Friday, March 30, 2012

तितली का पंख


तितली का पंख हूँ,
पकड़ने का यत्न न करना
टूट तो जाऊँगी ही मैं
किन्तु हाथ तुम्हारे भी
न आऊँगी मैं।
चूरा चूरा हो जाऊँगी
खत्म हो जाऊँगी
किन्तु हाथ तुम्हारे या
अन्य किसी के
कभी न आऊँगी मैं।
मैं हाथी दाँत नहीं
जो अकूत शक्ति वाले
को मारकर तुम पा जाओगे
मैं पंख हूँ नाजुक तितली का
जो तुम छीन ना पाओगे।
तितली का पंख हूँ मैं
चाहूँगी तो अधरों, चिबुक या
पलकों को छू उड़ जाऊँगी मैं
पकड़ना चाहोगे तो हाथ में
शव ही मेरा पाओगे तुम।
घुघूती बासूती

21 comments:

  1. घुघूती जी,
    कविता की आत्मा बहुत सुंदर है, पर तन निखारने की आवश्यकता है। इसे प्रकाशित करने में कुछ जल्दी नहीं हो गई?

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  2. जी हाँ, जल्दी तो हुई ही. न करती तो शायद पोस्ट ही न कर पाती. निखारने का यत्न किया जाएगा. दौड़ते भागते ये पंक्तियाँ लिख डालीं.
    घुघूतीबासूती

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  3. मानव प्रकृति के साथ यही कर रहा है।

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  4. सुन्दर भावनाओं को अभिव्यक्त किया है.

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  5. नाजुक सौंदर्य के अस्तित्व बोध को बलशाली के सहअस्तित्व की कामना को चुनौती देना और वह भी आत्मघाती / हाराकिरी के अंदाज़ में ...

    अस्तित्व की स्वतंत्रता की शिद्दत / तीव्रता प्रभावित भी करती है !... पर जीवन और प्रकृति के सहअस्तित्व / सहजीविता नियम का निषेध भी करती हुई लगती है !

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  6. बाप रे ,तितली तूं क्या यह सब अलाय बलाय कहे जा रही है !

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  7. बहुत सुन्दर मनोभाव...तितली के पंखों की तरह ही कोमल....

    सादर.

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  8. कोमल मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  9. बालक को यह अभास कहाँ कि रंगों से भरा यह चलता फिरता इन्द्रधनुष भी उसकी तरह ही जीता जागता प्राणी है। :(

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  10. बहुत सुन्दर रचना. पुराना एक फ़िल्मी गीत याद आ गया. "तितली उडी, उड़ा जो चली, फूल ने कहा, आजा मेरे पास, तितली कहे मैं उडी आकश"

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  11. सुन्दर भाव, निर्थक तृष्णा पर लगाम दो, मिलेगा तो कुछ नहीं पर जान चली जाएगी।

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  12. समझ पायेगा कोई तितली का यह मनोभाव

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  13. बेहतरीन नाज़ुक एहसासों से भीगी कविता......
    मैं पंख हूँ नाजुक तितली का
    जो तुम छीन ना पाओगे।
    तितली का पंख हूँ मैं
    चाहूँगी तो अधरों, चिबुक या
    पलकों को छू उड़ जाऊँगी मैं
    पकड़ना चाहोगे तो हाथ में
    शव ही मेरा पाओगे तुम।
    बहुत सुन्दर दाद क़ुबूल फरमाएं !

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  14. शायद हमारी टिपण्णी स्पैम में चली गई ।

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  15. यही सच अगर समझ लेआदमी तो सब-कुछ कितना आसान हो जाय !

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  16. नाज़ुक पर अपरिमित शक्ति
    तितली - अदभुत चाह , उड़ान , सौंदर्य .... कम मत समझना

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  17. डॉक्टर दराल जी, क्षमा कीजिएगा,स्पैम में नहीं है। न जाने क्यों कुछ टिप्पणियाँ खो जा रही हैं। ब्लॉगर के लिए ये कितनी अमूल्य होती हैं यह कैसे समझाएँ व किसे समझाएँ? मेरी भी न जाने कितनी टिप्पणियाँ खो जा रही हैं। दुख तो तब होता है जब लम्बी चौड़ी टिप्पणी दी हो। मुझे लगता है कि हमें टिप्पणियों को भी एक दो दिन संभाल लेना चाहिए ताकि खोने पर पुनः कर सकें।
    आशा है आप भविष्य में भी अपनी राय देते रहेंगे।
    घुघूतीबासूती

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  18. बहुत मार्मिक कविता है. बधाई.

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  19. kash har koi dusro ke dil ki peeda samaj pata...apne manoranjan ke liye log kisi ko kitna bhi kast de dete hai...
    welcome to माँ मुझे मत मार

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  20. बचपन में तितली के पीछे दौडते थे उसे पकडने को वही याद आ गया । कई बार तो अपने आप आपके हथेली पर बैठ जायेनही तो कुचल जा.े पर हात ना आये । ऐसा ही है हमारा मन ।

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  21. बड़ा ही कोमल दिल है अपना..

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