....ati uttam
ReplyDeleteLekhika 'Pari M Shlok' , आभार.
Deleteघुघूतीबासूती
मन को कुरेदनेवाली रचना
ReplyDeleteऐसे पुरुष पत्नी के रूप में एक ट्रॉफी का चयन करते हैं.जिसे अपने शेल्फ पर सजा सकें .आने जाने वालों, मित्रों, रिश्तेदारों सबको बता सकें . पर पत्नी से वही परम्परागत भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है .
ReplyDeleteइस तरह की शादी को हाँ करने के लिए लड़कियों की कई मजबूरियाँ होती हैं .हो सकता है, उसे यह बात पता ही नहीं हो की शादी के बाद उसे दो ननदों की चौबीसों घंटे देखभाल अक्रनी पड़ेगी .अरेंज मैरेज में ऐसी बातें लोग छुपा जाते हैं.
rashmi ravija, मेरे लिए उनके मामले में आधिकारिक रूप से कुछ कहना कठिन है सिवाय इसके कि मुझे डॉ क की इतनी मेहनत व प्रतिभा के बर्बाद जाने का बहुत दुःख है. नहीं चाहती कि ऐसा किसी अन्य के साथ हो. एक बात और. इतनी उच्च शिक्षा देने में हमारी सरकार का बहुत पैसा लगता है. सीटें भी सीमित होती हैं. जब एक को सीट मिलती है तो किसी अन्य को नहीं मिल पाती. जहाँ तक हो सके तो इस बहुमूल्य शिक्षा का सदुपयोग होना चाहिए.
Deleteस्त्रियों को भी अपने जीवन की डोर अपने हाथ में रखनी चाहिए.
जैसा कि मैंने कहा कि यदि देखभाल के लिए काम छोड़ने का कारण कोई अचानक हुई दुर्घटना या रोग होता तो अलग बात थी. किन्तु यहाँ तो यह स्थिति पहले से ही थी.
घुघूतीबासूती
मेरा उठाया हुआ सवाल भी शामिल था सो हम खुश हैं :) | लेकिन जहाँ तक पुरुषों की बात है घुघुती मैम.... मेरे आस पास ऐसे कई पुरुष हैं जिन्होने ठीक उसी तरह का त्याग (वैसे ये शब्द ही गलत है इस संदर्भ में) दिया है जैसी कि हमेशा से हमारा समाज स्त्रियॉं से अपेक्षा करता है | मेरे बड़ी दीदी के पतिदेव एक तो ऐसे ही पुरुष, जहाँ मेरे घर में अल्जाइमर से घिरे मेरे पापा को अपने इकलौते बेटे की कमी महसूस नहीं होने देते |
ReplyDeleteलेकिन स्पष्ट है कि ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं | वरना तो इस समाज में एक स्त्री द्वारा अपने ससुराल पक्ष के लिए "त्याग" किए जाने को एकदम से स्वाभाविक मान लिया गया है | कई बार तो सुनने में ये भी आ जाता है ऐसी स्त्रीयों के लिए कि "इसमें कौन सी बड़ी बात है,,,ये तो उसका कर्तव्य है " ....हाऊ आयरोनिकल !
गौतम राजरिशी, पति पत्नी के माता पिता का ध्यान रखना या उनके लिए कुछ करना मुझे बहुत स्वाभाविक सा लगता है, त्याग सा नहीं. हाँ यदि वह करने के लिए किसी को अपनी जीवन शैली ही पूरी तरह बदलनी पड़े, अपना काम, अपनी पढाई लिखाई, नौकरी छोडनी पड़े, तो वह त्याग होगा.
ReplyDeleteमेरे माता पिता बहुत बार हमारे पास रहे. माँ अंतिम दो वर्ष हमारे पास थीं. किन्तु मेरे पति का मुझे इसमें सहयोग व सामाजिक रीतियों की दुहाई न देते हुए मेरा साथ देना मुझे सहयोग लगा त्याग नहीं. यदि उनके माता पिता हमारे साथ रहते तो भी यही सब स्वाभाविक रूप से होता.
हाँ, हमारे समाज में पत्नी के माता पिता को अपने माता पिता की तरह मानने वाले पुरुष बहुत कम हैं इसलिए जो ऐसा करते हैं उनके प्रति आदर का भाव आता है. उनके सहयोग को मेरा सलाम. आपके जीजाजी को भी मेरा सलाम.
वैसे सेवा तो प्राय: बहुएँ या बेटियाँ ही करती हैं, बेटा या जवाई अधिकतर या तो सहयोग करते हैं या नहीं करते हैं. यदि वे भी सेवा करें तो सोने में सुहागा होगा.
घुघूतीबासूती
जो सवाल उस महिला से करने थे वो तो आपने किए नहींऔर यूं ही आपने और आपके पाठकों ने दोषारोपण भी कर दिया।
ReplyDeleteये सभी परिस्थितियां महिला को पहले से ही पता होंगी पर जब इनको जानते हुए उन्होंने शादी की तो त्याग कैसा या तो वे पहले ही अपनी बात स्पष्ट रूप से कहती, और जब हाँ कर ही दी, तो जिम्मेदारियां तो उठानी ही होंगी, हाँ ऐसे पुरुष बिरले होते हैं, लेकिन आज की पीढ़ी में ये भी देखने मिल रहा है जो निश्चय ही सुखद है
ReplyDeleteमहिलाओ की परिस्थिति को आपने बहुत अच्छे से उजागर किया है। औरत ही हर इस्थिति में समझौता करती है।
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ReplyDeleteमहिलाओ की परिस्थिति को आपने बहुत अच्छे से उजागर किया है। औरत ही हर इस्थिति में समझौता करती है।
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Posted by Santosh Arya to घुघूतीबासूती at 4:38 p.m.
सॉरी,यह स्पैम में चला गया था .